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Thursday 30 January 2020

सभ्यता और संस्कृति की पोषक हमारी नदियां लॉकडाउन में Sabhyata aur Sanskriti Ki Poshak Hamari Nadiyan Lockdown Mein Neelam Bhagi नीलम भागी







मेरी दादी हम चारों बहनों को पंजाबी में एक गाली देती थी ’नी रूड़ जानिये’ मतलब अरी तुम पानी में बह जाओ। ये पंजाब में पाँच नदियों की धरती पर बेटियों को प्यार या गुस्से में किया जाने वाला सम्बोधन है। नदियों, बहियों से महिलाओं का घरेलू काम के कारण बहुत अधिक वास्ता पड़ता होगा। जिसमें एक दो बह जाती होंगी तो ’रूड़ जानी’ का अविष्कार हो गया। क्योंकि सभ्यता एक निश्चित जगह की होती है। यह इस बात पर र्निभर करता है कि कैसे वह वहाँ की प्रकृति को देखता है। जल ही जीवन है। इसलिये आदि मानव ने नदियों के पास ही खानाबदोश जीवन छोड़ स्थायी जीवन शुरू किया था। कोई भी महानगर देखें तो वह किसी न किसी नदी के किनारे बसा है। सभ्यता का विकास नदी किनारे ही हुआ और इन्हीं के किनारों में वह फूली फली है। पंजाब में वैसाखी के दिन नदियों के पास ही मेले लगते हैं। सुबह सपरिवार जो भी पास में नदी या बही होती है, वहाँ स्नान करते हैं। लौटते हुए जलेबी और अंदरसे खाते हैं। लोटे में नदी का जल, गेहूँ की पाँच छिंटा(बालियों वाली डंडियां) घर लाकर उस पर कलेवा बांध कर मुख्य द्वार से लटका दिया जाता है और नदी के जल को पूजा की जगह रख दिया जाता है। । स्कूलों में भी बाडियां( गेहूं की कटाई) की छुट्टियां हो जाती हैं। फिर सपरिवार कटाई में लग जाते हैं। इन दिनों जो नौकरी पेशा सदस्य दूसरे शहरों में रहते हैं। वे भी पैतृक घरों में जाकर बाडियां में मदद करते हैं। बर्जुग परिवार को चेतावनी देते हुए कवित्त करते हैं ’पक्की ख्ती जान कर, न कर तूं अभिमान, मींह(वर्षा) नेरी(आंधी) देख के घर आई ते जान। जब फसल खेत से खलिहान में आ जाती है। तब बैसाखी में लाये उस नदी के जल को खाली खेत में छिड़क दिया जाता है। कोई भी संस्कार कर्म करने से पहले लोटे में जल लेकर गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी, कृष्णा, इन सातों नदियों का आह़़.वान किया जाता है। सात इसलिये हमारे यहाँ सात अंक पवित्र माना जाता है।  नदियों के किनारे प्राचीन नगर, महानगर या तीर्थस्थल हैं। र्तीथस्थल हमारी आस्था के केन्द्र हैं। यहाँ जाकर मानसिक संतोष मिलता है। देश के कोने कोने से तीर्थयात्री आते हैं। एक ही स्थान पर समय बिताते हैं। अपने प्रदेश की बाते करते हैं और दूसरे की सुनते हैं। कुछ हद तक देश को जान जाते हैं। उनमें सहभागिता आती है। अपने परिवेश से नये परिवेश में कुछ समय बिताते हैं। कुछ एक दूसरे से सीख कर जाते हैं कुछ सीखा जाते हैं। मानसिक सुख भी प्राप्त करते  हैं। धर्म लाभ तो होता ही है।
     संस्कृति सैंकड़ों हजारों सालों में स्वरूप लेती है। ये प्रकृति से लेकर हमारी जीवन शैली व विचारों में हुई उथल पुथल का परिणाम होती है। हर नदी वहाँ के स्थानीय लोगो के लिये पवित्र है और उनकी संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ी है। हमारे अवतारों की जन्मभूमि भी नदियों वाले शहरों में है। जितनी भी प्राचीन सभ्यताएं हैं, वे किसी न किसी नदी के नाम से है। जैसे सिंधु घाटी की सभ्यता, जिसमें हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो उस समय के विकसित नगर थे। वहाँ से मिले औजारों से पता चलता है कि मनुष्य ने तब खेती करना सीख लिया था। वर्षा पर निर्भर खेती थी। शुरू में नदियों के आसपास बड़े बड़े उथले तालाबनुमा गड्डे कर लिये जाते थे। बरसात में नदियों के अतिरिक्त पानी से वे भर जाते थे। नदियां अपने साथ उपजाऊ मिट्टी भी लातीं, जो खाद का काम करती। इन गड़डों में बीज डाले जाते थे। अतिरिक्त जल धीरे धीरे जमीन सोख लेती थी। वही जल पौधों की जड़े मिट्टी से वापिस लेती। आवश्यकता अनुसार इसमें उन्नति होती रही। ये सभ्यता की शुरूआत तो नदियों के कारण ही इुई। जानवरों को पालतू बनाने का काम भी नदियों से ही सम्भव हुआ। क्योंकि पानी और चारा तो नदी के किनारे ही उपलब्ध था। जैसी जहाँ की जलवायु और नदियों और उनकी उपनदियों में जल स्तर रहता, वैसी ही वहाँ की जीवन शैली हो जाती है और वहाँ की सभ्यता कहलाती है। हर नदी की अपनी कहानी है और उसके आस पास बसने वाली जन जातियों की अपनी संस्कृति है।
हमारे यहाँ नदियों को माँ कहा जाता है। जैसे माँ निस्वार्थ संतान का पोषण करती है। वैसे ही नदी हमें देती ही देती है। जीवनदायनी नदियों को लोग पूजते हैं, मन्नत मानते हैं। वनवास के समय सीता जी ने भी गंगा नदी पार करने से पहले, उनसे सकुशल वापिस लौटने की प्रार्थना की थी। हमारे यहाँ नदियों के गीत हैं। मैं अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन में जबलपुर गई थी। वहाँ शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम में डिंडोरी से आये आदिवासियों ने जो भी प्रस्तुती दी, उनमें सब भगवानों, के रूप में माँ नर्मदा थी। नदी तो पत्थर को भगवान बना देती है। तभी तो कहते हैं
नर्मदा के कंकर, सब शिव शंकर।
होशंगाबाद स्टेशन आने से पहले मैं गाड़ी में रेल नीर की बोतल खरीदने लगी। एक यात्री बोले,’’मत खरीदिये, यहाँ माँ नर्मदा का पानी है। जी भर कर पीजिए, बिना डरे पियो। बोतल का तो अपनी दिल्ली में ही पीना।’’मैंने उसका कहना मान लिया। ख़ैर सेठानी घाट पर पहुँच कर मैं विस्मय विमुग्ध माँ नर्मदा को निहारने लगी।
   त्रिभिः सारस्वतं तोयं, सप्ताहेन तु यामुनाम।
   सद्यः पुनाति गांगेयं, दर्षनादेवि नर्मदा।।
स्कन्द पुराण में कहा गया है कि सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुना का जल सात दिनों में या सात बार स्नान करने पर, गंगा जी का जल एक बार स्नान करने पर पवित्र करता है किन्तु माँ नर्मदा जी का जल दर्शन करने से ही पवित्र कर देता है। नर्मदा जी का प्रवाह किस ओर है?’’मैं ध्यान से स्थिर नज़रों से उन्हे देख रही हूँ। मुझे लगा वे भी रूकी हुई मुझे देख रहीं हैं। मैं नहीं समझ सकी, वे किस दिशा में बह रहीं हैं?  शाम को नर्मदा जी की आरती देखने गई....
     यहाँ मेरे पास शब्द नहीं हैं कि जो मैंने आरती के समय महसूस किया, उसका वर्णन कर सकूँ। क्योंकि श्रद्धा और आस्था से जो लोगो के दिल से आरती गाई जा रही थी, उसने अलग ही समां बांध रखा था। घण्टे घड़ियाल बज रहे थे। लोग आते जा रहे थे और ताल से तालियाँ बजाते हुए, आरती में शामिल हो रहे थे। नर्मदा जी में आरती के धीरे धीरे चलते हुए दीपक देख कर लगा कि माँ नर्मदा धीरे धीरे बह रही हैं। दिन में ऐसे लग रहा था जैसे विश्राम कर रहीं हों। लोग मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाने लाये थे और खिला रहे थे। हम भी ठंडे ठंडे पानी में पैर डाल कर स्थानीय लोगों से बतियाने में मशगूल हो गये। कुछ लोगों का कहना था कि वे रोज माँ नर्मदा के पास बैठने आते हैं। नदी किनारे बैठ कर चिंतन मनन करने से गहरी सच्चाइयों का अहसास होता है। गहरा दर्शन उपजता है। कल्पना को नई उडान मिलती है। दस दिन की यात्रा में अमर कंटक तक मैंने बोतल का पानी नहीं पिया। दुकानों के नाम नर्मदा ट्रांसर्पोट, नर्मदा मिष्ठान भण्डार, नमामि देवी नर्मदे वस्त्रालय आदि हैं। ऐसा क्यों ? क्योंकि नदियां सदियों से हमारी पोषक हैं। सागर मिलन से पहले हमारे लिए उपजाऊ डेल्टा छोड़ जाती हैं। ये हमारी भारतीय सम्यता का उनके प्रति स्नेह प्रर्दशन ही तो है। दादी परिवार मे पलने वाली गाय, जब बछिया देती थी तो उसका नाम नदी के नाम पर ही रखती थीं। उनका मानना था कि जैसे नदियों में पानी रहता है। ऐसे ही इनके थनों में दूध रहेगा।
 मेरे पिताजी का स्थानान्तरण प्रयागराज हुआ तो मेरी तैराक दादी गंगा जी के कारण बहुत खुश थी। पंजाब में सभी रिश्तेदार खुश थे। इसलिये कि जब भी वे हमारे यहाँ आयेंगें तो गंगा जी जायेंगे। अम्मा बताती हैं कि आजादी के बाद वहाँ जो पहला कुंभ आया, सब रिश्तेदार पंजाब से कुंभ में आये थे। कोई शुभ दिन हो, चलो, गंगा जी नहाने। अब मेरी ठेठ पंजाबी ब्राह्मण दादी भोजपुरी गीत गातीं थीं ’ओ गंगा तोरी लहर, सबही के मन भायी’। सत्तू और भूजा या चबेना उनका फास्ट फूड था। अपनी माँ, बीजी को हम अम्मा कहने लगे। यहाँ बैसाखी से ज्यादा होली मनाई जाती थी। कहीं पढ़ा था कि बच्चे किसी भी संस्कृति को जल्दी अपना लेते हैं। हमारी यह गंगा जमुनी संस्कृति, उस समय पंजाब जाने पर हमें उनसे अलग लगती थी, हमारे साथ के बच्चे हमें जब भइये बोलते थे। लखनऊ से ताऊ जी का परिवार आता और आते ही कहने लगते ,’चलो, गंगा मैया के दर्शन कर आयें।’ नहाने को वो दर्शन करना कहते थे। हम उनसे पूछते,’’आपके यहाँ गंगा नहीं है।’’वे हंसते हुए बताते थे है न, गोमती है। नदियों से पहचान थी किसी भी पंजाबी को देख कर दादी पूछती,’’ तुम रावी पार से हो या दो आब से।’’ छोरा गंगा किनारे वाला तो सबने सुना है। देश बंट गया पर सभ्यता संस्कृति बदलने में समय लगता है। तभी तो दुबई में एयरर्पोट से बाहर आते ही पाकिस्तानी रेहान ने मेरे पैर छूते हुए कहा,’’पैरी पैना मासी जी।’’
ब्रह्मपुत्र एशिया की सबसे लम्बी नदी, भूटान और उत्तर पूर्वी सात बहनों के राज्यों से पश्चिम बंगाल जाती है। वहीं असम में पले बड़े, मेरे रिश्तेदार जब पंजाब आते हैं तो उन्हें बंगाली ही कहा जाता है। वे जोशी सरनेम वाले तीसरी पीढ़ी के बच्चे अपने को पंजाबी कहना भूल गये हैं। मनदीप, मीना और राजेश जोशी सब को समझाते हैं कि हम बंगाली नहीं, असमियां हैं तभी तो बीहू और दुर्गा पूजा मनाते हुए वे अपनी तस्वीरें पोस्ट करते हैं। आरंभिक सभ्यताएं नदियों के किनारे फली फूली, उनमें नहाए, नदियों ने ही मछुआरों की जीविका सुनिश्चित की। प्रवासी पक्षियों को भी भोजन उपलब्ध करवाया।  हम ’भागी’ पंजाब के सारस्वत ब्राह्मण कहलाते हैं लेकिन अब नहीं!! क्योंकि अब हैं के स्थान पर, थे हो गया है। हुआ यूं कि सोशल मीडिया पर मेरे  हैदराबाद से मित्र हैं  भागी शास्त्री जी, श्रीनिवास भागी और कश्यप भागी। कमेंट में किसी ने श्रीनिवास भागी से पूछा,’’आप कौन से ब्राह्मण हो?’’ उनका जवाब था ’तेलगू ब्राह्मण’। लेख लिखते हुए मुझे लग रहा है कि पहले नाव खेकर दूर दूर की यात्राएं करते थे। शायद पूर्वजों की इन्हीं यात्राओं में हमारी संस्कृति बदल गई।   
    ब्रह्मगिरी की पहाड़ियों में कावेरी का उद्गम स्थल तालकावेरी है। जहाँ मंदिर के प्रांगण में ब्रह्मकुण्डिका है। वहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं। 17 अक्टूबर को कावेरी संक्रमणा का त्यौहार मनाया जाता है। र्कूग यात्रा के दौरान मैंने देखा कि जीवनदायनी माता कावेरी ने दूर दूर तक कैसा अतुलनीय सौन्दर्य्र बिखेरा है। महाभारत के रचियता वेदव्यास मानसिक उलझनों में उलझे थे तब शांति के लिये वे तीर्थाटन पर चल दिए। दंडकारण्य(बासर का प्राचीन नाम) तेलंगाना में, गोदावरी के तट के सौन्दर्य ने उन्हें कुछ समय के लिए रोक लिया था। यहीं ऋषि वाल्मिकी ने रामायण लेखन से पहले, माँ सरस्वती को स्थापित किया  और उनका आर्शीवाद प्राप्त किया था। आज उस माँ शारदे निवास को श्री ज्ञान सरस्वती मंदिर कहते हैं। बसंत पंचमी को बासर में गोदावरी तट स्थित इस मंदिर में बच्चों को अक्षर ज्ञान से पहले अक्षराभिषेक के लिए लाया जाता है। उत्तर भारत में इसे ’तख्ती पूजन’ कहते हैं। नदियों के कारण ही तो हमारा पर्यटन उद्योग है। महाबलेश्वर से कृष्णा भी महाराष्ट्र, र्कनाटक, तेलंगाना, आंन्ध्रप्रदेश को पोषित करती हुई, गोदावरी के साथ डेल्टा बनाती हुई बंगाल की खाड़ी से मिल जाती है। दो नदियों का संगम दो संस्कृतियों का संगम है। भारत में विविधता को बनाये रखते हुए अन्य से ग्रहण करने की संस्कृति है। तभी तो हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में लगने वाले कुंभ में लाखो तीर्थयात्री पहुंचते हैं। जहाँ वैचारिक मंथन होता है।
      दिल्ली में पुराने लोहे के यमुना पुल पर मैं बीच में जाम में फंस गई। नीचे से बहने वाली यमुना से बदबू आ रही थी। जहाँ पानी बह रहा था, वह नाला लग रहा था। बीच बीच में रेत के टीले थे। मुझे याद आती है उस समय की यमुना, मेरे मामा स्वर्गीय द्वारका दास जोशी, नेशनल हैराल्ड में काम करते थे। नावल्टी के पास पीली कोठी में रहते थे। सुबह मुंह अंधेरे कुदेसिया घाट पर यमुनाजी में नहाने जाते थे। मैं छोटी थी, जब भी दिल्ली आती उनके साथ यमुना  जी जाती थी। मामा ने आदि मानव द्वारा आग बनाना बताया था। वहाँ पत्थर से पत्थर टकरा कर चिनगारियां बना, मैं आदि मानव बन जाती। साफ स्वच्छ यमुना जी के किनारे बैठ मामा जी गाते ’तेरो ही दरस, मोको भावे सुन यमुना मैया।’ तब तक दिन निकल आता फिर वे उसमें तैरते। मैं भी किनारे पर बैठ कर नहाती। कुछ समय बाद दिल्ली आयी तो यमुना स्नान के लिये बहुत दूर वजीराबाद आये। मैैंने कहा कि मामा जी इतनी दूर क्यों नहाने आये हो जबकि यमुना जी तो घर के पास है। वेे मुुुझ से बोले,’’मुनिया, जहाँ हम नहाने आये हैं न, नाले इसके बाद इनमें मिले हैं।’’ वैसे ही मामा जी ने भजन गाया और तैरे। जब तक उनके शरीर में हिम्मत रही वे यमुना में ही नहाये। कहाँ खो गई वह कल कल बहती यमुना। मेरी आँखों से पानी बहने लगा यमुना की र्दुदशा पर और मामा की याद में। हमारी संस्कृति सभ्यता विकसित होती जा रहीं हैं और इन्हें पोषित करने वाली नदियां प्रदूषित होती जा रहीं हैं।
लॉकडाउन में सोशल मीडिया पर लोग साफ़ नदियों की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं कि बिना सरकारी अनुदान के नदियां साफ़ हो रहीं हैं। यह देख कर बहुत खुश हूं। लॉकडॉउन खुलने पर यमुना नदी को देखने जाऊंगी, वो मेरे घर के पास है। 

Tuesday 28 January 2020

तेरे मेरे सपने अब एक हैं, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 22 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 22 Neelam Bhagi नीलम भागी

चांदनी की पढ़ाई में कुमार कभी लापरवाही नहीं करते थे। पढ़ाने का काम वह सुबह ही निबटा लेते थे। उसके बाद घर से निकलते थे। जब घर आते उन्हें गर्म गर्म खाना मिलता। उन्होंने ढेरों काम अपने सिर पर ले लिए थे। अब वे हर समय व्यस्त रहते और मस्त रहते। सोसाइटी में कोई किसी की निजी जिंदगी में नहीं झांकता था। कम्प्यूटर सीखने से और विडियो कॉलिंग से टोनू मोनू भी चांदनी के पास हो गये। जब कुमार ने चांदनी का ड्राइविंग स्कूल में नाम लिखवाया तो उसने आना कानी की। कुमार ने कहा,’’अगर मेरी रात को अचानक तबीयत खराब हो जाये, तुरंत अस्पताल जाना पड़े तो तूं किसका इंतजार करेगी?’’ वो तुरंत राजी हो गई। मां के पढ़ने सेे बच्चे भी बहुत खुश थे। दशहरे की दस दिनों की छुट्टियों में बच्चों ने घर आना था। चांदनी के दिल में खुशी भी थी और घबराहट भी। कुमार वैसे ही मस्त थे। कुमार कहीं भी जाते थे तो गाड़ी चांदनी से चलवाते थे। उसमें कूट कूट कर आत्मविश्वास भर रहे थे। दोनों बच्चों को लेने गये। लौटने पर कुमार पिछली सीट पर मोनू के साथ बैठे। टोनू आगे बैठा। मां को गाड़ी चलाते देख कर मोनू की शक्ल देखने लायक थी। कुमार मोनू को देख रहे थे। फिर उन्होंने पढ़ाई के बारे में बातें की और उसे समझाया कि वो छुट्टियों में मैथ करे और जो सवाल न हों। उन पर निशान लगाता जाये। उन्हें वे करवा देंगे। कुमार ने कहा कि छुट्टियां इनकी मर्जी से बितानी है। घर और होस्टल में यही फर्क होता है घर में बच्चों की पसंद का खाना बनता है और होस्टल में जो वे बनाते हैं वे बच्चे खाते हैं। पहले ये अपने बाउ जी के घर पर जायेंगे। फिर बच्चे जहां कहेंगे, वहां जायेंगे। बच्चों ने एक बार भी अपनी कॉलौनी में जाने को नहीं कहा, न ही उनसे किसी ने पूछा। एक दिन रात को डिनर के समय कुमार ने मोनू से सलाह मांगी कि सरोजा की तुम्हें पढ़ाने की बड़ी इच्छा थी जो तुम पूरी कर रहे हो। चांदनी चाहती है कि उसके नाम से लड़कियों के लिए निशुल्क सिलाई स्कूल खोला जाये। उसके लिए जगह का किराया, टीचर का वेतन, मशीने आदि का खर्च होगा। मोनू तपाक से बोला,’’हमारे नीचे घर में खोल दीजिए न सरोजा सिलाई केन्द्र, दो दिन बाद सिलाई केन्द्र का उदघाटन रक्खा गया।
     समरथ को नहिं दोस गुसाईं। कुमार ने सोसाइटी के नोटिस र्बोड पर सबको इनविटेशन दिया था। कुमार के बुलावे का कौन मान नहीं रक्खेगा भला! बड़ी संख्या में महिलाएं आई। कइयों ने तो अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह पर एक एक महीने का केन्द्र का खर्च उठा लिया। मोनू टोनू और चांदनी ने केन्द्र का उदघाटन किया। मोनू टोनू खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। चांदनी की आंखों से टप टप आंसू बह रहे थे। दस नई पैर की सिलाई मशीने रक्खी हुईं थी। कुमार ने सबको कहा कि आप लोगो के घर में जितने बेकार कपड़े हैं जिन्हें आप नहीं पहनते, सोसाइटी के ऑफिस में रख दीजिए। सिलाई सीखने वाली हर लड़की को 20 थैले सिलने होंगे। थैले सोसाइटी ऑफिस से आप ले सकते हैं । वहां एक दान पात्र होगा। आपका दिल करे तो उसमें कुछ डाल दें। छुट्टी खत्म होते ही बच्चे चले गये। चांदनी केन्द्र के काम में व्यस्त हो गई। चांदनी कुमार के खाने के समय हमेशा घर में रहती। आज आराधना ने बुलाया था। देखा चांदनी गाड़ी में पुराने कपड़े भर रही थी। देखते ही नमस्ते करके बोली,’’मेरे आने तक रुकना दीदी।’’आराधना बोली,’’हां, कुमार के खाने के समय आयेगी तूं तो।’’हम दोनो बतियाने बैठ गई। आज आराधना फिलॉस्फर की तरह बात कर रही थी। कहने लगी कि मीनू के मरने पर बेटों ने कहा,’’डैडी अर्पाटमैंट बेच कर हमारे साथ चलो। कुमार ने न जाकर, कैसा सार्थक जीवन कर लिया है। कितनों की जरुरत बन गये हैं। ये देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। चांदनी उनका बहुत ध्यान रखती है। मैंने पूछा,’’चांदनी अब भी पारदर्शी पॉलिथीन में पनीर, बादाम लाती है।’’आराधना हंसते हुए बोली,’’कुमार ने सिलाई केन्द्र के झोले सबके हाथ में नहीं लटकवा दिए। लौटते हुए मैं सिलाई केन्द्र के आगे से निकली । पुरानी बातें याद आने लगीं। सरोजा की इज्जत का रखवाला, कुमकुम और मंगलसूत्र था, सुमित्रा का बिछुए और सोलह सिंगार’, चांदनी का ऐसा, जो जन्म से दूसरों के सहारे पर था। शायद सिलाई केन्द्र से हुनरमंद होकर महिलाओं का वहम मिट जाए कि उन्हें साथी चाहिए या इज्जत का रखवाला।  समाप्त               

Sunday 26 January 2020

न हो तूं उदास तेरे दिल के पास मैं रहूंगा जिंदगी भर , हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 21 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 21 Neelam Bhagi नीलम भागी

बच्चों को हॉस्टल में छोड़ कर, चांदनी भरी हुई आँखो से गाड़ी में बैठी। कुमार ने गाड़ी र्स्टाट करने के साथ ही म्यूजिक ऑन किया। गाना आया ’ सपनों के ऐसे जहां में, जहां प्यार ही प्यार खिला हो ’ पर चांदनी तो अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी। उसे सब कुछ बहुत अजीब लग रहा था। कैसे वह घर में अकेली रहेगी? जब वह थोड़ी संयत लगी तो कुमार ने म्यूजिक बंद कर दिया। म्यूजिक बंद होते ही चांदनी की तंद्रा टूट गई। अब कुमार बोले,’’देख चांदनी, शर्मा जी के दोनों बच्चे बहुत लायक दोनो  विदेश चले गये। हम अपने घर से, बच्चों से अलग आ गये। अगर हम दोनो परिवारों के बच्चे हम पर निर्भर होते तो जिंदगी और तरह से होती। पर हमें बहुत खुशी है कि हमने उन्हें काबिल बनाया। अब ये सोच कि जो हो रहा है, टोनू मोनू की भलाई के लिए ही तो हम कोशिश कर रहें हैं। सब तो नहीं, पर काने जैसे दो चार और भी होंगे वहां। बच्चे  उस माहौल से दूर गये, शायद यही उनके लिए अच्छा है। हिम्मत से काम लो। घर आकर उसने खाना बनाया। कुमार को खिला कर जाने लगी, तो रात ज्यादा हो गई थी। कुमार उसे घर छोड़ने गया। अपना घर आज उसे खाने को दौड़ रहा था। सुबह वह काम पर आई, घर लौटी तो भी करने को कुछ नहीं था। वह समय से पहले ही कुमार के यहां पहुंच जाती। अब कुमार उसे पढ़ाने लगा। उनमें प्रेमी प्रेमिका के अल्हड़ से, बचकाना वार्तालाप खेल खेल में होने लगे। एक दिन कुमार का  बेटा जो अपनी गृहस्थी की चिंता में पिता को शायद भूल गया था । अचानक परिवार सहित डैडी से इस  तरह  मिलने आया,  जैसे पिकनिक पर आया हो।  शर्मा जी उसे अलग ले जाकर अपने घर में समझाते हुए बोले,’’बेटा, कुमार मीनू को बहुत मिस करते हैं। तुम्हारी रिश्तेदारी, जान पहचान में कोई महिला हो तो इनका साथ करवा दो। इस उम्र में एक दूसरे को मोरल सुर्पोट ही होता है। बेटा कुर्सी से ऐसे उछला जैसे उसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो। वो जवाब में बोला,’’मेरे बच्चों की उम्र शादी लायक होने वाली है अंकल, मैं उनको छोड़ कर बाप के लिए रिश्ता ढंूढता फिरुं।’’और चला गया। एक दिन कुमार के डिनर करते ही, बारिश शुरु हो गई। ज्यादा बरसात में चांदनी की कॉलोनी में पानी भर जाता है। ये मूसलाधार बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बिजली भी चली गई थी। कुमार ने उसे वहीं रोक लिया। अगले दिन चांदनी ने एक किलो पनीर खरीदा। उसे पारदर्शी पॉलीथिन में डालकर, वह पहले संतोषी के घर गई। उसे बोली,’’ आप न आराधना दीदी का काम ले लो क्योंकि मैंने पढ़ाई और सिलाई सीखनी शुरु कर दी है। इसलिए मैं बिल्कुल समय नहीं निकाल पा रहीं हूं। संतोषी तो काम मिलते ही उसे खुश रहने के आर्शीवाद देने लगी। फिर वह पनीर दर्शन करवाती, इधर उधर दुआ सलाम करती लौटी। अब वो कुमार के यहां ही  रुक गई। दो चार दिन बाद कुमार नये जोश से समाज सेवा में लग गये। शर्मा जी को जब भी चांदनी दिखती, वो उसे कहते,’’कुमार को खुरा़क खिलाया कर।’’चांदनी खुराक के नाम पर देसी घी ही जानती थी। वह ढेर ढेर सारा डाल कर, उसी के खस्ता परांठे, मनुहार से उसे खिलाती। कुमार समझते थे कि पढ़ना सीखते ही इसे सब ज्ञान हो जायेगा। और पूरी लगन से चांदनी को ज्ञानी बनाने में लग गए। उसमें बदलाव भी आ रहा था। कुमार तो अब घर से बिल्कुल आजाद होकर सामाजिक कामों में लगे रहते। खरीदारी भी चांदनी करती थी। जब वह अपने घर का किराया लेने जाती तो हमेशा उसके हाथ में पारदर्शी पॉलिथीन में एक किलो बादाम, काजू या कोई भी मेवा या पनीर होता। वो थैली वाली बांह मटकाती हुई बतियाती, औरते उसकी कलाइयों को घूरतीं कि इसने मास्टर के नाम की चूड़ी तो पहनी नहीं!! क्रमशः
      ़ 

Saturday 25 January 2020

पूछो न मौहब्बत का असर, हाय न पूछो। हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 20 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 20 Neelam Bhagi नीलम भागी

             काने की हरकत से चांदनी बहुत परेशान हो गई। परेशानी उसके चेहरे से टपक रही थी। कुमार उस पर बहुत ध्यान देता था इसलिए वह उसे कैसे परेशान देख सकता था भला! उसने चांदनी से परेशानी का कारण पूछा, तो उसने सारा किस्सा सुना दिया। सुन कर कुमार सोच में पड़ गये। शाम को जब वे पार्क में गये तो कुछ लड़के लड़कियां पार्टी कर रहे थे। उन्होंने कुमार को भी पार्टी में शामिल होने को बुलाया। कुमार ने कहा कि आप लोग एंजॉय करो। पार्टी के बाद में मुझे कुछ देर आप लोगों से बात करनी है। जाने से पहले फोन कर लेना, मैं आ जाउंगा और चल दिए। इधर वे ताश खेलने वाले बुर्जुगों के पास गये। उन्हें जीवन की उपयोगिता पर, विद्यादान पर लेक्चर दिया। अब लेक्चरर रहे थे, तो पैंतालीस मिनट से पहले कैसे चुप करते भला! फिर उन्होंने जाकर पार्टी वालों को समझाया कि सबसे पहले तुम्हारा समय है तुम्हारे लिए, उसका सदुपयोग करो। लेकिन थोड़ा समय जो मनोरंजन में खर्च करते हो, आपस में तय करके एक दिन में एक व्यक्ति आकर, यहां पढ़ने वाले गरीब बच्चों को कुछ न कुछ सिखाये। देखना तुम्हें कितना अच्छा लगेगा! तुम्हारा तो पंद्रह दिन में नम्बर आयेगा पर ये बच्चे तुम्हें कभी नहीं भूलेंगे क्योंकि ये अनपढ़ों के बच्चे हैं। इनकी स्कूल की परेशानी, इनके मां बाप नहीं समझेंगे। जो आप से न सुलझे, मुझे बताना मैं दूर करुंगा।
                उनके लेक्चर का ये असर हुआ कि अगले दिन से बुर्जुग पार्क में सोसाइटी में काम करने वाली बाइयों, धोबियों और सीक्योरिटी वालों के बच्चों को पढ़ाने लगे। ये पढ़ाई सिर्फ दो घण्टे ही चलती थी। सबसे ज्यादा ध्यान टोनू मोनू का रक्खा जाता था। कुमार को सोसाइटी के बहुत काम रहते थे। लेकिन वे टैस्ट हमेशा मोनू टोनू का ही लेते थे। जो भी उन्हें सिखाना चाहते थें, वे युवा जो आता था, उससे सिखवा देते थे। अपने हम उम्र साथियों को तो नहीं टोक सकते थे कि मोनू टोनू वैसे परिणाम दें, जैसा वे चाहते हैं। बच्चों का टाइम मैनेज़मैंट भी कुमार ने कर दिया था। दोपहर को स्कूल से आते ही चादंनी उन्हें सुला देती थी। तीन से पांच पार्क की क्लास में आते। अब चांदनी डिनर बनाने लगी थी। इतनी देर टोनू मोनू पार्क में खेल लेते थे। और चांदनी के साथ ही घर वापिस आते थे। वे अपने मौहल्ले से बिल्कुल अलग हो गये थे। दोनों बच्चे पढ़ने में बहुत लायक हो गये। नये सैशन में बच्चों का एडमिशन सरकारी रैजिडैंशियल स्कूल में हो गया। चांदनी हमेशा टोनू मोनू से कुमार के पैर छुआती थी। वे उन्हें बाउजी कहते थे। परीक्षा परीणाम सुनकर बच्चों ने बाउजी के चरणों में सिर ही रख दिया। कुमार ने उन्हें उठाकर अपने सीने के  साथ लगा कर आर्शीवाद दिया। अब बच्चों की जाने की तैयारी की जाने लगी। उन्हें क्या क्या चाहिए सब लिस्ट कुमार बनाते थे। चांदनी का घर तो था ही मार्किट में वह सब खरीद लाती। लेकिन बच्चों के कपड़े कुमार अपनी पसंद के खरीद कर लाए। आराधना बच्चों के एडमिशन से बहुत खुश थी। शर्मा जी ने दोनो बच्चों की एक साल के लिए पॉकिटमनी लगा दी। शर्त ये रक्खी कि पैसे कहां खर्चे, इसका लिखित हिसाब देना होगा। अगले साल की पॉकिटमनी रिजल्ट देख कर लगेगी। आराधना ने पति से पूछा,’’ये बच्चों की जान को हिसाब लिखने का क्यों बखेड़ा डाल दिया?’’शर्मा ने जबाब दिया,’’ताकि ये फिजूलखर्ची न करें।’’बच्चों के जाने तक चांदनी अपनी उदासी छिपाकर उन्हें नित नये पकवान खिलाती थी। आखिर उनके जाने का दिन आ गया। ये समस्या भी शर्मा जी ने हल कर दी। उन्होंने कुमार से कहाकि पहली बार जाना है, सामान भी ज्यादा है। चांदनी अनपढ़ है बच्चों के साथ नई जगह में कहां बेचारी भटकेगी। आप ही छोड़ आइये न।  मन ही मन खुश होते हुए कुमार बोले,’’ आप कहते हैं तो मैं ही छोड़ आता हूं।’’ क्रमशः       

Thursday 23 January 2020

बोलो मेरे संग, जय हिन्द..जय हिन्द Bolo Mere Sang Jai Hind...Jai Hind Neelam Bhagi नीलम भागी



23 जनवरी सुबह 11 बजे विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान द्वारा संचालित, सरस्वती शिशु मंदिर सी ब्लॉक सेक्टर 12 द्वारा नेता सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती बहुत हर्षोल्लास से मनाई गई। विद्यालय में पढ़ने वाले नर्सरीके. जी तथा पहली कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा पथ संचालन किया गया| जिसमे नन्हे मुन्ने, तीनों सेनाएँ की वरदी मेंसुभाष चन्द्र बोस और आज़ाद हिंद फ़ौज के नन्हे सिपाही भी बने| विभिन प्रकार की सांस्कृतिक झांकियां थीं। जल, बेटी, पर्यावरण बचाने के नन्हे मुन्ने हाथ में लिखीं पट्टियां पकडे संदेश दे रहे थे| विभिन्नता में एकता का प्रदर्शन करते विद्यालय के बच्चों द्वारा बजते बैंड पर कदम ताल करते बच्चों का यह पथ संचालन बहुत ही दर्शनीय था। सड़क के दोनों ओर दर्शकों की भीड़ इस खुबसूरत नज़ारे को मोबाइल में कैद कर रही थी| इतने छोटे बच्चों द्वारा अनुशासन में पथ संचालन उन्हें हैरान कर रहा था| बच्चे तो बच्चे हैं, अचानक एक बच्चे के दिमाग में आया कि वर्दी में लगी, सीटी तो बजाई नहीं| उसने सीटी बजा दी| फिर तो सीटी भी बजती रही|
     विद्यालय के व्यवस्थापक प्रदीप भारद्वाज जी ने  हरि झंडी दिखा कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। ये छोटी छोटीछोटे बच्चों के सेना सेनिक तथा रंग बिरंगी वेश भूषा में जहां से भी गुजरती लोग स्वयं ही गाड़ी रोककर, अपने फोन में वीडियो बनाने लगते। एन ब्लॉक तथा सी ब्लॉक मार्केट से बाल सेना निकली, व्यापारियों ने तथा रास्ते में बहुत जगह लोगों ने पुष्प वर्षा कर इन नन्हें बच्चों  का स्वागत किया। प्रधानाचार्य प्रकाशवीरममता कपूरइन्दुअंजलि मोनिकादीपिका सभी अध्यापिकाओं की इस वाहिनी को सुनियोजित ढंग से निकालने के लिए उपस्थित मेहमानों सत्येन्द्र जी( महानगर कार्यवाहक, नॉएडा महानगर) गिरीश सती(सह बोद्धिक प्रमुख), नागेन्द्र जी(भाग विद्यार्थी प्रमुख), नमल दुषाद, आशिवडॉ. शोभा भारद्वाजअंजना भागी ने बहुत प्रशंसा की ।





















Monday 20 January 2020

अधेड़ मजनूं.... हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 19 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 19 Neelam Bhagi नीलम भागी

परशोतम के बाद अब कुमार भी अपने ढंग से जीने लगा है। शायद उसके दिल में आ गया कि इंसान की जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है। सुबह उठ कर मैडीटेशन करता है फिर योगा करता है। खुरच खुरच कर दाढ़ी बनाता है। फिर अंग्रेजों को कोसते हुए, चांदनी को सरल शब्दों में बताता है कि अंग्रेज हमारी सब किताबें ले गए, जिनमें उन जड़ी बुटियों के बारे में लिखा था कि जिसे खाने से बुढ़ापा नहीं आता। मन में सोचते हैं कि आज उनके पास पैसा है जडी बूटी खरीदने को, पर बूटी का ही नहीं पता।’’ सुनकर चांदनी पूछती है कि जिस देश में किताबें गई हैं, उस देश के लोग तो बूटी खाकर बूढ़े नहीं होते होंगे!! ऐसे भोले जवाबों से चांदनी कुमार को निरुत्तर कर देती है कभी कभी। अब कुमार के चेहरे पर हमेशा इश्तिहारी मुस्कुराहट रहती है। मीनू की ज़िंदगी में इसे हमेशा सेंवटी परसेंट सेल की शर्ट नसीब हुई थी और ये। अब इसके ब्राण्डेड कपड़े देख, डाइटिशियन की सलाह लेता है। जब घर में होते हैं तो मौहम्मद रफ़ी के गाने बजते  हैं। गाने ज्यादातर हुस्न पर होते हैं जैसे हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं...,तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करुं कुछ कहते हुए मैं डरता हूं...। अब उसने सोसाइटी में सीनियर सीटीजन का ग्रुप बनाया है। उन्हें महीने में एक बार लैक्चर देते हैं कि इस उम्र में भी कैसे स्वस्थ, चुस्त रहा जा सकता है। जीवन में जहां से भी मिले, प्रेरणा लो। अब इसकी प्रेरणा तो घर पर काम निपटा रही है। बाकि कहां से प्रेरणा लें? मैंने पूछा कि तुझे इनके भाषणों का कैसे पता? वो बोली,’मैं भी तो भाषण सुनने जाती हूं। शर्मा जी तो उन पर कभी कभी अकेले में छींटाकशी कर देते हैं।’’मैंने पूछा,’’ सुन कर कुमार बुरा तो नहीं मानते!’’ वो बोली,’’ लो भला, बुरा क्यों मानेंगे!! वे कौन सा बूढ़े खूसट हैं जो इन बातों का मजा़ न लें।’’इतने में गाना बंद हो गया। आराधना ने जल्दी से दरवाजा खोल दिया। सामने कुमार दरवाजे को लॉक लगा रहे थे। आराधना ने हैलो के बाद कहा,’’कुमार साहब ? आइए न, एक कप चाय पी कर जाइये। वे न न करते आ ही गये। मैंने हैलो के बाद पूछा,’’और कुमार साहब कैसा चल रहा है?’’ वे बोले,’’मीनू के बाद लगता था कि जिंदगी में कुछ बचा ही नहीं। कुछ देर चुप रहे फिर सांस छोड़ कर बोले, आह! जब तक सांस है जीना तो है ही न। फिर सोचा अपने को उन कामों में लगा दो, जिससे किसी का भला होता हो। मुझसे किसी का भला हो, उसी काम में लगा रहता हूं। जाते हुए बोले कि आप भी सीनियर सीटीजन की मासिक गोष्ठी में आया कीजिए’’ और चाय का प्याला खाली होते ही चले गये। उसके जाते ही दरवाजा बंद कर आराधना पूछती है,’’तुझे इसमें क्या चेंज लगा?’’ मैं बोली,’’अधेड़ मजनू लग रहा है।’’ हम दोनो खूब हंसी। फिर वो बोली,’’लेकिन काम बहुत करवाता है। पार्क इसने बहुत सुन्दर कर दिए हैं।
चांदनी के मां बाप देखने आये थे कि उनकी बेटी कैसे रह रही है? दो दिन बाद वे चले गये। दोपहर को मोनू टोनू खेल रहे थे। काने ने मोनू को बुला कर, जानते हुए भी पूछा,’’बेटा नाना नानी चले गये हैं? उसने कहा,’’ जी अंकल।’’सुनते ही काना बोला,’’अरे मुझसे पूछे बिना कैसे चले गए?’’ये सुन कर मोनू ने पूछा,’’क्यों अंकल?’’ अब उसने प्यार से कहा,’’बेटा, तुम्हारा बाप अब मैं हीं हूं।’’ ये सुनकर वहां खड़े आवारा किस्म के लड़के हंसने लगे। सभ्य मोनू उसे गुस्से में काना काना, कहता आग बबूला होकर, पैर पटकता हुआ घर आया। मोनू ने आते ही सारा किस्सा मां को बताया। मां ने उन्हें समझाया कि आगे से तुम लोग उसकी दुकान के सामने मत जाया करो। चांदनी सोचने लगी इस कॉलौनी में और दीदी की कॉलौनी के लोगों में कितना फर्क है! वहां कितनी ही लड़कियां अकेली फ्लैट्स में रहतीं हैं। कोई ध्यान ही नहीं देता और यहां!! क्रमशः       

बुढ़ापे का इश्क बहुत वाहियात होता है हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 18 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 18 Neelam Bhagi नीलम भागी




आशिक होने की कोई विशेष उम्र नहीं होती। फोन पर आराधना ने मुझे सबसे पहले ये वाक्य बोला। मैंने पूछा,’’क्यों क्या हुआ?’’ उसने जवाब दिया कि फोन पर नहीं, घर आ। मैंने कहा कि मैं आती हूं क्योंकि मुंहफट आराधना का सुनाने का तरीका बहुत मज़ेदार होता है। इसलिए मैंने भी जल्दी जल्दी जरुरी काम निपटा कर, बतरस करने को आराधना के घर, राजरानी की मार्किट की ओर से चल दी चल दी। सामने से श्रृंगारविहीन चांदनी टोनू मोनू को स्कूल से लिए चली आ रही थी। काने को समय का अंदाज था, उसने गाना लगा रक्खा था। ’तुम्हें कोई और देखे तो जलता है दिल, हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नही जानते मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना...।' मुझे देखते ही वह नमस्ते करके रुक गई। आंखों में उसके गहरी उदासी थी। सादगी में भी वह बहुत सुन्दर लग रही थी। कपड़े उसके पास मीनू के ही थे, उनमें और भी जचती थी। मैंने बच्चों से पूछा,’’मम्मी को तंग तो नहीं करते! जवाब में चांदनी बोली,’’दीदी इनका बचपना और घर से गाना , इनके पापा के साथ ही घर से चला गया और संगीत गली में बजने लगा। इतने में दूसरा गाना काने ने चालू किया ’डगमगा जायेंगे ऐसे हाल में कदम, आपकी कसम....’ मैंने कहा,’’अच्छा तूं घर जा, बच्चों को खाना खिला।’रास्ते भर मैं चांदनी के बारे में सोचती रही और एक ग्रामीण कथन याद आया कि ’विधवा तो वैधव्य काट ले, गांव वाले काटने दे तब न!" ये तो वैसे भी इस मौहल्ले की पैसे वाली सुंदरी विधवा है। खै़र मैं आराधना के घर पहुंची। वह बड़ी बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थी। मैंने आते ही उसे काने के गीत लगाने की बात बताई। उसने झट से काने के लगाने वाले गीत बता दिए। मैंने पूछा,’तुझे कैसे पता?’’ वह बोली,"जिस दिन भी मेरा और चांदनी का मेल होता है। वह मुझे सब कुछ बताती है। संतोषी को मैंने समझाया था, उसने और औरतों को समझाया। उन्होंने अपने पतियों को समझाया। तेहरवीं के बाद मर्दों ने चांदनी को अपनी बहन बेटी बता कर, उसका ध्यान रखने का बोल कर सब रिश्ते दारों  को विदा किया। धीरे धीरे चांदनी में आत्मविश्वास आता जा रहा है। और ये कुमार! इसमें मुझे बड़ा चेंज़ लग रहा है। तू भी ध्यान से देखना कभी मैं ही गलत होंउं। पहले चांदनी के समय घर में ये मुश्किल से ही दिखता था। मीनू ने इसको गधा बना रक्खा था। प्रतियोगी परीक्षाओं के कोचिंग सेंटर में मैथ्स की क्लासेस लेता रहता था। ताकि दो पूतोंवाली मीनू की पसंद का ताजमहल खड़ा हो जाये। खड़ा भी कर लिया। अब बहुएं तो ताजमहल के स्टैर्ण्डड की आईं। उन्हें क्या मतलब कि इन्होंने कैसे ताजमहल बनाया! उन्होंने पतियों की समझदार मां को कमीनी का टाइटल दे दिया। मीनू ने कह दिया कि अगर वह बहुओं जैसी खर्चीली होती तो भला ताजमहलनुमा कोठी बनती! न.. न .न..। मीनू की समझदारी से ये फ्लैट खरीदा गया था। कुमार ने अतिरिक्त आय के लिए पढ़ाना बंद कर परिवार की शांति के लिए मीनू को लेकर यहां आ गये। सब अपने अपने ढंग से जीने लगे। हुआ यूं कि मीनू के बाद एक दिन दरवाजा खुला था, कुमार घर में घुसे। चांदनी पसीने से नहाई हुई, पोछा लगा रही थी। कुमार ने पंखा चला दिया। चांदनी चौंक कर बोली,’’मास्टर जी पंखा क्यों चलाया? मैडम जी ने मना किया था कि पंखा चला कर फर्श नहीं सुखाना, बिजली की बरबादी है। थोड़ी देर में अपने आप सूख जाता है।’’ कुमार मुस्कुराकर बोले,’’ बिजली बेकार जलाने को मना किया होगा, गर्मी में पंखा चला कर काम करते हैं, समझी। और मैं मास्टर नहीं हूं।’’ सुनकर सरोजा ही ...ही... करते हुए बोली कि पढ़ाने वाले को तो मास्टर जी कहते हैं। कुमार ने हंसते हुए कहा कि तूं मुझे सर या साहब कह दिया कर। फिर परशोतम की मौत से पहले न वे कभी घर दिखे थे और न ही कहने का मौका मिला था। वे सेवा काम के काम में ही लगे रहते थे। और अब ! क्रमशः 

Sunday 19 January 2020

आशि़क़ होने की कोई उम्र नहीं होती! हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 17 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 17 Neelam Bhagi नीलम भागी


मैं और आराधना संस्कार के अगले दिन मातमपुरसी के लिए चांदनी के पास गये। परशोतम को वह दिल की गहराइयों से प्यार करती थी। एक ही दिन में उसका रुप फीका पड़ गया था। हमें देख कर फफक फफक कर रोने लगी। जब रो कर शांत हुई तो आराधना ने समझाया कि परशोतम तो अब लौट नहीं सकता। इस समय हिम्मत सरोजा की जिंदगी से आयेगी। उसने अकेली ने उसे पाला पोसा, जिसको हर वक्त सहारे की जरुरत थी। सुनकर चांदनी की कमर कुछ सीधी हुई। हमें धीरे से बोली,’’दीदी संतोषी आपको शिकायत का मौका नहीं देगी। मैं उनके सभी संस्कार पंडित जी के कहे अनुसार करवाउंगी ताकि अगले जनम में भगवान उनको आंखें लगा कर भेजे। उनके कारण हमेशा घर का दरवाजा खुला रहता था। रेडियो बंद है तो समझो वो सो रहें हैं। मैं अगर काम पर गईं हूं, तभी घर से बाहर जाते थे। उसके माता पिता चुपचाप मुंह नीचे किए बैठे थे। हमने कहा जैसे तेरे मन को शांति मिले वैसे कर। उसने उठ कर हमें दोनो घरों की चाबी दी और कहा कि वह तेरहवीं के बाद काम पर आयेगी। घर आये तो संतोषी कुमार का काम खत्म करके, हमारा इंतजार कर रही थी। आराधना ने उसे चार कप चाय बनाने को कहा क्योंकि मि. कुमार भी आकर बैठ गये। संतोषी चाय लाई तो आराधना ने उसे कहा,’’तूं भी अपनी चाय लेकर यहीं बैठ कर पी।’’आराधना ने उसके मुंह से परशोतम की मौत का पूरा किस्सा सुना। सब सुना कर संतोषी बोली,’’दीदी चांदनी को दुनियादारी बिल्कुल नहीं आती। उसके मरने पर चुपचाप आंसुओं से रोती रही। आंसू तो सूख जाते हैं। जब बिरादरी आई तो मैंने आगे जाकर इसका घूंघट खींच कर इसको दो हत्थड़ मार कर, कान में कहा कि हल्ला मचा कर रो, जैसे मैं रोई फिर इसकी ऐसी रुलाई फूटी कि घर की दीवारें भी हिल गई। दीदी अगर मैं ऐसा न करती तो इसके आंसू किसी ने न देखने थे। सबने बातें बनानी थी कि चांदनी ने शुकर किया कि अंधे से पीछा छूटा।’’इन दोनो घरो की तो जरुरत है चांदनी। संतोषी फिर चालू हो गई,’’ सरोजा और मेरा बचपन का साथ है। काम में भी हमने एक दूसरे का साथ दिया है। दीदी पता नहीं कहां कहां से रिश्तेदार आये हैं?  न हमने परशोतम के बाप के मरने पर इतने देखे! न उसकी शादी पर। शादीशुदा कुंवारों में टोनू मोनू को प्यार करने की होड़ लगी है। सब इसी ताक में लगे हैं कि उनके नाम की चूड़ी पहन ले। अभी ताजा ताजा घाव है न इसलिए हिम्मत नहीं कर रहें हैं। मेरे घर से कोई न कोई चांदनी के पास बैठा रहता है। काम से लौट कर मैं बैठ जाती हूं। बाहर के काम सब काना और मोनू देखता है। अब संतोषी जल्दी जल्दी काम निपटाने लगी। चांदनी के कारण हम सब दुखी थे। यहां तक की रूखे, सख्त और तने चेहरे वाले मैथ के रिटायर प्रोफेसर मि. कुमार का चेहरा भी चांदनी के दुख के कारण मुलायम होने लगा। उन्होंने आराधना से कहा कि चांदनी को फोन लगाओ और कहो कि कोई परेशानी हो तो हमें कभी भी फोन कर सकती है। आराधना ने उसी समय फोन कर उसे ऐसे ही कहा। क्रमशः           

Saturday 18 January 2020

आ लौट के आजा मेरे मीत....हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 16 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 16 Neelam Bhagi नीलम भागी


रात देर से धूमधाम से दिवाली मना कर सोए थे। चांदनी तो बहुत ही थकी हुई थी। आराधना के घर का त्यौहार का काम, कुमार के महमानो का काम फिर अपने घर को सजाना, पकवान बनाना। रात घोड़े बेच कर सोई। सुबह देर से नींद खुली। चाय बनाती, पीती पिलाती तो और देर हो जाती। मोनू चाय तो बना ही लेता है। ये सोच कर दो टुकड़े मिठाई के खाते हुए काम पर चल दी। दोपहर को काम से लौटी तो रेडियो बंद था। उसे कुछ अजीब लगा। परशोतम चुपचाप लेटा हुआ था। चांदनी ने उसका हाल पूछा तो उसने मरी हुई आवाज में बताया कि रात ज्यादा खा लिया था, डायरिया हो गया है। उसने पूछा,’’ मुझे क्यों नहीं जगाया?’’ वो बोला,’’ मेरे बार बार उठने से तेरी नींद नहीं खुली तो मैंने सोचा बहुत थकी हुई है। चलो सोने दो। वैसे तूं कौन सा डॉक्टर है?’’ वो बोली,’’मैंने भी सुबह नहीं जगाया कि पता नहीं रात को आप कब सोये होंगे। भारी खाना खाया था गहरी नींद में होंगे। ये सोच के तुम्हारी नींद नहीं खराब करती और चली गई। पर तुम दवा तो ले आते।’’ वो चुप रहा। अड़ोस पड़ोस बहुत एक दूसरे की मदद करने वाला है। पर किसी को पता चलता तो कोई आता न। ज्यादातर घरों में रात को दारु पी गई थी और जुआ खेला गया था। इस कारण क्लेश था। सब अपने नफे नुकसान के कारण परेशान थे। इसलिये किसी ने ध्यान नहीं दिया। दोपहर में आस पास के क्लीनिक बंद थे। संडे था शाम को भी क्लीनिक बंद रहे। फिर वे  पड़ोसियों की मदद से उसे सरकारी अस्पताल लेकर गये। इतवार और त्यौहारी माहौल या जो भी कारण रहा हो। अस्पताल से परशोतम की बॉडी आई। मौहल्ले में कोहराम मच गया। दूर पास के रिश्तेदारों को खबर की गई। चांदनी गुमसुम सी उसकी लाश के पास बैठी हुई आंसू बहा रही थी। जैसे ही रिश्तेदारों का जमावड़ा आया, संतोषी उनसे आगे जोर जोर से रोती, माथे पर हाथ मारती और दो हाथ चांदनी के मार कर विलाप करने लगी,’’हाय अंधा था पर लाड़ो तेरी इज्जत का रखवाला था।’’ अब चांदनी जमीन पर लोट लोट कर रोने लगी और कहने लगी हाय! मेरी इज्जत का रखवाला चला गया री। मर्द लोग अर्थी की तैयारी करने लगे। अर्थी उठाने से पहले बिरादरी की महिलाएं चांदनी को लेकर आईं। परशोतम के चेहरे से कफन हटाया ,औरतों ने रोते हुए कहा,’’अरी अंतिम दर्शन करले फिर न तुझे दिखेगा री।’मर्दो की भी़ड़ में कहां वह उसे आखिरी बार आंख भर कर देख सकी न ही उसे इस रुप में देखना चाहती थी। उसके दिल में तो रेडियो के साथ गाने वाले परशोतम की छवि बसी हुई थी। इतने में रिश्ते के एक बुर्जुग ने पत्थर से बड़ी बेरहमी से चांदनी की चूड़ियां तोड़ीं। कुछ कांच के टुकड़े उसकी कलाई मे भी चुभ गए। इस हृदय विदारक दृश्य को देखकर सब रो पड़े। और सुमित्रा भरे गले से आंसू बहाती हुई राजरानी से बोली,’’दीदी भंगेड़ी मुरारी जैसा भी है, भगवान उसे लम्बी उमर दे, बिन्नी चुड़ैल उसे ले गई है। पर मेरे श्रृंगार करने का हक तो मुझसे नहीं ले सकती न।’’ जैसे ही परशोतम की अर्थी उठी। उसी समय काने का मोबाइल बजा’ ’आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं।’ महिलाओं ने रो रो के चांदनी से कहना शुरु कर दिया अरी वो अब लौट के न आने का, न आने का।’ काने ने जल्दी से एक हाथ से अर्थी को कंधे पर सैट किया और दूसरे से मोबाइल बंद किया। क्रमशः        

Friday 17 January 2020

छूना मत देख अकेली! है साथ में....हाय मेरी इज्जत का रखवाला भाग 15 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 15 Neelam Bhagi नीलम भागी

राजरानी को अगर कोई सुखी कर सकता था तो वो परशोतम का प्लॉट। उसने उसी लाइन में रहने वाली सुमित्रा को परशोतम के साथ प्लॉट बदलने को राजी कर लिया पर परशोतम राजी नहीं था। राजरानी ने मुझे सुमित्रा से मिलवाया कि हम दोनों मिल कर परशोतम का दिमाग साफ करें। पर मुझे तो सुमित्रा के व्यक्तित्व ने आकर्षित किया। कारण उस कॉलौनी में वह सबसे ज्यादा सोलह सिंगार में रहती है। मैंने राजरानी से पूछाकि ये हमेशा करवाचौथ की तरह सजी रहती है! राजरानी दुखी होकर बोली,’’क्या करे बेचारी! ऐसे रहना इसकी मजबूरी है।’’ मैंने पूछा,’’क्यों?’’उसने बताया कि इसका पति मुरारी बहुत बढ़िया ढोलक बजाता है। वो एक कान में बाली पहनकर बालों का गुच्छा माथे पर डाल कर, जुल्फों को झटके दे देकर ढोलक बजाता था। यहां एक लड़की बिन्नी मुरारी की अदाओं पर मर मिटी। मुरारी ने सुमित्रा से कहा कि मैं बिन्नी के बगैर नहीं जी सकता। सुमित्रा बहुत भली है। उसने कह दिया कि उसे घर नहीं घुसने दूंगी। वह बिन्नी को लेकर गांव के घर चला गया। सुमित्रा की एक मैडम के पति पायलेट हैं। उसने ये कहानी सुनकर सबसे पहले उसे ये मकान खरीद दिया कि धीरे धीरे चुका देना। मैडम जब फर्नीचर बदलती है तो सुमित्रा को ही देती है। ये इतना क्या करे! बेच देती है। काम के साथ उन्हें दो समय खाना खिलाने जाती है। इसके दोनों बेटे पढ़ रहें हैं। मैडम का एक ही बेटा वो भी विदेश चला गया। मैडम ने कह दिया कि मकान का पैसा पूरा हो गया है। दो समय बिना नागा मैडम के काम करने जाती है। मैडम भी घूमने गई हुई थीं। बच्चे बोले,’’ मां गांव चलते हैं बाबू को देख कर आते हैं।’’ उसके मन में भी उत्सुकता थी कि देख कर आउं कि कैसे रहता है? बढ़िया कपड़े पहन कर बड़े ठस्के से गांव गई। मुरारी तो भंग खाकर चारपाई पर पड़ा था। बिन्नी भिखारन सी लग रही थी। हाथ जोड़ कर सुमित्रा से कहने लगी,’’इसे ले जाओ , गांव में कहां ढोलक बजाने से कमाई! भंग खाकर पड़ा रहता है। मैं खेतों में मेहनत मजदूरी करके दोनों की दो जून की रोटी का बड़ी मुश्किल से जुगाड़ कर पाती हूं। बच्चे उसी समय बोले,’’ अम्मा घर चलो न।’’ सुमित्रा ने बिन्नी को जवाब दिया,’’वहां आस पास कोई भांग का ठेका नहीं है। जहां से भी लेने जायेगा, मोल की आयेगी और मैं भंगेड़ी को क्यूं रक्खूं।’’शाम तक वह वापिस अपने घर आ गये। तब से बच्चे कभी बाप का नाम नहीं लेते हैं। सुमित्रा ऐसे ही रहती है। उसका कहना है कि मेरी तो इज्जत का रखवाला बिछुए, सिंदूर चूडी आदि है। ये देख कर ,कोई कुछ  पूछता ही नहीं है फिर लड़के बड़े हो ही रहें हैं। मैं समझ गई कि सुमित्रा की मैडम और  कुमार राजरानी की इच्छा पूरी नहीं होने देंगे। राजरानी ने नोएडा में  कोठी बना ली है पर इस प्लॉट ने उसकी खुशी भंग कर रक्खी है। चांदनी ढेरो मिठाई लेकर घर आई। परिवार मिलकर दीवाली की तैयारी करने लगा। पूजा के बाद से परशोतम मिठाई पर मिठाई खाता जा रहा था। खीर पूरी सब्जी़ तो खाई ही। हमेशा दीवाली के अगले दिन इन्हें मिठाई मिलती है। इस बार पहले ही मिली। उसे खुशी से खाता देख चांदनी को बहुत खुशी मिल रही थी। मोनू टोनू दिए और पटाखे जला रहे थे। देर रात वे सोए। क्रमशः     

Thursday 16 January 2020

है ये कैसी डगर! चलते हैं सब मगर... हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 14 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 14 Neelam Bhagi नीलम भागी


अगले दिन जाकर चांदनी ने कुमार से कहा कि एक महीने के लिए नई को अजमाने से अच्छा है, मैं ही नौ से छ तक रुक जाउंगी। यह सुनते ही मीनू के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वो बोली,’’इसे दो पगार देना। जो ये काम कर रही है उसके साथ दिन भर रुकने की जो दूसरी को देनी थी, पगार मिला कर देना। ये सुनकर कुमार के चेहरे पर संतोष आ गया कि चलो मीनू में कुछ बदलाव तो आया। शायद समझ गई कि जिनके लिए कोठी बनाई, वे मेहमानों की तरह देखने आए और अब छुट्टी मनाने आते हैं। चांदनी सुबह आठ बजे आराधना का नाश्ता बना देती और छ बजे के बाद उनका डिनर तैयार करती। बाकि काम उसने संतोषी को दे दिए। संतोषी की बेटी चांदनी के घर का भी ध्यान रख लेती थी। कुमार मीनू का बहुत ध्यान रखते। कुमार शर्माजी से कहते कि बुढ़ापे में मीनू को जीवन जीने की कला आई, साथ ही गिनती के दिन इसकी जिन्दगी में बचे हैं। दो महीने बाद डाक्टर की सलाह से उसे घुमाने ले जाने लगे क्योंकि कोठी शानदार बने इसलिए मीनू एल टी सी को भी कैश करवा लेती थी। अब खुशी से जाती है। ग्यारह महीने उसे घुमाते फिराते रहे। अचानक फिर मीनू के दर्द उठा। सरकारी नौकरी थी इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ी। मीनू ने ही कहा कि वह घर में ही रहना चाहती है। उबली लौकी तोरी पर चल रही थी फिर खाली ग्लूकोज पानी, फिर डिप चढ़ती रहती थी। उनकी मौत तक चार महीने चांदनी सुबह से शाम तक उनके घर में रहती थी। एक दिन कुमार को रोता छोड़ वह संसार से चली गई। मीनू के जाने के बाद सब कुछ पहले जैसा हो गया। बेटों ने कहा,’’पापा हमारे पास आकर रहो। कुमार ने उन्हें जवाब दिया,’’यहां से मीनू गई है, चाहता हूं मैं भी यहां से ही जाउं, आगे भगवान की मर्जी। उन्होंने बहुओं को कहा कि मीनू का जो भी सामान है आप लोग लेना चाहो तो ले लो। जेवर तो लॉकर में था। मीनू की डैड बॉडी को नहलाते समय जो उसके शरीर पर सोना था उसे दोनों ने सास की निशानी समझ कर श्रद्धा से रख लिया था। दोनों बहुओं ने अलमारियां अच्छी तरह टटोल कर सिल्क, शिफॉन की साड़ियां और कीमती शॉलें ले लीं और कहा,’’हम साड़ियां कम पहनती है।’’ और ससुर के पैर छूकर चलीं गईं। बाकि सब सामान कुमार ने चांदनी को दे दिया। मीनू का मोबाइल चलाना सिखा कर वह भी उसे दे दिया। सब अपनी अपनी दुनिया में मस्त हो गए। चांदनी के जिम्मे ही पूरा घर था। जिस चीज की जरुरत होती, वह मोबाइल पर बता देती। कुमार छुट्टी के दिन बनता हुआ ताज़ा खाना खाते थे। बाकि दिन चांदनी इतना बना जाती कि उनका रात का भी काम हो जाता था। उनके लिए फल काट कर फ्रिज में रख जाती। खाली समय वे सोसायटी के ऑफिस में बैठ कर समाजसेवा करते थे। मीनू की मौत के बाद पहली दीवाली आई। उनके यहां रिवाज़ था कि मौत वाले घर में एक साल तक शोक रहता है। बहू के मायके वाले आते हैं, त्यौहार मनाने की रस्म पूरी कर, चुपचाप बैठ कर चले जाते हैं। बहुओं के मायके वाले आये मिठाई रख कर रस्म पूरी कर चले गये। मेहमानों के आने के कारण दीवाली के दिन भी चांदनी काम करने आई। उनके जाते ही कुमार ने वैसे ही सब मिठाई चांदनी को देदी। आराधना भी त्यौहारी दे गई। कुमार  भी रिटायर हो गए थे। सब लोग त्यौहार में व्यस्त थे। कुमार तन्हाई के साथ घर में समय काट रहे थे। क्रमशः 
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Wednesday 15 January 2020

न तो हम बेवफा हैं न, हम झूठे हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 13 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 13 Neelam Bhagi नीलम भागी



कुमार ने इनको समझाया कि पैसों का ज़िक्र किसी से भी नहीं करना और सारा पैसा सरोजा के परिवार के नाम से बैंक में सुरक्षित किसी न किसी योजना में लगा दिया। इस पैसे को सरोजा की तेहरवीं में भी खर्च करने को नहीं दिया। परशोतम ने अपनी जमापूंजी से सब संस्कार निपटाये। शर्मा जी ने परशोतम को समझाया था कि सरोजा को टोनू मोनू को पढ़ाने का बहुत शौक था और स्कूल के रास्ते में वो मरी है इसलिए ये पैसा बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करना होगा। परशोतम को सब समझ आ गया। सरोजा की सहेली संतोशी ने इतने दिन सरोजा और चांदनी का काम संभाला इसलिये चांदनी ने सरोजा के काम उसको दे दिए। आराधना और कुमार के काम चांदनी ने अपने पास रक्खे। संतोशी सुबह काम पर जाते समय टोनू मोनू को स्कूल छोड़ देती। चांदनी दोनों घरों का सब काम खत्म करके, लौटते हुए बच्चों को ले आती। शुरु में लगा था कि सरोजा के बिना कैसे घर चलेगा? पर हिसाब के लेक्चरार मि. कुमार ने सब मैनेज़ कर दिया कर दिया। परशोतम भी दुख से उबर गया और पहले की तरह काने के खोखे पर बैठने लगा और रेडियो सुनने लगा। चांदनी की सीढ़ियां चढ़ कर और शारीरिक श्रम से उसकी गज़ब की फिटनैस थी। दोनो कामकाजी मैडम के कपड़े पहनती। खाना बनाने के कारण साफ सुथरी रहती। जब बच्चों को स्कूल से लेकर लौटती, टोनू मोनू खोखे पर बाप को देख कर, दौड़ कर उसका हाथ पकड़ कर घर की ओर चल पड़ते। वहां खड़े एक दो छिछोरे चांदनी को देख कर बोलते,’’लाटरी तो परशोतम की निकली है।’ चांदनी की तारीफ सुनकर उसका मूड खराब हो जाता। परशोतम को छुट्टी का दिन बहुत बुरा लगता था। बच्चे घर पर उधम मचाते थे। चांदनी जब काम से थकी हुई घर आती तो वह उसे जली कटी सुनाता। उसे लगता कि आज ये देर से आई है। बेमतलब उस पर दो चार अभियोग लगा देता। मसलन ’आ गई अपने यारों से मिलकर’। सुन कर वो चुप लगा जाती। ताकि उसका गुस्सा शांत हो जाये। क्योंकि  अगर पीटने लगा तो सरोजा भी नहीं है बचाने को। जब तक पड़ोसी बचाने आयेंगे ये कई छड़ियां उस पर बरसा देगा। कमरे के एरिया का उसे पूरा पता था जब गुस्से में छड़ी घुमाता तो छड़ी लगती जरुर थी। इसलिये चांदनी कोई ऐसा काम नहीं करती थी कि परशोमत को गुस्सा आये। एक दिन मिसेज कुमार को भयानक पेट में दर्द हुआ। तुरंत नर्सिंग होम लेकर गये। कई टैस्ट हुए। डॉक्टर ने रिर्पोट देख कर कहा कि गॉल ब्लैडर निकालना पड़ेगा। ऑपरेशन में पता चला कि उनको कैंसर है। अपने जीवन के लगभग डेढ़ साल वो निकाल देंगी। दो दिन आईसीयू में रहीं। दोनो बेटे बहू विजिट कर जाते। जब रुम में आईं तो वे बुके लेकर विजिट करने आते थे। दो आया रख दीं थी, उनकी देखभाल के लिए, एक जाती दूसरी आती थी। उन्होंने मीनू को नहीं बताया कि उसे कैंसर है। घर आये तो कम से कम एक महीने का बैड रैस्ट था। कौन कराए? वर्किंग बेटे बहुओं ने कहा कि वे उनके पास आ जाएं। कुमार नहीं माने वो कोठी भी उन्हीं की बनाई हुई थी। पर वे मीनू को लेकर इसी घर में आये। आराधना को मीनू की बीमारी के बारे में बताया। वो सुनकर बहुत दुखी हुई। मीनू उनसे दिल की बातें करती थी। कर क्या सकती थी! अकेली बैठ कर खूब रो ली। कुमार ने चांदनी से कहा कि सुबह नौ से शाम छ बजे तक रहने के लिए कोई मेड भेज दे। चांदनी अच्छा बोल कर आ गई। घर आकर उसने परशोतम से कहा। सरोजा तो यहां सबको जानती थी पर किसी की नियत खराब होते भला पता चलता है!!उनका तो रुपया पैसा सब ऐसे ही रक्खा रहता है। परशोतम ने कहा कि एक महीने की बात है तूं ही रुक जा। क्रमशः           

Friday 10 January 2020

मैं बंदनी पिया की, मैं संगनी हूं साजन की, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 12 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 12 Neelam Bhagi नीलम भागी


सरोजा टोनू मोनू की पढ़ाई के लिए बहुत फिक्रमंद रहती थी। उसने आज तक जहां भी पैसा खर्चा था उसके बदले में कुछ उसे मिला था। उसके अनुसार यहां वह ढेरो नोट देकर आती है। और बच्चे किताब भी नहीं पढ़ते हैं। उसे बच्चों की उम्र, कक्षा और सलेबस से कोई मतलब नहीं था। उसने टोनू मोनू की टयूशन भी लगा दी। ट्यूशन वाली ने अब भी कहा कि वह डायरी में लिखा गया होम वर्क कराएगी। सरोजा ही ट्यूशन छोड़ने लेने भी जाती थी। उसने आराधना के सामने स्कूल वालों को कोसा। आराधना ने टोनू मोनू को बस्ते समेत घर बुलाया। उनसे जो पूछा, उन्हें सब आता था। फिर उसने सरोजा को डांटा और कहा कि इनकी पेरेंट टीचर मीटिंग में मैं जाया करुंगी। और वह हमेशा जाती थी। बच्चों की क्लासें बढ़ती गईं। पढ़ाई का खर्च भी बढ़ता गया। व्यापारियों ने रामकथा का आयोजन किया था। शाम को सरोजा कथा सुनने जाती थी। र्धमगुरु कथा के बीच बीच में कहानियां भी सुनाते थे। एक दिन सरोजा कथा से लौटी तो उसके चेहरे से खुशी टपक रही थी। आते ही उसने रेडियो बंद किया और परिवार से कहा कि मेरी बात ध्यान से सुनना। इतने में चांदनी ने सबके आगे खाना परोस दिया। सरोजा बोली,’’आज महात्मा जी ने बताया तीन तरह के पूत होते हैं, जो बेटा बाप द्वारा छोड़ी गई दौलत और धन को गवा देता है वो होता है कपूत, जो बाप का छोड़ा माल न बढ़ाता है और न घटाता है वह पूत कहलाता है और जो बेटा बाप के छोड़े जायदाद को बढ़ाता है उसे कहा जाता है सपूत। सुनते ही परशोतम ने खाना छोड़ कर मोनू टोनू को समझाया,’’जैसे हम हैं सपूत, तुम्हार दादा झुग्गी में मरे और तुम चार मंजिले पक्के मकान में जन्में। अगर हम ऐबदारी करते तो वो झुग्गी भी बिक जाती।’’ये सुनते ही सरोजा ने अपने सपूत को कलेजे से लगा लिया। टोनू मोनू ने दादी से पूछा,’’दादी एैबदारी क्या होती है?’’सरोजा ने समझाया,’’बीड़ी सिगरेट, तम्बाखू, गुटका, दारु और जुआ खेलना और तुम्हारे पापा को इनमें से कोई ऐैब नहीं है।’’ये सुनते ही चांदनी ने बहुत गर्व से पति की ओर देखा। इस समय चांदनी की नज़रें परशोतम को निहारते देख कर, सरोजा का दिल रो पड़ा। काश! परशोतम इस समय चांदनी के चेहरे के भाव देख पाता। सपूत की परिभाषा सबको समझ आ गई। चांदनी को सरोजा सपूत लगती थी और  उसे सास जैसा बनना था। परशोतम के लिए तो उसका प्यार और भी बढ़ गया था। कारण अगर वह बदकार निकलता तो सास का कमाया सब बेकार हो जाता। अब सरोजा और चांदनी दोनों बहुत एनर्जिटिक रहतीं थीं। दोनो ने काम भी ज्यादा पकड़ लिया था। एक दिन सरोजा बच्चों को लाने में थोड़ा लेट हो गई। बदहवास सी स्कूल की ओर जा रही थी। मेनरोड पार कर रही थी। ट्रक से टकराई वहीं खत्म। ट्रकवाले की गलती तो नहीं थी पर मौत तो हुई थी। सरोजा के संस्कार के बाद मि.कुमार और आराधना के पति शर्मा जी परशोतम, चांदनी और टोनू मोनू को लेकर ट्रांसर्पोट के मालिक के पास गये। परशोतम की सफेद छड़ी, दो छोटे छोटे बच्चे और उसकी पत्नी देख कर वो दुखी हो गया। शर्मा जी ने चुप्पी तोड़ी बोले,’’ इसकी विधवा मां हम दोनों के यहां काम करती थी और ये इसकी और बच्चों की देखभाल करती है। उसकी कमाई से ही घर चलता था। आपका भी ट्रक कमाता था जो अब थाने में खड़ा है। ऐसा रास्ता निकालिए कि पैसे का और समय का नुकसान न हो, पैसा इन गरीबों के काम आए और इनकी भी दाल रोटी चल जाये। उचित मुआवजे पर केस निपटा कर वे दोनों उठे। क्रमशः