शाम को उत्कर्षिनी की फिल्म सरबजीत का प्रीमियर था। बेटी ने मेरे लिये मूंगा सिल्क की साड़ी खरीदी। इयरिंग के अलावा, मैं कोई जेवर नहीं पहनती, वो डायमण्ड के खरीदे गये। बेटी ने अपने पति से पूछा,’’माँ के चेहरे पर क्या करवाऊँ?’’उन्होंने कहा कि सिर्फ क्लीनिंग, नो पार्लर मेकअप, जैसे रहती हैं, वैसे ही रहने देना। बेटी ने मशहूर ब्यूटीपार्लर में मेरा फेस क्लीनिंग करवाया और मेरी इच्छा के खिलाफ बालों की सेटिंग करवाई। अपनी डेढ़ साल की बेटी गीता को उसकी बेबीसिटर के साथ पहली बार अपनी सहेली के घर छोड़ा क्योंकि सहेली की बेटी उसकी हम उम्र थी। मैंने बहुत समझाया कि मैं गीता के पास रुक जाती हूं। बेटी ने फैसला सुनाया कि आप जरुर जाओगी। अंधेरी मुम्बई का पी. वी. आर प्रीमियर के लिये बुक था। सितारों और कलाकारों की एक झलक पाने के लिए और उनको अपने मोबाइल कैमरे में कैद करने के लिए, सड़क के दोनो ओर उनके प्रशंसकों की भीड़़ को पुलिस ने नियंंित्रत कर रक्खा था। र्काड दिखाने पर हमारी गाड़ी गेट तक गई। रेड कार्पेट पर हमारे कदम पड़े। बेटी ने मेरी बांह में अपनी बांह डाली हम धीरे धीरे चलने लगे। दोनो ओर से हम पर कैमरों की लाइटें पड़ रहीं थीं। माइक में बेटी का परिचय बोला जा रहा था,’’इस फिल्म की लेखिका, डायलॉग लेखिका... उत्कर्षिनी वशिष्ठ, लोग ध्यान से उसका परिचय सुन रहे थे। और मैं!.... इसका जन्म याद कर रही थी, मेरी कोख से बाहर आते ही उसका रोना। दाई से ’कुड़ी जम्मी ए’(बेटी पैदा हुई है) सुन कर अपने न रुकने वाले आंसू। इसके जन्म पर मेरा दिल क्यों बैठ गया था!!... बेटी मेरा हाथ पकड़ कर शो देख रही थी। सरबजीत के मरने के सीन से पहले एक दुबली, पतली , सफेद, चुन्नी से सिर ढके महिला, अपनी सीट से उठ कर बेटी के पास आई। उसे गले लगा कर बेआवाज रोती हुई बाहर चली गई। बेटी मेरे कान में बोली,’’माँ, ये सरबजीत की पत्नी थी। सुनकर मैं बोली,’’बेटी ये तेरे लेखन को पुरस्कृत कर गई है।’’ शो के बाद वह सबसे बधाई ले रही थी। उसके लिखे डायलॉग की प्रशंसा हो रही थी और मैं अपने से पूछ रही थी कि मैं बेटी के जन्म पर क्यों रोई थी!!... और चार पीढ़ियों की महिलाओं की ज्ञान परंपरा मेरे दिल में चल रहीं थी।
सौभाग्य से मैं ऐसी विरासत से सम्बन्धित हूँ, जिनका इतिहास अपने में महिला सशक्तिकरण की मिसाल रहा है। ज्ञान की परम्परा हमें विरासत में मिली है। जिसे हमने आगे बढ़ाया है। उत्त्कर्षिणी जब विदेश पढ़ने गई तो मैं इस भय से बीमार पड़ गई कि मैं इसकी पढ़ाई पूरी करवा पाउंगी! अचानक मुझे याद आया कि मेरे नाना रला राम जोशी सवाल सुनते ही उत्तर बोल देते थे। मैं छुट्टियों में ननिहाल कपूरथला गई। उस समय वो तिरानवे साल के थे ,मैं सातवीं में पढ़ती थी। मैंने पूछा,’’नाना आपने गणित की किताबे लिखी, दिन भर आपको छात्र घेरे रहते हैं। आपको मैथ किसने सिखाया?’’ वे बोले,’’ मेरी अनपढ़ विधवा मां ने, उसे जितना हिसाब आता था, उसने कौढ़ियों से गिनना, जोड़ना, घटाना मुझे सिखाया। मुझ में रुचि पैदा की। ’’अकेली अनपढ़ औरत ने उस जमाने में बेटा गणितज्ञ बनाया। मैं भी तो उनकी वंशज हूं। मेरे अंदर उत्साह आ गया। मुझे तो संघर्ष की प्रेरणा भी, उनसे विरासत में मिली। क्रमशः
केशव संवाद में प्रकाशित ये रचना, प्रेरणा विमर्श 2020 विमोचन |