अगले दिन जाकर चांदनी ने कुमार से कहा कि एक महीने के लिए नई को अजमाने से अच्छा है, मैं ही नौ से छ तक रुक जाउंगी। यह सुनते ही मीनू के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वो बोली,’’इसे दो पगार देना। जो ये काम कर रही है उसके साथ दिन भर रुकने की जो दूसरी को देनी थी, पगार मिला कर देना। ये सुनकर कुमार के चेहरे पर संतोष आ गया कि चलो मीनू में कुछ बदलाव तो आया। शायद समझ गई कि जिनके लिए कोठी बनाई, वे मेहमानों की तरह देखने आए और अब छुट्टी मनाने आते हैं। चांदनी सुबह आठ बजे आराधना का नाश्ता बना देती और छ बजे के बाद उनका डिनर तैयार करती। बाकि काम उसने संतोषी को दे दिए। संतोषी की बेटी चांदनी के घर का भी ध्यान रख लेती थी। कुमार मीनू का बहुत ध्यान रखते। कुमार शर्माजी से कहते कि बुढ़ापे में मीनू को जीवन जीने की कला आई, साथ ही गिनती के दिन इसकी जिन्दगी में बचे हैं। दो महीने बाद डाक्टर की सलाह से उसे घुमाने ले जाने लगे क्योंकि कोठी शानदार बने इसलिए मीनू एल टी सी को भी कैश करवा लेती थी। अब खुशी से जाती है। ग्यारह महीने उसे घुमाते फिराते रहे। अचानक फिर मीनू के दर्द उठा। सरकारी नौकरी थी इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ी। मीनू ने ही कहा कि वह घर में ही रहना चाहती है। उबली लौकी तोरी पर चल रही थी फिर खाली ग्लूकोज पानी, फिर डिप चढ़ती रहती थी। उनकी मौत तक चार महीने चांदनी सुबह से शाम तक उनके घर में रहती थी। एक दिन कुमार को रोता छोड़ वह संसार से चली गई। मीनू के जाने के बाद सब कुछ पहले जैसा हो गया। बेटों ने कहा,’’पापा हमारे पास आकर रहो। कुमार ने उन्हें जवाब दिया,’’यहां से मीनू गई है, चाहता हूं मैं भी यहां से ही जाउं, आगे भगवान की मर्जी। उन्होंने बहुओं को कहा कि मीनू का जो भी सामान है आप लोग लेना चाहो तो ले लो। जेवर तो लॉकर में था। मीनू की डैड बॉडी को नहलाते समय जो उसके शरीर पर सोना था उसे दोनों ने सास की निशानी समझ कर श्रद्धा से रख लिया था। दोनों बहुओं ने अलमारियां अच्छी तरह टटोल कर सिल्क, शिफॉन की साड़ियां और कीमती शॉलें ले लीं और कहा,’’हम साड़ियां कम पहनती है।’’ और ससुर के पैर छूकर चलीं गईं। बाकि सब सामान कुमार ने चांदनी को दे दिया। मीनू का मोबाइल चलाना सिखा कर वह भी उसे दे दिया। सब अपनी अपनी दुनिया में मस्त हो गए। चांदनी के जिम्मे ही पूरा घर था। जिस चीज की जरुरत होती, वह मोबाइल पर बता देती। कुमार छुट्टी के दिन बनता हुआ ताज़ा खाना खाते थे। बाकि दिन चांदनी इतना बना जाती कि उनका रात का भी काम हो जाता था। उनके लिए फल काट कर फ्रिज में रख जाती। खाली समय वे सोसायटी के ऑफिस में बैठ कर समाजसेवा करते थे। मीनू की मौत के बाद पहली दीवाली आई। उनके यहां रिवाज़ था कि मौत वाले घर में एक साल तक शोक रहता है। बहू के मायके वाले आते हैं, त्यौहार मनाने की रस्म पूरी कर, चुपचाप बैठ कर चले जाते हैं। बहुओं के मायके वाले आये मिठाई रख कर रस्म पूरी कर चले गये। मेहमानों के आने के कारण दीवाली के दिन भी चांदनी काम करने आई। उनके जाते ही कुमार ने वैसे ही सब मिठाई चांदनी को देदी। आराधना भी त्यौहारी दे गई। कुमार भी रिटायर हो गए थे। सब लोग त्यौहार में व्यस्त थे। कुमार तन्हाई के साथ घर में समय काट रहे थे। क्रमशः
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