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Sunday 31 July 2016

माँ नर्मदा की असफल प्रेम कहानी एरण्डी संगम माई की गुफा(मड़वा), योगी राज सीताराम गुफा Madhya Pradesh भाग 18 नीलम भागी





  कल हमारी शहडोल से हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन दिल्ली तक, उत्कल एक्सप्रेस में रिर्जेवेशन था। थ्री ए.सी. में अभी भी वेटिंग थी। ये तो अच्छा हुआ कि हमने स्लीपर में भी रिर्जेवेशन करवाया हुआ था, जो कंर्फम हो गया था। शाम साढ़े छ बजे की ट्रेन थी। हमने शरद से तय कर लिया कि वह हमें एरण्डी संगम और माई की गुफा दिखा कर, शहडोल स्टेशन छोड़ देगा। पाण्ड्रा रोड से गये थे, लौटेंगे दूसरे रास्ते से क्योंकि यहाँ तो रास्ता भी दर्शनीय है यानि खूबसूरत। सुबह पैकिंग कर, सामान रिसेप्शन में देकर, नाश्ता करके हम योगीराज सीताराम गुफा और एरण्डी संगम गये। ये एरण्डी और पूरब से आती हुई नर्मदा और पुष्कर का संगम हैं। पुजारी जी ने बताया कि योगीराज सीताराम यहाँ एक सौ साठ साल रहे हैं। तीर्थयात्रियों का मेला लगा हुआ था। यहाँ से हम माई की बगिया की ओर चल दिये। रास्ते में शरद ने नर्मदा जी और सोन की असफल प्रेम कहानी सुनाई, जो मैं सोनमुड़ा में नर्मदा जी के पश्चिम की ओर मुड़ने के कारण, पुजारी जी से सुन चुकी थी। रास्ते में आम के पेड़ बहुतायत में थे। अब हम पैदल माई की गुफा की ओर चले। एक सन्यासी हमारे पीछे से आये और आगे निकल गये। कमर से नीचे तक उनकी जटायें थीं। वे बिना किसी सहारे के माई की गुफा में चले गये और हम सहारे से जा रहे थे। माई की गुफा में प्रवेश किया, वहां वही सन्यासी कुँवर गिरी कलहरी बाबा जी वहाँ बैठे हुए थे। पूजा करने के बाद कार्तिक ने बाबा के चरणों में माथा टेक, उनसे आर्शीवाद लिया और हम प्रणाम करके बैठ गये। मेरे प्रश्नों के जवाब में उन्होंने नर्मदा जी के विवाह की कहानी को जो मैं कई बार सुन चुकी थी, बड़े ही सुन्दर ढंग से नर्मदा जी के मोह से उनके कई नाम लेकर सुनाई।
            मैकाल की कन्या के योग्य तो सोन ही उपयुक्त वर थे न, और नर्मदा जी को भी वे पसंद थे| उनसे रेवा का लग्न तय हो गया। ये  सारा जो आप देख रहीं हैं, पाँच  किमी का जनवासा था। रूद्र कन्या भी बहुत खुश थी, उनका मनपसंद वर जो था न।  बारात नाचती गाती आ रही थी इसलिये थोड़ा लेट हो गई। नर्मदा जी अपनी प्रिय सखी जोहिला के साथ यहाँ बैठी बारात का इंतजार कर रहीं थी। उन्हें तो नहीं पता न देरी का कारण, वे मन की राजदार सहेली  से बोली,’’ जोहिला, जाओ पता लगाओ, बारात की देरी का कारण।’’ जोहिला बोली,’’मेरा बारात में जाने लायक श्रृंगार पोशाक नहीं है।’’ नर्मदा जी बोली,’’तुम मेरा लेलो न।’’ जोहिला उनकी नाइन भी थी। पहले जमाने में नाइन के पास ही दुल्हिन का सब कुछ रहता था। वह नर्मदा जी की पोशाक, जेवर श्रृंगार पहन ओढ़ के चली गई। लगन का समय हो चला था, सब जोहिला को समझे कि वे ही नर्मदा जी हैं। श्रृंगार जो उनका दुल्हन वाला था। उन्हें फेरों पर बिठा दिया। बराती घराती भी भंवर देखने बैठ गये। जब काफी देर हो गई ,जोहिला नहीं आई तो नर्मदा जी खुद गई। सारा माजरा देख कर वे तो सन्न रह गई। उन्होंने गुस्से से श्राप दिया। सारा दहेज पत्थर में तब्दील हो गया। वो देखो ,जो काली काली चट्टाने हैं। वो बारातियों के नीचे बिछाने के कंबल थे। सामने बड़े पत्थर थे, वो ढोल नगाड़े थे। अब वे ध्यान से देखने पर ढोल नगाड़े नज़र आ रहे थे और भी बहुत कुछ बताया। नर्मदा जी पश्चिम की ओर तेरह सौ दस किमी. चल कर, बिना मुहाने पर डेल्टा बनाये ,खम्बात की खाड़ी में मिल जाती हैं। और लोगों की माँ, देवी कहलाती हैं। सोन पूर्व दिशा में और जोहिला आगे  जाकर सोन में मिल जाती है।    क्रमशः
   

Tuesday 19 July 2016

Madhya Pradesh श्री अमरेश्वर महादेव मंदिर , श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग, श्री कल्याण सेवा आश्रम और पानी पूरी के पानी का स्वाद भाग 17 नीलम भागी


 श्री अमरेश्वर महादेव मंदिर के रास्ते की सुन्दरता का वर्णन करने की, औकात कहाँ से लाऊँ  जो देखा उसे लिखने की बस कोशिश की है। बीच में कहीं कहीं पर प्राकृतिक सौन्दर्य, हमको रूकने को मजबूर करता है और हम रूकते हंै। शहडोल रोड पर आठ किमी. का रास्ता पलक झपकते ही बीत गया। मंदिर से बाहर गाड़ी रूकी। वहाँ निर्माण कार्य चल रहा था। शायद अब भी चल रहा है क्योंकि परिसर बहुत विशाल है। जूते उतार, हाथ पाँव धो कर सफेद विशाल हाॅल में प्रवेश किया। सामने ग्यारह फीट ऊँचा शिवलिंग था। जिसका वजन इक्यावन टन हैं, वहाँ के पुजारी जी ने बताया। पूजा करके दायें बांयें देखा। देश में बारह ज्योतिर्लिंग हैं, उन्हें प्रतीक स्वरूप यहाँ स्थापित किया गया था। सभी की पूजा कर मन में सोचा कि कोशिश करूंगी, इन बारह स्थानों पर जाने की। वापिस गाड़ी में बैठै। शरद ने अमरावती गंगा धारा के दर्शन कराये। अमरावती गंगा अलग दिशा में जाती है फिर सोन में मिल जाती है। कुछ देर बाद गाड़ी रूकी, हम फिर दुर्गाधारा के सामने खड़े थे। शरद ने कहाकि पहले दिन आपको पैदल के रास्ते से लाया था। आज आपको गाड़ी का रास्ता भी दिखा दिया। हमने उतर कर फिर उस नल का खूब स्वाद ठण्डा ठण्डा पानी पिया। दुर्गाधारा को निहारा, मंदिर में गये और फिर वापिस होटल गये। शरद ने कहाकि आज आप कल्याण सेवा आश्रम की आरती देखना और वापिस चल दिये। शरद को हमने छुट्टी दे दी। होटल में कुछ देर आराम किया। साउथ इण्डियन खाना, यहाँ हर समय मिलता है। रेट इतने कम कि मैं लिख नहीं सकती, ऐसा इसलिये कि आपके दिमाग में अब के दाम न छप जायें। जब आप कुछ साल बाद जाये ंतो मंहगाई बढ़ने से कीमतों में बदलाव आयेगा ही ,तो यहाँ के सीधे सरल दुकानदार आपको बेइमान न लगें। बिना प्रिर्जवेटिव के दूध की चाय का स्वाद ही अलग होता है। मैं तो बहुत पीती थी। चाय और भजिया खा के, मैंने बाजारों में घूम घूम कर अमरकंटक नर्मदा जी से संबंधित किताबें खरीदी। ये काम मैं लौटने से पहले करती हूँं। इसमंे उस जगह से संबंधित धार्मिक, पौराणिक कहानियाँ होती है,ं जिन्हें मैं घर लौटने पर बड़े चाव से पढ़ती हूँं। यहाँ मुझे गाइड और लोगों से सुनना अच्छा लगता है। अपने लेख में भी जो देखती हूँ, अपने मन में उठे प्रश्नों का जो स्थानीय लोगों से जवाब मिलता है। उसे लिख देती हूँ। धार्मिक और पौराणिक कथाएँ इन पवि़़त्र पुस्तकों में ही रहने देती हूँ। कुछ ठेलों पर उधार मांगने वालों पर इबारतें दोहे लिखे हुए थे। मसलन
दोस्ती हमसे करो, रोजी से नहीं
प्रेम बीच अंतर पड़त, टूट जात ब्योहार।
इसीलिये प्रियबन्धुवर, मिलता नहीं उधार।।
प्यार गया, पैसा गया, और गया व्यापार ।
दर्शन दुर्लभ हो गया, जब से दिया उधार।।
रास्ते में हमने ठेले से चाट भी खाई। गोलगप्पे का पानी बहुत स्वाद था। मैंने उससे पूछा,’’तुम्हारा पानी इतना स्वाद क्यों है? दिल्ली, नौएडा के चाट वाले से मैं ऐसा कहती तो वो बदल में मुस्कुराकर थैंक्यू बोल देता पर इसने मुझे स्वादिष्ट पानी बनाने की रैंस्पी बता दी। जिसमें उसने खट्टा करने के लिये कैरी पीस कर मिलाई थी। आम के पेड़ वहाँ बहुतायत से पाये जाते हैं। शायद इसलिये, अब मैं कहीं भी पानी पूरी खाती हूँ तो मेरे मुहँ से निकलता हैं,’’पानी का स्वाद अमरकंटक जैसा नहीं है।’’ कल्याण सेवा आश्रम की आरती में भाग लिया। पता नहीं कितनी देर हमें मंदिर परिसर के वातावरण ने मोहे रक्खा। बाहर आये तो शरद गाड़ी लिये हमारा इंतजार कर रहा था, देखते ही बोला,’’आपने बहुत देर लगा दी , यहाँ से निकल रहा था, सोचा आपको होटल पहुँचा दूँ। मैंने आज भी तंबाकू नहीं खाया।’’ सुन कर बहुत अच्छा लगा। क्रमशः
Neelam Bhagi
Journalist | Writer | Traveller।Blogger। MainAisiKyunHoon                                                 

Monday 18 July 2016

अनोखा मध्य प्रदेश दर्शनीय अमरकंटक भृगु कमण्डल और कलचुरी मंदिर भाग 16 नीलम भागी


                                                                                                                 


दो दिन पहले बारिश आई थी ,जिसके कारण भृगु कमण्डल के रास्ते में पानी के साथ पत्ते बह कर आये थे इसलिये सूखे पत्तों का बहाव की दिशा में कालीन सा बिछा था, जिस पर हम पहले डण्डी से टोह लेते कि पत्तों के नीचे कोई गड्डा तो नहीं है फिर पैर रखते। घने जंगल में मैंने नरेश से पूछा,’’यहाँ शेर तो नहीं आयेगा।’’ उसने जवाब दिया,’’शेर, नहीं नहीं, भालू और मधुमक्खियाँ हैं। वो भी किसी को कुछ नहीं कहतीं, जब तक कोई उन्हें तंग न करे।’’ पहले नरेश की बात सुनकर मुझे डर लगा फिर मेरी स्वर्ग के रास्ते पर जाने वाली या़त्रा में , मेरे साथी, कुत्ते पर नजर पड़ी कि इसे जब भालू ने नहीं खाया, तो भला मुझे क्यूँ खायेगा? ये सोच कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस बातचीत के बाद मैंने गौर किया कि यहाँ अपने आप सब एक के पीछे एक लाइन में चल रहे थे, शायद पत्तों की पट्टी की वजह से। रास्ता खत्म हुआ। अब धीरे धीरे चट्टानों पर हाथ रख कर नीचे उतरे, वहाँ महाऋषि भृगु की गुफा थी और उसके आगे एक कमण्डल के आकार का एक पत्थर था, जिसका मुँह खुला हुआ था। पास ही एक शिवलिंग था। मैंने पत्थर में हाथ डाला, मेरी अंगुलियों में ठण्डा ठण्डा पानी लगा, साथ ही हल्की सी हमिंग सी महसूस हुई। शिवलिंग की पूजा की। सभी ने बारी बारी से भृगु कमण्डल के जल को छुआ और लौटे। अब हम जंगल का रास्ता पार कर उसी चौडे मैदान में पहुँचे, वहाँ शरद गाड़ी पर हमारा इंतजार कर रहा था। पत्थरों पर चलते हुए गाड़ी तक पहुँच कर मैंने बिस्किट के पैकेट हाथ में लेते ही, मुड़ कर देखा, कुत्ता मुझे ही देख रहा था। जब तक उसने खाना नहीं बंद किया, मैं उसे बिस्किट डालती ही रहीं। अब नरेश की फीस चुका, हम गाड़ी पर बैठे। फिर माँ नर्मदा उदगम के पास गये क्योंकि यहाँ पास में ही कलचुरी मंदिर है। जिसे कलचुरी महाराज कामदेव ने 1042-1072 के दौरान बनवाया था। ये 1000 साल पुराने 8 मंदिरों का समूह है ,जिसके आसपास सफाई, खूबसूरत पार्क और रखरखाव उम्दा है। जिसके लिये ए. एस. आई को साधुवाद। घास पौधों को नुकसान न पहुँचे इसलिये पत्थरों से रास्ता बनाया गया है। शरद हमें एक मंदिर में ले जाकर बोला,’’ ये  शिव मंदिर है। यहाँ सावन के महीने में कम से कम एक दिन नर्मदा जी जरूर शिवलिंग पर जल चढ़ाती हैं। यानि शिवलिंग माँ के जल से सराबोर हो जाता है।’’पूजा करके मंदिरों को निहारती रही। पटालेश्वर और मछेन्द्रथान इस काल के मंदिर निर्माण कला के नायाब उदाहरण हैं। ड्रिल मशीन के बिना ऐसी कला कृतियाँ बनाना हैरानी पैदा करती हैं। मैं तो शरद के 'चलो' कहने पर ही चलती थी क्योंकि प्रत्येक दर्शनीय स्थल मुझे रोक लेता था। मेरे मन में आया कि अकेले बैठे शरद ने गुटका तो नहीं खाया होगा। मेरे पूछने से पहले ही शरद बोला,’’मैंने आज भी गुटका तंबाकु नहीं खाया, मुँह खोल के दिखाया उसमें लौंग रक्खा हुआ था।


Friday 15 July 2016

अनोखा मध्य प्रदेश दर्शनीय अमरकंटक धूनिपानी, Madhya Pradesh Part 15 Neelam Bhagi



अमरकंटक में  कुछ बातों ने मुझे बहुत प्रभावित किया जैसे इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल विश्व विद्यालय, जिसे बाहर से शरद ने बड़े फ़क्र से दिखाया। वहाँ गाड़ी रोक कर उसके इतने फायदे बताये कि मैं उस पर थीसिस लिख सकती थी। एक घर के सामने गाड़ी रोककर हाॅर्न बजाया, एक व्यक्ति बाहर आया, उसका परिचय करवाते हुए शरद बोला,’’ये नरेश हैं। धूनिपानी और भृग कमण्डल के लिये ये आपके गाइड हैं।’’अब हमने नरेश के पीछे पीछे एक घने जंगल में प्रवेश किया जहाँ कभी कभी, कहीं कहीं अठन्नी, चवन्नी जितनी धूप हम पर पड़ती थी। कहीं से एक कुत्ता भी आकर हमारे साथ लग गया। हम चलते तो वह चलता, हम रूकते तो वह रूक जाता। सबसे पीछे मैं चल रही थी और मेरे साथ वह कुत्ता। कोई पगडण्डी नहीं थी। नरेेश ने सबको एक एक डण्डी पकड़ा दी। उसने कोई भी हरी टहनी पेड़ से नहीं तोड़ी। जो सूखी टहनियाँ पेड़ से लटक रहीं थी, वे तोड़ कर दी। उसकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। सभी नरेश की तरह हो जाये तो जंगल बचे रहेंगे। नीचे बिखरे हुए सूखे पत्तों पर हम चल रहे थे, जो हमारे कदम पड़ने से खड़ड़ खड़ड़ की आवाज करते थे। जब खूब चल लिये तो मेरे मन में एक प्रश्न उठा कि नरेश रास्ता तो नहीं भूल गया। मैंने उससे पूछा तो उसने हंसते हुए जवाब दिया,’’नहीं।’’दूसरा प्रश्न मैंने उससे किया कि ये महाराज युधिष्ठिर के कुत्ते की तरह, ये मेरे पीछे स्वर्ग में क्यों जा रहा है? नरेश बोला,’’टूरिष्ट इसे बिस्कुट वगैरह दे देते हैं न, इसी उम्मीद में चल रहा है।’’हम लंच करके चले थे। सामान हमारा गाड़ी में रक्खा था। अब मुझे दुख हुआ कि अगर ये गाड़ी तक नहीं लौटा तो मैं तो इसे कुछ नहीं दे पाऊँगी। इस जंगल में मेरे साथी तो मुझसे काफी आगे चल रहें है। लेकिन ये मेरे साथ साथ चल रहा है। अब ढलान आ गई। सामने धूनी पानी दिख रहा था। मैं उतरने लगी। कुत्ता वहीं बैठ गया। नरेश ने बताया कि यहाँ भृगु ऋषि रहते थे। पहले पर्वत ऊँचे थे, उस पर बर्फ पड़ती थी। भृगृ के समय पानी नहीं था। पशु पक्षियों ने माँ नर्मदा से प्रार्थना की। यहाँ पाँच पानी के स्थान बने। दो कुण्ड अमृत और सरस्वती का और तीन कूप। एक लाल रंग का कमरा था जिसके बाहर एक सफेद संगर्मर्मर लगा था। पत्थर पर श्री श्री 1008 पूजनीय रामशरण देव की तपोभूमि धूनी पानी खुदा था। अन्दर जाकर पवित्र माँ धूनी को प्रणाम किया। महाराज ने हमें भभूत का प्रशाद दिया। उसे हमने माथे से लगाया और बाकि को कागज में सहेज कर पर्स में रक्खा, नौएडा में ले जाने के लिये। इतनी शांत जगह थी कि लिख नहीं सकती। पता नहीं कितनी देर हम बैठे रहे। नरेश बोला,’’उठिये, अभी आपको भृगु कमण्डल भी जाना है। ऊपर आते ही देखा मेरा कुत्ता वहीं बैठा था। वह फिर मेरे पीछे पीछे चलने लगा। फिर चलना चलना चलना.......बस दिमाग में एक ही प्रश्न कि सिर्फ पेड़ हैं और जमीन पर सूखे पत्ते हैं। आगे नरेश चल रहा है, हम उसके पीछे चल रहें हैं। सबसे पीछे मैं और मेरे साथ महाराज युधिष्ठिर का कुत्ता, दिमाग में खड़ा हुआ एक प्रश्न कि नरेश रास्ता भूल गया तो! क्रमशः


Monday 11 July 2016

अनोखा मध्य प्रदेश दर्शनीय अमरकंटक सोनमूड़ा, श्री यंत्र मंदिर, Madhya Pradesh Part 14 Neelam Bhagi नीलम भागी




 
गाड़ी में बैठते ही शरद ने पूछा कि हम खाना उसके बताये रैस्टोरैंट में खा रहें हैं न। मैं बोली,’’हाँ एक बार खाया है।’’क्योंकि  मैं भी अपनी आदत से मजबूर हूँ। वो ये कि जब भी मुझे कोई खाने की जगह बताता है, तो मैं वहाँ जरूर जाती हूँ। नई जगह और नया खाना भी जरूर ट्राई करती हूँ। यहाँ के खाने ने मुझे निराश नहीं किया। चूल्हे की रोटियाँ, ताजी़ सब्ज़ियों का स्वाद ही अलग था। पाश्चुराइज दूध पीते पीते ताजे दूध का स्वाद ही भूल गये थे। चाय पीने बैठे, मैंने चाय वाले से एक गिलास दूध लिया। उसने दिल खोल कर चीनी डाल कर, स्टील का गिलास ऊपर तक छलकता हुआ भर कर दिया। पहला घूंट भरते ही मुझे मेरठ में पाली अपनी गंगा, यमुना, गोमती .... की याद आई। मेरे घर में गाय का नाम नदियों के नाम पर रखने का रिवाज़ है। नर्मदा नाम मैंने सोचा था, अगली गाय का, पर नौएडा शिफ्ट हो गये। यहाँ आते ही गंगा यमुना ही चोरी हो गई। यहाँ गाय पालना मना है। होशंगाबाद से ही मुझे ताजा दूध, चूल्हे पर उबला, धुएं की महक वाला मिला है। दूध से बनी मिठाइयों का भी स्वाद कढ़हे दूध जैसा मिला। यहाँ से सोनमुदा पहुँचते ही हमारा पहली बार स्वागत हुआ, स्वागत कर्ता थे लंगूर और भूने चने बेचने वाले। लंगूर देखते ही हम डर गये। इस डर का भी एक कारण था। नौएडा में बंदरों ने बहुत उत्पात मचा रक्खा है। जिस सेक्टर वालों ने लंगूर लगा रक्खा है, वहाँ बंदर नहीं आते। लंगूर वाला साइकिल के कैरियर पर एक लंगूर लेकर दस बजे से पाँच बजे के बीच चक्कर लगा जाता है। उसे दस हजार रूपये महीना एक सेक्टर से मिलते हैं। अब कभी कभी बंदर आते हैं, तो वो भी दस से पहले और पाँच से बाद। एक लंगूर के आने से जब बंदरों के झुण्ड भाग जाते हैं, यहाँ तो लंगूूरों के झुण्ड! मैं तो डर गई। शरद बोला,’’ आप डरिये मत, ये लंगूर किसी को कुछ नहीं कहते।’’हमने चने खरीद कर डाल दिये, वे खाने लगे। हम मंदिर में गये। सोनमुड़ा सोन नदी का उदगम स्थल है। विस्मय विमुग्ध करने वाले यहाँ से घाटी और जंगल से ढकी पहाड़ियों के सुन्दर दृश्य देखे जा सकते हैं। सोन नदी, नर्मदा कुण्ड से 1.5 किमी. की दूरी पर मैकाल की ऊँची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहाँ से गिरती है। सोननदी की सुनहरी रेत के कारण इसे सोन कहा जाता है। यहाँ अस्थाई दुकानों का छोटा सा बाजार लगा हुआ था। चाय र्का आडर कर ,हम उसकी कुर्सियों पर बैठ गये। हमारी हथेलियों से चने लेकर लंगूर, आपस में बिना लड़े खा रहे थे। एक दुकानदार ने टी. वी. स्क्रीन पर सी.डी. लगा रक्खी थी जिसमें गायिका लोक संगीत शैली में नर्मदा परिक्रमा का वर्णन कर रही थी कि देश में इकलौती हमारी माँ नर्मदा है। जिसकी परिक्रमा की जाती है। जो सुनने में श्रद्धा को बढ़ा रही थी और अपने आपको अच्छा लग रहा था कि नर्मदा उद्गम, सोन उद्गम, जोहिला उदगम जो आदिकाल से ऋषि मुनियों की तपोभूमि रहा है, मैं वहाँ पर बैठी हूँ। गाने में 2600 किमी की पदयात्रा, जो तीन साल, तीन महीने और तेरह दिन में पूरी होती है, का ज़िक्र था। यहाँ से हम श्री यंत्र मंदिर गये। शरद होटल में छोड़ गया। आराम करने के लिये लेटी। दिमाग में माँ की परिक्रमा चलती रही। उठी चल दी, जहाँ डिनर करना था,  उस रैस्टोरैंट के बाहर कुर्सी रख बैठी ,लोगों से बतियाती रही। इस उम्मीद में कि कोई तो मिलेगा, जिसने माँ कि पैदल परिक्रमा की होगी। लेकिन गाड़ियों से करने वाले मिले। क्रमशः 

Wednesday 6 July 2016

अनोखा मध्य प्रदेश दर्शनीय अमरकंटक कपिलधारा, ज्वालेश्वर,दुग्धधारा Madhya Pradesh Part भाग 13 नीलम भागी

  
यहाँ से हम कपिलधारा के लिये चल पड़े। गाड़ी से उतरे, वहाँ कुछ दुकानों का बाजार लगा हुआ था। वहाँ से हम पैदल मनोहारी रास्ते से चले। लगभग 100 फीट की ऊँचाई से गिरने वाला कपिलधारा झरना बहुत सुन्दर है। थोड़ा आगे जाने पर कपिलेश्वर मंदिर है। जिसके आस पास कई गुफाएँ हैं जहाँ साधु संत वास करते हैं। पैदल चलते हुए उनके दर्शन हो जाते हैं। घने जंगल, पर्वत और प्रकृति के सुन्दर नजारे यहाँ मन मोह लेते हैं। गाड़ी पर पहुँचते ही शरद ने खुशी से बताया कि उसे आज तंबाकू छोड़े दूसरा दिन है। सुन कर खुशी हुई। अब माई की बगिया पहुँचे। जो नर्मदा उदगम से एक किलोमीटर दूर है। इस हरे भरे स्थान से यहाँ शिव जी की पु़त्री नर्मदा फूल चुनती थी। प्राकृतिक रूप से उगे आम केले और अन्य वृक्षों और गुलाब ने इस जगह की सुन्दरता को चार चाँद लगा दिये हैं। यहाँ से हम श्रीज्वालेश्वर मंदिर गये। यह अमरकंटक से आठ किलोमीटर दूर शहडोल रोड पर स्थित है। अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला की उत्पत्ति यहाँ से हुई है। खूबसूरत रास्ते में यदि कोई बादल आ जाता तो उसकी परछाईं, हरी भरी वादियों पर बहुत सुन्दर डिजाइन बनाती। शंकर जी ने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। शिवजी ने पार्वती के साथ वास किया था, मैकाल की पहाड़ियों में असंख्य शिवलिंग हैं। मंदिर के निकट ही सनसैट प्वाइंट हैं। सामने ही माँ अन्नपूर्णा का मंदिर है। जहाँ से बुलाकर प्रशाद में दोना भर कर गर्म  स्वादिष्ट खिचड़ी का  दिया गया। अब हम सर्वोदय जैन मंदिर की ओर चले। यह मंदिर देश के अद्वितीय मंदिरों में अपना स्थान रखता है। इसे बनाने में लोहे और सीमेंट का प्रयोग नहीं हुआ है। मंदिर में स्थापित मूर्ति का वजन 24 टन के लगभग है। मंदिर में निर्माण कार्य अभी भी चल रहा है। शरद ने पूछा,’’दूधधारा के झरने को आप, सामने से देखोगे या झरने की ऊँचाई से बराबर उतरते हुए देखोगे। हमने कहाकि हम तो उसके बराबर से उतरेंगे। अब फिर हमारी घने जंगल की यात्रा शुरू। पेड़ों के नीचे पत्थरों पर हिलती डोलती गाड़ी चल रही थी। पत्तों से छन कर कभी कभी धूप के छोटे छोटे टुकड़े, हम पर आ जाते तो लगता की दोपहर है। एक जगह शरद ने गाड़ी रोकी और हमें कहा,’’उतरिये, इस पानी की धारा के साथ आप चलते रहियेगा। जहाँ ये धारा गिरेगी, उसके बाजू में पत्थर काट कर सीढ़ियाँ बनी हैं। उससे उतरेंगे तो सामने मैं आपको मिलूँगा। हम चल रहें थे कहीं पर भी छोटी छोटी धाराएँ शोर मचाती हुई, उसमें मिल जाती। अब राह खत्म, हम नीचे आये। नीचे से देख रहें हैं। वही पानी दूध के जैसा हो गया।                  
दूधधारा नाम का यह झरना बहुत लोकप्रिय है। ऊँचाई से गिरने के कारण झरने का पानी दूध जैसा लगता है। पता नहीं कितनी देर हम झरने को निहारते रहे। वहीं पर मंदिर था। उसके बराबर में हैण्डपम्प, पूजा से पहले हाथ धोने लगे। उसका ठंडा ठंडा पानी , हमने खूब पिया। मंदिर में प्रवेश कर माँ की पूजा की। बाहर आकर फिर उस नल का पानी पिया और बोतलें भर ली।  बोतलें भरते देख, शरद बोला,’’ यहाँ आपको पीने का पानी हर जगह मिल जायेगा।’’पर हम नहीं माने। पता नहीं कैसा स्वाद था उस पानी का। क्रमशः