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Saturday, 30 March 2019

पेड़ चल पाता तो कहीं भाग जाता नीलम भागी We Are Killing Trees


पेड़ चल पाता तो कहीं भाग जाता
नीलम भागी
5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित कार्यक्रमों में पर्यावरण संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास पर बल दिया जाता है। साथ ही बच्चों को पेड़ लगाने  और  पर्यावरण को बचाने में आगे आने की अपील की जाती है।
पौधों में जीवन होता है। हमारे बुजुर्ग बिना विज्ञान पढ़े कहते थे कि रात को तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ते थे। पौधे सो जाते हैं। तुलसी का विवाह करते थे। अब भी यह परम्परा चली आ रही है।
हमारे सैक्टर में एक पेड़ के नीचे एक स्कूटर मक्ेनिक ने सुबह झाड़ू लगा कर कूड़ा पेड़ के तने के पास लगाकर उसमें आग लगा दी। मैंने उसे कहा, “भइया पेड़ों में भी हमारी तरह जीवन होता है, इसके नीचे आग मत लगाया करो। देखों छोटा सा पौधा कुछ समय बाद बड़े पेड़ में बदल जाता है, जैसे छोटा बच्चाा, युवक हो जाता है। वह सजीव है तभी तो ऐसा होता है।” उसे मेरी बात समझ में आ गई। उसने तुरन्त तसले में भरा पानी आग पर डाल कर उसे बुझा दिया। उसे ऐसा करते फिर मैंने कभी नहीं देखा।
एक परिवार ने अपने घर के आगे लगे पेड़ की कटाई छंटाई करवाई। पतली टहनियों  और पत्तों का पेड़ के नीचे पहाड़ बना हुआ था। हर समय तो उठाने वाला ठेला नहीं मिलता, कभी उठाने वाला होता है तो लोग गाड़ी इस तरह से पार्क करते हैं कि टहनियां ठीक से नहीं उठाई जा सकती। या कभी उठाई का रेट ठीक नहीं लगता। पर इस पेड़ के नीचे टहनियां के सूखने का इन्तजार था।
मैं वहां से निकल रही थी, पेड़ के नीचे उन सूखी टहनियों में आग लगा कर होलिका दहन हो रहा था। उससे ऊपर की हरी टहनियां बुरी तरह हिल रही थीं। जैसेेेे आग की तपस मेंं झुुलस कर  तड़प  रही हों। पेड़ चल पाता तो कहीं भाग जाता। ये देख कर मैंने उनकी कॉल बैल बजा दी। अन्दर से कैपरी पर स्लीवलैस टॉप पहने महिला आई। मैंने मन में सोचा कि ये पढ़ी लिखी आधुनिक महिला तो ऐसे नहीं कर सकती। फिर भी मैंने संकोच से कहा, “पता नहीं किसने पेड़ के नीचे आग लगा दी है।” उसने तपाक से उत्तर दिया, “मैंने लगाई है। क्यों?” मुझे उत्तर नहीं सूझा, मैंने ”पौधों में जीवन होता है” पर एक सीधा सादा भाषण दे डाला। उन्हें शायद बुरा लग गया।
“सिली पीपल! कौन बात करे इनसे।” कहकर उसने फटाक से गेट बन्द कर दिया। और मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि मैं ऐसी क्यू हूँ!!!!

Wednesday, 27 March 2019

चुम्मा चुम्मा दे दे चुम्मा, गाने की होली पर मीमांसा Holi Neelam Bhagi नीलम भागी


होली से तीन दिन पहले शाम को मैंने जैसे ही मैंने मार्किट के ग्राउण्ड में कदम रक्खा, अपनी दुकान पर इतनी भीड़ देखकर मेरी चाल बहुत तेज हो गई कि मैं भी जल्दी जा कर काम में मदद करूँ। पास जाकर देखा तो पता चला कि ये ग्राहक पड़ोस की दुकान इंग्लिश वाइन शॉप के हैं। मैंने यशपाल जी से पूछा,’’ आज यहाँ इतनी मारामारी क्यों है?’’ उन्होंने जवाब दिया कि होली पर ठेका बंद रहता है न इसलिये। मैं सोच में पड़ गई कि ठेका क्या! मार्किट ही बंद रहती है। पर सब दुकाने रोजमर्रा की तरह चल रहीं थीं। शराबियों के चेहरे पर बदहवासी साफ नज़र आ रही थी कि कहीं उनकी पसंद की ब्राण्ड का स्टॉक खत्म न हो जाये। पर उस दुकान ने किसी को भी निराश नहीं किया।

होलिका दहन के साथ ही सैक्टरवासियों ने ’’हैप्पी होली’’ के जयकारे लगाये और एक दूसरे को मैसेज किये ’’नफरतों की होलिका जलाओ, प्रेम का रंग बरसाओ। मस्ती में डूब जाओ, हंसो और हंसाओ।’’किसी किसी ने मस्ती की जगह दारू में डूब जाओ भी लिखा था। कुछ परिवारों में गज़ब का तालमेल था मसलन पत्नियों ने दो दिन पहले नमकीन मीठे पकवान बनाये तो पतियों ने भी लाइन में लगकर होली से पहले दारू कलेक्ट की।
मेड इस दिन छुट्टी पर रहती हैं। घर गंदा न हो इसलिये ज्यादातर होली पार्कों में सामूहिक मनाई गई। गुटका, तम्बाकू खाने वालों ने थूक थूक कर पार्क में घास लाल कर दी थी। गाने बज रहे थे, जमकर नाच हो रहा था। महिलाएं बहुत खुश थीं। सबके मुंह रंगे हुए थे सब एकसी लग रहीं थी। सुन्दर दिखने की होड़ नहीं थी। उनमें केवल नाटी, लम्बी, मोटी पतली का अंतर था। उस समय तो सब सड़क साहित्य के  ’बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला’ के पोस्टर नजर आ रहे थे। पर गाने बज रहे थे ’अकेली न बाजार जाया करो, नज़र लग जायेगी, सबकी नज़र में न आया करो, नज़र लग जायेगी’ और तेरी आँखां का ये काजल। एक जगह चुम्मा चुम्मा गाने पर लड़के लड़कियाँ बॉलीवुड स्टाइल में नाच रहे थे। कुछ सीनियर सीटीजन गाने को गलत बता रहे थे, कुछ नाचने वालों को गलत बता रहे थे तो कुछ रंग लगे चेहरों को, अपने चश्में के शीशे साफ करके पहचानने की कोशिश कर रहे थे कि ये किसके बेटे बेटियाँ नाच रहें हैं? असफल होने पर, या अपने लख़्तेज़िगर देखने के बाद में उन्होंने डिक्लेयर कर दिया कि ये पी. जी. में रहने वाले हैं और कलयुग आ गया है। दोपहर तक होली के शुरूआती रूझान आने लगे। यानि कुछ तो पार्क में ही लुड़क गये थे। न पीने वाले भी गाड़ी लेकर सड़क पर नहीं निकल रहे थे, वे डर रहे थे कि कोई बेवड़ा सड़क पर दुर्घटना न कर दे। इसलिये सड़के सूनसान थीं। पर होली के रंग, भाईचारे के संग लगाये गये।

Saturday, 23 March 2019

चीं चीं करती आई चिड़िया ,पेड़ के दुश्मन नीलम भागी Chi Chi kerti Aye Chidiya, Ped ke Dushman Neelam Bhagi



मेरी दादी चिड़िया के दाल के दाने और कौवे के चावल के दाने से बनी, खिचड़ी की कहानी सुनाती थी कि कैसे चिड़िया ने कौए को बेवकूफ बना कर, सारी खिचड़ी खा ली थी। मै छोटी थी, दादी आँगन में चावल, बाजरा मेरे हाथ से डलवाती, गौरैया झुण्डों में आतीं और सारा दाना चट कर जातीं। मैं सोचती थी कि वह कौए के साथ खिचड़ी बनाने गई है। अब न मेरठ में हूँ और न ही आँगन है, पर गौरैया प्रेम वैसा ही है। घर के आगे मौसम के अनुसार बदल-बदल कर दाना डालती हूँ । गौरैया के साथ कबूतर भी आ जाते हैं।
कॉरर्न का घर है, साइड लोगो ने पार्किंगं बना दी है। मैं बाजरा डालती हूँ। पक्षी दाना खाने में मश़गूल होते हैं और गाडियों के नीचे छिपी हुई बिल्लियाँ,  कबूतर, गौरैया जो भी, दाँव लगे उसे झपट लेती हैं। यह देख कर मैंने दाना देर से डालना शुरु कर दिया है। जब लोग गाड़ियाँ ले काम पर निकल जाते हैं तब| रात से भूखी गौरैया बिजली के तारों पर बैठीं चीं ची करतीं रहतीं हैं। काफी जगह खाली होते ही मैं दाना डालती हूँ। वे दाने पर टूट पड़ती हैं। फिर भी बिल्ली गौरैया झपट ही  लेती हैं। क्योंकि कुछ लोगों के पास फालतू गाड़ी के लिए जगह नही है, फिर भी कई गाड़ियाँ रखना  उनके लिये स्टेटस सिम्बल है। इसलिए वे गाड़ियाँ खड़ी रहतीं हैं, और उनके नीचे बिल्लियाँ छिपी रहती हैं। बिल्ली चूहे का शिकार छोड़, गौरैया की शिकारी बन गई हैं। गौरैया की संख्या कम होती देख, मैंने 3 बोगनविलिया के पौधे लगवा दिए। बोगनविलिया फैलते गये, गाड़ियाँ दूर होती गई और गौरैया की संख्या बढ़ती गई। वे चौकन्ननी होकर दाना खाती। खतरा देखते ही झाड़ में छिप जातीं।
200-250 गौरैया देख, मैं खुशी से फूली न समाती। पार्किंग करने वालों को मेरे बोगनविलिया दुश्मन दिखाई देने लगे। बसन्त के मौसम में रंग बिरंगे फूलों से लदे, बोगनविलिया ने अतिक्रमण नहीं किया। वह उद्यान विभाग द्वारा लगाये, 4 अमलतास के पेडों में से इकलौते बचे, पेड़ की सीध से आगे नहीं बढ़ते। कुछ लोग पार्किंग से परेशान, लोगो को सलाह देते कि यदि ये झाड कट जाये, तो यहाँ 6 गाड़ियाँ खड़ी हो सकती हैं। एक दिन हृदय विदारक चीं चीं ची की आवाज सुनकर मैं बाहर गई। एक कार प्रेमी, झाड़ की छटाई कम, कटाई ज्यादा करवा रहे थे। मुझे देखते ही आवाज में मिश्री घोल कर, बोले, ’’यहाँ बच्चे खेलते हैं और साँप रहते हैं वो बच्चो् को न काटें इसलिए मैं इनकी छटाई करवा रहा हूँ।’’ मैंने जवाब दिया कि गौरैया चिड़िया खत्म होती जा रही हैं। यहाँ उनकी संख्या बढ़ रही है। और बड़े शरीफ साँप हैं, जो गौरैया के अण्डे बच्चे, खाना छोड कर, दिन भर उपवास करते हैं कि शाम को बच्चे खेलने आएँ और साँप उन्हें खाए।’’ फिर वे बोले, ’’यहाँ कोई आतंकवादी भी तो बम रख सकता है।’’ उनके सारे कुर्तकों के मैंने जवाब दिए। अंतिम अस़्त्र उन्होने छोड़ा कि माली के पैसे भी वे देंगे साथ ही टहनियाँ भी उठवा देंगे। पर मैंने गौरैया का घर नहीं उजड़नें दिया।
मैं कुछ दिनों के लिए बाहर गई। लौटी तो मेरे बोगनविलिया साफ थे। बस चार-छ इंच जड़े दिख रहीं थीं। वहाँ लाइन से गाड़ियाँ खड़ी थीं। सबसे पहले मैंने उन बची हुई जड़ों में पानी डाला फिर स्वयं पानी पी कर, अपना गुस्सा शांत किया। काफी दिनों के बाद उनमें से कोंपले फूटी हैं। बोगनविलिया फिर फैलेंगे और चीं चीं करती चिड़ियाँ, उम्मीद करती हूँ, उन पर फिर से चहकेंगी।
जिसकी जड़ में तेजाब डाला वो शायद बचे|अब बोगनवेलिया पनप गये हैं| ट्री गॉर्ड से आगे नहीं आते| चिड़िया भी आने लगी|


कुत्तों का हाज़त रफा करना और हम लोग नीलम भागी




सिंगापुर में हमारी इंडोनेशियन मेड कुत्ते बिंगो को धुमाने जा रही थी। उसने एक पॉलीथिन में न्यूज़पेपर रक्खा और चल दी। मैं भी उसके साथ घूमने के इरादे से गई पर, रास्ते भर सोचती रही कि मेड विदेशी है। ये बिंगो को किसी  पेड़ के साथ बाँध कर न्यूज़पेपर पढ़ेगी। हम लोगों के आने से काम बढ़ गया है। घर में पढ़ने का समय नहीं मिलता होगा। हमारी एक घंटे की सैर में, मैंने जिसको भी कुत्ते के साथ देखा, उसके हाथ में पॉलिथिन था और जो भी कुत्ते से बोल रहा था, वो अपनी भाषा में बोल रहा था न कि अंग्रेजी में। जब मैं और मेड घूम कर थक गए, तब बिंगों ने हाज़त रफा की। जैसे ही बिंगो फ़ाऱग हुआ, मेड ने तुरन्त पेपर से पॉटी उठाई, पॉलीथिन में डाली और पॉलिथिन डस्टबिन में डाल दी।
    अब मेरी आँखों के आगे वे बेबियाँ आने लगी जो जैपनीज़चिन, टॉय एस्कीमो अमेरिकन, मिनियेचर एस्कीमों अमेरिकन, स्टैंर्डड एस्कीमों अमेरिकन आदि डॉग को गोद में उठा कर, चूमते हुए अपने लाडले डॉगी को लाती हैं और जिसके घर के आगे पॉटी करवानी हो, उसे गोद से उतार देती हैं। बेबी बहुत समझदार होती हैं। वह कभी भी एक ही घर के आगे डॉगी को पॉटी नहीं करने देती क्योंकि इससे लड़ाई होने का डर होता है। जैसे ही वह पॉटी कर लेता है। अब बेबी उसे शाबाषी देकर, पुचकार कर चल देती है। वह भी बेबी के पीछे पीछे बेमतलब लोगों को भौंकता हुआ घर जाकर , सोफे पर बैठकर घर की शोभा बढ़ाता है।
  हमारे यहाँ कुत्तों को पालने वालों का मानना है कि पार्क उनके कुत्तों का शौचालय है। तभी तो जर्मन शेर्फड, ग्रेट डेन, एल्षेशियन डॉबरमैन आदि नस्लों के कुत्तों को लाकर पार्क में खोल देते हैं। जो कुत्ता नहीं पालते हैं, वे इन बड़े कुत्तों से डरते हैं। बच्चों की मम्मी उन्हें समझाती है,’’बेटा पार्क में नहीं जाना, डॉगी काट लेगा।’’ बच्चे घर से ही नहीं निकलते हैं। वे गेट में खड़े देखते रहते हैं, कुत्ते और उनके मालिकों का गेम। जब कुत्ता हाज़त रफा कर लेता है तो कुत्ता गेम उसी समय ख़त्म हो जाता है। एक बार किसी ने जॉगिंग ट्रैक  पर पॉटी देख कर कुत्ते मालिक को कहा,’’देखिए, आप कुत्ते को कहीं और पॉटी करवाया करें।’’ उस नौजवान को उस आदमी का टोकना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उसे बहुत गुस्सा आया। उसने कहा,’’आपके घर में तो पॉटी नहीं की न। पार्क आपका नहीं है। आप कौन होते हैं मुझे रोकने वाले? जानते हैं मेरे कुत्ते की कीमत! इसका रोज़ का खर्चा कितना है? आप भी पालिए कुत्ता, उसे जहाँ मर्जी पाटी कराइये। मैं तो कभी नहीं टोकूँगा आपको।’’अब तर्कों का तो जवाब दिया  जा सकता है, कुतर्कों का कौन जवाब दे? ये सोच कर लोग चुप लगा जाते हैं। इसलिए जो जैसा हो रहा है वैसा होता रहता है।