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Thursday, 16 February 2023

गाड़ी लेट होने का मतलब! समापन से पहले बिहार यात्रा भाग 24 नीलम भागी

 

हम बाजारों से गुजरते हुए सीतामढ़ी से परिचय कर रहे थे। चीनी का एकदम सफेद बताशा, और बालूशाही दुकानों में खूब बिक रही थी। नदियों और पोखरों के कारण सब्जियाँ और तरह तरह की मछलियाँ भी सड़क किनारे कहीं से भी खरीदी जा सकतीं हैं। गोल लौकी का इतना बड़ा साइज मैंने यहीं पर देखा।



ये सब दुकानों के सामने  फुटपाथ पर बिक रहा था।  सड़क के किनारे टोकरों में महिलाएं मखाना बेच रहीं थीं। यह मखाने के लिए मशहूर है। मैंने रेट पूछा, उसने तीन सौ रुपए किलो बताया। मैंने झट से 2 किलो खरीद लिया। वो तो बहुत बड़े बड़े काले पॉलिथिन में उसने दिए। उनका साइज़ देखकर पहले मुझे चिंता हुई कि इतनी दूर  ले जाना है। अंकुर ने कहा था कि गाड़ी 4.50 सुबह पर पहुँचेगी। सर्दी में अंधेरा होता है इसलिए वह मुझे लेने आयेगा। बस यहाँ से चढ़ना, वहाँ की चिंता ही नहीं। आकार जितना मर्जी हो, वजन तो कुल दो किलो ही है। कुछ दूरी पर बातों में मश़गूल धर्मेन्द्र पाण्डेय और भुवनेश सिंघल मेरा इंतजार कर रहे थे। मेरे न न करने पर भी भुवनेश जी ने दोनों थैले मुझसे ले लिए। मैंने कहा,’’एक थैला मैं उठा लेती हूँ।’’ उन्होंने तुरंत कहा,’’नहीं बहन जी, बिल्कुल नहीं।’’होटल काफी दूर था। हम खादी ग्रामोद्योग गए। फिर डिनर के लिए जल्दी पहुँच गए, ये सोचकर कि होटल जाकर गाड़ी के समय ही निकलेंगे। खाना तैयार हो रहा था। वहाँ आलू की एक बहुत क्रिस्पी स्नैक की तरह बेहद आसान सब्जी बनती है। जो मैंने वहाँ बैठे बैठे सीख ली। बहुत छोटे आलूओं को अच्छी तरह धो कर बिना छीले बारीक बारीक काट लेते हैं। लोहे की कढ़ाही में सरसों का तेल डाल देते हैं जब तेल गर्म हो जाता है तो उसमें आलू के कतरन डाल देते हैं। बीच बीच में पलटे से आलू पलटते रहते हैं।

ऐसे सभी आलू सुनहरे हो जाते हैं और तेल छोड़ने लगते हैं। अब उसमें नमक डाल देते हैं। अगर पहले नमक डालेंगे तो तेज हो सकता है। इसे ढक कर नहीं पकाना है। डिनर के बाद हम पैदल होटल गए। मैं तो अपने कमरे में जाकर सो गई। हमारे प्रवीण आर्य जी का फोन आया। उन्होंने कई प्रश्न यात्रा के संबंध में हमेशा की तरह किए और पूछा,’’भुवनेश जी कहाँ है? वे फोन नहीं उठा रहे हैं।’’ मैंने बताया कि वे धर्मेन्द्र पाण्डे के साथ हैं। उन्होंने बड़ी खुशी से पूछा,’’ धर्मेन्द्र जी से बात हो सकती है।’’ मैं उनके रूम की ओर चल दी। उनका कमरा खुला हुआ था, दोनों रूम में नहीं थे। फोन ऑफ होत ही भुवनेश जी का फोन था,’’उन्होंने कहा,’’बहन जी, आप सामान लेकर रिसेप्शन पर आ जाओ।’’मैं भी वहाँ पहुँच गई। धर्मेन्द्र जी भुवनेश जी के सामान के साथ बैठे थे। इतने में भुवनेश जी बाहर से आए और बोले,’’सड़क पर खड़े होते हैं, शायद कोई गाड़ी मिल जाये। कोई ऑटो नहीं रुका। एक शेयरिंग ऑटो में उसका परिवार बैठा था, पहले उसने मना कर दिया फिर आगे रोक कर बुला लिया। हम रात 9.30 पर स्टेशन पहुँच कर, खुले में एक बैंच पर बैठ गए। 1.30 बजे हमारी गाड़ी सदभावना एक्सप्रेस थी। भुवनेश जी बताने लगे कि  होटल वाले ने जिन गाड़ी वालों के नम्बर दिए। वे पक्का सा नहीं कर रहे थे। मैं ये सोच कर ऑटो लेने चल दिया कि स्टेशन पर ही जाकर बैठते हैं। आप लोगों ने देख ही लिया न। अब मैं स्टेशन का चक्कर लगाने चली गई। वहाँ एनाउंस हो रहा था कि किसी अजनबी से बात मत कीजिए न किसी का दिया खाइए। वेटिंग रूम में तिल रखने की जगह नहीं थी। प्लेटफॉर्म पर भी लोग सो रहें हैं। खूब ठंड और हवा।

 सुबह 5.30 पर गाड़ी में सवार हुए। टैम्परेचर ठीक मेंटेन किया हुआ था। हमारी अपर और लोअर साइड सीट थी। कंबल ओढ़ कर सो गई। 12 बजे नींद खुली। ये गाड़ी दिल्ली आ रही थी, इसमें बस सबको यही टेंशन थी कि समय पर पहुँचा दे। 

गाड़ी आठ घण्टे लेट थी। किसी की फ्लाइट थी, शिव कुमार यादव को पी.सी.एल क्रिकेट ग्राउण्ड सेक्टर 140 नौएडा में मेैच खेलना था। अगली सुबह 4.50 के बाद तो भुवनेश जी को टाइम काटना बहुत मुश्किल हो रहा था। उन्होंने हिसाब लगाना शुरु किया कि गाड़ी का आठ घण्टे लेट होने का मतलब है एक आदमी के चार साल बेकार हो गए और मुझे कहीं पढ़ा याद आया "खाली बनिया क्या करें! इधर का बाट उधर धरे।" गाड़ी ने काफी कवर किया और हमारी यात्रा को 12.30 पर विराम मिला। भुवनेश जी ने जाते जाते खिलाड़ी को कहा कि वह बाइक बुक करे वो ही उसे सैकेण्ड मैच में पहुँचा सकती है। घर पहुंचते ही प्रवीण आर्य जी का फोन आया कि मैं ठीक पहुंच गई हूं और उन्होंने कहा कि यात्रा की तस्वीरें ग्रुप में लगाओ। समाप्त   







Wednesday, 15 February 2023

सनातन धर्म जिला केन्द्रीय पुस्तकालय सीतामढ़ी बिहार यात्रा भाग 25 नीलम भागी Bihar Yatra Part 25 Neelam Bhagi

हमने सनातन धर्म जिला केन्द्रीय पुस्तकालय परिसर में पहुँचते ही अपने मोबाइल साइलेंट मोड पर करके पुस्तकालय में प्रवेश किया। किताबों की दुनिया में खोय हुए पुस्तक प्रेमियों को देखते हुए, हम कार्यालय में गए। 




धर्मेन्द पाण्डेय ने लाइब्रेरियन से पुस्तकालय के बारे में बात की। https://youtu.be/bdB1q9EpOG8


उन्होंने हमें जानकारी दी। दिवाली की रात सन् 1917 में पाँच दोस्तों सरयू पांडे, झूलन पांडे, भगवान लाल गुप्ता, काली प्रसाद धवन, विष्णुप्रसाद धवन ने डोमा राम के घर के छोटे से कमरे में 25 पुस्तकों की सहायता से इसकी शुरुवात की थी। कुछ समय बाद यहाँ के बुद्धिजीवियों ने अपना सहयोग प्रदान किया। बाद में यह अर्जुनदास धर्मशाला में शिफ्ट हो गया। 1925 में यह वर्तमान स्थल पर स्थापित हुआ।

बीते सौ वर्षों में यह पुस्तकालय इतिहास, साहित्य, कला-संस्कृति, बालकथा काव्य, वेद-पुराण, उपनिषद् इत्याादि सभी विषयों की पुस्तकों से समृद्ध हुआ है। वर्ष 1926 में महात्मा गांधी और स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद वर्ष 1948 में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने सनातन धर्म जिला केन्द्रीय पुस्तकालय में भ्रमण किया। मैथलीशरण गुप्त, अनुग्रह नारायण सिंह, शिवपूजन सहाय, गोपाल सिंह नेपाली, रामवृक्ष बेनीपूरी, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जैसे साहित्य के अनमोल रत्न और न जाने कितनी महान विभूतियाँ इस पुस्तकालय में भ्रमण कर चुके हैं। पुस्तकालय ने अपनी 28 मार्च 2018 को 100वीं वर्षगाँठ मनाई है। जिसका आयोजन राष्ट्रीय स्तर पर धूमधाम से किया गया। मुख्य अतिथि प्रसिद्ध शिक्षाविद् सह राष्ट्रीय राजनेता ई0 संजय विनायक जोशी(पूर्व राष्ट्रीय महासचिव, संगठन, भाजपा) और कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. उमेशचंद्र झा ने   इसी वर्षगाँठ पर पुस्तकालय की सभी पुस्तकों का ऑन लाइन कैटलॉगिंग का उद्घाटन किया। इस पुस्तकालय को समृ़द्ध करने में यहाँ के लोगों का भी बहुत योगदान है। हमने भी पुस्तकालय का भ्रमण किया।



एक कक्ष बंद था उसमें दुर्लभ ग्रंथ थे, उसे भी खोल कर दिखाया। 

पुस्तकालयध्यक्ष का हमने धन्यवाद किया जिन्होंने हमें जिले की धरोहर से परिचय करवाया। अब हम यहाँ से चल पड़े। सफर में हमें लगातार बैठना था इसलिए यहां से हम पैदल चल पड़े। भुवनेश सिंघल गूगल की मदद से होटल का रास्ता खोजते जा रहे थे क्रमशः     


Tuesday, 14 February 2023

शुभ मंगल की प्रतीक लाख की चूड़ियाँ बिहार यात्रा भाग 24 नीलम भागी Lakh Bangles Bihar Yatra Part 24 Neelam Bhagi

  

  


हम ’’सनातनधर्म जिला केन्द्रीय पुस्तकालय’’जा रहे थे। रास्ते में लाख की चूड़ियाँ बनते देखा। जिसमें थोड़ी सी जगह में पूरा परिवार इस लघु उद्योग में लगा दिखा। इतनी मेहनत और लगन से काम करने केे बाद उनको देख कर ऐसा नहीं लगता था कि इस काम से उनकी जीविका ठीक से चलती है। भीड़ भाड़ वाले बाजारों में भी लहठी की दुकानों में सेल बहुत कम थी। मेरी आँखों के आगे लहठी कारीगर आने लगे जो मेहनत से पारिवारिक उद्योग में लगे हैं।

https://youtu.be/Lp1NOmsKFHY



हैण्डक्राफ्ट डिजाइन में लाल, पीले, हरे रंग में सजी लहठी बहुत सुन्दर लग रहीं थीं। इसे सौभाग्यवती महिलाएँ पहनतीं हैं। ये देख मुझे याद आया। 

कुछ साल पहले मैं अमृतसर शादी में गई। पंजाब में भात को ’नानका छक’ कहते हैं। इसमें मामा चूड़ा लाता है। पंडित जी मामा से सैंत कराते हैं। पूजा के बाद मोनिका को मामा ने  एक लोहे का कड़ा पहनाया, इस कड़े के साथ कलीरा बांधा फिर सब रिश्तदारे ने कलीरे बांधे। लेकिन पंजाबी ब्राह्मण परिवार की मोनिका को हरे कांच की चूड़ियां में देखते ही मैं समझ गई कि जीजा जी के पूर्वज पंजाब से बाहर के तिवारी हैं पर अब तो पंजाबी ब्राहमण हैं अम्बरसरिये। सप्तपदी के बाद माेिनका की सास ने तुरंत उसे चूड़ा पहनाया ताकि वह पंजाबी दुल्हन लगे। चूड़े का लॉजिक ये है कि पहले छोटी उम्र में लड़कियों की शादी होती थी। नये घर के तौर तरीके समझने में समय लगता है इसलिये सवा महीना या सवा साल बाद बहू मीठा बना कर चूड़ा बढ़ाती(उतारती) थी। और सास गृहस्थी के काम, बहू को हस्तांतरित कर देती थी। जब तक चूड़ा बहू की बांह में है, उसे रसोई में नहीं लगाया जाता था। अगर चूड़े का रंग उतर गया तो उस परिवार की बातें बनाई जातीं थीं कि बहू को आते ही चूल्हे चौंके में लगा दिया। दूसरी भानजी डिम्पल की शादी पर उसकी सास ने कहा कि जयमाला ये चूड़ेवाली बाहों से डालेगी। उसकी दादी ने कहाकि कि हमारे यहाँ चूड़े का रिवाज़ नहीं है। समधन बोली कि हमारी होने वाली बहू तो चूड़ा पहनकर ही जयमाला पहनाती है। दादी तर्क दे रही कि कन्यादान यज्ञ होता है। पूर्वजों के नियम बदलने नहीं चाहिए। समझदार पंडित जी ने कहा कि शास्त्रों में विधान है कि कुटुम्ब के साथ करो तो शुभ होता है। तुरंत कई जोड़े चूड़े के मंगाये गये। पंडित जी के मंत्रों के साथ, बाल बच्चे वाली बहुओं ने भी चूड़े पहने। दादी बोलीं,’’ अब हमारे खानदान में बहू चूड़ा पहन कर आयेगी और बेटी चूड़ा पहन कर विदा होगी। वहाँ पता नहीं कोई वेदपाठी था या नहीं, पर पण्डित जी ने वेदों के नाम पर सब में समरसता पैदा कर दी थी। जब बॉलीवुड ने दुल्हन को चूड़े और कलीरे में दिखाया तो चूड़ा फैशन में आ गया है। बन्नी ब्यूटीपार्लर में ब्राइडल मेकअप के लिए जाती हैं। तो लिबास से मैचिंग कलर, लाल की कोई भी शेड का चूड़ा खरीद कर पहन लेतीं हैं। न्यूली मैरिड दिखना है तो पहन लिया, फिर बैंगल बॉक्स में रख लिया समय समय पर पहनने के लिए।

माँ जानकी की जन्मस्थली होने से सीतामढ़ी की लहठी को सौभाग्यवती महिलाएँ लेकर ही यहाँ से जातीं हैं। अयोध्या में  श्रद्धालु एक थाली में लहठी, सिंदूर, साड़ी, चुड़वा, बताशा और मखाना सजा कर माँ सीता को अर्पित करने के लिए खड़े देखकर, पुजारी पूछ ही लेते हैं कि वे सीतामढ़ी धाम से या जनकपुर धाम से आयें हैं। देश में लगने वाले मेले प्रदशर्नियों में लहठी के लिए निशुल्क स्टॉल लगाने की जगह देने के साथ अपने खर्च पर ले जाना चाहिए ताकि ये उद्योग बढ़े।

हारे का सहारा, बॉलीवुड हमारा! मुझे बॉलीवुड से उम्मीद है। जब वहाँ इसे हिरोइन को पहनाया जायेगा तो लहठी भी चूड़े की तरह फैशन में आ जायेगी। क्रमशः 


Monday, 13 February 2023

खुदाई का ईंट और पुण्डरीक क्षेत्र का पानी सीतामढ़ी बिहार यात्रा भाग 24 नीलम भागी

स्वामी उमेशानन्द जी हमें महेश प्रसाद जी के घर लेकर गए। पहले हमने खुदाई में निकला स्क्वायर में पत्थर देखा जो आकार में बहुत बड़ी ईट लग रहा था। परिवार ने उसे तुलसी जी के नीचे रखा था। 



महेश जी ने घर के अंदर हमें बैठने को कहा। पर मुझे तो बाहर खुले में पेड़ पौधों से घिरे आंगन में बैठना था। उन्होंने वहाँ हमारे लिए कुर्सियाँ लगवा दीं और हम ऑक्सीजन चैम्बर में, धूप में बैठ कर बतियाने लगे। उनके आंगन में लगे आंवले के पेड़ का तोड़ कर आंवला भी मैंने खाया। हैण्डपंप से ताजा पानी की निकाल कर पिलाया। मैंने उस पानी को डरते हुए पिया। बहुत अच्छा स्वाद था, एक गिलास पीने के बाद दूसरा भी पिया। बोतलबंद पानी पीने वाली मैं, मुझे कुछ नहीं हुआ। उन्होंने हमसे खाना खाने का आग्रह किया हम लंच करके गए थे। उनकी बेटी बहुत लज़ीज़ लैमन टी बना कर लाई। यहाँ की बातें चलती रहीं। मैंने देखा कि यहाँ घर ऊँचाई पर हैं। महेश जी का घर भी आठ सीढ़ियाँ चढ़ कर है।

 





इसका कारण आस पास हिमालय से उतरने वाली कई नदियाँ और जलधाराएँ हैं। बागमती नदी, लखनदेई नदी एवं अधवारा नदी समूह मुख्य हैं। शहर में पुरातात्विक रुचि का कोई अवशेष का न रहना, यहाँ बाढ़ के साथ प्रचण्ड बहाव से टनों मिट्टी का हर बार आना है। पुण्डरीक क्षेत्र पर चर्चा करते हुए यहाँ की साहित्य की विलक्षण प्रतिभाओं पर भी बातें हुई और फिर लाजवाब चाय के साथ नाश्ता। मेरा वहाँ बैठे हुए आस पास ध्यान जा रहा था। एक ओर पशुओं का तबेला, फलों के बाग के नीचे सब्जियाँ बोई हुई हैं। इतनी उपजाऊ मिट्टी कि फल फूलों से लदी हुई हैं। 

दूर खेत भी हैं। सब कुछ आस पास और आंगन ऐसा कि वहीं बैठे पड़ोसियों से बतिया लो। जिससे भी यहाँ बात की, वह अच्छे से बोला है। मध्य जुलाई से अगस्त तक बागमती, लखनदेई और हिमालय से उतरने वाली नदियों की वजह से बाढ़ग्रस्थ रहता है। बाढ़ की विभिषिका को भी ये लोग गाकर हल्का कर लेते हैं। लोक गीतों में जट जटनी झूमर जैसा है। झझिया नवरात्र में महिलायें सिर पर घड़ा रख कर नाचती गाती हैं। सोहर जनेऊ के गीत, स्यामा चकेवा, फाग, नचारी जिसमें शिव चरित्र का वर्णन है यहाँ गाये जाते हैं। लाइब्रेरी न बंद हो जाए, इसलिए अब हम सबको धन्यवाद करके चल दिए। क्रमशः        


Tuesday, 7 February 2023

पुण्डरीक क्षेत्र की ओर सीतामढ़ी बिहार यात्रा भाग 19 नीलम भागी Pundarik Kshetra Sitamarhi Bihar Yatra Part 19 Neelam Bhagi

अब हम पहुँचे, जहाँ यज्ञ और सत्संग चल रहा था। विवाह पंचमी नजदीक थी इसलिए सीतामढ़ी में जगह जगह उत्सव का महौल था। यहाँ हमारी साहित्य संर्वधन यात्रा पूर्ण हुई। 





पहले यात्रा 24 तारीख को रात आठ बजे तक पूर्ण होनी थी इसलिए सबने 25 की रिजर्वेशन करवा रखा था। हमारा भी 25 तारीख को 1.20 am पर सदभावना एक्सप्रेस में रिर्जेवेशन ये सोच कर करवाया था कि 24 को काठमाण्डू से सीतामढ़ी पहुँचने में लेट भी हो गए तो भी गाड़ी पकड़ी जायेगी। रूकना नहीं पड़ेगा। आश्रम में भी रुकने की व्यवस्था थी। पर सबने कार्यक्रम बदलते ही दूसरी रिजर्वेशन करवा लिया था। भुवनेश सिंघल भी इसी काम में लगे रहे पर दिल्ली के लिए कोई सीट नहीं थी। हर समय बुरी तरह व्यस्त रहने वाले भुवनेश जी को आने वाला समय काटना बहुत मुश्किल लग रहा था। वाल्मीकी जी, कलाधर आर्य जी, भुवनेश जी, डॉ0 ख्याति और मुझे लेकर होटल आ गए। इन दोनों की 25 को दरभंगा से अहमदाबाद के लिए फ्लाइट थी। मैं और डॉ0 ख्याति तो रुम में आते ही बातों में मश़गूल हो गए और साथ साथ यात्रा की तस्वीरों पर लगे रहे। मैं ज्यादा टैक्नोेसेवी नहीं हूँं। बस अपना काम चला लेती हूं। जब भी कोई गलती होती तो उससे पूछती वो मेरा काम करने की बजाय, मुझे सिखाने लगती और मुझे अंकुर, उत्कर्षिनी याद आने लगते। दोनों कुछ पूछने पर मेरे हाथ से करवाते हैं। वही ख्याति कर रही थी पर मुझे उससे बातें करना अच्छा लग रहा था। मैंने उससे वायदा किया कि घर पहुँचते ही जो जो आप मुझे सिखाना चाह रही हो, सब सीख लूंगी, तब वह मानी। बहुत अच्छी लड़की है। लग ही नहीं रहा था कि हम पहली बार मिलें हैं। डॉ. साधना बलवटे(राष्ट्रीय मंत्री) के साथ अखिल भारतीय साहित्य परिषद की दो दिवसीय राष्ट्रीय बैठक झांसी में पहली बार मिली और रुम शेयर किया तो उन्होंने कहा था कि साहित्य परिषद् का माहौल परिवार की तरह है। अगले दिन प्रो0 नीलम राठीे(राष्ट्रीय मंत्री) हमारे साथ आ गईं। तीनों बड़े आराम से रहे। 

  मैं और डॉ0 ख्याति बातें करते हुए पता नहीं कब सोए। सुबह पैकिंग करके तैयार होकर हम फिर बतियाने लगे। वाल्मीकी जी उन्हें लेने आ गए। मैं और भुवनेश जी उन्हे बाय करने गए तो वहाँ धर्मेन्द्र पाण्डे जी भी आ गए। उनकी रात को 2.30 बजे की गाड़ी थी। हम वहीं रिसैप्शन पर बैठ कर प्लानिंग करने लगे कि सीतामढ़ी में कहाँ जाना है? उन्होंने पुण्डरीक क्षेत्र और सनातन धर्म पुस्तकालय जाने का प्रोग्राम बनाया। धर्मेन्द्र जी ने मुझे कहा कि आप तो रुम में आराम करियेगा क्योंकि हमें तो खूब चलना होगा। आप कहाँ हलकान होंगी। मैंने अपने जूतों की ओर इशारा करके कहा कि मैं यात्रा में जूते साथ में जरुर रखती हूँ ताकि मुझे चलने में जरा भी परेशानी न हो। रिसेप्शन पर कोई भी इन जगहों को नहीं जानता था। हमारे पास समय बहुत था। रात एक बजे स्टेशन पहुँचना था। इसलिए सब स्लो मोशन में चल रहा था। धर्मेन्द्र जी रात को आश्रम में रुके थे। बाकि सब जा चुके थे। कहते हैं न पूछते पूछते इनसान लंदन भी पहुँच जाता है। हम तीनों भी चल दिए पुण्डरीक क्षेत्र के लिए। क्रमशः      


Monday, 6 February 2023

श्री हलेश्वरनाथ महादेव मंदिर सीतामढ़ी, साहित्य संर्वधन यात्रा भाग 18 नीलम भागी Haleshwarnath Mahadev Mandir Sitamarhi Part 18 Neelam Bhagi

यहाँ हमारी गाड़ी काफी पहले पहुंच गईं। रास्ते में लक्ष्मणा नदी के साथ साथ भी गाड़ी चली। मैं इसे हैरान होकर देख रही थी तो ड्राइवर साहेब बोले,’’इसका असली रूप देखना है तो बरसात में आओ। ये अपने साथ बाढ़ लाती है। रामायण काल से जुड़ा हलेश्वर स्थान सीतामढ़ी से भी 5 किमी. उत्तर पश्चिम में है। इस स्थान पर राजा जनक ने अकाल के समय हलेष्ठी यज्ञ के समय भगवान शिव का मंदिर बनवाया जो हलेश्वर स्थान के नाम से मशहूर है और इसी क्रम में सीताजी मिलीं। 







ऐसा कहा जाता है कि इस प्राचीन पवित्र स्थान पर पत्थर शिवलिंग को मूल छवि माना जाता है। मंदिर परिसर के अंदर भक्तों के आवास की व्यवस्था है। क्योंकि कुछ श्रद्धालु बहुत दूर दूर से आते हैं। फतेहपुर गिरमिसानी में अवस्थित हलेश्वरनाथ महादेव की महता बहुत ज्यादा है। 12 साल के अकाल के काारण ऋषि मुनियों की सलाह पर  राजा जनक ने शिवलिंग स्थापना कर हल चलाया तो यहाँ से 7 किमी की दूरी पर पुनौरा में माँ जानकी अवतरित हुईं। 12 साल का अकाल दूर हुआ। किसान बाबा हलेश्वरनाथ का जलाभिषेक करते हुए अच्छी फसल की कामना करते हैं। लोग साल भर यहाँ आते हैं। सावन में लाखों की भीड़ उमड़ती है। पड़ोसी देश नेपाल के नुनथर पहाड़ व सुप्पी घाट बागमती नदी से कावड़िये जल लाकर जलाभिषेक करते हैं और मुंडन पूजन आदि किए जाते हैं। जनश्रुति है कि राजा जनक का इस शिवलिंग से गहरा संबंध है। विवाह के बाद माँ जानकी और रामजी ने अयोध्या जाने से पहले यहाँ पूजा की थी। लोगों की आस्था है कि हलेश्वर महादेव बहुत दयालु हैं, सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। इसकी स्थापना अकाल से मुक्ति के लिए की गई थी इसलिए यहाँ के किसान अपनी फसल भी चढ़ाते हैं। श्रावण, जानकी नवमी, विवाह पंचमी को यहाँ दूर दूर से श्रद्धालु पहुँचते हैं। पूजा अर्चना करके हम अपने साथियों का इंतजार करते हुए आस पास घूम भी लिया। कुछ ही देर में तीनों गाड़ियाँ पहुँच गईं।  




यहाँ आना बहुत आसान है। ऑटो, गाड़ी हर समय मिलती इै। महावीर मंदिर ट्रस्ट द्वारा दैनिक बस सेवा पुनोरा धाम से हलेश्वर स्थान, पंथपाकर और जनकपुर मंदिर नेपाल के लिए सुबह रवाना होती है और शाम को पुनौरा धाम लौटती है। क्रमशः


Sunday, 5 February 2023

गिरिजा स्थान फुलहर मधुबनी साहित्य संर्वधन यात्रा भाग 17 नीलम भागी Phulhar Madhubani Sahitya Samvardhan Yatra Part 17 Neelam Bhagi

मधुबनी शब्द सुनने में बोलने में बहुत मधुर लगता है और वैसा ही हरियाली से भरा, अच्छी सड़क का रास्ता मन मोह रहा था। कहते हैं यहाँ के वनों में शहद यानि मधु बहुत मिलता है। इसलिये इसका नाम मधुबनी पड़ा। महिलाएं घर सजाने के लिये जो रंगोली फर्श पर बनाती थीं, वह दीवार, कागज और कपड़े पर आ गई और दरभंगा, से नेपाल तक पहुंची। यहाँ की मधुबनी कला आज विश्वविख्यात हो गई है।


घरेलू मधुबनी चित्रकला आज इस शहर के स्टेशन पर यहाँ के कलाप्रेमियों द्वारा 10,000 स्क्वायर फीट में श्रमदान के फलस्वरूप यहाँ की शोभा बढ़ा रही है। स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए और मखानों के उत्पादन में तो यह प्रसिद्ध है ही। स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी के खादी यज्ञ में भी यहाँ के लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यहाँ के निवासी बड़ी संख्या में स्वतंत्रता सेनानी बन गये। आजादी के बाद 1972 में यह दरभंगा से अलग जिला बना। इसलिये दोनों की संस्कृति में समानता है। 

श्री रामचरितमानस के अनुसार माँ सुनयना ने स्वयंबर से पहले जानकी को गिरिजा देवी के पूजन के लिए यहाँ भेजा था। फुलहर राजा जनक की पुष्पवाटिका थी जिसके पास ही राजा जनक की कुलदेवी गिरिजा देवी का मंदिर है।



 वहाँ श्री राम और लक्ष्मण भी अपने गुरु विश्वामित्र के लिए कुछ फूल लेने आए थे। भगवान राम और सीता जी ने पहली बार यहाँ एक दूसरे को देखा था। यह प्राचीन गिरिजा स्थान को 2020 में बिहार सरकार द्वारा हिंदू तीर्थयात्रियों के पर्यटन केंद्र के रूप में मान्यता दी गई है। यहीं राष्ट्रीय राजमार्ग 104 बिहार नेपाल के बॉर्डर के पास मधुबनी के हरलाखी प्रखंड के मुख्यालय से 12 किमी. दूर बसा छोटा सा गांव फुलहर है। यहाँ दो सरोवर हैं। एक प्राचीन सरोवर है जिसको बाग तराग कहा जाता है। इस सरोवर के संबंध में रामचरितमानस के बालकांड में ज़िक्र हैं





मंदिर परिसर बहुत बड़ा है। बाहर खाने पीने की और पूजा के सामान की दुकाने हैं। सामने एक त्रिशूल गड़ा है। देवी दर्शन से पहले सब उसकी पूजा करते हैं। गर्भ गृह में बहुत भीड़ है। फाल्गुन के महीने में तो बहुत ज्यादा भीड़ होती है। मंदिर के पीछे प्राचीन तालाब है। सीढ़िया बनी हुई हैं। यहाँ एक पेड़ है उसका तना बड़ा कलात्मक सा है। दर्शन करके साफ़ सुथरे मंदिर परिसर से  बाहर आते हैं। सामने का तालाब उपेक्षित सा है। जिसके आसपास के लोगों ने कचरा भी फेंका है। पर उसमें कहीं कहीं कमल भी खिले हैं।     

भुवनेश सिंघल जी कमल तोड़ने के लिए बिना पानी में जाए कोशिश कर रहे थे। तीन बच्चियाँ पास खड़ी देख रहीं थीं। उनमें से एक ने सबके मना करने के बावजूद, पलक झपकते ही एक कमल तोड़ कर दे दिया। उसे भुवनेश जी ने और तोड़ने से मना किया। वो इकलौता कमल का फूल लगभग सबके हाथों में घूमा। 



यहाँ मैंने एक बात और देखी। जिससे भी बात करो, वह शहद की तरह मीठा बोल रहा था, शायद यह मधुबनी नाम का असर था। तालाब के किनारे अरबी के पौधे देख कर मैंने उन बच्चियों से पूछा,’’अरबी को किसने बोया है?’’उसने जवाब दिया अपने आप उग आती है।’’ मैंने जानना चाहा कि सार्वजनिक तालाब, अपने आप उगी ऑर्गेनिक अरबी को कौन खाता होगा? बच्ची का जबाब था जिसको पतोड़े बनाने होते हैं वह पत्ते तोड़ लेता है और जो अरबी चाहता है वो खोद लेता है। फिर बड़े भोलेपन से मुझसे पूछती है आपके लिए निकाल दूं। मैंने न करते हुए उसकी पीठ थपथपा दी। बांस के झुरमुट हैं।



 

जरा सी बच्ची अपने जितना घास का गट्ठर उठाए चल रही है।
बच्चों के पैरों में चप्पल नहीं दिखी पर बहन भाइयों के संख्या में कमी नहीं है।
साइकिल पर इतना सामान लादने का कौशल!
बांस के झुरमुट

 यहाँ शांत, पाल्यूशन रहित लोगों की श्रद्धा के कारण एक अलग सा भाव था। अब हम हलेश्वर की ओर चल दिए। क्रमशः