सुबह उसने कुत्ता घुमाते समय मुझे बताया कि डिनर आज हम उसके
घर पर करेंगे। दो डिश उसकी किचन में मुझे बनानी है। उसकी फ्रैंच सहेली एंजिलक्यू
पहले आयेगी, दो डिश वो
बनायेगी, दो कात्या मुले बनायेगी। उसका
पति बाद में ऑफिस से आयेगा| एंजिलक्यू के आने पर हम तीनों किचन में गये। मैंने दाल मक्खनी और पालक पनीर बनाया। इतने से काम में
दोनों ने मेरी मदद की| एंजिलक्यू तो छौंक की ही खूशबू को ही लंबी लंबी सांसो से
सूंघ सूंघ कर खुश होती रही। कात्या मुले ने मैश पोटैटो बनाए जो बहुत आसान थे| उसने
उबले आलू को कदृदूकस कर, खौलते दूध में
डाला उसमें हल्का नमक और नटमैग पाउडर डाला और आँच बंद कर दी। खाने के समय वह एकदम
सॉलिड हो गया और कद्दु का सूप बनाया। एंजिलक्यू की दोनो नॉनवेज डिश थीं। रोटी चावल
की जगह उबले आलू और जर्मन ब्रेड थी| मैं तैयार होने आ गई। बॉडर वाली सिल्क साड़ी
पहन कर जब मैं गई, दोनों बहुत खुश
हुईं, एंजिलक्यू इंगलिश नहीं जानतीं
थीं। उन्होंने मेरे लिए फ्रेंच में कहा कि ये डिनर क्वीन है| ये काम नहीं करेगी।
मैंने कात्या मुले से कहाकि यह हमारी गैस्ट है, तुम इससे ही बात करो। उसने मुझे दस बार धन्यवाद किया। इतने
में बेटी भी आ गई। कुछ ही देर में एंजिलक्यू के पति भी आ गये। कात्या मुले ने सबका
परिचय करवाया। डिनर क्वीन को छोड़ कर सबने लॉन में ही खाना लगाने में मदद की। इण्डियन, र्जमन और फैंच खाने की तस्वीरें ली गई। मेरे
परिचय में कात्या मुले ने कहा,” नीलम इण्डिया से है| ये सिग्रेट, शराब नहीं पीती है, न ही नॉनवेज खाती है। उन्होंने बड़े हैरान होकर मुझे देखा।
मेरी साड़ी की खूब तारीफ की। डिनर के बाद सबने मिलकर बर्तन धोये, किचन साफ की, बचे खाने को फ्रिज में पैक किया।
खाने की बर्बादी बिल्कुल भी नही| मैंने कात्या से इस बात की तारीफ़ की तो धन्यवाद
करके उसने बताया कि उसकी मां बताती हैं कि विश्वयुद्ध के समय एक आलू पर लोग गुजारा
करते थे| बचपन से ही फ़ूड वेस्ट करने की आदत नहीं है| और बाय करके सब अपने अपने घर चल दिये। बेटी थोड़ी
फैंच जानती है। उसने बताया कि दस मिनट तक आपकी साड़ी और सब्जी, दाल पर चर्चा चली। मुझे कात्या मुले के मैश
पोटैटो, कद्दू के गाड़े सूप के साथ
बहुत अच्छे लगे। बेटी ने बताया कि नॉनवेज भी बहुत स्वाद था। मैं इन दोनो महिलाओं से
बहुत प्रभावित थी। फिटनैस भी गज़ब, आत्मनिर्भर,
जो भी पकाती वो लजी़ज होता। फ्रेंच एंजिलक्यू
के पति से तो और भी ज्यादा क्यों कि वह ऑफिस से आया था पर आते ही सबके साथ काम पर
लग गया| अब मेरे परिवार में मैश पोटैटो
बेबी फूड बन गया है।क्रमश:
Search This Blog
Showing posts with label Baby food. Show all posts
Showing posts with label Baby food. Show all posts
Monday, 11 November 2019
Wednesday, 11 May 2016
चूम्मू क्या खायेगा? इंटरनेट बतायेगा!! Chummu Kya Khayega? Internet bataiyega!!
मेरा चुम्मू
सात महीने का
होकर आठवें में
लगा है। उसकी
दादी जी कहती
हैं कि उसका
अन्नप्राशन संस्कार करके, उसे
दूध के अलावा,
कुछ न कुछ
साॅलिड फूड भी
खिलाना चाहिए। अब उनके
समय में तो
इन्टनेट था नहीं,
जो उनकी सास
ने कहा, उन्होंने
कर दिया। पर
मेरी तो चुम्मू
के पापा से शादी भी इन्टरनेट
के जरिए से
हुई है। और
तो और प्रेगनेंसी
में भी मैंने
सारी जानकारी इन्टरनेट
के जरिए प्राप्त
की, कि किस ट्राइमिस्टर
में क्या होता
है और उसमें
मुझे क्या करना
चाहिए और क्या
नहीं। बेटे का
नाम चुम्मू भी
मैंने इंटरनेट से
लिया है। अब
बात मेरी नहीं
थी, मेरे लाडले
चुम्मू के खाने
की है। मैंने
सासूजी की गोद
में चुम्मू को
दिया और कहा,’’आप इसे
सम्भालिए, मैं इन्टरनेट
से जानकारी लेती
हूँ, कि मेरा
चुम्मू क्या खायेगा।’’
वे कम्प्यूटर नहीं
जानती, इसलिए आज्ञाकारी बच्चे
की तरह, मेरे
बच्चे का मुहँ
चुमते हुए ले
गई ताकि मुझे
डिस्टर्बेंस न हो
और मैं लैपटाॅप
खोल कर बैठ
गई।
बेबी फूड
में पहली बात
तो ये कि
उसमें अन्नप्राशन का
कहीं जिक्र नहीं
था। काफी सिर
खपानेे के बाद
मुख्य बातें, मैंने
अपने दिमाग की
मैमोरी में फीड
कर लीं। जैसे
बच्चे को मीठे
और नमक का
स्वाद नहीं पता
होता है। इसलिये
जैसे टेस्ट की
आदत दोगे, वैसा
ही वह पसंद
करने लग जायेगा।
ये बात तो
इन्टरनेट की सौ
प्रतिशत मुझे ठीक
लगी। जैसे मेरे
पति को अपनी
माँ के हाथ
का खाना बहुत
पंसद है। इसका
मतलब ये नहीं
की मैं अच्छा
खाना नहीं बनाती,
बल्कि ये कि
उन्होंने माँ के
दूध के बाद,
खाने की शुरुवात,
अपनी माँ के
बनाये खाने से
की है। अब
जैसा उन्होंने खिलाया,
वही उनकी आदत
बन गई। चुम्मू
के चबाने के
दाँत नहीं हैं
इसलिए उसे जो
भी देना है,
मैश करके देना
है। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट
और फाइबर आदि।
मैंने एक छोटा
सा प्रेशर कुकर
खरीदा क्योंकि थोड़ा
सा मैश खाना
छोटे बर्तन में
ही ठीक रहता
है। इन्फेंट चेयर खरीदी। मैंने खिचड़ी
का घोल तैयार
किया। बच्चे को
खिलाने का चम्मच
जैसा इन्टनेट में
दिखाया था, वो
भी खरीदा। उसी
से चुम्मु के
मुँह में घोल
डाला। उसने थू
कर दिया।
सासू
जी बोली,’’नमक
तो ज्यादा नहीं
डाला?’’ मैंने कहा कि
नमक तो मैंने
डाला ही नहीं।’’
प्रशन पूछने की नज़रों
से वो मेरा
मुंह ताकने लगीं।
मैंने उन्हें समझाया
कि इसे नमक
और मीठे का
स्वाद ही नहीं
पता क्योंकि माँ
के दूध में
नमक या मीठा
नहीं मिलाया जाता।
दो दिन तक
मैं उसके लिए
कुछ न कुछ
इंटरनैट से पढ़
कर, बनाकर खिलाने
की कोशिश करती
रही, उसने नहीं
खाया। आज
सासू जी ने
इनफैंट चेयर लाकर
डाइनिंग टेबल के
साथ लगा दी।
जब सब खाने
के लिए बैठे
तो उन्होंने चुम्मू
को भी उसकी
चेयर पर बिठा
दिया। उसकी चेयर
की ऊँचाइ्र्र डाइनिंग
टेबल जितनी थी।
उसे खाने के
रंग, बर्तनों की
आवाज आकर्शित कर
रही थी। मम्मी
जी ने उसके
लिए बिना मिर्च
मसाले की दाल,
सब्ज़ी निकाल के रखी हुई थी। वे
मैश करके उसके
भी मुँह में
जरा जरा सी
डालती जा रहीं
थीं। चुम्मू का
मुँह चलता देख,
मेरे मुँह से
निकला,’ चुम्मू क्या खाएगा,
जो बड़ों का
अनुभव बतायेगा।’
Subscribe to:
Posts (Atom)