पेड़ चल पाता तो कहीं भाग जाता
नीलम भागी
5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित कार्यक्रमों में पर्यावरण संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास पर बल दिया जाता है। साथ ही बच्चों को पेड़ लगाने और पर्यावरण को बचाने में आगे आने की अपील की जाती है।
पौधों में जीवन होता है। हमारे बुजुर्ग बिना विज्ञान पढ़े कहते थे कि रात को तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ते थे। पौधे सो जाते हैं। तुलसी का विवाह करते थे। अब भी यह परम्परा चली आ रही है।
हमारे सैक्टर में एक पेड़ के नीचे एक स्कूटर मक्ेनिक ने सुबह झाड़ू लगा कर कूड़ा पेड़ के तने के पास लगाकर उसमें आग लगा दी। मैंने उसे कहा, “भइया पेड़ों में भी हमारी तरह जीवन होता है, इसके नीचे आग मत लगाया करो। देखों छोटा सा पौधा कुछ समय बाद बड़े पेड़ में बदल जाता है, जैसे छोटा बच्चाा, युवक हो जाता है। वह सजीव है तभी तो ऐसा होता है।” उसे मेरी बात समझ में आ गई। उसने तुरन्त तसले में भरा पानी आग पर डाल कर उसे बुझा दिया। उसे ऐसा करते फिर मैंने कभी नहीं देखा।
एक परिवार ने अपने घर के आगे लगे पेड़ की कटाई छंटाई करवाई। पतली टहनियों और पत्तों का पेड़ के नीचे पहाड़ बना हुआ था। हर समय तो उठाने वाला ठेला नहीं मिलता, कभी उठाने वाला होता है तो लोग गाड़ी इस तरह से पार्क करते हैं कि टहनियां ठीक से नहीं उठाई जा सकती। या कभी उठाई का रेट ठीक नहीं लगता। पर इस पेड़ के नीचे टहनियां के सूखने का इन्तजार था।
मैं वहां से निकल रही थी, पेड़ के नीचे उन सूखी टहनियों में आग लगा कर होलिका दहन हो रहा था। उससे ऊपर की हरी टहनियां बुरी तरह हिल रही थीं। जैसेेेे आग की तपस मेंं झुुलस कर तड़प रही हों। पेड़ चल पाता तो कहीं भाग जाता। ये देख कर मैंने उनकी कॉल बैल बजा दी। अन्दर से कैपरी पर स्लीवलैस टॉप पहने महिला आई। मैंने मन में सोचा कि ये पढ़ी लिखी आधुनिक महिला तो ऐसे नहीं कर सकती। फिर भी मैंने संकोच से कहा, “पता नहीं किसने पेड़ के नीचे आग लगा दी है।” उसने तपाक से उत्तर दिया, “मैंने लगाई है। क्यों?” मुझे उत्तर नहीं सूझा, मैंने ”पौधों में जीवन होता है” पर एक सीधा सादा भाषण दे डाला। उन्हें शायद बुरा लग गया।
“सिली पीपल! कौन बात करे इनसे।” कहकर उसने फटाक से गेट बन्द कर दिया। और मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि मैं ऐसी क्यू हूँ!!!!