लोग जो समाज की सेवा करते हैं, सफाईवाली दीदी !!!
नो...नो...नो.... लो कर लो बात!
नीलम भागी
गीता के प्ले स्कूल की डायरी में लिखा था कि कल पेरैंटस अपने बच्चों को फैंसी ड्रेस के लिये तैयार करके भेजेगें, थीम है ’लोग जो समाज की सेवा करते हैं’। मेरे घर के सदस्यों ने तो ढाई साल की गीता के लिये कमीशन बिठा दिया, जिसका एजेंडा था ’गीता को क्या बनाया जाये।’ डॉक्टर, पुलिस, नर्स आदि के नाम सबने सुझाये, पर किसी ने भी सफाईवाली दीदी और पोस्टमैन का ज़िक्र भी नहीं किया, ये भी तो आवश्यक सेवक हैं। पर मेरे दिमाग में तो स्वच्छ भारत अभियान छाया हुआ है। अगले दिन मैं गीता को सफाईवाली दीदी बना कर ले गई। छोटी बच्ची है, इतना बड़ा झाड़ू कैसे उठायेगी इसलिये मैंने उसे सफाईवाली दीदी की पहचान के लिये डस्टिंग ब्रुश पकड़ा दिया। जिसे पकड़ते ही गीता बहुत खुश हुई। रास्ते भर वह गाड़ी के अंदर मंगला बाई की तरह डस्टिंग करती गई। स्कूल जाकर मैं हैरान रह गई। वहाँ तो होल सेल में सभी थे यानि कई डॉक्टर, ढेरो पुलिस आदि। मेरी सफाईवाली दीदी इकलौती थी। सभी पेरैंट्स ने उसे हिकारत से देखा, सिवाय उसकी टीचर्स के। डॉर्क्टस ने अपनी मैडिकल किट, पुलिस ने अपनी खिलौना पिस्टल सब छोड़ दी। सबको गीता का रंगबिरंगा डस्टिंगब्रुश चाहिये था। ये बच्चे देसी विदेशी सब तरह के खिलौने अफोर्ड करते हैं लेकिन पचास रूपये का डस्टिंगब्रुश, इन्हें छूने को भी नहीं मिलता। आज गीता के हाथ में देख कर, सबको वही चाहिये था। सबके साथ शेयरिंग करने वाली गीता, उसे आज किसी को छूने भी नहीं दे रही थी क्योंकि उनकी तरह के खिलौने तो गीता के भी पास हैं पर डस्टिंगब्रुश तो उसे आज ही मिला है न। वह उसे भला क्यों देगी!! अब गीता ने अपने डसि्ंटगब्रुश को बंदूक की तरह कंधे पर तान लिया। इसी तरह स्टेज पर वह गई। किसी ने भी ताली नहीं बजाई। पर गीता ने अपने पूरे दाँत निकाल रखे थे।😃 वह सबको देख रही थी, शायद सोच भी रही हो कि उसके लिये क्लैंपंग क्यों नहीं!! अंत में गीता को फर्स्ट प्राइज़ देते हुए प्रिंसिपल ने कहा,’’जहाँ स्वच्छता होगी, वहाँ बिमारी नहीं होगी। गीता ने हमें यह संदेश दिया है।’’
नो...नो...नो.... लो कर लो बात!
नीलम भागी
गीता के प्ले स्कूल की डायरी में लिखा था कि कल पेरैंटस अपने बच्चों को फैंसी ड्रेस के लिये तैयार करके भेजेगें, थीम है ’लोग जो समाज की सेवा करते हैं’। मेरे घर के सदस्यों ने तो ढाई साल की गीता के लिये कमीशन बिठा दिया, जिसका एजेंडा था ’गीता को क्या बनाया जाये।’ डॉक्टर, पुलिस, नर्स आदि के नाम सबने सुझाये, पर किसी ने भी सफाईवाली दीदी और पोस्टमैन का ज़िक्र भी नहीं किया, ये भी तो आवश्यक सेवक हैं। पर मेरे दिमाग में तो स्वच्छ भारत अभियान छाया हुआ है। अगले दिन मैं गीता को सफाईवाली दीदी बना कर ले गई। छोटी बच्ची है, इतना बड़ा झाड़ू कैसे उठायेगी इसलिये मैंने उसे सफाईवाली दीदी की पहचान के लिये डस्टिंग ब्रुश पकड़ा दिया। जिसे पकड़ते ही गीता बहुत खुश हुई। रास्ते भर वह गाड़ी के अंदर मंगला बाई की तरह डस्टिंग करती गई। स्कूल जाकर मैं हैरान रह गई। वहाँ तो होल सेल में सभी थे यानि कई डॉक्टर, ढेरो पुलिस आदि। मेरी सफाईवाली दीदी इकलौती थी। सभी पेरैंट्स ने उसे हिकारत से देखा, सिवाय उसकी टीचर्स के। डॉर्क्टस ने अपनी मैडिकल किट, पुलिस ने अपनी खिलौना पिस्टल सब छोड़ दी। सबको गीता का रंगबिरंगा डस्टिंगब्रुश चाहिये था। ये बच्चे देसी विदेशी सब तरह के खिलौने अफोर्ड करते हैं लेकिन पचास रूपये का डस्टिंगब्रुश, इन्हें छूने को भी नहीं मिलता। आज गीता के हाथ में देख कर, सबको वही चाहिये था। सबके साथ शेयरिंग करने वाली गीता, उसे आज किसी को छूने भी नहीं दे रही थी क्योंकि उनकी तरह के खिलौने तो गीता के भी पास हैं पर डस्टिंगब्रुश तो उसे आज ही मिला है न। वह उसे भला क्यों देगी!! अब गीता ने अपने डसि्ंटगब्रुश को बंदूक की तरह कंधे पर तान लिया। इसी तरह स्टेज पर वह गई। किसी ने भी ताली नहीं बजाई। पर गीता ने अपने पूरे दाँत निकाल रखे थे।😃 वह सबको देख रही थी, शायद सोच भी रही हो कि उसके लिये क्लैंपंग क्यों नहीं!! अंत में गीता को फर्स्ट प्राइज़ देते हुए प्रिंसिपल ने कहा,’’जहाँ स्वच्छता होगी, वहाँ बिमारी नहीं होगी। गीता ने हमें यह संदेश दिया है।’’