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Wednesday, 5 March 2025

उत्सवों के रंग पर्यावरण के संग !!


कृष्ण भगवान अति व्यस्त होने के कारण कई दिनों तक वे राधा जी से मिलने नहीं पहुँचे तो राधा जी बहुत उदास हो गईं। जिसका असर प्रकृति पर भी पड़ने लगा। हरियाली मुरझाने लगी। यह देख कृष्ण राधा से मिलने पहुँच गए। उन्हें देख राधा जी बहुत खुश हुई और गोपियाँ भी चहकने लगीं और प्रकृति भी खिल उठी। कृष्ण नेे राधा को छेड़ते हुए एक फूल तोड़ कर मारा। बदले में राधा जी ने भी फूल मारा। अब दोनों ओर से फूल एक दूसरे को मारे जाने लगे। इस खेल में ग्वाल गोपियाँ भी फूल खेलों प्रतियोगिता में शामिल हो गए। उस दिन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि थी। तब से इस दिन को फुलैरा दूज(1 मार्च) के रूप में मनाया जाता है। मंदिरों को फूलों से सजाते हैं। इस दिन बिना महूर्त के शुभ काम किए जाते हैं। इसी दिन श्रीरामकृष्ण की 190वीं जयंती बेलूर मठ में मनाई जायेगी।      

चायचार कुट 7 मार्च मिजोरम का फसल कटाई के अंत का उत्सव है। युवा आग के चारों ओर नृत्य करते हैं। यह कठोर सर्दियों की बिदाई और बसत ऋतु की शुरूआत का भी संकेत देता है। यहाँ का चाय नृत्य मुख्य आर्कषण है। संास्कृतिक प्रर्दशन और व्यंजन पर्यटकों को इस उत्सव में शामिल होने के लिए आकर्षित करते हैं। 

अरट्टू महोत्सव 7 से 9 मार्च केरल के अमबालापुझा के कृष्ण मंदिर में यह दस दिनों तक चलता हैं। मंदिर के आसपास मेले की तरह दुकाने सजती हैं और अंदर समारोह आयोजित होते हैं। जुलूस इस उत्सव के मुख्य आर्कषण हैं। पल्लीवेट्टू के दिन विशाल भोज आयोजित होता है जिसका मुख्य व्यंजन पायसम होता है।  

विरूपाक्ष कार महोत्सव हम्पी स्मारक समूह के द्वारा विरूपाक्ष मंदिर का वार्षिक रथ उत्सव है। 7, 13, 21, और 28 मार्च को देवता को सजा कर जलूस निकाला जाता है। यह त्यौहार देवताओं का दिव्य विवाह समारोह भी है। 

अर्न्तराष्ट्रीय योग महोत्सव( 9 से 15 मार्च )परमार्थ निकेतन आश्रम ऋषिकेश में कई अर्न्तराष्ट्रीय और स्थानीय योग उत्साही लोगों को आकर्षित करता है। जहाँ योग कार्यशालाएँ, स्वस्थ खाना पकाने की कक्षाएँ, शास्त्रीय नृत्य प्रदर्शन, आध्यात्मिक आचार्यों के व्याख्यान आदि का आयोजन होता है।

आमलकी एकादशी व्रत 10 मार्च को भगवान विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। क्योंकि आंवला विष्णु जी को बहुत पसंद है। इस लिए इसे आंवला एकादशी कहते हैं। काशी में इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं। कहते हैं कि इस दिन पहली बार शिवजी माँ पार्वती को लेकर काशी पहुँचे थे। इसी कारण इस दिन महाकाल और पार्वती जी की यात्रा निकाली जाती है और रंग खेला जाता है।

दुनिया का सबसे बड़ा ’आट्टुकल पोंगाला’(13 र्माच)महिला उत्सव!! अट्टुकल भवानी मंदिर तिरुअनंतपुरम केरल में मनाया जाता है। इन्हीं दिनों मलयालम महिना पंचाग के अनुसार तिथि निकलने पर दस दिन का केरल और तमिलनाडु का उत्सव आट्टुकल पोंगाला अपना नाम दुनिया में महिलाओं का सबसे बड़ा जमावड़ा होने के कारण 2009 में गिन्नी बुक ऑफ वर्ड रिकार्ड में दर्ज करवा चुका है। जिसमें 25 लाख महिलाओं ने गुड़, नारियल, केले से पायसम बनाया। इसमें पुरुषों का प्रवेश मना है। कहते हैं ये 1000 साल पहले से मनाया जा रहा है। तमिल महाकाव्य ’सिलप्पथी कारम’ की मुख्य पात्र कन्नकी का यहां अवतार हुआ था। मुख्यदेवी कन्नकी को भद्रकाली के रुप में जाना जाता है। इनका एक नाम ंअटुकलाम्मा है। ऐसी मान्यता है दस दिवसीय उत्सव में देवी अटुकल मंदिर में रहती हैं। इनका जन्म भगवान शिव के तीसरे नेत्र से हुआ है। राजा पांडया पर कन्नकी की जीत का जश्न पोंगाला उत्सव है। इन दिनो तिरुवनंतपुरम उत्सव के रंग में रंग जाता है। श्रद्धा से देवी को आट्टुकाल अम्मा कहते हैं। महिलाएं वहीं पर उनको खीर बना कर अर्पित करती हैं। मंदिर के चारों ओर चूल्हे बने होते हैं। पुजारी मंदिर के गर्भग्रह से पवित्र अग्नि देता है। एक से दूसरा चूल्हा जलता है और वह सब पर फूल और पवित्र जल छिड़क कर आर्शीवाद देता है। यह फसल का पर्व है और इस दस दिवसीय उत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते हैं। जिसमें बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं।    

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिप्रदा से शुरू होने वाली विश्व प्रसिद्ध 84 कोसी(252किमी)  नैमिषारण्य परिक्रमा चक्रतीर्थ या गोमती नदी में स्नान करके, गजानन को लडडू का भोग लगा कर यात्रा शुरु करते हैं। रोज आठ कोस पैदल चलते हैं। 15 दिन तक ये यात्रा चलती है। महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियां दान देने से पहले तीर्थो का दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी। इंद्र ने सभी तीर्थों को नैमिषारण्य में 5 कोस की परिधी में आमंत्रित कर स्थापित किया। महर्षि दधीचि ने सबके दर्शन करके शरीर का त्याग किया था। दूर दूर से श्रद्धालू परिक्रमा करने आते हैं। यात्रा में लोगों का प्यार और सहयोग बहुत मिलता है। भंडारा, चाय और पीने के पानी की व्यवस्था रहती है। बागों में रुकते हैं। कुछ यात्री अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। परिक्रमा में वे पेड़ पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते, न लड़ते झगड़ते, न ही किसी की निंदा करते हैं। भजन कीर्तन चलता रहता है। मैं जब नैमिषारण्य गई तो कड़ाके की सर्दी थी। मंदिरों में दर्शन करते हुए जरा थकान होने लगती तो मुझे कल्पना में 84 कोसी नैमिषारण्य परिक्रमा करते श्रद्धालु दिखते और मेरी थकान उतर जाती। रामचरितमानस में भी लिखा है

तीरथ वर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिद्धि दाता। 

फाल्गुन मास की पूर्णिमा को यात्रा सम्पन्न होती है। और....



बैर उत्पीड़न की प्रतीक होलिका मुहूर्त पर जलाई जाती है और प्रहलाद यानि आनन्द बचता है जिसे बहुत हर्षोलास से शिव के गण बने, एक दूसरे को शिव के बराती बनाते हैं। शिव की बारात(होली का जुलूस) निकालने के बाद सब नए कपड़े पहन कर एक दूसरे के घर होली मिलने जाते हैं। जिसके लिए महिलाएं तीन चार दिन पहले से मीठे, नमकीन बनाकर तैयारी करती हैं। मुंबई से लेकर कई राज्यों की होली देखी पर नौएडा में मनाई पहली होली 1983 ने तो भारत एक जगह कर दिया था।  

नौकरी के कारण अलग अलग राज्यों से आए नगरवासियों ने एक ही पार्क में बरसाने की लठ्मार होली, कुमांऊ की बैठकी, हरियाणा की धुलैंडी जिसमें देवर भाभी को सताता है और भाभी धुलाई करती है। बंगाल में चैतन्य महाप्रभु का जन्मदिन जुलूस निकाल कर मनाते हैं इस्कॉन मंदिरों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वह भी मनाया। फिल्म के गीत और लोकगीत, रसिया और जोगीरा सारा.. रा.. रा.. के सवाल जवाब से तो सांझी होली ने जीवन में रंग भर दिए। दक्षिण भारतीयों ने होलिका दहन की राख माथे पर लगाई तो सबने उन्हें सूखे रंगो से रंग दिया। नार्थ ईस्ट में मणिपुर की दंत कथा के अनुसार रुक्मणी को भगवान कृष्ण, आम भाषा में कहते हैं भगाकर ले गए थे। ज्यादातर इसी से संबंधित लोकगीत होते हैं और जहां कन्हैया हों वहां होली न हो ऐसा हो नहीं सकता!! वहां छ दिन पारंपरिक नृत्य लोक कथाओं पर चलते हैं। मणिपुरी नृत्य का कॉस्ट्यूम विश्व प्रसिद्ध है। इसलिए नार्थइस्ट वाले तालियों से साथ दे रहे थे।

याओसांग मणिपुर के मेइती लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक जीवंत उत्सव है। यह एकता और सदभाव का प्रतीक है। बसंत के आगमन का स्वागत रंगीन पारंपरिक कपड़े पहनकर और नाच गा कर मनाते हैं। 

केरल में होली को मंजल कुली कहते हैं जिसका मतलब हल्दी स्नान है। 

डोलयात्रा 14 मार्च सिक्किम का होली से मिलता जुलता उत्सव है और उसी दिन मनाया जाता है। यह राधा कृष्ण के प्रेम के जश्न के रूप में मनाया जाता है। राधा कृष्ण की मूर्तियों को जुलूस में ले जाया जाता है। लोग गुलाल उड़ाते हुए नाचते हैं। महिलाएं गाते हुए चलती हैं। पुरूष सभी पर रंग डालते हैं। 

होयसल महोत्सव कर्नाटक के अन्य स्थानो और प्राचीन मंदिरों में मनाया जाने वाला नृत्य और संगीत का उत्सव है। मंदिरों को मिट्टी के दियों से सजाया जाता है। पूरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस त्यौहार में अपनी पारंपरिक कला रूपों का जश्न मनाना है। 

होला मोहल्ला 15 मार्च को विशेषकर आनंदपुर साहब में सिक्खों द्वारा मार्शल आर्ट एवं बहादुरी का प्रर्दशन है। होलगढ़ किले में रंग बिरंगे मुकाबले होते हैं। 

गणगौर राजस्थान और आसपास के राज्यों में मनाया जाने वाला 15 दिवसीय (15 मार्च से 31 मार्च) उत्सव है। पति की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए देवी पार्वती को समर्पित विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला यह उत्सव है। अविवाहित लड़कियाँ सुयोग्य पति की कामना के लिए प्रार्थना करतीं हैं। उत्सव का अंतिम दिन बहुत आर्कषक होता है। नृत्य संगीत के साथ मूर्तियों को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। 

होली के पांचवें दिन महाराष्ट्र में मछुआरा समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन नृत्य गायन के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इस जश्न को शिमगो के नाम से जाना जाता है। देश के कई हिस्सों में होली का उत्सव फाल्गुन पूर्णिमा को शुरू होकर रंग पंचमी को समाप्त होता है। जिस उत्साह से हम उत्सव मनाते हैं, उसी तरह 20 मार्च विश्व गौरैया दिवस को आंगन में फुदकने वाली गौरैया को बचाने के लिए, महानगरों में रहने वाले आर्टीफिशियल घोंसला लगाते हैं। 

मायोको त्योहार 21 मार्च अरूणाचल प्रदेश के अपतानी, डिबो हिजा, हरिबुला आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार है। दोस्ती और सद्भावना के इस उत्सव में आसपास के सभी गाँव इक्ट्ठे होते हैं। 10 दिनों तक चलने वाले इस फसल उत्सव में यदि बारिश आ जाये तो और शुभ माना जाता है। त्यौहार के दिनों में लोग अपने घर के दरवाजे खुले रखते हैं। यह उत्सव प्रकृति पूजा है।     

22 मार्च विश्व जल दिवस पर प्रण करना होगा ’न जल बरबाद करेंगे और न करने देंगे।’ शीतला अष्टमी को मौसम बदलने के कारण  इसमें ताजा प्रशाद नहीं बनता एक दिन पहले बनता है उसे बसोड़ा कहते हैं। वही देवी को भोग लगता है और दिनभर खाया जाता है। देवी से प्रार्थना की जाती है कि चेचक, खसरा आदि से बचाये। 

भंडारा महोत्सव 30 मार्च को खंडोबा मंदिर जेजुरी में मनाया जाने वाला, यह उत्सव मेला देश के शीषर््ा मेले त्यौहारों में है। जहाँ मंदिर से नदी तक देवता की शोभायात्रा निकाली जाती है। श्ऱद्धालुओं पर ढेरो हल्दी पाउडर डाला जाता है। इस रंगीन उत्सव को देखना बहुत भाता है। इसलिए इसे प्रसि़द्ध हल्दी उत्सव भी कहते हैं। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू नवसंवत्सर से चैत्र नवरात्र शुरु होते हैं। देश भर में अलग अलग नाम से उत्सव मनाने में प्रकृति का भी सहयोग होता है। पेड़ पौधे नई नई कोंपले और फूलों से लदे होते हैं। गुड़ी पड़वा उत्सव महाराष्ट्रीयन और कोंकणी मनाते हैं। पूरनपोली, श्रीखंड, घी शक्कर खाने खिलाने का रिवाज़ है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका। जिसके प्रतीक स्वरुप एक बांस पर बर्तन को उल्टा रखकर उस पर नया कपड़ा लपेट कर पताका की तरह ऊंचाई पर रखा जाता है। जो दूर से देखने में ध्वज की तरह लगता है। मुख्यद्वार पर अल्पना और आम के पत्तों का तोरण तो सभी हिन्दू घरों में दिखता है। कहीं आम के पत्ते घट स्थापना में होते हैं। दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादी का पर्व मनाते हैं और सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी की पूजा करते हैं। मंदिर जाते हैं और एक विशेष भोजन पचड़ी(नीम की कोंपले फूल, आम, हरी मिर्च, नमक, इमली और गुड़) बनाया ताजा है जो सभी स्वादों को जोड़ती है। यानि मीठा, खट्टा, नमकीन, कडवा, कसैला और तीखा। तेलगु और कन्नड़ हिन्दु परंपराओं में पचड़ी प्रतीकात्मक है कि आने वाले वर्ष में हमें सभी अनुभवों की अपेक्षा करनी चाहिए और उनका लाभ उठाना चाहिए। गुड़ी पड़वा से अगले दिन चेटी चंड सिंधी हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। जिसे सिंधी झूलेलाल के जन्मदिन के रुप में मनाते हैं।

मत्सय जयंती 31 मार्च चैत्र नवरात्र के समय और गणगौर के साथ मेल खाता है। यह भगवान विष्णु के मत्सय अवतार की वर्षगांठ है इस उत्सव पर विशेष पूजा, अर्चना और अभिषेक कर मत्सय पुराण, विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है। आन्ध्र प्रदेश के नागालपुरम में सोलहवीं शताबदी में विजयनगर साम्राज्य के शासक श्री कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित श्री वेदनारायण स्वामी मंदिर भगवान मत्सय को समर्पित है। इस पावन अवसर पर यहाँ भव्य आयोजन किया जाता है। 

 जल बचाएं, गौरेया बचाएं क्योंकि उत्सवों के रंग तो पर्यावरण और लोककथाओं के संग ही हैं।

नीलम भागी(लेखिका, पत्रकार, ब्लॉगर, ट्रैवलर)

यह लेख प्रेरणा शोध  संस्थान नोएडा से प्रकाशित प्रेरणा विचार पत्रिका के मार्च अंक में प्रकाशित हुआ है।












 

Monday, 3 October 2022

व्यस्त और रंगीन सांस्कृतिक गतिविधियों का अक्तूबर! भाग 1 उत्सव मंथन नीलम भागी Utsav Manthan October Part 1 Neelam Bhagi

 

व्रत और त्यौहारों से भरा मानसून के अंत से शुरू होकर शीत ऋतु का आगमन, एक अक्तूबर की शुरुवात ही दुर्गा पूजा से है।

यह भारतीय उपमहाद्वीप व दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला सामाजिक-सांस्कृतिक धार्मिक वार्षिक हिन्दू पर्व है। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा और त्रिपुरा में सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। नेपाल और बंगलादेश में भी बड़े त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। हिन्दू सुधारकों ने ब्रिटिश राज में इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। दिसम्बर 2021 में कोलकता की दुर्गापूजा को यूनेस्को की अगोचर सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। 




   आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य की महिलाएं बड़े उत्साह से पूरे नौ दिन बतुकम्मा महोत्सव मनातीं हैं। ये शेष भारत के शरद नवरात्रि से मेल खाता है। प्रत्येक दिन बतुकम्मा उत्सव को अलग नाम से पुकारा जाता है। जंगलों से ढेर सारे फूल लाते हैं।


फूलों की सात पर्तों से गोपुरम मंदिर की आकृति बनाकर बतुुकम्मा अर्थात देवियों की माँ पार्वती महागौरी के रूप में पूजा जाता है।


लोगों का मानना है कि बतुकम्मा त्यौहार पर देवी जीवित अवस्था में रहती हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करतीं हैं। त्योहार के पहले दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। नौ दिनों तक अलग अलग क्षेत्रिय पकवानों से गोपुरम को भोग लगाया जाता है। और इस फूलों के उत्सव का आनन्द उठाया जाता है। नवरात्रि की अष्टमी को यह त्यौहार दशहरे से दो दिन पहले 3 अक्तूबर को समाप्त है।



 बतुकम्मा से मिलता जुलता, तेलंगाना में कुवांरी लड़कियों द्वारा बोडेम्मा पर्व मनाया जाता है। जो सात दिनों तक चलने वाला गौरी पूजा का पर्व है।


महाअष्टमी और महानवमी को नौ बाल कन्याओं की पूजा की जाती है जो देवी नवदुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। 

26 सितम्बर से 5 अक्तूबर तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया जा रहा है किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया था। तिरूमाला में तो हर दिन एक त्यौहार है और धन के भगवान श्री वेंकटेश्वर साल में 450 उत्सवों का आनन्द लेते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मोत्सव है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ’ब्रह्मा का उत्सव’ जिसमें हजारो श्रद्धालू इस राजसी उत्सव को देखने जाते हैं।

दशहरे की छुट्टियों में जगह जगह  रात को रामलीला मंचन मंच पर होता है। जिसे बच्चे बहुत ध्यान से देखते हैं। लौटते हुए रामलीला के मेले से गत्ते, बांस, चमकीले कागजों से बने चमचमाते धनुष बाण, तलवार और गदा आदि शस्त्र खरीद कर लाते और वे दिन में पार्कों में रामलीला का मंचन करते हैं। जिसमें सभी बच्चे कलाकार होते। उन्हें दर्शकों की जरुरत ही नहीं होती। इन दिनों सारा शहर ही राममय हो जाता।

बहू मेला जम्मू और कश्मीर, जम्मू में आयोजित होने वाले सबसे बड़े हिंदू त्योहारों में से एक है। यह जम्मू के बहू किले में साल में दो बार नवरात्रों के दौरान मनाया जाता है। इस दौरान पर्यटक और स्थानीय लोग रंगीन पोशाकें पहनते हैं और मेले में खरीदारी करते हैं और खाने के स्टॉल में वहाँ के पारम्परिक खानों का स्वाद लेते हैं।

शरदोत्सव दुर्गोत्सव एक वार्षिक हिन्दू पर्व है। जिसमें प्रांतों में अलग अलग पद्धति से देवी पूजन है। गुजरात का नवरात्र में किया जाने वाला गरबा, डांडिया नृत्य तो पूरे देश का हो गया है। जो नहीं करते वे देखने जाते हैं।

तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में दशहरे से पहले नौ दिनों को तीन देवियों की समान पूजा के लिए तीन तीन दिनों में बांट दिया है। पहले तीन दिन धन और समृधि की देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं। अगले तीन दिन शिक्षा और कला की देवी सरस्वती को समर्पित है


और माँ शक्ति दुर्गा को समर्पित हैं और विजयदशमी का दिन बहुत शुभ माना जाता है। बच्चों के लिए विद्या आरंभ के साथ कला में अपनी अपनी शिक्षा शुरु करने के लिए इस दिन सरस्वती पूजन किया जाता है। 

महाभारत के रचियता वेदव्यास महाभारत के बाद मानसिक उलझनों में उलझे थे, तब शांति के लिये वे तीर्थाटन पर चल दिए। दंडकारण्य(बासर का प्राचीन नाम) तेलंगाना में, गोदावरी के तट के सौन्दर्य ने उन्हें कुछ समय के लिए रोक लिया था। यहीं ऋषि वाल्मिकी ने रामायण लेखन से पहले, माँ सरस्वती को स्थापित किया और उनका आर्शीवाद प्राप्त किया था। मंदिर के निकट वाल्मीकि जी की संगमरमर की समाधि है। बासर गाँव में आठ तालाब हैं। जिसमें वाल्मीकि तीर्थ है। पास में ही वेदव्यास गुफा है। लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा की मूर्तियाँ हैं। पास ही महाकाली का विशाल मंदिर है। नवरात्र में बड़ी धूमधाम रहती है।  आज उस माँ शारदे निवास को ’श्री ज्ञान सरस्वती मंदिर’ कहते हैं। हिंदुओं का महत्वपूर्ण संस्कार ’अक्षर ज्ञान’ विजयदशमी को मंदिर में मनाया जाता है जो बच्चे के जीवन में औपचारिक शिक्षा को दर्शाता है।  बासर में गोदावरी तट पर स्थित इस मंदिर में बच्चों को अक्षर ज्ञान से पहले अक्षराभिषेक के लिए लाया जाता है और प्रसाद में हल्दी का लेप खाने को दिया जाता है।


विजयदशमी को देश में कहीें महिषासुर मर्दिनी को सिंदूर खेला के बाद विसर्जित किया जाता है। तो कहीं श्री राम की रावण पर विजय पर रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले दहन किए जाते हैं। सबसे अनूठा 75 दिन तक मनाया जाने वाला बस्तर के दशहरे का रामायण से कोई संबंध नहीं है। अपितु बस्तर की आराध्या देवी माँ दन्तेश्वरी और देवी देवताओं की पूजा हैं।

मैसूर का दस दिवसीय दशहरा का मुख्य आर्कषण शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक मैसूर पैलेस की रोशनी, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम और विजयदशमी पर दशहरा जुलूस और प्रदर्शनी है। क्रमशः


    


प्रेरणा संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद के अक्टूबर अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है।



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