जब कृष्णा पागांडा उम्र(6-10) साल में प्रवेश करते हैं तब उन्होंने गाय चराने जाने की ज़िद पकड़ ली। छ साल के कान्हा कहते हैं कि वे बड़े हो गए इसलिए गाय चराने जायेंगे। नंद बाबा ने शांडिल्य ऋषि से मुहुर्त निकलवाया तो उसी दिन का मुहुर्त निकला। इसके अतिरिक्त 12 महीने तक कोई मुहुर्त ही नहीं था। अब भला बच्चे को 12 तक रुलाएगा! कृष्ण और बलराम इस दिन से गाय चराने गए और गोपाल बने। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी यानि गोवर्धन पूजा के सातवें दिन गोपाष्टमी पर्व(1नवम्बर) के रुप में मनाया जाता है। यह उत्सव श्री कृष्ण और उनकी गायों को समर्पित है। इस दिन गौधन की पूजा की जाती है। गाय और बछड़े की पूजा करने की रस्म महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी के समान है। हमारे परिवारों में तो गाय परिवार का मुख्य सदस्य है, तभी तो फैमली फोटोग्राफ में होती है।
गंगा के लिए गोपाष्टमी को गुड़ सौंफ का दलिया बनता था और उसके दूध से खीर बनती जो इस दिन गोपाला के भजन कीर्तन का प्रशाद होती है। भगवान कृष्ण के जीवन में गौ का महत्व बहुत अधिक था। उनकी गौसेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा। महानगरों में गाय घरों में नहीं पलतीं लेकिन गोपाष्टमी पर उनकी पूजा जरुर की जाती है।
कुछ उत्सव किसी अंचल में मनाए जाते हैं। कुछ
देश भर में, भले ही नाम अलग
अलग हों। जैसे दक्षिण भारत में भी कार्तिक मास के पावन अवसर पर काकड़ आरती का
प्रारंभ परम्परानुसार शरदपूर्णिमा के दूसरे दिन से होता हैं। देवउठनी एकादशी के
अवसर पर काकड़ आरती को भव्य स्वरूप दिया जाता है। तुलसी सालिगराम का विवाह उत्सव(5 नवंबर)को मनाया जाता है। वारकरी सम्प्रदाय के
बुजुर्ग बताते हैं कि संत हिरामन वाताजी महाराज ने 365 वर्ष पहले काकड़ आरती की शुरुआत की थी। आरती में शामिल होने
के लिए श्रद्धालु प्रातः 5 बजे विटठल मंदिर
में आते हैं और भजन मंडलियां पकवाद, झांज, मंजीरों एवं झंडियों के
साथ नगर भ्रमण करती है। जगह जगह चाय, कॉफी, दूध एव नाश्ते की
व्यवस्था श्रद्धालुओं द्वारा रहती है। प्रत्येक मंदिर में सामुहिक काकड़ा जलाकर
काकड़ आरती प्रातः 7 बजे तक प्रशाद
वितरण के साथ सम्पन्न होती है। उत्तर भारत में प्रभात फेरी निकाली जाती है।
कार्तिक पूर्णिमा
को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। त्रिपुरास राक्षस पर शिव की विजय का उत्सव
है। शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी, सरोवर एवं गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरुक्षेत्र
अयोध्या, काशी में स्नान करने से
विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे देव दीपावली(7नवम्बर, ग्रहण के कारण
परिवर्तन हो सकता है) गंगा दीपावली के रूप में मनाते हैं। गंगा नदी और देवी
देवताओं के सम्मान में घरों में रंगोली बना कर तेल के दियों से सजाते हैं।
महाभारत काल में हुए 18 दिन युद्ध के बाद की स्थिति से युधिष्ठिर कुछ विचलित हो गए
तो श्री कृष्ण पाण्डवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान में आए। कार्तिक
शुक्ल अष्टमी को पाण्डवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे
यज्ञ किया। इसके बाद दिवंगत आत्माओं की शक्ति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि
अर्पित की। इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रुप से गढ़मुक्तेश्वर में स्नान करने का
विशेष महत्व है। यह देश भक्ति से भी जुड़ा हैं। इस दिन बहादुर सैनिक जो भारत के लिए
लड़ते हुए शहीद हो गए हैं उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।
गुरू नानक जयंती(8 नवंबर) को उत्सव की तरह मनाया जाता है। गुरुद्वारों में
शबद कीर्तन होता है और लंगर वरताया जाता है।
सामाजिक समरसता का प्रतीक ’वन भोजन’ भी कार्तिक मास में आयोजित किए जाते हैं। इसमें कुछ लोग मिलकर अपनी सुविधा के दिन, अपना बनाया खाना लेकर प्रकृतिक परिवेश में एक जगह रख देते हैं। कोई प्रोफैशनल नहीं होता है, जिसे जो आता है वो अपनी प्रस्तुति देता है। खूब मनोरंजन होता है। फिर सब मिल जुल कर भोजन करते हैं। क्रमशः
प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद के नवंबर अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है।