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Friday, 6 January 2023

हमारी जानकी बहुत धैर्यवाली हैं पुनौराधाम, साहित्य संर्वधन यात्रा भाग 6 नीलम भागी Punnoradham Sitamarhi Part 6 Neelam Bhagi

  

श्रद्धा और भक्ति का केन्द्र पुनौराधाम जानकी मंदिर से 2 किमी. की दूरी पर सीतामढ़ी-शिवहर  पथ पर है। त्रेता युग में राजा जनक की पुत्री, भगवान राम की पत्नी की पुनौरा जन्मस्थली है। जनश्रुति के अनुसार  यहाँ पुण्डरिक ऋषि का आश्रम था। एक बार मिथिला में अकाल पड़ गया। पंडितों पुरोहितों के कहने पर राजा जनक ने इंद्र को प्रसन्न करने के लिये हल चलाया। पुनौरा के पास उन्हें भूमि में कन्या रत्न प्राप्त हुआ और साथ ही वर्षा होने लगी। अब भूमिसुता जानकी को वर्षा से बचाने के लिये तुरंत एक मढ़ी का निर्माण किया, उसमें सयत्न जानकी को वर्षा पानी से बचाया गया। अब वही जगह सीतामढ़ी के नाम से मशहूर है। प्राचीन काल में यह तिरहूत का अंग था। विष्णुपुराण के अनुसार पुनौरा ग्राम के पास ही रामायण काल के पुंडरीक ऋषि ने तप किया। वृहद विष्णुपुराण के अनुसार अवतरण की भूमि के पास ही वे रहते थे। महन्त के प्रथम  पूर्वज विरक्त महात्मा और सिद्धपुरूष थे। वहीं उन्होंने तपस्या के लिए आसन लगाया जो उनकी तपोभूमि हो गई। जिससे इस स्थान का नाम पुण्डरिक ग्राम पड़ा। कालान्तर में पुनौराधाम के रुप में प्रचलित हुआ।

मंदिर में दर्शन करने के बाद सीता जन्म कुण्ड के खूबसूरत परिक्रमा मार्ग पर परिक्रमा की, जो हरियाली से घिरा हुआ है।


जगह जगह बोर्ड लगे थे। उस पर लिखा था कृपया थूकिए नहीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि लोगों को यहाँ इतना थूकना क्यों पड़़ता है? पास ही विवाह मंडप बना है। वहां आकर अल्प साधन सम्पन्न लोग शादी कर लेते हैं। परिक्रमा करते समय हमारे ग्रुप में जबरदस्त बहस छिड़ गई। डॉ0 मीनाक्षी मीनल सीताजी को श्रीराम से श्रेष्ठ सिद्ध करने में लगी थीं और अयोध्या के दीनानाथ द्विवेदी’’रंग’’अपने रामजी को श्रेय दे रहे थे क्योंकि जानकी उनकी पत्नी बनी इसलिए। उनका साथ दे रहे थे हरिबहादुर ’’हर्ष’’ और कवि राजकुमार शिशोदिया। बाकि हम सब इस अनोखी बहस का आनन्द उठा रहे थे। अकेली मिथलानी डॉ0 मीनाक्षी मीनल इन पर भारी पड़ रही थीं। श्रीधर पराड़कर जी ने इस बहस को अन्तराल दिया। हम सब को महन्त कौशल किशोर जी से मिलवाने ले गए। उन्होंने हमें उस पवित्र स्थान के बारे में बताया। साहित्यकारों ने जो भी प्रश्न किए उनके संतोषजनक जवाब दिए। उस समय मेरे मन में प्रश्न उठ रहा था जो मन में ही रह गया कि अयोध्या में रामजन्मभूमि पर विशाल मन्दिर बन रहा है तो सम्पूर्ण नारीत्व की गौरव गरिमा भूमिजा सीता की जन्मभूमि पर भी जानकी मंदिर बनना चाहिए। बचपन से अभिवादन में जयसियाराम सुना है तो सिया जी का क्यों नहीं! 




मेरे अनकहे प्रश्न का जवाब में महन्त कौशल किशोर जी कहने लगे कि सीता जी ने दुखी का जीवन काटा। हमारी जानकी बहुत धैर्यवाली हैं। वो चाहतीं हैं, पहले हमारे मालिक का बन जाए। उनके परिसर में आंवले के पेड़ों पर गुच्छों में आंवले लगे थे भुवनेश सिंघल ने तोड़े। फिर हमारी जानकी, हमारे राम पर बहस करते हुए मंदिर से बाहर आए तो तो सौभाग्यवतियों का सामान बेचनेवाला रविन्द्र साहा दुकानदार के कानों में इस बहस का जरा सा अंश पड़ा तो वे भी जानकी पक्ष की तरफ से बहसने लगा।


अयोध्या की तो रीति ही यही है बिना दुल्हे के आप बारात ले कर आ गए। और चारों बेटियाँ ब्याह कर ले गए। राजा जनक तो ठगे गए। यहाँ तो जिसको छेड़ो वही ’हमारी जानकी’। ऐसा लग रहा था जैसे त्रेता युग कुछ साल पहले ही बिता है। क्रमशः