अमरकंटक में कुछ बातों ने मुझे बहुत प्रभावित किया जैसे इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल विश्व विद्यालय, जिसे बाहर से शरद ने बड़े फ़क्र से दिखाया। वहाँ गाड़ी रोक कर उसके इतने फायदे बताये कि मैं उस पर थीसिस लिख सकती थी। एक घर के सामने गाड़ी रोककर हाॅर्न बजाया, एक व्यक्ति बाहर आया, उसका परिचय करवाते हुए शरद बोला,’’ये नरेश हैं। धूनिपानी और भृग कमण्डल के लिये ये आपके गाइड हैं।’’अब हमने नरेश के पीछे पीछे एक घने जंगल में प्रवेश किया जहाँ कभी कभी, कहीं कहीं अठन्नी, चवन्नी जितनी धूप हम पर पड़ती थी। कहीं से एक कुत्ता भी आकर हमारे साथ लग गया। हम चलते तो वह चलता, हम रूकते तो वह रूक जाता। सबसे पीछे मैं चल रही थी और मेरे साथ वह कुत्ता। कोई पगडण्डी नहीं थी। नरेेश ने सबको एक एक डण्डी पकड़ा दी। उसने कोई भी हरी टहनी पेड़ से नहीं तोड़ी। जो सूखी टहनियाँ पेड़ से लटक रहीं थी, वे तोड़ कर दी। उसकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। सभी नरेश की तरह हो जाये तो जंगल बचे रहेंगे। नीचे बिखरे हुए सूखे पत्तों पर हम चल रहे थे, जो हमारे कदम पड़ने से खड़ड़ खड़ड़ की आवाज करते थे। जब खूब चल लिये तो मेरे मन में एक प्रश्न उठा कि नरेश रास्ता तो नहीं भूल गया। मैंने उससे पूछा तो उसने हंसते हुए जवाब दिया,’’नहीं।’’दूसरा प्रश्न मैंने उससे किया कि ये महाराज युधिष्ठिर के कुत्ते की तरह, ये मेरे पीछे स्वर्ग में क्यों जा रहा है? नरेश बोला,’’टूरिष्ट इसे बिस्कुट वगैरह दे देते हैं न, इसी उम्मीद में चल रहा है।’’हम लंच करके चले थे। सामान हमारा गाड़ी में रक्खा था। अब मुझे दुख हुआ कि अगर ये गाड़ी तक नहीं लौटा तो मैं तो इसे कुछ नहीं दे पाऊँगी। इस जंगल में मेरे साथी तो मुझसे काफी आगे चल रहें है। लेकिन ये मेरे साथ साथ चल रहा है। अब ढलान आ गई। सामने धूनी पानी दिख रहा था। मैं उतरने लगी। कुत्ता वहीं बैठ गया। नरेश ने बताया कि यहाँ भृगु ऋषि रहते थे। पहले पर्वत ऊँचे थे, उस पर बर्फ पड़ती थी। भृगृ के समय पानी नहीं था। पशु पक्षियों ने माँ नर्मदा से प्रार्थना की। यहाँ पाँच पानी के स्थान बने। दो कुण्ड अमृत और सरस्वती का और तीन कूप। एक लाल रंग का कमरा था जिसके बाहर एक सफेद संगर्मर्मर लगा था। पत्थर पर श्री श्री 1008 पूजनीय रामशरण देव की तपोभूमि धूनी पानी खुदा था। अन्दर जाकर पवित्र माँ धूनी को प्रणाम किया। महाराज ने हमें भभूत का प्रशाद दिया। उसे हमने माथे से लगाया और बाकि को कागज में सहेज कर पर्स में रक्खा, नौएडा में ले जाने के लिये। इतनी शांत जगह थी कि लिख नहीं सकती। पता नहीं कितनी देर हम बैठे रहे। नरेश बोला,’’उठिये, अभी आपको भृगु कमण्डल भी जाना है। ऊपर आते ही देखा मेरा कुत्ता वहीं बैठा था। वह फिर मेरे पीछे पीछे चलने लगा। फिर चलना चलना चलना.......बस दिमाग में एक ही प्रश्न कि सिर्फ पेड़ हैं और जमीन पर सूखे पत्ते हैं। आगे नरेश चल रहा है, हम उसके पीछे चल रहें हैं। सबसे पीछे मैं और मेरे साथ महाराज युधिष्ठिर का कुत्ता, दिमाग में खड़ा हुआ एक प्रश्न कि नरेश रास्ता भूल गया तो! क्रमशः
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Friday, 15 July 2016
अनोखा मध्य प्रदेश दर्शनीय अमरकंटक धूनिपानी, Madhya Pradesh Part 15 Neelam Bhagi
अमरकंटक में कुछ बातों ने मुझे बहुत प्रभावित किया जैसे इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल विश्व विद्यालय, जिसे बाहर से शरद ने बड़े फ़क्र से दिखाया। वहाँ गाड़ी रोक कर उसके इतने फायदे बताये कि मैं उस पर थीसिस लिख सकती थी। एक घर के सामने गाड़ी रोककर हाॅर्न बजाया, एक व्यक्ति बाहर आया, उसका परिचय करवाते हुए शरद बोला,’’ये नरेश हैं। धूनिपानी और भृग कमण्डल के लिये ये आपके गाइड हैं।’’अब हमने नरेश के पीछे पीछे एक घने जंगल में प्रवेश किया जहाँ कभी कभी, कहीं कहीं अठन्नी, चवन्नी जितनी धूप हम पर पड़ती थी। कहीं से एक कुत्ता भी आकर हमारे साथ लग गया। हम चलते तो वह चलता, हम रूकते तो वह रूक जाता। सबसे पीछे मैं चल रही थी और मेरे साथ वह कुत्ता। कोई पगडण्डी नहीं थी। नरेेश ने सबको एक एक डण्डी पकड़ा दी। उसने कोई भी हरी टहनी पेड़ से नहीं तोड़ी। जो सूखी टहनियाँ पेड़ से लटक रहीं थी, वे तोड़ कर दी। उसकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। सभी नरेश की तरह हो जाये तो जंगल बचे रहेंगे। नीचे बिखरे हुए सूखे पत्तों पर हम चल रहे थे, जो हमारे कदम पड़ने से खड़ड़ खड़ड़ की आवाज करते थे। जब खूब चल लिये तो मेरे मन में एक प्रश्न उठा कि नरेश रास्ता तो नहीं भूल गया। मैंने उससे पूछा तो उसने हंसते हुए जवाब दिया,’’नहीं।’’दूसरा प्रश्न मैंने उससे किया कि ये महाराज युधिष्ठिर के कुत्ते की तरह, ये मेरे पीछे स्वर्ग में क्यों जा रहा है? नरेश बोला,’’टूरिष्ट इसे बिस्कुट वगैरह दे देते हैं न, इसी उम्मीद में चल रहा है।’’हम लंच करके चले थे। सामान हमारा गाड़ी में रक्खा था। अब मुझे दुख हुआ कि अगर ये गाड़ी तक नहीं लौटा तो मैं तो इसे कुछ नहीं दे पाऊँगी। इस जंगल में मेरे साथी तो मुझसे काफी आगे चल रहें है। लेकिन ये मेरे साथ साथ चल रहा है। अब ढलान आ गई। सामने धूनी पानी दिख रहा था। मैं उतरने लगी। कुत्ता वहीं बैठ गया। नरेश ने बताया कि यहाँ भृगु ऋषि रहते थे। पहले पर्वत ऊँचे थे, उस पर बर्फ पड़ती थी। भृगृ के समय पानी नहीं था। पशु पक्षियों ने माँ नर्मदा से प्रार्थना की। यहाँ पाँच पानी के स्थान बने। दो कुण्ड अमृत और सरस्वती का और तीन कूप। एक लाल रंग का कमरा था जिसके बाहर एक सफेद संगर्मर्मर लगा था। पत्थर पर श्री श्री 1008 पूजनीय रामशरण देव की तपोभूमि धूनी पानी खुदा था। अन्दर जाकर पवित्र माँ धूनी को प्रणाम किया। महाराज ने हमें भभूत का प्रशाद दिया। उसे हमने माथे से लगाया और बाकि को कागज में सहेज कर पर्स में रक्खा, नौएडा में ले जाने के लिये। इतनी शांत जगह थी कि लिख नहीं सकती। पता नहीं कितनी देर हम बैठे रहे। नरेश बोला,’’उठिये, अभी आपको भृगु कमण्डल भी जाना है। ऊपर आते ही देखा मेरा कुत्ता वहीं बैठा था। वह फिर मेरे पीछे पीछे चलने लगा। फिर चलना चलना चलना.......बस दिमाग में एक ही प्रश्न कि सिर्फ पेड़ हैं और जमीन पर सूखे पत्ते हैं। आगे नरेश चल रहा है, हम उसके पीछे चल रहें हैं। सबसे पीछे मैं और मेरे साथ महाराज युधिष्ठिर का कुत्ता, दिमाग में खड़ा हुआ एक प्रश्न कि नरेश रास्ता भूल गया तो! क्रमशः
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