यहाँ से हम कपिलधारा के लिये चल पड़े। गाड़ी से उतरे, वहाँ कुछ दुकानों का बाजार लगा हुआ था। वहाँ से हम पैदल मनोहारी रास्ते से चले। लगभग 100 फीट की ऊँचाई से गिरने वाला कपिलधारा झरना बहुत सुन्दर है। थोड़ा आगे जाने पर कपिलेश्वर मंदिर है। जिसके आस पास कई गुफाएँ हैं जहाँ साधु संत वास करते हैं। पैदल चलते हुए उनके दर्शन हो जाते हैं। घने जंगल, पर्वत और प्रकृति के सुन्दर नजारे यहाँ मन मोह लेते हैं। गाड़ी पर पहुँचते ही शरद ने खुशी से बताया कि उसे आज तंबाकू छोड़े दूसरा दिन है। सुन कर खुशी हुई। अब माई की बगिया पहुँचे। जो नर्मदा उदगम से एक किलोमीटर दूर है। इस हरे भरे स्थान से यहाँ शिव जी की पु़त्री नर्मदा फूल चुनती थी। प्राकृतिक रूप से उगे आम केले और अन्य वृक्षों और गुलाब ने इस जगह की सुन्दरता को चार चाँद लगा दिये हैं। यहाँ से हम श्रीज्वालेश्वर मंदिर गये। यह अमरकंटक से आठ किलोमीटर दूर शहडोल रोड पर स्थित है। अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला की उत्पत्ति यहाँ से हुई है। खूबसूरत रास्ते में यदि कोई बादल आ जाता तो उसकी परछाईं, हरी भरी वादियों पर बहुत सुन्दर डिजाइन बनाती। शंकर जी ने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। शिवजी ने पार्वती के साथ वास किया था, मैकाल की पहाड़ियों में असंख्य शिवलिंग हैं। मंदिर के निकट ही सनसैट प्वाइंट हैं। सामने ही माँ अन्नपूर्णा का मंदिर है। जहाँ से बुलाकर प्रशाद में दोना भर कर गर्म स्वादिष्ट खिचड़ी का दिया गया। अब हम सर्वोदय जैन मंदिर की ओर चले। यह मंदिर देश के अद्वितीय मंदिरों में अपना स्थान रखता है। इसे बनाने में लोहे और सीमेंट का प्रयोग नहीं हुआ है। मंदिर में स्थापित मूर्ति का वजन 24 टन के लगभग है। मंदिर में निर्माण कार्य अभी भी चल रहा है। शरद ने पूछा,’’दूधधारा के झरने को आप, सामने से देखोगे या झरने की ऊँचाई से बराबर उतरते हुए देखोगे। हमने कहाकि हम तो उसके बराबर से उतरेंगे। अब फिर हमारी घने जंगल की यात्रा शुरू। पेड़ों के नीचे पत्थरों पर हिलती डोलती गाड़ी चल रही थी। पत्तों से छन कर कभी कभी धूप के छोटे छोटे टुकड़े, हम पर आ जाते तो लगता की दोपहर है। एक जगह शरद ने गाड़ी रोकी और हमें कहा,’’उतरिये, इस पानी की धारा के साथ आप चलते रहियेगा। जहाँ ये धारा गिरेगी, उसके बाजू में पत्थर काट कर सीढ़ियाँ बनी हैं। उससे उतरेंगे तो सामने मैं आपको मिलूँगा। हम चल रहें थे कहीं पर भी छोटी छोटी धाराएँ शोर मचाती हुई, उसमें मिल जाती। अब राह खत्म, हम नीचे आये। नीचे से देख रहें हैं। वही पानी दूध के जैसा हो गया।
दूधधारा नाम का यह झरना बहुत लोकप्रिय है। ऊँचाई से गिरने के कारण झरने का पानी दूध जैसा लगता है। पता नहीं कितनी देर हम झरने को निहारते रहे। वहीं पर मंदिर था। उसके बराबर में हैण्डपम्प, पूजा से पहले हाथ धोने लगे। उसका ठंडा ठंडा पानी , हमने खूब पिया। मंदिर में प्रवेश कर माँ की पूजा की। बाहर आकर फिर उस नल का पानी पिया और बोतलें भर ली। बोतलें भरते देख, शरद बोला,’’ यहाँ आपको पीने का पानी हर जगह मिल जायेगा।’’पर हम नहीं माने। पता नहीं कैसा स्वाद था उस पानी का। क्रमशः
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