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Thursday, 11 December 2025

दिल्ली से रीवा की ओर Delhi to Rewa नीलम भागी Neelam Bhagi

 

दिल्ली से रीवा की ओर 17 वां अखिल भारतीय साहित्य परिषद का राष्ट्रीय अधिवेशन 7,8,9 नवंबर को रीवा में था। सीधी गाड़ी रीवा एक्सप्रेस एक ही है, जो  आनंद विहार से रात 10:00 चलती है, और अगले दिन 11:00 बजे रीवा पहुंचती है। मैंने 5 नवंबर की सीट रिजर्व करवा ली. मुझे गाड़ी में नींद कम ही आती है इसलिए छ की रात को आराम से सोकर, 7 से तो कार्यक्रम शुरू हैं। स्टेशन पर प्रोफेसर नीलम राठी ( राष्ट्रीय मंत्री साहित्य परिषद अधिवेशन से पहले हैं 😄), प्रो. ममता वालिया, प्रो. रजनी मान भी मिल गई। रजनी मान बहुत खुश थी क्योंकि वह 18 साल बाद गाड़ी में बैठ रही थीं। यह तीनों जिस भी प्रोग्राम में जाती हैं, फ्लाइट से ही जाती हैं। मुझे तो वैसे ही रेल यात्रा पसंद है। हम गाड़ी के इंतज़ार में बैठकर बतिया रहे थे और प्लेटफार्म पर भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। प्रो. नीलम राठी तो बड़े  दायित्व के कारण हमेशा व्यस्त रहती हैं, अभी वह काम में मस्त थी। मैं भीड़ देख कर  बताती जा रही थी कि इनमें से कौन-कौन अधिवेशन में जा रहा है। मसलन 'वह टोपी वाली महिला, जैसे ही मुझ पर नजर पड़ेगी, मेरे पास आएगी, और वह देखते ही आ गई, रेखा खत्री ने फोटो खिंचवाते समय टोपी उतार दी। गाड़ी आते ही सब अपने डिब्बो में, अपनी अपनी सीट पर पहुँच गए। मेरे सामने की सीट पर महिला, उसके ऊपर वाली सीट पर एक बेहूदा दामाद जो बड़ा सा तिलक लगवा कर, लगेज के साथ कपड़े से बंधा हुआ एक टोकारा, जिसमें मठरी, लड्डू की खुशबू आ रही थी, विदाई में लाया था। मेरे ऊपर की सीट पर महिला का पति,  टू ऐसी डब्बा था। गाड़ी चलते ही पर्दा लगाते ही पति-पत्नी ने अपना खाना लगाया और खाने लगे, बेहूदे बबुआ दामाद  उनके सिर पर खड़ा! उसको  लगातार फोन आ रहे थे कि वह ठीक है? आसपास सब ठीक है? कोई परेशानी तो नहीं है? और वह सड़ा सा मुंह बनाकर, चिल्ला चिल्ला कर, जवाब दे रहा था। खाना खाने वालों के मुंह पर  बीच-बीच में झाड़ झाड़ कर, चादर, कंबल बिस्तर बिछा रहा था इसलिए मैंने तो अपना खाना नहीं खोला। जब वह ऊपर जाकर लेट गया तब मैंने खाना निकाल कर खाना शुरू किया। और पति पत्नी अपना खाकर चुपचाप बैठे रहे, जैसे ही मेरा खाना खत्म हुआ, उन्होंने अपना बिस्तर लगाया। सुबह नींद खुली, बेहूदा दामाद जा चुका था। अब हमारी यात्री गोष्टी  शुरू हो गई. महिला के एडवोकेट पति किसी केस के सिलसिले में रीवा जा रहे थे, साइड लोअर सीट खाली थी। मैं वहां  जाकर बैठ गई। अपर साइड  सीट का बंटी  मेरी सीट पर बैठ गया, वह श्रोता था और अपने लैपटॉप पर काम भी कर रहा था। लेखको, किताबों के बाद हमारी चर्चा फिल्मों पर और हाल ही की देखी फ़िल्म 'जौली एलएलबी 3' पर चर्चा शुरू हो गई। मानिकपुर स्टेशन आने पर एक आदमी हॉट बोतल में चाय, तीन कुल्लड़ और बिस्किट का पैकेट लेकर बंटी के पास आया और बोला, " गुल्लू भैया ने भेजा है।" बंटी ने हम तीनों को  चाय देकर और बिस्किट रखकर उस आदमी के साथ चला गया। मैं समझी अपने लिए कुल्लड़  लेने गया है। चाय का घूंट भरते ही मैंने कहा, " चाय तो बहुत ही स्वाद है। " महिला ने जवाब दिया, " मानिकपुर की चाय बहुत मशहूर है।" गाड़ी चलने पर वह आया। मैंने पूछा, " आपकी चाय!" वह बोला, " मैं कॉफी पीता हूं चाय नहीं।" 9 तारीख को समापन होते ही हमारे लौटने की गाड़ी थी। सतना पर बंटी को उतरना था। उसने बताया कि उसकी दादी की असाधारण व्यक्तित्व की महिला, उन्होंने यहां पर 52 साल पहले आउटलेट शुरू किए थे।  हम जब भी घूमने के लिए सतना से गुजरे, उनका रिजॉर्ट तैयार हो रहा है। वहां जरूर आए और फोन नंबर देकर कर , सतना पर उतर गया। हमारा बतियाना चलता ही रहा। रीवा स्टेशन पर हमें पिकअप के लिए गाड़ियां आई थीं और हम हरे भरे  रीवा से परिचय करते हुए अतिथि गृह पहुंच गए। क्रमशः

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