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Sunday, 23 October 2016

नीलकण्ठ महादेव की यात्रा ने मेरी ज़िन्दगी बदली भाग 1 Neelkanth Mahadev ke Yatra ne mere Zindagi Badali Neelam Bhagi Uttrakhand भाग 1 Neelam Bhagi नीलम भागी


कुछ साल पहले मेरी छात्रा के पिता आये और बोले,’’दीदी, मैंने टूर ले जाने का काम शुरू किया है।  पहली बस हरिद्वार और ऋषिकेश जा रही है। सबसे पहले आपके पास आया हूँं।’’ मैंने सात टिकट ले लीं। एक रात जाना ,एक रात आना और एक रात हरिद्वार में रूकना। शनिवार रात को निकलना था। मैंने बेसन के लड्डू, मठरी, कचौड़ी बना ली। अंजना ने तैयारी कर ली। उत्तकर्षिनी छोटी थी, सिर्फ पढ़ने का काम करती थीं। उसे टेंशन थी कि ये पकाने में लगी हैं, बस हमें छोड़ कर चली जायेगी। खाना शोभा ने बनाकर लाना था और हमने बस में ही खाना था। वहाँ घर में उसके बच्चे, अपर्ना, मनु कनु ने माँ की नाक में दम कर रक्खा था, वे एक ही रट लगा रहे थे ,बस चलो। खैर शोभा अपने साथ एक पाँच लीटर के ठण्डा पानी रखने के जग,आबशार में बर्फ भर कर लाई। हम जैसे ही घर से निकले, अम्मा पीछे से आकर एक हाथ जलाता हुआ, स्टील का डिब्बा देते हुए बोली,’’हलुआ।’’मुझे याद आया, हमारे यहाँ त्यौहार या शुभ काम पर कढ़ाई चढ़ाते हैं, तो उसमें मीठा बना कर ही कढ़ाई को चूल्हे से उतारते हैं। यहाँ तो हम तीर्थयात्रा जैसे शुभ काम को करने जा रहे थे। जितनी देर हम तैयार हो रहे थे, अम्मा ने हलुआ बनाने की  परम्परा को पूरा किया। अभी कुछ दूर ही चले थे कि शोभा का घुटना रूक गया। उसके घुटने का न जाने कौन सा स्क्रू ढीला हो गया था, जिसके कारण वह कुछ समय तक चल नहीं पाती थी। ये समस्या कभी भी, कहीं भी आ जाती थी। उसके डाक्टर पति कहते, मेरे सामने हो तो डायग्नोज़ करता हूँ ,एक्स रे करवाउँगा। दर्द तो था नहीं इसलिये वक्त टलता रहा। अब शोभा बोली,’’मैं तो घुटने से परेशान हूँ, तुम मेरी जगह किसी और को ले जाओ न ,पर मेरे बच्चे ले जाना। मैं बोली,’’नदी का मामला है, इन शैतान बच्चों की, मैं जिम्मेवारी नहीं ले सकती।’’सुनते ही बच्चों के लौकी की तरह चेहरे लटक गये। बच्चों की शक्ल देख शोभा चल पड़ी। पौं फटने से कुछ पहले ही हम ऋषिकेश पहुँचे। बस वालों ने कहाकि हम रात को हरिद्वार चलेंगे । जून का महीना था।दिल्ली की भीषण गर्मी से गए थे, हम गंगा जी को प्रणाम कर किनारे पर पड़े पत्थरों पर ठण्डे पानी में पैर लटका कर बैठ गये। हमने सोचा कि जब तक धूप तेज नहीं होती, तब तक यहीं बैठेगें। फिर स्नान करके घूमने जायेंगे, रात तक का हमारे पास समय है। इतने में मैं क्या देखती हूँ!!हमारी बस में आया एक खानदान, हमसे कुछ दूरी पर जल्दी जल्दी नहा रहा है। मैं उनके पास गई और पूछा,’’हमने तो रात को यहाँ से लौटना है। आपने इतनी आफत क्यों मचा रक्खी है?’’ क़ायदे से आफत शब्द सुन कर, उन्हें मुझसे लड़ना चाहिये था। मैं पढ़ी लिखी थी और वे अनपढ़। पर उनमें से एक महिला बड़ी खुशी से  बोली,’’हमें न, बाबा के दर्शन करने जाना है।’’मैंने पूछा,’’बाबा कहाँ है?’’ उसने गंगा जी के पार पहाड़ों की ओर हाथ से इशारा करके कहा,’’वहाँ।’’ मैंने प्रश्न किया,’’कैसे जाओगे?’’वो बोली,’’हम तो हमेशा पैदल ही जाते हैं। अपने साथ के सात आठ साल के बच्चों की ओर इशारा करके बोली, ये भी पिछले सावन को पैदल ही गये थे, हमारे साथ।’’ मैंने उनसे कहा कि हम भी आपके साथ जायेंगे, बाबा के दर्शन करने। सुनकर वे खुश हो गये। आकर, मैंने अपने परिवार को कहा कि हम भी इनके साथ बाबा के दर्शन करने जायेंगे। सबने कोरस में पूछा,’’कौन से बाबा?’’मैंने उस खानदान से वहीं से चिल्ला कर पूछा,’’कौन से बाबा?’’उनका जवाब था ’’भोले बाबा नीलकंठ’’। अब हमारे अंदर भी गज़ब की फुर्ती आ गई। हमने स्नान किया। लक्ष्मण झूले से गंगा जी को पार कर एक रैस्टोरैंट में गर्मागर्म आलू और सीताफल की सब्जी, पूरी, जलेबी चाय का नाश्ता करके, अपने साथियों का इंतजार किया। वे चलते हुए आये और चलते चलते बोले,’’चलो।’’पर्स लटकाये, फैशनेबल चप्पलों की हील से टकटक करती हम तीनों और बच्चे उनके पीछे चल दिये। चारों बच्चों ने नम्बर लगा लिया आबशार उठाने का, हम उनके पीछे चलते जा रहें हैं। तब मैं बहुत मोटी थी इसलिये सब मुझसे काफी आगे चल रहे थे। कुछ दूर जाने पर पक्की सड़क खत्म हो गई थी। मेरे मन मे आया कि ये अनपढ़ लोग हैं, किसी और से भी पूछ लूँ शायद शार्टकट रास्ता हो। सड़क के किनारे चार पाँच साधू बैठे थे। मैंने उनसे पूछा,’’महाराज, नीलकंठ का रास्ता यही है।"मेरे प्रश्न के जवाब में उनमें से एक ने प्रश्न पूछा,’’पैदल नीलकंठ जा रही हो?’’मैंने कहा,’’हाँ जी।’’वो बाकियों से बोला,’’देखो, ये मोटी पदैल नीलकंठ जा रही है।’’वे सब मुस्कुराये और मैं हंसते हुए तेजी से अपनी बहनों के पास पहुँच गई और उनको किस्सा बता कर कहा कि आजकल तो साधु भी महिलाओं से मजाक करते हैं। सुनकर सभी हंसने लगे और मैं भी सबके साथ कदम मिला कर चलने की कोशिश करने लगी। हम जितना ऊपर चढ़ते जा रहे थे ऋषिकेश और गंगा जी  की सुन्दरता बढ़ती जा रही थी। अचानक खानदान ने अपने सब सदस्यों को एक एक पुड़िया दी, उन्होंने उसे फांका और ये जा वो जा। रास्ता पूछने की तो जरूरत ही नहीं थी। पेड़ों पर तीर के निशान थे। चलते चलते मैं तो बेहाल हो गई, पर बाबा का दूर दूर तक पता नहीं था। क्रमशः






22 comments:

सदा said...

बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर ....

Media Link Ravinder said...
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Media Link Ravinder said...

अरे नीलम जी आप तो कमाल का लिखती हैं---
आप ने तो अपने शब्दों में पूरा दृश्य ही दिखा दिया--इस दर्शन के लिए आपके आभारी हैं हम सब----

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Shweta said...

Very interesting

Shweta said...
This comment has been removed by the author.
Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Unknown said...

क्या बात नहीं ना मुझे आपके इस एक को पढ़ते हुए हम भी ऐसे महसूस कर रहे थे उसे हम भी नीलकंठ महादेव की यात्रा पर आपके साथ साथ चल रहे हैं!

Unknown said...


क्या बात नीलम जी मुझे आपके इस लेख को पढ़ते हुए हम भी ऐसे महसूस कर रहे थे मानो कि हम भी नीलकंठ महादेव की यात्रा पर आपके साथ साथ चल रहे हैं!

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

नीलम जी सादर नमन!
आपकी लेखनी से लिखे नीलकंठ यात्रा के संस्मरण अर्थात आपकी भाषा में कहूँ तो "कहानी'' के चारों भागों को पढ़कर अतीव प्रसन्नता का भास हुआ ।

नीलकंठ यात्रा का हमारे हिन्दू समाज में विशेष महत्व है, यह वह स्थल है कि जहाँ पर भगवान शिव ने विषपान किया था, इस विष को समस्त शरीर में प्रवेश करने से रोकने हेतु माता शिवशक्ति ने उनके कंठ को दबाया, जिससे विष उनके कंठ में रुक गया तो भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ गया । इसलिए इस स्थान का नाम भी नीलकंठ धाम पड़ गया ।

खैर, बात करते हैं आपकी पवित्र एवं आस्था से परिपूर्ण यात्रा की, जिसका अनायास ही बना कार्यक्रम एक ऐसी मान्यता की और संकेत करता है कि "जब भगवान का बुलावा आता है, तब ही मानव उनके धाम पर एक कठिन एवं आस्थामय यात्रा पैदल अथवा किसी वाहन द्वारा पहुंचता है'', आपके साथ भी शायद ऐसा ही हुआ । आपके बच्चे व आपकी मित्र नीलकंठ यात्रा का एक कारण बने, आपके न चाहते हुए भी आप यात्रा पर निकल गए ।

आपकी यात्रा में आपको अनेक कठिनाइयों बाद भी आपने अपनी यात्रा पूर्ण की । इसके पीछे शायद उस परमपिता की विशेष शक्ति ही कोई प्रभाव रहा कि आप भारी शरीर के निर्बल होने की ग्लानि, विवशता के कारण स्वयं को अपने गंतव्य से दूर समझती रही, परन्तु एक समय ऐसा आया की आपको आत्म विश्वास, आत्म शक्ति व स्वस्थ्य मष्तिस्क और स्फूर्ति का आभास हुआ ।


आपकी नीलकंठ यात्रा का एक कठिनाइयों के बाद सम्पूर्ण हुई, बाबा भोले नाथ के दर्शन हुए, जो आत्मबल व स्वास्थ्य एवं संसार के प्रति चेतन्यता आपको प्राप्त हुई, जीवन आपने उसकी आशा भी नहीं की होगी, और उस यात्रा से आपको जो मिला, उसने आपके जीवन की शैली में परिवर्तन आ गया ।

आज आप उसी परमशक्ति के आशीर्वाद से स्वस्थ्य एवं प्रसन्नचित्त है ।

उक्त संस्मरण अथवा कहानी के स्वस्थ्य लेखन हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभ आशीर्वाद ।

पवन शर्मा परमार्थी, कवि-लेखक, मो 9911466020, 9354004140, दिल्ली

Neelam Bhagi said...

नीलम जी सादर नमन!
आपकी लेखनी से लिखे नीलकंठ यात्रा के संस्मरण अर्थात आपकी भाषा में कहूँ तो "कहानी'' के चारों भागों को पढ़कर अतीव प्रसन्नता का भास हुआ ।

नीलकंठ यात्रा का हमारे हिन्दू समाज में विशेष महत्व है, यह वह स्थल है कि जहाँ पर भगवान शिव ने विषपान किया था, इस विष को समस्त शरीर में प्रवेश करने से रोकने हेतु माता शिवशक्ति ने उनके कंठ को दबाया, जिससे विष उनके कंठ में रुक गया तो भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ गया । इसलिए इस स्थान का नाम भी नीलकंठ धाम पड़ गया ।

खैर, बात करते हैं आपकी पवित्र एवं आस्था से परिपूर्ण यात्रा की, जिसका अनायास ही बना कार्यक्रम एक ऐसी मान्यता की और संकेत करता है कि "जब भगवान का बुलावा आता है, तब ही मानव उनके धाम पर एक कठिन एवं आस्थामय यात्रा पैदल अथवा किसी वाहन द्वारा पहुंचता है'', आपके साथ भी शायद ऐसा ही हुआ । आपके बच्चे व आपकी मित्र नीलकंठ यात्रा का एक कारण बने, आपके न चाहते हुए भी आप यात्रा पर निकल गए ।

आपकी यात्रा में आपको अनेक कठिनाइयों बाद भी आपने अपनी यात्रा पूर्ण की । इसके पीछे शायद उस परमपिता की विशेष शक्ति ही कोई प्रभाव रहा कि आप भारी शरीर के निर्बल होने की ग्लानि, विवशता के कारण स्वयं को अपने गंतव्य से दूर समझती रही, परन्तु एक समय ऐसा आया की आपको आत्म विश्वास, आत्म शक्ति व स्वस्थ्य मष्तिस्क और स्फूर्ति का आभास हुआ ।


आपकी नीलकंठ यात्रा का एक कठिनाइयों के बाद सम्पूर्ण हुई, बाबा भोले नाथ के दर्शन हुए, जो आत्मबल व स्वास्थ्य एवं संसार के प्रति चेतन्यता आपको प्राप्त हुई, जीवन आपने उसकी आशा भी नहीं की होगी, और उस यात्रा से आपको जो मिला, उसने आपके जीवन की शैली में परिवर्तन आ गया ।

आज आप उसी परमशक्ति के आशीर्वाद से स्वस्थ्य एवं प्रसन्नचित्त है ।

उक्त संस्मरण अथवा कहानी के स्वस्थ्य लेखन हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभ आशीर्वाद ।

पवन शर्मा परमार्थी, कवि-लेखक, मो 9911466020, 9354004140, दिल्ली

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार सर

Jaishree said...

बहुत ही रोचक और प्रेरणा दायी वृत्तांत। आगे का इंतज़ार रहेगा।

Ritesh Gupta said...

रोचक एवं प्रेरणादायक संस्मरण

Kajal Kumar said...

यात्रा के चित्र ?

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद जयश्री

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद रितेश

Neelam Bhagi said...

तब मेरे पास, कैमरा नहीं था, मोबाइल के बारे में सुना था। भारत भ्रमण के बाद फिर जाऊंगी,तब चित्र लगाउंगी। पढ़ने के लिए हार्दिक आभार।