हमारी गाड़ियां स्वयंभू स्तूप की ओर चल पड़ी। काठमाण्डु शहर बहुत अपना सा लग रहा है। भारत के प्राचीन शहरों की तरह। हमें राजू मानन्दर ने बताया कि वह हमें जिस रास्ते से ले जा रहा है। वहां से आधी सीढ़ियां चढ़नी पड़ेंगी। वरना 423 सीढ़िया चढ़ कर यानि 77 मीटर की ऊँचाई पर स्वयंभू स्तूप के दर्शन होंगे। गाड़ी से उतरते ही कुछ दूरी पर प्रवेशद्वार है। अंदर जाते ही सामने ओल्ड पीस पॉण्ड है। पास ही सिक्के मिलते हैं। वहां पानी में रखे बर्तन में सिक्के डालते हैं। ऐसा मानना है कि जिसका सिक्का बर्तन में गिर जाता है। उसकी इच्छा पूरी हो जाती हैं। पयर्टक सिक्के डाल रहे हैं। मैंने 3 बार डाले, मेरे सिक्कों ने तो बर्तन को छुआ भी नहीं।
अब आराम करते हुए, मैं सीढ़ियां चढ़ने लगीं।
कोई दर्शनार्थी अपने बच्चों को इसके निर्माण की कहानी सुनाते हुए चढ़ रहा था। मैं भी सुनने लगी। 2000 साल पहले यहां झील थी। मंजुश्री चीन से यहां ध्यान लगाने आया। बहुत समय तक वह ध्यानमुद्रा में रहा तो उसके बाल बढ़ गए और उनमें जूंए पड़ गई। जब वह ध्यान से उठा तो उसने झील में एक कमल देखा। उसने अपनी तिलस्मी तलवार से साउथ इर्स्टन पहाड़ियों को काट दिया। पानी दूसरी ओर चला गया और कमल को स्तूप से ढक दिया। जो आज हम इस रूप में देखेंगे। सीढ़ियां खत्म होते ही सामने सुनहरा वज्र दिखता है। और बहुत ही शरीफ़ बंदर घूम रहे हैं। किसी से कुछ छिनते नहीं न तंग करते हैं! कोई कुत्ता सो रहा है तो आस पास कबूतर घूमते हैं। मेरे सामने तो कुत्ते ने कबूतर को नहीं झपटा!
स्वयंभू काठमाण्डु के पश्चिम में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है प्राचीन बौद्ध स्तूप है। यह काठमाण्डु के बाहरी इलाके में स्थित है। विश्व धरोहर में सम्मिलित स्वयंभू विश्व के सबसे भव्य बौद्ध स्थलों में से एक हैं। इसका संबंध काठमाण्डु घाटी के निर्माण से जोड़ा जाता है। काठमाण्डु से तीन किलोमीटर पश्चिम में घाटी से 77 मी. की ऊँचाई पर स्थित है। यहां बड़ी संख्या में बंदर हैं इसलिए इसे बंदर मंदिर भी कहते हैं। केन्द्रीय सफेद स्तूप के ऊपर एक सुनहरा शिखर है। शिखर पर पाँच स्टैचू पंच बुद्ध हैं। उसके नीचे चार तारे हैं। स्तूप जो चारों दिशाओं में बुद्ध की आंखों को दर्शाता हैं। ऐसे लगता है जैसे वह चारों दिशाओं में देख रहें हों। ये आँखें ज्ञान और करुणा का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। इसके नीचे यूनिटी का सिम्बल है। फिर तेरह सीढ़ियां हैं जो इस बात का प्रतीक हैं कि आत्मज्ञान तक पहुंचने के लिए आध्यात्मिक बोध के तेरह चरणों से गुजरना पड़ता है। स्तूप के दोनों ओर प्रताप मंदिर और अनुप्रिया मंदिर है। अनुप्रिया मंदिर भूचाल में क्षतिग्रस्त हो गया था जिसका फिर से निर्माण किया गया है। यहाँ खूबसूरत, नक्काशीदार मंदिर हैं, जिनमें से कुछ मंदिर लिच्छवी काल के हैं। देवताओं की मूर्तियों, लहराते प्रार्थना झंडे और बौद्ध प्रार्थना चक्र से घिरा हुआ है। ऐसा मानना है कि प्रार्थना चक्र को घुमाने से नकारात्मक उर्जा का नाश होता है और सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। एक तिब्बती मठ, संग्राहलय और पुस्तकालय हाल ही में जोड़े गए हैं। हरती देवी जो बच्चों की देवी है उनका मंदिर और परिसर में छोटे स्तूप और शिवालयों कीे कारीगरी देखते बनती है।ं कहते हैं शांतिपुर मंदिर में जिंदा तांत्रिक रहते हैं। यह मंदिर कभी कभी खुलता है। यहां के खाजाघर में चावल से बनी मीठी सेल रोटी जो तली होती है। उसमें काले चने डाल कर देते हैं। खाजाघर वाले ने बड़े गर्व से बताया कि यहां देवानन्द की हरे कृष्णा हरे राम फिल्म की शूटिंग हुई थी और अमिताभ बच्चन की महान फिल्म की शूटिंग हुई थी। यहां से काठमांडु घाटी को देखना बहुत अच्छा लगता है। कलाकृतिया ंतो लाजवाब हैं हीं। मेरा एक इयरिंग खो गया है। गलेश्वर में मुझे रूद्राक्ष की माला मिली है। यहां दिमाग में आ गया कि मैं तो रूद्राक्ष के ही इयरिंग लूंगी। जो कहीं नहीं दिख रहे हैं। मैं ज्यादा सीढ़ियों वाले रास्ते से उतरने लगी जिसके एक ओर दुकाने हैं। मेरे साथ रेखा गुप्ता है। हमने एक एक दुकान में देखा, पूछा नहीं मिले। सीढ़ियां खत्म होने से पहले एक जोडी रूद्राक्ष के इयरिंग दिख गए। तुरंत खरीदे और पहन लिए। मैं खुशी खुशी बस की ओर चल दी। क्रमशः