Search This Blog

Showing posts with label Kalchuri Mandirr. Show all posts
Showing posts with label Kalchuri Mandirr. Show all posts

Monday 18 July 2016

अनोखा मध्य प्रदेश दर्शनीय अमरकंटक भृगु कमण्डल और कलचुरी मंदिर भाग 16 नीलम भागी


                                                                                                                 


दो दिन पहले बारिश आई थी ,जिसके कारण भृगु कमण्डल के रास्ते में पानी के साथ पत्ते बह कर आये थे इसलिये सूखे पत्तों का बहाव की दिशा में कालीन सा बिछा था, जिस पर हम पहले डण्डी से टोह लेते कि पत्तों के नीचे कोई गड्डा तो नहीं है फिर पैर रखते। घने जंगल में मैंने नरेश से पूछा,’’यहाँ शेर तो नहीं आयेगा।’’ उसने जवाब दिया,’’शेर, नहीं नहीं, भालू और मधुमक्खियाँ हैं। वो भी किसी को कुछ नहीं कहतीं, जब तक कोई उन्हें तंग न करे।’’ पहले नरेश की बात सुनकर मुझे डर लगा फिर मेरी स्वर्ग के रास्ते पर जाने वाली या़त्रा में , मेरे साथी, कुत्ते पर नजर पड़ी कि इसे जब भालू ने नहीं खाया, तो भला मुझे क्यूँ खायेगा? ये सोच कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस बातचीत के बाद मैंने गौर किया कि यहाँ अपने आप सब एक के पीछे एक लाइन में चल रहे थे, शायद पत्तों की पट्टी की वजह से। रास्ता खत्म हुआ। अब धीरे धीरे चट्टानों पर हाथ रख कर नीचे उतरे, वहाँ महाऋषि भृगु की गुफा थी और उसके आगे एक कमण्डल के आकार का एक पत्थर था, जिसका मुँह खुला हुआ था। पास ही एक शिवलिंग था। मैंने पत्थर में हाथ डाला, मेरी अंगुलियों में ठण्डा ठण्डा पानी लगा, साथ ही हल्की सी हमिंग सी महसूस हुई। शिवलिंग की पूजा की। सभी ने बारी बारी से भृगु कमण्डल के जल को छुआ और लौटे। अब हम जंगल का रास्ता पार कर उसी चौडे मैदान में पहुँचे, वहाँ शरद गाड़ी पर हमारा इंतजार कर रहा था। पत्थरों पर चलते हुए गाड़ी तक पहुँच कर मैंने बिस्किट के पैकेट हाथ में लेते ही, मुड़ कर देखा, कुत्ता मुझे ही देख रहा था। जब तक उसने खाना नहीं बंद किया, मैं उसे बिस्किट डालती ही रहीं। अब नरेश की फीस चुका, हम गाड़ी पर बैठे। फिर माँ नर्मदा उदगम के पास गये क्योंकि यहाँ पास में ही कलचुरी मंदिर है। जिसे कलचुरी महाराज कामदेव ने 1042-1072 के दौरान बनवाया था। ये 1000 साल पुराने 8 मंदिरों का समूह है ,जिसके आसपास सफाई, खूबसूरत पार्क और रखरखाव उम्दा है। जिसके लिये ए. एस. आई को साधुवाद। घास पौधों को नुकसान न पहुँचे इसलिये पत्थरों से रास्ता बनाया गया है। शरद हमें एक मंदिर में ले जाकर बोला,’’ ये  शिव मंदिर है। यहाँ सावन के महीने में कम से कम एक दिन नर्मदा जी जरूर शिवलिंग पर जल चढ़ाती हैं। यानि शिवलिंग माँ के जल से सराबोर हो जाता है।’’पूजा करके मंदिरों को निहारती रही। पटालेश्वर और मछेन्द्रथान इस काल के मंदिर निर्माण कला के नायाब उदाहरण हैं। ड्रिल मशीन के बिना ऐसी कला कृतियाँ बनाना हैरानी पैदा करती हैं। मैं तो शरद के 'चलो' कहने पर ही चलती थी क्योंकि प्रत्येक दर्शनीय स्थल मुझे रोक लेता था। मेरे मन में आया कि अकेले बैठे शरद ने गुटका तो नहीं खाया होगा। मेरे पूछने से पहले ही शरद बोला,’’मैंने आज भी गुटका तंबाकु नहीं खाया, मुँह खोल के दिखाया उसमें लौंग रक्खा हुआ था।