इन कुत्तों का नामकरण भी नहीं हुआ था!!
नीलम भागी
मेरे ब्लॉक के तीन कुत्ते मेन गेट पर घुसते ही सब का स्वागत करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। अगर आप पैदल हैं तो आपको काट कर स्वागत करेंगे। कार में हैं तो कार के पीछे दौड़ते आयेंगे जिस घर के आगे आपकी गाड़ी खड़ी होगी, वहाँ वे खड़े होकर आपके निकलने का इंतजार करेंगे ताकि वे आपको काटें। टू विलर वालों को वो देख कर बहुत खुश होते थे। वे टाँग पकड़ने के लिए वे साथ साथ भागने लगते थे। गार्ड उन्हें डांटता था, तो वे पार्क में जा कर चुपचाप बैठ जाते थे। अकेला कोई पार्क में जाये तो उसे काट लेते थे। हमारे घरों में डण्डी रहती थी। जाते हुए हम ले जाते थे और गार्ड के पास रख देते थे। लौटते हुए गार्ड के पास से छड़ी उठा लेते थे। अगर आपका गेट खुला रह गया तो ये एक एक चप्पल उठा कर पार्क में ले जाते थे और उसके टुकड़े टुकड़े कर देते थे। जूता जोड़े से नहीं, जो इनका दिल करेगा यानि आपके तीन जोड़े खराब। गाड़ी पर रात को यदि आपने कवर चढ़ा दिया तो सुबह वो चिथड़ों में तब्दील मिलेगा। बाइयों का कहना है कि ये पचास लोगो को काट चुके हैं। मेरी दोनो मेड को ये काट चुके थे। इनकी वजह से हमारे ब्लॉक में बाइयों को असाधारण दुलार मिलता है क्योंकि अगर वो काम छोड़ देगी तो दूसरी बाई से काम की बात करो तो उसका जवाब होता ’’कुत्तों के ब्लॉक में मैं काम नहीं करेगी।’’नवरात्र में हमारे ब्लॉक में बाजपेयी परिवार ने कीर्तन का आयोजन किया तो महिलाओं को कहा गया कि हाथ में डण्डी लेकर आयें। रावण के पुतले को दशहरे तक इन कुत्तों से बचाना, बच्चों के लिये आसान न था!
पार्क में रावण का पुतला एक बजे खड़ा कर दिया था। उसके बराबर में स्टूल पर हाथ में डण्डा पकड़े एक लड़का धूप में बैठा था। तीन लड़के पेड़ की छाया में डण्डे लिये बैंच पर बैठे थे। धूप में बैठने की शिफ्ट बदलती रहती थी। यह देख मेरे मन में एक प्रश्न बार बार उठ खड़ा हो रहा था। भला 12 फुट के रावण को कौन चुरायेगा! मैं चल दी पूछने। जाने पर पता चला कि वे रावण के पुतले को कुत्तों से बचाने के लिये रखवाली कर रहें थे। यहाँ के कुत्ते गाड़ी का कवर फाड़ देते हैं। इसलिये वे रावण को भी फाड़ने की फिराक में थे। ये रावण बच्चों की कड़ी मेहनत से तैयार हुआ था। रावण दहन तो सायं 7.30 था। सर्दी आ गई। आंगन में पेड़ छायें हुए हैं। मैं धूप के कारण पेड़ नहीं छटवाना चाहती। कारण धूप तो सिर्फ दो महीने सेकी जाती है। गर्मी आठ महीने झेलनी पड़ती है। 93 साल की अम्मा को धूप चाहिए। सामने पार्क में कुत्तों की वजह से नहीं बिठा सकती थी। कई बार इन्हें पकड़ने वाले आये। इन्होंने छिपने के ठिकाने ढूंढ रखें थे। रैंप के नीचे नाली में छिप कर बैठ जाते थे। वे थक कर चले जाते तो उनके जाने के बाद निकल कर उत्पात मचाते। हाई जम्प में ये बेमिसाल थे। जिनकी बाउण्ड्री वॉल पर ग्रिल नहीं है। कुत्ते पकड़ने की गाड़ी देखते ही ये उन घरों में कूद जाते और छत पर छिप कर बैठ जाते। मैंने एक छोटा सा मिट्टी का बर्तन गेट से बाहर जानवरों के पानी पीने के लिये रक्खा है। एक दिन बहुत गर्मी थी। मुझे लगा बाहर कोई गेट खोलने की कोशिश कर रहा है। मैं बाहर आई देखा ये गेट से अपने को रगड़ रहें हैं। मुझे देखते ही चुपचाप खड़े होकर, मुझे देखने लगे। मैंने देखा बर्तन में पानी खत्म हो गया था। मुझे न जाने क्या सूझा मैंने बर्फ का ठंडा पानी बनाया। पानी के बर्तन में बर्फ का टुकड़ा डाला और उसमें गेट के अंदर से ही एक गिलास पानी डाला। मैं पानी डालती गई तीनों ने क्रम से पानी पिया। शाम को मैं किसी काम से बाहर जाने लगी, ये मुझे देखते ही पार्क में चले गये। मैंने भी डण्डी फैंक दी। जब बाहर से लौटी फिर ये मुझे देखते ही पार्क में चले गये। बड़ी मेहनत से ये पकड़े गये। इनसे पहले ब्लॉक के कुत्तो के नाम उनके रंग के अनुसार होते थे जैसे कालू, भूरे, चिंकी आदि। ये इतने दुष्ट थे कि किसी ने इनका नाम भी नहीं रक्खा था। इन्हें कुत्ते नाम से ही पुकारा गया। इनके जाने से सभी प्रसन्न थे। कुछ दिनों बाद ये बिल्कुल शरीफ़ होकर लौटे हैं। काटने की आदत भी छोड़ आए हैं।
नीलम भागी
मेरे ब्लॉक के तीन कुत्ते मेन गेट पर घुसते ही सब का स्वागत करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। अगर आप पैदल हैं तो आपको काट कर स्वागत करेंगे। कार में हैं तो कार के पीछे दौड़ते आयेंगे जिस घर के आगे आपकी गाड़ी खड़ी होगी, वहाँ वे खड़े होकर आपके निकलने का इंतजार करेंगे ताकि वे आपको काटें। टू विलर वालों को वो देख कर बहुत खुश होते थे। वे टाँग पकड़ने के लिए वे साथ साथ भागने लगते थे। गार्ड उन्हें डांटता था, तो वे पार्क में जा कर चुपचाप बैठ जाते थे। अकेला कोई पार्क में जाये तो उसे काट लेते थे। हमारे घरों में डण्डी रहती थी। जाते हुए हम ले जाते थे और गार्ड के पास रख देते थे। लौटते हुए गार्ड के पास से छड़ी उठा लेते थे। अगर आपका गेट खुला रह गया तो ये एक एक चप्पल उठा कर पार्क में ले जाते थे और उसके टुकड़े टुकड़े कर देते थे। जूता जोड़े से नहीं, जो इनका दिल करेगा यानि आपके तीन जोड़े खराब। गाड़ी पर रात को यदि आपने कवर चढ़ा दिया तो सुबह वो चिथड़ों में तब्दील मिलेगा। बाइयों का कहना है कि ये पचास लोगो को काट चुके हैं। मेरी दोनो मेड को ये काट चुके थे। इनकी वजह से हमारे ब्लॉक में बाइयों को असाधारण दुलार मिलता है क्योंकि अगर वो काम छोड़ देगी तो दूसरी बाई से काम की बात करो तो उसका जवाब होता ’’कुत्तों के ब्लॉक में मैं काम नहीं करेगी।’’नवरात्र में हमारे ब्लॉक में बाजपेयी परिवार ने कीर्तन का आयोजन किया तो महिलाओं को कहा गया कि हाथ में डण्डी लेकर आयें। रावण के पुतले को दशहरे तक इन कुत्तों से बचाना, बच्चों के लिये आसान न था!
पार्क में रावण का पुतला एक बजे खड़ा कर दिया था। उसके बराबर में स्टूल पर हाथ में डण्डा पकड़े एक लड़का धूप में बैठा था। तीन लड़के पेड़ की छाया में डण्डे लिये बैंच पर बैठे थे। धूप में बैठने की शिफ्ट बदलती रहती थी। यह देख मेरे मन में एक प्रश्न बार बार उठ खड़ा हो रहा था। भला 12 फुट के रावण को कौन चुरायेगा! मैं चल दी पूछने। जाने पर पता चला कि वे रावण के पुतले को कुत्तों से बचाने के लिये रखवाली कर रहें थे। यहाँ के कुत्ते गाड़ी का कवर फाड़ देते हैं। इसलिये वे रावण को भी फाड़ने की फिराक में थे। ये रावण बच्चों की कड़ी मेहनत से तैयार हुआ था। रावण दहन तो सायं 7.30 था। सर्दी आ गई। आंगन में पेड़ छायें हुए हैं। मैं धूप के कारण पेड़ नहीं छटवाना चाहती। कारण धूप तो सिर्फ दो महीने सेकी जाती है। गर्मी आठ महीने झेलनी पड़ती है। 93 साल की अम्मा को धूप चाहिए। सामने पार्क में कुत्तों की वजह से नहीं बिठा सकती थी। कई बार इन्हें पकड़ने वाले आये। इन्होंने छिपने के ठिकाने ढूंढ रखें थे। रैंप के नीचे नाली में छिप कर बैठ जाते थे। वे थक कर चले जाते तो उनके जाने के बाद निकल कर उत्पात मचाते। हाई जम्प में ये बेमिसाल थे। जिनकी बाउण्ड्री वॉल पर ग्रिल नहीं है। कुत्ते पकड़ने की गाड़ी देखते ही ये उन घरों में कूद जाते और छत पर छिप कर बैठ जाते। मैंने एक छोटा सा मिट्टी का बर्तन गेट से बाहर जानवरों के पानी पीने के लिये रक्खा है। एक दिन बहुत गर्मी थी। मुझे लगा बाहर कोई गेट खोलने की कोशिश कर रहा है। मैं बाहर आई देखा ये गेट से अपने को रगड़ रहें हैं। मुझे देखते ही चुपचाप खड़े होकर, मुझे देखने लगे। मैंने देखा बर्तन में पानी खत्म हो गया था। मुझे न जाने क्या सूझा मैंने बर्फ का ठंडा पानी बनाया। पानी के बर्तन में बर्फ का टुकड़ा डाला और उसमें गेट के अंदर से ही एक गिलास पानी डाला। मैं पानी डालती गई तीनों ने क्रम से पानी पिया। शाम को मैं किसी काम से बाहर जाने लगी, ये मुझे देखते ही पार्क में चले गये। मैंने भी डण्डी फैंक दी। जब बाहर से लौटी फिर ये मुझे देखते ही पार्क में चले गये। बड़ी मेहनत से ये पकड़े गये। इनसे पहले ब्लॉक के कुत्तो के नाम उनके रंग के अनुसार होते थे जैसे कालू, भूरे, चिंकी आदि। ये इतने दुष्ट थे कि किसी ने इनका नाम भी नहीं रक्खा था। इन्हें कुत्ते नाम से ही पुकारा गया। इनके जाने से सभी प्रसन्न थे। कुछ दिनों बाद ये बिल्कुल शरीफ़ होकर लौटे हैं। काटने की आदत भी छोड़ आए हैं।


स्टेशन पर गंदगी बिल्कुल नहीं थी। 15 अप्रैल 1917 को बापू यहाँ पर आये थे तो युवा थे इसलिये अधिकतर इन चित्रों में वे युवा हैं।
स्टेशन से बाहर उस समय का रेल के डिब्बे का दृश्य है, जिस वेश भूषा में वे आये थे, वैसी ही बापू की मूर्ति पर पोशाक दर्शाई गई है। गैस्ट हाउस जाने के लिए गाड़ी पर बैठते ही मैं सीट बैल्ट लगाने लगी। तो ड्राइवर साहेब भीम सिंह बोले,’’ बेल्ट की कौनू आवश्यकता नहीं है यहाँ! ’’मैंने पूछा ,’’ यहाँ सीट बैल्ट न बांधने पर जुर्माना नहीं है।’’ उसने जबाब दिया कि कुछ नहीं होगा। सायं 4.30 हम गैस्ट हाउस पहुंचे वहाँ खाना तैयार था। खाते ही अपने कमरे में जाकर थोड़ा आराम किया और चाय पी कर हम गांधी स्मारक संग्रहालय गये। वहाँ श्री बृजकिशोर जी पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बिहार सरकार , सचिव गांधी स्मारक संग्रहालय से भेंट हुई। मैंने उन्हें अपना परिचय दिया। सुनकर गांधी विचारधारा के वे वयोवृद्ध सज्जन बोल,"मुझे तो तुम कस्तूरबा लग रही हो ।" सुनकर मेरा गला भर गया। बा जैसा असाधारण व्यक्तित्व !! अंधेरा हो गया था। उन्होंने किसी के साथ हमें चरखा र्पाक देखने भेजा और उन्होंने उससे कहा कि इन्हें लाइट जला कर अच्छे से दिखाना। वो हमें छोड़ कर आ गया। शायद उसकी ड्यूटी ऑफ हुए काफी समय हो चुका था इसलिये। यहाँ के चौराहे को भी चरखा चौराहा कहते हैं। यहाँ के गेट पर बाहर हाइ मास्ट लाइट लगी थी। उसकी रोशनी में सब दिख रहा था।
बस तस्वीरें साफ नहीं आ रहीं थी। पत्थरों पर बा और बापू की तस्वीरें उभारी गईं थी। ऊँचाई पर एक बहुत बड़ा चरखा है। खादी कमीशन द्वारा यह विशाल चरखा लगाया गया है। बैठने के लिये भी स्थान है।
इन पत्थरों पर सत्याग्रह के समय के दृश्य भी दर्शाए गए थे। काफी समय हमने चरखा पार्क में बिताया। मुझे तो यहाँ फिर से दिन की रोशनी में संग्रहालय देखने आना था
फिर हम गैस्ट हाउस लौटे।
रास्ते में दुर्गा विसर्जन का भी जुलूस दिखा.आते ही मैं सो गई। सुबह नौ बजे हमें चम्पारण बापू की कर्मभूमि को देखने के लिए निकलना था। नाश्ता करके हम सुबह नौ बजे निकले। हमारे गाइड थे अभिषेक। चम्पा के पेड़ों के आरण्य से इस जगह का नाम चम्पारण है। सड़क के दोनो ओर पेड़ ,बागमती, गंडक नदियों के कारण यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ है। पूर्वी चंपारण की सीमा नेपाल से मिलती है। उत्तम कोटि के बासमती चावल और गन्ने की उपज के कारण यह जिला मशहूर है। शायद इसलिये यहाँ जनसंख्या का घनत्व भी सबसे अधिक है। हर जगह घनी हरियाली देखने को मिल रही थी। पौराणिक दृष्टि से भी यह जगह पवित्र है। भक्त ध्रुव ने यहाँ घोर तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया था। देवी सीता की शरणस्थली भी यहाँ की पवित्र भूमि है। राजा जनक के समय यह मिथिला प्रदेश का अंग था। भगवान बुद्ध ने भी यहाँ उपदेश दिया था। भारत में बापू का स्वतंत्रता संग्राम का पहला सफल सत्याग्रह भी चंपारण सत्याग्रह है। इतनी उपजाऊ भूमि के किसान नील की तीन कठिया खेती के कारण बेहाल थे। राज कुमार शुक्ल ने गांधी जी को यहाँ की स्थिति से अवगत करवाया और उनसे चम्पारण चलने का आग्रह किया। पूरी जानकारी प्राप्त कर बापू 10 अप्रैल 1917 को कलकत्ता से पटना होते हुए बापू मुजफ्फरपुर पहुँचे थे फिर बापूधाम। अपने सत्याग्रह के बल पर यहाँ के किसानों को तीनकठिया से मुक्ति दिलाई। आज मैं भी इस हरीतमा पवित्रभूमि पर हूँ। मेरे दिमाग मेंं वही प्रश्न फिर खड़ा हो गया कि ऐसी भूमि के लोग प्रवासी क्यों हैं?











