सरोजा टोनू मोनू की पढ़ाई के लिए बहुत फिक्रमंद रहती थी। उसने आज तक जहां भी पैसा खर्चा था उसके बदले में कुछ उसे मिला था। उसके अनुसार यहां वह ढेरो नोट देकर आती है। और बच्चे किताब भी नहीं पढ़ते हैं। उसे बच्चों की उम्र, कक्षा और सलेबस से कोई मतलब नहीं था। उसने टोनू मोनू की टयूशन भी लगा दी। ट्यूशन वाली ने अब भी कहा कि वह डायरी में लिखा गया होम वर्क कराएगी। सरोजा ही ट्यूशन छोड़ने लेने भी जाती थी। उसने आराधना के सामने स्कूल वालों को कोसा। आराधना ने टोनू मोनू को बस्ते समेत घर बुलाया। उनसे जो पूछा, उन्हें सब आता था। फिर उसने सरोजा को डांटा और कहा कि इनकी पेरेंट टीचर मीटिंग में मैं जाया करुंगी। और वह हमेशा जाती थी। बच्चों की क्लासें बढ़ती गईं। पढ़ाई का खर्च भी बढ़ता गया। व्यापारियों ने रामकथा का आयोजन किया था। शाम को सरोजा कथा सुनने जाती थी। र्धमगुरु कथा के बीच बीच में कहानियां भी सुनाते थे। एक दिन सरोजा कथा से लौटी तो उसके चेहरे से खुशी टपक रही थी। आते ही उसने रेडियो बंद किया और परिवार से कहा कि मेरी बात ध्यान से सुनना। इतने में चांदनी ने सबके आगे खाना परोस दिया। सरोजा बोली,’’आज महात्मा जी ने बताया तीन तरह के पूत होते हैं, जो बेटा बाप द्वारा छोड़ी गई दौलत और धन को गवा देता है वो होता है कपूत, जो बाप का छोड़ा माल न बढ़ाता है और न घटाता है वह पूत कहलाता है और जो बेटा बाप के छोड़े जायदाद को बढ़ाता है उसे कहा जाता है सपूत। सुनते ही परशोतम ने खाना छोड़ कर मोनू टोनू को समझाया,’’जैसे हम हैं सपूत, तुम्हार दादा झुग्गी में मरे और तुम चार मंजिले पक्के मकान में जन्में। अगर हम ऐबदारी करते तो वो झुग्गी भी बिक जाती।’’ये सुनते ही सरोजा ने अपने सपूत को कलेजे से लगा लिया। टोनू मोनू ने दादी से पूछा,’’दादी एैबदारी क्या होती है?’’सरोजा ने समझाया,’’बीड़ी सिगरेट, तम्बाखू, गुटका, दारु और जुआ खेलना और तुम्हारे पापा को इनमें से कोई ऐैब नहीं है।’’ये सुनते ही चांदनी ने बहुत गर्व से पति की ओर देखा। इस समय चांदनी की नज़रें परशोतम को निहारते देख कर, सरोजा का दिल रो पड़ा। काश! परशोतम इस समय चांदनी के चेहरे के भाव देख पाता। सपूत की परिभाषा सबको समझ आ गई। चांदनी को सरोजा सपूत लगती थी और उसे सास जैसा बनना था। परशोतम के लिए तो उसका प्यार और भी बढ़ गया था। कारण अगर वह बदकार निकलता तो सास का कमाया सब बेकार हो जाता। अब सरोजा और चांदनी दोनों बहुत एनर्जिटिक रहतीं थीं। दोनो ने काम भी ज्यादा पकड़ लिया था। एक दिन सरोजा बच्चों को लाने में थोड़ा लेट हो गई। बदहवास सी स्कूल की ओर जा रही थी। मेनरोड पार कर रही थी। ट्रक से टकराई वहीं खत्म। ट्रकवाले की गलती तो नहीं थी पर मौत तो हुई थी। सरोजा के संस्कार के बाद मि.कुमार और आराधना के पति शर्मा जी परशोतम, चांदनी और टोनू मोनू को लेकर ट्रांसर्पोट के मालिक के पास गये। परशोतम की सफेद छड़ी, दो छोटे छोटे बच्चे और उसकी पत्नी देख कर वो दुखी हो गया। शर्मा जी ने चुप्पी तोड़ी बोले,’’ इसकी विधवा मां हम दोनों के यहां काम करती थी और ये इसकी और बच्चों की देखभाल करती है। उसकी कमाई से ही घर चलता था। आपका भी ट्रक कमाता था जो अब थाने में खड़ा है। ऐसा रास्ता निकालिए कि पैसे का और समय का नुकसान न हो, पैसा इन गरीबों के काम आए और इनकी भी दाल रोटी चल जाये। उचित मुआवजे पर केस निपटा कर वे दोनों उठे। क्रमशः
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Friday, 10 January 2020
मैं बंदनी पिया की, मैं संगनी हूं साजन की, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 12 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 12 Neelam Bhagi नीलम भागी
सरोजा टोनू मोनू की पढ़ाई के लिए बहुत फिक्रमंद रहती थी। उसने आज तक जहां भी पैसा खर्चा था उसके बदले में कुछ उसे मिला था। उसके अनुसार यहां वह ढेरो नोट देकर आती है। और बच्चे किताब भी नहीं पढ़ते हैं। उसे बच्चों की उम्र, कक्षा और सलेबस से कोई मतलब नहीं था। उसने टोनू मोनू की टयूशन भी लगा दी। ट्यूशन वाली ने अब भी कहा कि वह डायरी में लिखा गया होम वर्क कराएगी। सरोजा ही ट्यूशन छोड़ने लेने भी जाती थी। उसने आराधना के सामने स्कूल वालों को कोसा। आराधना ने टोनू मोनू को बस्ते समेत घर बुलाया। उनसे जो पूछा, उन्हें सब आता था। फिर उसने सरोजा को डांटा और कहा कि इनकी पेरेंट टीचर मीटिंग में मैं जाया करुंगी। और वह हमेशा जाती थी। बच्चों की क्लासें बढ़ती गईं। पढ़ाई का खर्च भी बढ़ता गया। व्यापारियों ने रामकथा का आयोजन किया था। शाम को सरोजा कथा सुनने जाती थी। र्धमगुरु कथा के बीच बीच में कहानियां भी सुनाते थे। एक दिन सरोजा कथा से लौटी तो उसके चेहरे से खुशी टपक रही थी। आते ही उसने रेडियो बंद किया और परिवार से कहा कि मेरी बात ध्यान से सुनना। इतने में चांदनी ने सबके आगे खाना परोस दिया। सरोजा बोली,’’आज महात्मा जी ने बताया तीन तरह के पूत होते हैं, जो बेटा बाप द्वारा छोड़ी गई दौलत और धन को गवा देता है वो होता है कपूत, जो बाप का छोड़ा माल न बढ़ाता है और न घटाता है वह पूत कहलाता है और जो बेटा बाप के छोड़े जायदाद को बढ़ाता है उसे कहा जाता है सपूत। सुनते ही परशोतम ने खाना छोड़ कर मोनू टोनू को समझाया,’’जैसे हम हैं सपूत, तुम्हार दादा झुग्गी में मरे और तुम चार मंजिले पक्के मकान में जन्में। अगर हम ऐबदारी करते तो वो झुग्गी भी बिक जाती।’’ये सुनते ही सरोजा ने अपने सपूत को कलेजे से लगा लिया। टोनू मोनू ने दादी से पूछा,’’दादी एैबदारी क्या होती है?’’सरोजा ने समझाया,’’बीड़ी सिगरेट, तम्बाखू, गुटका, दारु और जुआ खेलना और तुम्हारे पापा को इनमें से कोई ऐैब नहीं है।’’ये सुनते ही चांदनी ने बहुत गर्व से पति की ओर देखा। इस समय चांदनी की नज़रें परशोतम को निहारते देख कर, सरोजा का दिल रो पड़ा। काश! परशोतम इस समय चांदनी के चेहरे के भाव देख पाता। सपूत की परिभाषा सबको समझ आ गई। चांदनी को सरोजा सपूत लगती थी और उसे सास जैसा बनना था। परशोतम के लिए तो उसका प्यार और भी बढ़ गया था। कारण अगर वह बदकार निकलता तो सास का कमाया सब बेकार हो जाता। अब सरोजा और चांदनी दोनों बहुत एनर्जिटिक रहतीं थीं। दोनो ने काम भी ज्यादा पकड़ लिया था। एक दिन सरोजा बच्चों को लाने में थोड़ा लेट हो गई। बदहवास सी स्कूल की ओर जा रही थी। मेनरोड पार कर रही थी। ट्रक से टकराई वहीं खत्म। ट्रकवाले की गलती तो नहीं थी पर मौत तो हुई थी। सरोजा के संस्कार के बाद मि.कुमार और आराधना के पति शर्मा जी परशोतम, चांदनी और टोनू मोनू को लेकर ट्रांसर्पोट के मालिक के पास गये। परशोतम की सफेद छड़ी, दो छोटे छोटे बच्चे और उसकी पत्नी देख कर वो दुखी हो गया। शर्मा जी ने चुप्पी तोड़ी बोले,’’ इसकी विधवा मां हम दोनों के यहां काम करती थी और ये इसकी और बच्चों की देखभाल करती है। उसकी कमाई से ही घर चलता था। आपका भी ट्रक कमाता था जो अब थाने में खड़ा है। ऐसा रास्ता निकालिए कि पैसे का और समय का नुकसान न हो, पैसा इन गरीबों के काम आए और इनकी भी दाल रोटी चल जाये। उचित मुआवजे पर केस निपटा कर वे दोनों उठे। क्रमशः
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