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Wednesday 16 March 2022

अखिल भारतीय साहित्य परिषद का 16वां राष्ट्रीय अधिवेशन हरदोई की झलकियां भाग 5 नीलम भागी


 पानी से भरे गढ्डे पर रस्सा लटक रहा था। मैं देख रही थी, कुछ साहित्यकार रस्सा पकड़ कर लाँग जम्प लगा रहे थे। कोई कोई जंप लगाते हुए पानी में भी गिर जाता था। फिर ठंड से दांत किटकिटाते हुए बाहर आते और बाकियों का मनोरंजन होता। मैंने जैसे ही गढ्डा कूदने के पोज़ में रस्सा पकड़ा, दो सज्जन मुझे समझाने दौड़े, बाकि उत्सुकता से दूर से देखने लगे कि क्या मैं लांग जंप से छोटा ताल पार कर लूंगी!! पर जैसे ही मेरी फोटो खिच गई। मैं अगले खेल पर चल दी। मनोरंजन के साथ साथ तन और मन के स्वास्थ के लिए जो उपलब्ध है, उन साधनों से कई तरह के खेल बना रखे थे।





जब भी सत्र के बीच में ब्रेक मिलता, हम वहां पहुंच जाते। बड़ी हैरानी होती यह देख कर कि आज खेलों में धन और सम्मान दोनों ही उपलब्ध है। जिसके लिए महानगरों में बच्चों को बचपन से ही कोचिंग दी जाती है। यहां बने खुले में व्यायाम के साधनों से शारीरिक विकास, चुस्ती फुर्ती के साथ मनोरंजन भी होता है। मुझे तो लगता है जो बच्चा इन खेलों में परांगत है। वह टैक्नीक समझते ही खेल प्रतियोगिता में बहुत आगे जा सकता है।

 चारों ओर लहलहाते खेत थे। बीच में #डॉ. राममनोहर लोहिया महाविद्यालय अल्लीपुर हरदोई  का भवन है जिसके प्रांगण में बड़ी मेहनत से ग्रामीण जीवन शैली दर्शायी गई थी। जिसे हम गन्ना भी चूपते हुए जी रहे थे।


पर्ण कुटी के आगे खुले में चूल्हा, महानगर के फ्लैट में जिसे ओपन किचन कहते हैं। पर यहां चूल्हे के आस पास बैठ कर भोजन का आनन्द लिया जाता है। चक्की पीसना, पशुओं का मिट्टी का बाडा, चौपाल, कुंआ, मिट्टी के बर्तन बनाने का चाक  आदि सब कुछ बनाया था। कुटिया की दीवारों पर चित्रकारी भी की गई थी।





जगह जगह अलाव जल रहे थे। इस विकसित गांव में ट्रैक्टर भी था।



शाम की चाय में हाट लगाया गया था। मैं मचान को देख रही थी और सोच रही थी कि इस पर रस्सी की सीढ़ी से कैसे चढ़ते होंगे! एक कवि जिनका नाम मुझे याद नहीं आ रहा उन्होंने अपने साथियों  को बताते हुए चार लाइने पढ़ी। मै अपने नाम से पढ़ देती हूं

कोई मकान दिखाती है,

कोई दुकान दिखाती है।

नीलम भागी आपको मचान दिखाती है।

 अधिवेशन ग्रामीण परिवेश में पर्यावरण के अनूुकूल था। स्वदेशी भाव से सभी व्यवस्थाएं थीं। देश के सभी प्रांतों से आए प्रतिनिधियों के रुकने के लिए पर्णकुटीर का निर्माण किया गया था। जिसमें चारपाई, लालटेन रखी गई थी। स्वादिस्ट भोजन का स्वाद केले के पत्तों और मिट्टी के बर्तनों लिया। पुस्तकों का विमोचन हुआ और पुस्तक प्रर्दशनी आयोजित की गई। सास्कृतिक कार्यक्रमों में बुंदेलखण्ड के लोक गीत, लोक नृत्य का प्रदर्शन किया गया। जिसका कास्ट्यूम डिजाइन सराहनीय था। कठपुतली द्वारा अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का बहुत अच्छा वर्णन किया गया। 



   अधिवेशन का एक आर्कषण अखिल भारतीय भाषा कवि सम्मेलन होता है। इस बार की विशेषता थी ’57 कवियों मे 23 कवि अहिंदी भाषा के थे।" देर रात्रि तक चलने वाले कवि सम्मेलन का संचालन सुप्रसिद्ध कवि साहित्यकार श्री प्रवीण आर्य ने किया। क्रमशः           

2 comments:

KESHARI NANDAN said...

bahut acha laga didi

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद केसरी नंदन