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Wednesday, 6 June 2018

लोक कला महोत्सव में न जाती, तो दिल से दुखी होती न!! LOK KALA MAHOTSAV


लोक कला महोत्सव में न जाती,  तो दिल से दुखी होती न!!
                                             नीलम भागी
अखिल भारतीय लोक कला महोत्सव के तत्वावधन में 27 मई को सायं 5.30 बजे जवाहरलाल नेहरू युवा केन्द्र, यू 1, सेक्टर 11 नोएडा में लोक कला विषय पर एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सात दिवसीय इस कार्यक्रम की शुरूआत 25 मई को दिल्ली के राजघाट से की गई थी और समापन 31 मई गुरूग्राम हरियाणा में हुआ। आज हमारे नौएडा का सौभाग्य था कि इस कार्यक्रम का यहाँ आयोजन हुआ और हमारी खुशकिस्मती कि हम इस विस्मय विमुग्ध करने वाले समारोह के दर्शक बने। कार्यक्रम का शुभारंभ द्वीप प्रज्जवलन से हुआ। कार्यक्रम के तीसरे दिन आज विभिन्न प्रदेशों के लोक कलाकारों ने अपने कला के प्रदर्शन से वहॉं उपस्थित लोगों का दिल जीत लिया। आज जिन प्रदेशों के कलाकारों ने हिस्सा लिया उनमें जम्मू कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, सिक्किम, त्रिपुरा, झारखंड, केरल एवं कर्नाटक प्रमुख थे। इन राज्यों के लोक कलाकारों ने अपने लोकगीतों में वहाँ की सामाजिकता को जिंदा किया। ये देख कर ज्योति सक्सेना(ओम विश्रातिं ) ने कहा कि लोक संस्कृतियों का सहेजा जाना बहुत जरूरी है। इस असवर पर एक कार्यशाला का भी आयोजन किया गया।
      परांदा लाल अड़ियो, पंजाबी मुटियारों के लोकगीत में तो दर्शक झूमने लगे और भांगड़ा के गबरू जवानों ने सबको तालियाँ बजाने पर मजबूर कर दिया। मन के उद्गार बोलियों के रूप में सुनने को मिल रहे थे, जिसका साथ कुशल ढोल वादक दे रहा था। हिमाचली शादी के लोकगीतों की मधुरता ने तो मनमोह लिया। केरल के भावमय प्रदर्शन ने तो उनके नृत्य का मुरीद बना दिया।  इस नृत्य में एक खम्भ से  जितनी कलाकार महिलायें थीं उतनी ही डोरियां लटक रहीं थीं जो महिलाओं के हाथ में बंधी थी। उन्होंने अपने हाथ में छोटी छोटी छड़ी पकड़ी  थीं। बीच में खड़ा एक कलाकार लोक गीत गा रहा था। भाषा न समझने पर भी आनन्द की अनुभूति से गाया जाने वाले लोकगीत को ताल,  नाचते हुए महिलाएं छड़ी बजा कर दे रहीं थीं। ये मेल बहुत अच्छा लग रहा था। एक वृताकार गोले में विशेष  कदमताल के साथ प्रस्तुती चल रहीं थीं। नृत्य के विस्तार के साथ कलाकारों का गोलाकार बड़ा - छोटा होता था और डोरी से जाल बुनता जा रहा था। फिर नाचते हुए डोरी खुलती गई और घेरा बढ़ता गया। ये देख कर और दूसरा लोकनृत्य देख कर यकीन हो गया कि केरल लोकनृत्य की विविधता के मामले में बहुत अमीर और विकसित है। वे अपना मूड संगीत और वेशभूषा के साथ दिखाते हैं।               
         राजस्थान की लोककला में कालबेलिया नृत्य देखा, 1972 में वाइल्डलाइफ एक्ट के कारण कालबेलिया जनजाति अपने साँप पकड़ने के पेशे से वंचित हो गई। अब उन्होंने कला प्रर्दशन को पेशा बना लिया है। उनकी सपेरों की जाति कालबेलिया ही, कालबेलिया नृत्य का नाम बनी। और  कालबेलिया के नाम से आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुकी है। सांप की तरह लहराती, बलखाती कलाकारों के नृत्य को मंत्रमुग्ध से देखते हुए समापन पर ही तंद्रा टूटी। झारखंड नृत्य में शिकार पशु, नगाड़ा, झांझ, तसा, थाल, घंटा आदि कुछ अनोखे उपकरण बजाये गये। कर्नाटक के लोक कलाकारों के वाद्ययंत्रों ने इस विशाल प्रांगण को गूंजा दिया और अपनी अनूपम छटा बिखेरी।। सभी लोक नृत्य एक से बढ़कर एक थे। लोक कला महोत्सव में भारत सरकार के कला मंत्रालय एवं कर्नाटक साहस कला अकादमी ने प्रायाजोक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण सहभागिता दर्ज की। इसके अतिरिक्त लोक कला संस्कृति को समर्पित संस्था परिधि तथा नमो गंगे ने भी कार्यक्रम में सक्रिय रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज की।
फेस्टिवल कमेटी यूपी के चेयरमैन राजन श्रीवास्तव(सक्रिय समाजसेवक, श्री नारायण सांस्कृतिक चेतना न्यास, श्री चित्रगुप्त सभा ट्रस्ट) ने इस अवसर पर कहा कि लोकगीत प्रकृति के उद्गार हैं। लोक कला जनसामान्य की कला है। लोक रचित लोकगीतों में कोई नियम कायदे नहीं होते। ऐसा सुनने में आता है कि  जिस समाज में लोक गीत नहीं होते। वहाँ पागलों की संख्या अधिक होती है। शानदार सजावट, आगमन से उपस्थिति तक स्नैक्स सर्व होते रहे। सभी डिनर पर आमन्त्रित थे। जो भी आया, वो समापन से पहले जा नहीं पाया। 
ंइस अवसर पर अखिल भारतीय फेस्टिवल कमेटी के चेयरमैन निर्मल वैद्य, कर्नाटक साहस कला अकादमी के संस्थापक सचिव हसन रघु, मुख्य संयोजक राजीव मित्तल, हेल्थ एण्ड इंवारमेंट टाईम्स के ब्यूरो प्रमुख धीरेन्द्र कुमार  चौधरी, अंजना भागी समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। मंच का संचालन करूणेश शर्मा ने किया। और मैं ये सोचते हुए लौट रही थी कि अगर मैं न आती तो इस मनोरंजक आयोजन से वंचित रह जाती।






राजन श्रीवास्तव जी को सम्मानित किया गया।



1 comment:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

लोक संगीत में देश की आत्मा समाई है अति सुंदर लेख एवं चित्र