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Wednesday, 27 March 2019

चुम्मा चुम्मा दे दे चुम्मा, गाने की होली पर मीमांसा Holi Neelam Bhagi नीलम भागी


होली से तीन दिन पहले शाम को मैंने जैसे ही मैंने मार्किट के ग्राउण्ड में कदम रक्खा, अपनी दुकान पर इतनी भीड़ देखकर मेरी चाल बहुत तेज हो गई कि मैं भी जल्दी जा कर काम में मदद करूँ। पास जाकर देखा तो पता चला कि ये ग्राहक पड़ोस की दुकान इंग्लिश वाइन शॉप के हैं। मैंने यशपाल जी से पूछा,’’ आज यहाँ इतनी मारामारी क्यों है?’’ उन्होंने जवाब दिया कि होली पर ठेका बंद रहता है न इसलिये। मैं सोच में पड़ गई कि ठेका क्या! मार्किट ही बंद रहती है। पर सब दुकाने रोजमर्रा की तरह चल रहीं थीं। शराबियों के चेहरे पर बदहवासी साफ नज़र आ रही थी कि कहीं उनकी पसंद की ब्राण्ड का स्टॉक खत्म न हो जाये। पर उस दुकान ने किसी को भी निराश नहीं किया।

होलिका दहन के साथ ही सैक्टरवासियों ने ’’हैप्पी होली’’ के जयकारे लगाये और एक दूसरे को मैसेज किये ’’नफरतों की होलिका जलाओ, प्रेम का रंग बरसाओ। मस्ती में डूब जाओ, हंसो और हंसाओ।’’किसी किसी ने मस्ती की जगह दारू में डूब जाओ भी लिखा था। कुछ परिवारों में गज़ब का तालमेल था मसलन पत्नियों ने दो दिन पहले नमकीन मीठे पकवान बनाये तो पतियों ने भी लाइन में लगकर होली से पहले दारू कलेक्ट की।
मेड इस दिन छुट्टी पर रहती हैं। घर गंदा न हो इसलिये ज्यादातर होली पार्कों में सामूहिक मनाई गई। गुटका, तम्बाकू खाने वालों ने थूक थूक कर पार्क में घास लाल कर दी थी। गाने बज रहे थे, जमकर नाच हो रहा था। महिलाएं बहुत खुश थीं। सबके मुंह रंगे हुए थे सब एकसी लग रहीं थी। सुन्दर दिखने की होड़ नहीं थी। उनमें केवल नाटी, लम्बी, मोटी पतली का अंतर था। उस समय तो सब सड़क साहित्य के  ’बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला’ के पोस्टर नजर आ रहे थे। पर गाने बज रहे थे ’अकेली न बाजार जाया करो, नज़र लग जायेगी, सबकी नज़र में न आया करो, नज़र लग जायेगी’ और तेरी आँखां का ये काजल। एक जगह चुम्मा चुम्मा गाने पर लड़के लड़कियाँ बॉलीवुड स्टाइल में नाच रहे थे। कुछ सीनियर सीटीजन गाने को गलत बता रहे थे, कुछ नाचने वालों को गलत बता रहे थे तो कुछ रंग लगे चेहरों को, अपने चश्में के शीशे साफ करके पहचानने की कोशिश कर रहे थे कि ये किसके बेटे बेटियाँ नाच रहें हैं? असफल होने पर, या अपने लख़्तेज़िगर देखने के बाद में उन्होंने डिक्लेयर कर दिया कि ये पी. जी. में रहने वाले हैं और कलयुग आ गया है। दोपहर तक होली के शुरूआती रूझान आने लगे। यानि कुछ तो पार्क में ही लुड़क गये थे। न पीने वाले भी गाड़ी लेकर सड़क पर नहीं निकल रहे थे, वे डर रहे थे कि कोई बेवड़ा सड़क पर दुर्घटना न कर दे। इसलिये सड़के सूनसान थीं। पर होली के रंग, भाईचारे के संग लगाये गये।

3 comments:

Chandra bhushan tyagi said...

Very Good post

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

राज बहादुर said...

सुन्दर। एक नई संस्कृति कहें अथवा विकृति समझें पनप रही है । नए युग की नई मुस्कान, हे भगवान।