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Saturday 25 January 2020

पूछो न मौहब्बत का असर, हाय न पूछो। हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 20 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 20 Neelam Bhagi नीलम भागी

             काने की हरकत से चांदनी बहुत परेशान हो गई। परेशानी उसके चेहरे से टपक रही थी। कुमार उस पर बहुत ध्यान देता था इसलिए वह उसे कैसे परेशान देख सकता था भला! उसने चांदनी से परेशानी का कारण पूछा, तो उसने सारा किस्सा सुना दिया। सुन कर कुमार सोच में पड़ गये। शाम को जब वे पार्क में गये तो कुछ लड़के लड़कियां पार्टी कर रहे थे। उन्होंने कुमार को भी पार्टी में शामिल होने को बुलाया। कुमार ने कहा कि आप लोग एंजॉय करो। पार्टी के बाद में मुझे कुछ देर आप लोगों से बात करनी है। जाने से पहले फोन कर लेना, मैं आ जाउंगा और चल दिए। इधर वे ताश खेलने वाले बुर्जुगों के पास गये। उन्हें जीवन की उपयोगिता पर, विद्यादान पर लेक्चर दिया। अब लेक्चरर रहे थे, तो पैंतालीस मिनट से पहले कैसे चुप करते भला! फिर उन्होंने जाकर पार्टी वालों को समझाया कि सबसे पहले तुम्हारा समय है तुम्हारे लिए, उसका सदुपयोग करो। लेकिन थोड़ा समय जो मनोरंजन में खर्च करते हो, आपस में तय करके एक दिन में एक व्यक्ति आकर, यहां पढ़ने वाले गरीब बच्चों को कुछ न कुछ सिखाये। देखना तुम्हें कितना अच्छा लगेगा! तुम्हारा तो पंद्रह दिन में नम्बर आयेगा पर ये बच्चे तुम्हें कभी नहीं भूलेंगे क्योंकि ये अनपढ़ों के बच्चे हैं। इनकी स्कूल की परेशानी, इनके मां बाप नहीं समझेंगे। जो आप से न सुलझे, मुझे बताना मैं दूर करुंगा।
                उनके लेक्चर का ये असर हुआ कि अगले दिन से बुर्जुग पार्क में सोसाइटी में काम करने वाली बाइयों, धोबियों और सीक्योरिटी वालों के बच्चों को पढ़ाने लगे। ये पढ़ाई सिर्फ दो घण्टे ही चलती थी। सबसे ज्यादा ध्यान टोनू मोनू का रक्खा जाता था। कुमार को सोसाइटी के बहुत काम रहते थे। लेकिन वे टैस्ट हमेशा मोनू टोनू का ही लेते थे। जो भी उन्हें सिखाना चाहते थें, वे युवा जो आता था, उससे सिखवा देते थे। अपने हम उम्र साथियों को तो नहीं टोक सकते थे कि मोनू टोनू वैसे परिणाम दें, जैसा वे चाहते हैं। बच्चों का टाइम मैनेज़मैंट भी कुमार ने कर दिया था। दोपहर को स्कूल से आते ही चादंनी उन्हें सुला देती थी। तीन से पांच पार्क की क्लास में आते। अब चांदनी डिनर बनाने लगी थी। इतनी देर टोनू मोनू पार्क में खेल लेते थे। और चांदनी के साथ ही घर वापिस आते थे। वे अपने मौहल्ले से बिल्कुल अलग हो गये थे। दोनों बच्चे पढ़ने में बहुत लायक हो गये। नये सैशन में बच्चों का एडमिशन सरकारी रैजिडैंशियल स्कूल में हो गया। चांदनी हमेशा टोनू मोनू से कुमार के पैर छुआती थी। वे उन्हें बाउजी कहते थे। परीक्षा परीणाम सुनकर बच्चों ने बाउजी के चरणों में सिर ही रख दिया। कुमार ने उन्हें उठाकर अपने सीने के  साथ लगा कर आर्शीवाद दिया। अब बच्चों की जाने की तैयारी की जाने लगी। उन्हें क्या क्या चाहिए सब लिस्ट कुमार बनाते थे। चांदनी का घर तो था ही मार्किट में वह सब खरीद लाती। लेकिन बच्चों के कपड़े कुमार अपनी पसंद के खरीद कर लाए। आराधना बच्चों के एडमिशन से बहुत खुश थी। शर्मा जी ने दोनो बच्चों की एक साल के लिए पॉकिटमनी लगा दी। शर्त ये रक्खी कि पैसे कहां खर्चे, इसका लिखित हिसाब देना होगा। अगले साल की पॉकिटमनी रिजल्ट देख कर लगेगी। आराधना ने पति से पूछा,’’ये बच्चों की जान को हिसाब लिखने का क्यों बखेड़ा डाल दिया?’’शर्मा ने जबाब दिया,’’ताकि ये फिजूलखर्ची न करें।’’बच्चों के जाने तक चांदनी अपनी उदासी छिपाकर उन्हें नित नये पकवान खिलाती थी। आखिर उनके जाने का दिन आ गया। ये समस्या भी शर्मा जी ने हल कर दी। उन्होंने कुमार से कहाकि पहली बार जाना है, सामान भी ज्यादा है। चांदनी अनपढ़ है बच्चों के साथ नई जगह में कहां बेचारी भटकेगी। आप ही छोड़ आइये न।  मन ही मन खुश होते हुए कुमार बोले,’’ आप कहते हैं तो मैं ही छोड़ आता हूं।’’ क्रमशः       

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