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Thursday, 30 April 2020

चोर के साथी कैसे होंगे!!.....मथुरा जी की यात्रा Mathra Yatra 4 Makhanchor Ke Sathi Kaise Honge Neelam Bhagi नीलम भागी


  
       हमें जब उसने हमें इ रिक्शा से उतारा तो मैं चारों ओर देख कर बोली,’’भइया यहां तो मंदिर दिखाई नहीं दे रहा है।’’ उसने जवाब दिया,’’ आगे पुलिस नहीं जाने देती, वो देखो पुलिस बैठी है। मैटल डिटैक्टर से जाओ, थोड़ी दूर पर मंदिर दिख जायेगा।’’अब पैदल चलते हुए वो हिसाब किताबी महिला बोली,’’ये रिक्शावाला शरीफ़ था, पहले वाला तो डाकू था, उसने तो हमें लूट लिया।’’ बदले में मैंने उसे एक यात्रा वृतांत्र सुनाया’,’’दक्षिण भारत और मुंबई आदि जानेवाली रेलगाड़ियां मथुरा होकर जाती हैं। एक बार रेल यात्रा के दौरान, मेरे साथ डॉ. शोभा भारद्वाज थी। कुछ महिलाएं बहुत चहकती हुई मथुरा वृंदावन जा रहीं थीं। डॉ शोभा को नसीहत देने का भूत सवार हो गया। वह उन महिलाओं से बोली,’’ यहां के पंडे बहुत लूटते हैं। चार चार कदम पे कोई न कोई मंदिर दिखा कर कहेंगे कि यहां राधा रानी के पैर पड़े थे, पैसे चढ़ाओ। यहां कन्हैया ने बंसी बजाई थी। माथा टेको। पैसा चढ़ाओ फिर....’’ उनमें से एक महिला ने बीच में टोक कर कहा,’’बहन जी, उस चोर, माखन चोर के साथी कैसे होंगे!! गिरहकट न। हम तो वहां लुटने ही जा रहें हैं।’’ एक ने जयकारा लगाया,’’बोलो माखन चोर कन्हैया की।’’सब ने बोला,’’जय।’’उनके चेहरे से टपकते भक्तिभाव के आगे सब नसीहतें फेल थीं। डॉ0 शोभा ने चुप ही रहना मुनासिब समझा। तभी सामने एक आदमी ने घिया मण्डी के लिए रिक्शावाले से भाड़ा पूछा। रिक्शावाले ने सौ रुपया बताया। सवारी बोली,’’इत्ते!! चौं रे मौकू परदेशी समझ रउ है। अबे लाला मैं जंईं का हूं। ठीक पइसा मांग।’’(इतने! क्यों रे, मुझको परदेसी समझा! मैं यहीं का हूं।) लोकल भाषा सुनते ही रिक्शावाला बोला,’’जो ठीक समझैं दें।’’ मैंने कहा,’’इसी तरह निजामुद्दीन स्टेशन दिल्ली से मेरे घर का मीटर से ऑटो का किराया 120 रुपये है। पर हाथ में लगेज़ देखते ही बाहर की सवारी समझ कर ऑटोवाला 500रु0 मांगता है। मीटर से जाने को राजी नहीं होता। बाद मे 200रु0 में लोकल होने के कारण ले आता है। ये किस्से देख सुन कर अब वो यात्रा एंजॉय करने लगी।
     यहां खूब चौड़ी सड़क पर वाहन मना है। एक मजीरेवाला आया, बोला,’’तीन जोड़ी मजीरे बचे हैं। आप ले लो। 150 रु के तीनों दे दूंगा।’’ मैंने क्या करने थे? नहीं लेने थे, इसलिए पीछा छुड़ाने के लिए कहा,’’50रु के तीनों दे दो।’’ उसने दे दिए। मैंने गले में लटका लिए। एक राधे राधे का ठप्पा लगाने आया। उसने शायद मजीरे लटके देख कर मेरे चेहरे पर जहां जहां जगह दिखी, राधे राधे के ठप्पे लगा दिए। मैंने उसे दस रुपये दिए, सबने ठप्पे लगाने के रुपये दिए। मंदिर में सिक्योरिटी जांच बहुत सख्त थी। मंदिर में पर्स, बैग, मोबाइल आदि नहीं ले जा सकते थे। पैसे मेरे कुर्ते की जेब में थे। मैं प्रवेश की लाइन में लग गई। बाकि सामान जमा करवाने की लाइन में लग गईं। मैं अपना पर्स लेकर नहीं गई थी। मोबाइल पर्स में रखवा दिया। यहां बंदर खूब थे। प्रवेश की लाइन में मेरे आगे चार महिलाएं खड़ीं थीं। जिनमें से एक मथुरावासी थी। वह साथ की तीन अपनी मेहमान महिलाओं को मथुरा की विशेषताएं बता रही थी मसलन मथुरा तीन लोक से न्यारी, मथुरा की जाई, मथुरा में ब्याही। तीनों में से एक महिला बोली,’’मोबाइल के बिना फोटो कैसे खींचेंगे।’’ मथुरावासिनी ने समझाया कि ये तो अच्छा है मोबाइल जमा करवा लेते हैं। नही ंतो बंदर छीन कर ले जाते हैं। तुम्हारे सामने बैठ कर तुम्हें चिड़ायेंगे। उसे जमीन पर घिसेंगे। कुछ खाने को दो तो उसे छोड़गे। क्रमशः

Wednesday, 29 April 2020

द्वारकाधीश सब देख रहें हैं! मथुरा जी की यात्राMathura Yatra भाग 3 Dwarkadhish Sab Dekh Rahe hein Neelam Bhagi नीलम भागी

      
अब ई रिक्शा के कारण घूमना बहुत आसान हो गया है। शेयररिंग आटो में तो सवारियां बाहर तक लटक रही होती हैं। लेकिन ई रिक्शा में पांच सवारियां ही बैठ सकती हैं। पतली पतली गलियों में आराम से चलती है। बस से उतरते ही मैंने एक ई रिक्शाचालक से कहा कि द्वारकाधीश मंदिर के कितने रुपये लोगे? वह बोला,’’सौ रुपये।’’ हम झट से बैठ गये। एक महिला की सहेली उसमें बैठी तो छठी महिला भी उसमें ठूस गई। हम ये सोच कर जल्दी बैठ गये कि ज्यादा से ज्यादा जगह घूम कर बस पर पहुंच जायेंगे। हमारी रिक्शा तुरंत चल प़ड़़ी। बाकि रिक्शा वाले आवाज़ लगा रहे थे ’’द्वारकाधीश मंदिर दस रुपये सवारी।’’साथ की सवारियों ने भी सुना। हममंे से एक महिला रिक्शावाले से पूरे रास्ते लड़ती जा रही कि उसने हमें लूट लिया है। वो कलप कलप के ब्रज भाषा में समझा रहा था कि तुमने रिक्शा का भाव किया था, सवारी का रेट नहीं पूछा था और छ जनी चढ़ी हो। ’तुम रिच्छा में लदी, जबी तो हमौं चलाए।’ अगर हमें पुलिस वाला ज्यादा सवारी के चक्कर में पकड़ लेयौ तो चालान तो हमौं भरना पढ़ैगो।’’ फिर वो यह कह कर चुप हो गई कि द्वारकाधीश सब देख रहें हैं। कुछ हमारे साथी पैदल भी जा रहे थे। अब उस महिला को टंेशन हो गई कि सौ रुपये का हिसाब छ महिलाओं में कैसे होगा?
 पुरानी पतली गली जिसके दोनो ओर दुकाने थीं। ज्यादातर महिलाओं के श्रृंगार, चूड़ियों की और  धातु के बने लड़डू गोपाल और उनके श्रृंगार और पोशाक की दुकाने थी। चांदी के सामान की खूब दुकाने थीं। मेरी इस यात्रा में पहले की गई तीन दिन मथुरा वुृंदावन गोवर्धन में रुकना और गिरिराज परिक्रमा मेरी स्मृति में साथ साथ चल रही थीं। उस समय हमने खाना, दर्शन और पैदल घूमना ही किया था। तब हमने दो जगह से पेड़े हनुमान टीले के पास ब्रजवासी से और गोंसाईं पेड़े वाले से लिए थे। लस्सी और पेड़े तो यहां के मशहूर हैं। लस्सी में मलाई डाल के देते हैं। मथुरा में पेड़ों का स्वाद और रंग सब जगह एक सा है, फर्क है तो सिर्फ चीनी की मात्रा का। मैं बताती जा रही थी कि ये बिना सजावट की खाने पीने की दुकानें हैं लेकिन इनके व्यंजनों का स्वाद लाजवाब है। द्वारकाधीश के मंदिर के आगे श्रद्धालुओं की चप्पलों के ढेर लगे थे। इतनी भीड़ की चप्पलों के लिए जगह की तंगी के कारण जूताघर नहीं बन सकता है। एक व्यक्ति वहां बैठा ध्यान रख रहा था। हमारे पहुंचते ही दर्शन का समय हो गया। भीड़ बहुत थी पर हमें अच्छे से दर्शन हो गये। मैं साथिनों के इंतजार में बाहर आकर खड़ी हो गई। यहां मैं हर प्रांत केे देशवासियों को देख रही थी और वे द्वारकाधीश के दर्शन करने आये थे। एक बार मैं सुबह यहां आई, दूर से पुलिसवालों को मंदिर के पास देखा। मेरे दिमाग में तुरंत प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि यहां क्या हो गया है? आस पास की दुकाने वैसे ही चल रहीं थीं। मैंने हलवाई से पूछा कि यहां पुलिस क्यों है? उसने जवाब दिया कि ये ड़यूटी से पहले दर्शन करने आयें हैं। मैंने कचौड़ी, दही, ंआलू की सब्ब्जी़(इसे यहां आलू का झोल भी कहते हैं ) खस्ता कचौड़ी और साथ में छोटी छोटी पतली पतली जलेबियों का नाश्ता किया था। वो स्वाद मैं आज तक नहीं भूली हूं। शायद वहां घर पर नाश्ता नहीं बनता था। साइड की गलियों के घरों से लोग आते और दोना बनवा कर ले जाते। न ही यहां बैठ कर खाने की जगह है। तब तक साथिने आ गईं। सब ने अपनी चप्पलें पहन ली तो एक ई रिक्शा ने सवारियां उतारीं। हमने उससे पूछा,’’कृष्ण जन्मभूमि कै रुपये सवारी?’’वो बोला,’’दस रुपया सवारी।’’ हम छओं फिर उस पर लद गई। ये ज्यादा दूर नहीं था पर जाते समय रिक्शावाले से लड़ते जा रहे थे न, तो छ सवारियों के साथ दिक्कत का पता नहीं चला। अब शांति से जा रहे थे तो एक फालतू सवारी से सबको परेशानी लग रही थी।




Tuesday, 28 April 2020

खूबसूरत रास्ते की मनोरंजक बातें! मथुरा जी की ओर Mathura Yatra भाग 2 नीलम भागी Khusurat Raste Ke Manoranjak batein Neelam Bhagi



छोटे लाल ने मेरे आगे पेड़ों का लिफाफा किया और खाने का आग्रह किया। मैंने एक पेड़ा लिया। खाते ही मैंने उसे कहा कि ये पेड़ा दिल्ली नौएडा का  तो नहीं हैं। उसने पूछा,’’आपको कैसे पता?’’ मैंने कहा कि गाय पालती थी न, जब दूध बहुत बच जाता तो चूलेह की आग पर खोया बना लेतीे थी। जो महक उस मावे से आती थी, वही इस पेड़े में है। उसने और लेने को कहा, मैंने मना कर दिया क्योंकि मथुरा जा रही थी। वहां की दूध की मिठाइयों का तो कोई जवाब ही नहीं है। इतने में सरसराती हुई बाइक निकलीं। मैंने रमेश से कहा,’’ये लड़के कितनी स्पीड से चला रहें थे!! अब दूर तक दिख भी नहीं रहें हैं।’’रमेश ने मेरा ज्ञान बढ़ाया कि ये रेस वाली बाइक है। इसमें शर्त लगती है इसलिए ये तेज से तेज चलाते हैं। आंखे तो मेरी बाहर गड़ी हुई थीं।
मेरे और रमेश की सीट के बीच में नीचे छोटे लाल आकर बैठ गया। उसने एक छोटी सी प्याज(उन दिनों प्याज का 100 रु किलो से ज्यादा का रेट था ) और चार हरी मिर्च को बारीक काटा फिर भीगे काले चने का डिब्बा खोला। उसमें नमक, प्याज और हरी मिर्च को मिलाया। पहले मेरे आगे डिब्बा किया, मैंने हाथ से लेकर मुंह में डाला, स्वाद बहुत अच्छा था। मैंने कहा कि मैं नाश्ता करके आई हूं, आप लोग खाइए। हाथों से रमेश ड्राइविंग और चने खा रहे थे और छोटे लाल खाते हुए बतिया रहे थे। मैं भी सुन रही थी। बीच बीच में गर्दन घूमा कर मैं पीछे चलने वाली गतिविधियां देख लेती थी। बस में सुरेश अग्रवाल जी ज्ञान चर्चा कर रहे थे। सब सुन रहे थे। फिर भजन और कबीर के दोहे गाये गये। इतने में पीछे से आवाज आई,’’ भइया कहीं टायलेट आये तो रोकना।’’ थोड़ी थोड़ी देर में पीछे से कुछ न कुछ खाने को आता रहता था। एक फूड र्कोट पर जाकर बस रुकी। सब उतर कर टॉयलेट की ओर दौड़े। फ़ारिग होने पर आस पास  घूमने लगे। वहां लाइन से टूरिस्ट बसें खड़ीं थीं। ज्यादातर आगरा, मथुरा, वृंदावन और जयपुर जाने वाले थे। महिला साा टॉयलेट  में ज्यादातर महिलाएं मेकअप धोकर फिर से मेकअप कर रहीं थीं। वहां की महिला कर्मचारी टायलेट साफ करने से ज्यादा मेकअप करने वाली महिलाओं पर ध्यान दे रही थी। कोई नई चीज को चेहरे पर इस्तेमाल होते देखकर पूछती,’’इसको मुंह पर लगाने से क्या होता है?’’ख़ैर मैं तो सवाल जवाब सुनने के लिए रुकी नहीं। बस में बैठी कुछ महिलाएं में अब चर्चा थी कि पहले वृंदावन बांके बिहारी के दर्शन करने जाया जाए या मथुरा। मैं तो जब पहली बार गई थी तो तीन दिन तक रुकी था। क्योंकि बारह से चार सभी मंदिर बंद रहते हैं। कान्हा आराम करते हैं। ये भूमि उनके बाल्यकाल और किशोरावस्था की है। आज तक उनका टाइम टेबल वैसा ही बना है। धार्मिक पर्यटन स्थल है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति का केन्द्र है। धर्म ,दर्शन, कला और साहित्य में इसका योगदान है। पहले हम सेवा भारती के कार्यक्रम में गये। ये स्थल शहर थोडा़ दूर था। हजारों की संख्या में वहां सेवक थे। तीन बजे हम वहां से  द्वारकाधीश के दर्शन के लिए चल पड़े। ब्रजभूमि में मुझे कहीं पढ़ी हुई ये लाइने याद आ गई
 सकल भूमि गोपाल की, जा में अटक कहां
 जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा
   यानि सारी दुनिया गोपाल की है। जिसके मन में संशय है, वही परेशान है। लौटते में हम दूर दूर तक मल्टीस्टोरी, मॉल्स वाली मथुरा से परिचित हो रहे थे, अब मंदिरों और यमुना जी के घाटों वाली मथुरा जी में आये। यहां भांग के ठेके भी दिखे पर ज्यादा भीड़ सरकारी भांग के ठेके पर दिखी। भीड़ और पतली सड़कों के कारण जाम लगने के डर से बस हमने छोड़ दी।




Monday, 27 April 2020

म्ंजिल से ख़ूबसूरत रास्ता!! मथुरा जी की ओर Manjil Se Khubsurat Rasta Mathura ji ki ore Part 1 नीलम भागी



कई बार मथुरा वृंदावन की यात्रा के बारे में लिखने लगती, तभी नई यात्रा का कार्यक्रम बन जाता। यहां के बारे में अपने पर यकीन है कि कुछ भी नहीं भूलूंगी इसलिए इसे तो कभी भी लिख सकती हूं। बाकि जगह तो पहली बार गई हूं फिर जाने का मौका नहीं मिलेगा। इसलिए लौटते ही लिखने बैठ जाती हूं। अनिता सिंह का फोन आया कि मथुरा में सेवा भारती का प्रोग्राम है। 300 रु में 25 नवम्बर को सुबह जाना है, रात को वापिस आना है। स्कूल मेरे घर के पास है इसलिए स्कूल बस मेरेे घर के पास से ही जा रही थी और रात को वहीं उतारेगी। ये सोच कर मैंने तुरंत हां कर दी कि ब्रज भूमि की मेरी यादों का रिविजन भी हो जायेगा और इस बार मैं इस यात्रा को जरुर लिखूंगी। हम सुबह पांच बजे बस में बैठ गईं। नौएडा के कुछ प्वाइंटस पर और साथियों को लेना था। उन्हें लेने में  हर जगह खूब देर लगी। 9.30 बजे हम नौएडा से निकले। मुझे ग्रुप मे जाना बहुत पसंद है। इसलिए मैं देरी को भी एंजॉय कर रही थी। जो भी आता वो बिना पूछे देरी का कारण बताता। उसे सुनती। हां अगर मथुरा जी पहली बार जाती तो शायद देरी के कारण गुस्सा आता। अनिता सिंह गर्मागर्म चाय और खाने का न जाने क्या क्या सामान लाईं थी। चाय ज्यादा पीती हूं इसलिये अपने घर में फीकी पीती हूं। बाहर जैसी मिल जाये वैसी ही पी लेती हूं,। सुबह समय से पहुचने के कारण चाय भी ढंग से नहीं पी थी। परांठे तो खा लिए थे। अनिता जी ने चाय दी मजा़ आ गया। रमेश ड्राइविंग कर रहे थे। आगे की सिंगल सीट जो छोटे लाल की थी, उस पर मैं बैठ गई। जल्दी में डायरी लाना भूल गई थी। रमेश ने कहीं से फाड़ कर दो पेज भी दे दिए। कई बार मथुरा वृंदावन गई हूं पर फिर भी शहर से परिचय करने से मन नहीं भरता। हर बार कुछ नया सा ही लगता है। बस तेजी से आगे बढ़ रही थी लेकिन मेरी याद पीछे चल रही थी। कुछ साल पहले हम लोग गाड़ियों से गये थे। तब के रास्ते और आज के रास्ते में बहुत र्फक आ गया है। तब एक गाड़ी रुकती तो सभी गाड़ियां रुक जातीं। रास्तें में पड़ने वाले ढाबे न जाने कंहा लुप्त हो गये हैं। जहां चाय में धुएं की महक वाले दूध का स्वाद आता था। कहीं ताजे़ अमरुदों से लदा ठेला देखकर, गाड़ी रोक कर अमरुद खरीदते, जिसमें अमरुद वाला चार चीरे लगाकर, उसमें मसाला लगा कर देता। फिर बुर्जुगों का अमरुद के फायदों पर व्याख्यान शुरु हो जाता। व्याख्यान का निष्कर्ष ये निकलता की अमरुद खाने से कब्ज नहीं होती है। और कब्ज सब बिमारियों की जड़ है। इस रफ्तार से हमें पूरा यकीन था कि हमें पहुंचने में शाम होे जायेगी क्योंकि उस ग्रुप में ज्यादातर सीनीयर सीटीजन थे। कहीं भी गाड़ियां रुकवा कर लघुशंका (सू सु )  के लिए चले जाते। थोड़ी चहलकदमी करते। हम बुलाते तब गाड़ी में बैठते थे। और उनकी हरकतों से आनन फानन में भजन मैं भजन बनाने लगती मसलन,’’कैसे आऊं मैं कन्हैया तेरी ब्रज नगरी....। लेकिन आज बस यमुना एक्सप्रेस वे पर दौड़ रही थी। खूबसूरत रास्ता बढ़िया सड़कें। क्रमशः   

Saturday, 11 April 2020

मच्छर भगाने वाले पौधे और लॉकडाउन में पौदीना नीलम भागी Macher Bhaganewale Paudhe Aur Lockdown mein Poudina Neelam Bhagi

अमर उजाला में प्रकाशित

कुछ पौधे जो आसानी से लगाये जा सकते हैं हमें पसंद हैं लेकिन वो मच्छरों को नहीं पसंद है। नापसंदगी का कारण है इनकी गंध। मुम्बई में मैने खिड़की पर लैमनग्रास, पौदीना, तुलसी के गमले रक्खे थे। जगह कम थी इसलिये। पर रक्खे तो थे न। आप भी रखिए और कुछ देर अपने लगाये पौधों से जरुर मिलिए। ये पौधे हैं तुलसी, लैमन ग्रास, लहसून, पौदीना और गेंदा इन्हें आप आसानी से लगा सकते हैं क्योंकि मैंने भी लगाए हैं। लेवेन्डर और रोज़ मैरी इनसे भी मच्छर भागते हैं। पौदीना लगाना मैंने अपने ब्लॉग में चित्रों सहित लिखा है। https://neelambhagi.blogspot.com/2018/04/blog-post.html







लिंक पर क्लिक करके आप भी लगा सकते हैं। कोरोना के कारण घर पर ही रहने से मैंने खूब कंटेनर में पौदीना लगाया है। जो भी बेकार घर मे पॉट दिखा, उसमें पौदीना लगा दिया। उनको देखना, पानी देना और फैलाव करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। ताजे पौदीने की महक मुझे बहुत अच्छी लगती है। जब जरुरत होती है तोड़ लेती हूं। आप भी लगायें। बाकि पौधे भी  मैंने कैसे लगायें हैं। उनकी अच्छी ग्रोथ होने पर लिखूंगी।किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, या गोबर की खाद, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो।

Friday, 10 April 2020

भोपला यानि कद्दू लॉकडाउन में नीलम भागी Bhopala Yani Kaddu Neelam Bhagi


आज सब्जी़ के ठेले पर कच्चा हरा डेढ़ कद्दू था। कटा हुआ मैं लेती नहीं हूं। साबुत थोड़ा बड़ा था। मैंने साबुत ले लिया। लॉकडाउन का समय है। खाने का एक कण भी बेकार करना नैतिकता के विरुद्ध है।  परिवार को लगातार कदृदू भी नहीं खिलाना चाहिए। मैंने कद्दू को अच्छे से धोया। पहले मैं इसके छिलके और गुद्दा बीज कम्पाोस्ट पिट में डाल देती थी। आज मैंने उसे अच्छी तरह धोकर, छिलके सहित सब कुछ कुछ बारीक बारीक काटा। प्रेशर कूकर में स्वादानुसार नमक अच्छी तरह मिलाकर गैस पर रख दिया। दस मिनट बाद गैस जला दी। अच्छी तरह प्रेशर बनने पर आंच बिल्कुल कम कर दी। पाँच मिनट के बाद गैस बंद कर दी। प्रेशर अपने आप खत्म होने पर कुकर खोला। मैश करने के लिए अच्छी तरह उसमें कलछी चलाई।
  अब मैंने कढ़ाई को गैस पर रक्खा। गैस जलाई। जितनी मेरे घर में सब्जी खाई जाती है। उतना उबला हुआ कद्दू, मैंने अलग निकाल लिया। अब उसी के अनुपात में मैंने कढ़ाई में तेल डाला। तेल हल्का गर्म होते ही आंच कम करके उसमें जरा सा मेथी दाना डाला। मेथी ब्राउन होने लगी तो जीरा डाला, जीरा भुनते ही उसमें हल्दी मिर्च पाउडर डाल कर, घ्यान रक्खा जले न, तुरंत मैश कद्दू डाल कर उसमें सौंफ, धनिया पाउडर, अमचूर और थोड़ा सा गुड़ मिला कर, अब आंच थोड़ा बढ़ा अच्छी तरह मिलाती रही। जरा सा चखा। नमकीन, खट्टे मीठे का अच्छा मेल हो गया। थोड़ा सूखा होने पर गैस बंद कर दी। और इसमें बहुत बारीक कटी हरी मिर्च और हरा धनिया डाल दी। अब ये तीखा भी हो गया। खाते समय सब ने तारीफ़ की। किसी ने नहीं कहा कि छिलके बीज क्यों डाले? कद्दू भी तो ताजा़ हरा मुलायम था। बाकि मैश कद्दू को मैंने तुरंत फ्रिज में रख दिया।
साउथ इण्डियन कद्दृ का रायता
डिनर में  दहीं फेंटा, उसमें थोड़ा सा मैश कद्दू फ्रिज से निकाल कर मिलाया। इसमें तो नमक था। दहीं की मात्रा के हिसाब से काला नमक मिलाया। करी पत्ता, सरसों और कैंची से काटी लाल मिर्च का तड़का, अपनी पसंद के घी तेल का लगा लिया। थोड़ी सी हींग भी डाल सकते हैं। परांठे के साथ ये रायता सबकी पसंद बन गया।
भोपला का परांठा और नार्थ इण्डियन रायता
अगले दिन मैंने नाश्ते में दहीं फेंटा, उसमें थोड़ा सा मैश कद्दू फ्रिज से निकाल कर मिलाया। इसमें तो नमक था। दहीं की मात्रा के हिसाब से काला नमक मिलाया। गमले से पौदीना और हरी मिर्च तोड़ी, धोई और बारीक बारीक काट कर इसमें मिला दी। पसंद के घी या तेल से इसमें हींग जीरे का तड़का डाला।
 अब बचे हुए मैश कद्दू में सौंफ और धनिया पाउडर मिला कर, इसमें आटा मिलाते हुए गूंधती रही। पानी नहीं डाला। जब रोटी बेलने लायक हो गया तो परांठे बना लिये। नमक नहीं डालना। नमक तो मैश कद्दू में है ही।   




Thursday, 9 April 2020

Lockdown Hairstyles मेरा घर वाला, चमकते चांद वाला। लॉकडाउन हेयर स्टाइल!! नीलम भागी Neelam Bhagi


हुआ यूं कि मुझे श्वेता का फोन आया। वह बोली,’’आपको अंकुर का 1100 रुपये का हेयर स्टाइल कैसा लगा?’’ मैंने जवाब दिया कि मैंने तो उसे देखा ही नहीं। उसने कहा घर से काम कर रहें हैं न इसलिए उनका रुम बंद है। जब बाहर आयेंगे तो देखाउंगी। फोन रख कर वह घर के कामों में लग गई। मैं सोचने में लग गई कि लॉकडाउन में सलूैन तो बंद हैं। ये कहां से कटिंग करवा कर आया है? श्वेता का मैंने टाइम खराब करना उचित नहीं समझा क्योंकि उसे डिनर बनाना है और अगले दिन की तैयारी करनी है, बैंक जो जाना होता है। फ्री होते ही वह कॉल करेगी। सब काम निपटा कर उसने विडियो कॉल की। देखा तो अंकुर टकला!! मैं गुस्से से बोली,’’अरे तेरे मुंडन थे जो तूं गंजा होने पर शगुन में नाई को खुशी में 1100रु.दे आया।’’उसने मुझे सुधारा,’’मां, नाई नहीं हेयर ड्रैसर बोलिए।’’मैं गुस्से में बोली,’’अरे! काहे की हेयर ड्रेसर,1100 रु0 में सिर मुंडवा लिया, ढंग के बाल तो कटवाता।’’ अंकूर ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया,’’मां उस हेयर ड्रेसर को बाल काटने नहीं आते, टकला भी उसने पहली बार किया है।’’अब तो मेरी सहनशक्ति जवाब देने लगी। मैंने पूछा,’’ये हुनरमंद तुझे कहां से मिला, मैं भी उससे मिलना चाहूंगी?’’उसने श्वेता के ऊपर कैमरा कर कहा,’’इनसे मिलिए, इन्होंने।’’मैंने हैरानी से पूछा,’’तूने!!’’उसने जवाब दिया,’’हां मां मैंने, बड़ा मुश्किल काम है, गंजा करना।’’ये सुन कर मेरी हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। जब हंसी थमीं तो मैंने पूछा,’’बेटी तूने कैसे काटे?’’ उसने सिर मुंडने का तरीका बताया,’’ पहले ट्रिमर से सारे बाल निकाल दिए। फिर सिर में शेविंग क्रीम मली और आधे सिर कीे रेज़र से बहुत ध्यान से शेव कर दी। अब मैं यह कह कर लेट गई कि मैं बहुत थक गई हूं। इन्होंने मेरी बहुत ख़ुशामत की और पूछा कि मेरी थकान कैसे मिटेगी? मैंने जवाब दिया कि 1100 रु0 दो। इन्होंने दिए, उसी समय मेरी थकान मिट गई। बचे हुए आधे सिर में भी शेव कर, मैंने इनकी चांद चमका दी।’’सुन कर हंसी भी बहुत आई और चैन की सांस ली कि न तो बाहर जाना पड़ा, न कोई बाहर से आया। अंकुर ने बताया कि संडे को श्वेता की छुट्टी होती है और हमारे पास बाहर के कामों की लिस्ट होती है। पहले पहले जरुरी काम निपटाते हैं। मेरी कटिंग अगले संडे पर टल गई। उस दिन जनता र्कफ्यू था। आठ बजे लॉकडाउन का पता चला। कटिंग का ख़्याल ही नहीं आया। बाद में कहां कटवाता फिर सोचा ऑफिस तो जाना नहीं है। ये सोच कर गंजा हो गया कि जब तक कोरोना जायेगा, तब तक बाल आ ही जायेंगे। और श्वेता ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,’’मेरा घरवाला, चमकते चांद वाला।’’           


Wednesday, 8 April 2020

कोरोना काल में अपनेे हिस्से का वायु प्रदूषण कम कर सकते हैं!! नीलम भागी Lockdown Mein Apney Hissey ka Vayu Pradooshan kam Ker saktey hein Neelam Bhagi



 कोरोना काल में सीनियर सीटीजन को घर के अंदर रहने को कहा गया है, जिसका वे बड़ी शिद्त से पालन कर रहें हैं। मेरे घर के पास एक स्टोर है। वहां पहले सुबह सुबह 80 प्रतिशत बुर्जुग ग्राहक होते थे। अब कोई नहीं आता। परिवार से युवा आते हैं। मेरे ब्लॉक का एक हिस्सा छोटे से स्क्वायर में है। इसके बीच में पार्क है। मेन गेट पर र्गाड रहता है। तब भी सब लॉक डाउन का पालन कर रहें हैं। इनमें से तीन बुजुर्ग डायबटिक न हो जाएं इसलिए वे ख़राब से ख़राब मौसम में भी वॉक ज़रूर करते हैं। उन्हें  देख कर एक दो लोग अच्छे स्वास्थ्य के लिए ही घूमने लगते हैं। वे सुबह पांच से छ बजे के बीच और शाम को  पार्क के चारों ओर बतियाते चक्कर लगाते हैं। जब से देश में कोरोना आया है। वे मुंह पर मास्क लगा कर, आपस में एक मीटर से ज्यादा की दूरी रख कर सैर करते हैं। अब उनको बतियाना ऊंची आवाज में पड़ता है ताकि उनकी आवाज लाइन में चौथे नम्बर पर पीछे चल रहे साथी को भी पहुंच जाये। बराबर चलेंगे तो कोई गाड़ी या पार्क की ग्रिल को टच कर सकते हैं। लॉकडाउन से पहले मेरी नींद उनकी बातों से खुल जाती थी क्योंकि मेरा कमरा गेट के पास है और खिड़की के साथ मेरा बैड है।.बातें क्या!! एक कहता हमारे घर तो आठ आठ बजे तक सोते रहते हैं। बाकि कोरस में देर तक सोने के नुकसान बताने शुरु करते हैं, वे तो आगे निकल जाते। पर मेरी नींद खुल जाती। मैं सोने की कोशिश करती। तब तक उनका दूसरा राउण्ड। उनके आठवें राउण्ड तक उठ कर, मैं चाय बना कर पी लेती। कई बार जी करता कि जाकर कहूं कि आपकी औलादें तो सुबह पांच बजे, आपके पांव छूने को उठेंगी नहीं। अब 21 दिन के लॉक डाउन में उनकी सैर बंद हो गई है। मेरी गुडमार्निंग भी बहुत देर से होती है। अब ये घर में क्या करते होंगे!!     
 और मुझे 73 साल के सुभाष सक्सेना याद आये। 26 जनवरी को मैं एक प्रोग्राम से लौट रही थी। उन्होंने मुझे उनके घर के पास देख लिया। देखते ही मुझे आज्ञा दी,’’ नीलम, मेरे घर चलिए, मुझे आपको कुछ दिखाना है।’’मैंने कहा,’’मुझे दूसरे कार्यक्रम में जाना है। मैं फिर आ जाउंगी।’’वो बोले,’’जब आप अपनी इच्छा से आयेंगी। तब शायद वैसा न हो जैसा मैं आज आपको दिखाना चाहता हूं।’’ कैसे न जाती!!गई। वो मुझे दूसरी मंजिल की छत पर ले गये। इस उम्र में उन्होंने इतना सुन्दर टैरेस गार्डन!! मैं हैरान होकर वहां रक्खी कुर्सी पर बैठ कर, उनकी इस उम्र में की गई मेहनत को निहारने लगी। छत का एक भी कोना खाली नहीं था। जो टंकी के लिए सीढ़ी लगी हुई थीं, उस पर भी एक एक गमला था। वे बताते जा रहे थे कि बाहर से रात के दो बजे भी अगर गर्मी के मौसम में आता हूं तो पहले इनमें पानी लगाता हूं। अब इतना होता नहीं। नीचे जगह बहुत कम है और धूप कम आती है। जो पौधे वहां मरेंगे नहीं उन्हें नीचे शिफ्ट कर दूंगा। सीज़नल पौधे समय पर खत्म हो जायेंगे। अपने हिस्से का वायु प्रदूषण जितना होगा कम करुंगा। लॉकडाउन में वे अपने पौधों में मस्त हैं।           

Tuesday, 7 April 2020

लॉकडाउन अप्पम नीलम भागी Lockdown Appam Neelam Bhagi


   मैं खाने पीने की वस्तुओं को न तो जरा भी बरबाद होने दे रहीं हूं और न ही बहुत ज्यादा खरीद रहीं हूं। जो गेट पर ठेला आ जाता है वो ले लेती हूं। इसी पद्धति से आज ये व्यंजन बन गया है। आप भी परिवार के सदस्यों की संख्या के अनुसार मात्रा कम ज्यादा कर सकते हैं।
     एक कटोरी धुली उड़द की दाल और एक कटोरी  चावल(पीसना है इसलिए टुकड़ा ले  सकते हैं) मिला कर, अच्छी तरह धो कर, भिगो कर रख दिया। चार घण्टे के बाद मिक्सी में बारीक पीस लिया। और इसे रख दिया। सुबह देखा ये दुगुना हो गया था। गमलों में जो भी पालक, मेथी, अजवाइन पत्ता, सोहा लगा था तोड़ा और अपने मिर्च के पौधे से चार मिर्च तोड़ी सबको धोकर बहुत बारीक काटकर इस घोल में डाल दिया। स्वादानुसार नमक मिलाकर सोचने लगी कि इसका क्या क्या बन सकता है? जिससे बरतन कम घिसने पड़े। अप्पम बनाने के बर्तन पर नज़र पड़ी। उसे ही गैस पर गर्म होने रख दिया। एक एक खांचे में जरा जरा सा तेल डाला और एक एक चम्मच घोल डाल दिया। कुछ देर बाद उसे पलट दिया। पलटने पर तेल नहीं डाला। दूसरी ओर सिकने पर निकाल कर, सीधे प्लेट में डालती गई क्योंकि  टिशू पेपर को पिलाने के लिए मैंने फालतू तेल तो डाला ही नहीं था। इसी तरह और घोल डाल दिया और लॉकडाउन अप्पम बनाती गई।
  मैं कोई प्रोफैशनल शैफ तो हूं नहीं कि हर इंग्रीडेंट नाप तोल के डालूं। सिर्फ चावल और हलुआ बनाने में पानी नाप कर डालती हूं और केक में नाप कर डालती हूं। अब घर के गमलों से तोड़े गए धनिया पौदीने की टहनियां मुलायम होती हैं ये तो सब्जी़, चटनी रायते में इस्तेमाल हो जाती हैं। उनका बाजार से खरीदे  धनिया पौदीने से मात्रा मेल ही नहीं करती क्योंकि इसको साफ करने में कचरा भी निकलता। इसलिए नाप नहीं लिख सकती। मैंने साथ में दो तरह की चटनियां बनाई।
टमाटर की मीठी चटनी
आधा किलो टमाटर चार चार टुकड़ों में काट कर उसमें स्वादानुसार नमक डाल दिया। दो हरी मिर्च और एक इंच टुकड़ा अदरक काट कर डाल दिया। लहसुन का स्वाद है तो छ कली डाल सकते हैं। कुकर बंद कर गैस पर चढ़ा दिया। प्रैशर बनने पर गैस कम कर दी। सीटी बजने से पहले गैस बंद कर दी। अपने आप रुम टैम्प्रेचर पर आने पर इसे मिक्सी या हैण्ड ब्लैण्डर से पीस लिया। इसमें करी पत्ता, सरसों राई और कैंची से काट कर लाल मिर्च का तड़का लगा दिया। थोड़ा सा गुड़ या चीनी डाल दें।
मूंगफली की हरी चटनी
गमलों से हरा धनिया, हरी मिर्च और पौदीना तोड़ा। धोकर मोटा मोटा काटा। थोड़े से मूंगफली के भूने दानों को लिया। नमक डाल कर सबको मिक्सी में पीस लिया। मिक्सी से निकाल कर इसमें नींबू का रस मिला दिया।   
       




Sunday, 5 April 2020

नवाबज़ादे, शहज़ादे, साहबजादे और .........ज़ादे लॉकडाउन नीलम भागी Nawabzade, Shehzade, Sahabzade aur...Zade Neelam Bhagi....



जिस दिन से लॉकडाउन हुआ है, मेरी सहेली रानो का कोई फोन नहीं आया। मैंने ये सोच कर नहीं किया कि पति और दोनो बेटे घर पर हैं इसलिये नहीं किया होगा। होम मेकर है पति के ऑफिस और बेटों के कॉलिज जाने पर अपने खाली समय में फोन कर लेती थी। आज मैंने फोन करके पूछा,’’आजकल तो जब जी चाहा सो कर उठती होगी। न समय पर ब्रेकफास्ट तैयार करने और लंच पैक करने, बेटों के कॉलिज से लौटने पर गर्म लंच बनाना, अब लॉकडाउन तक.... मैं आगे कुछ बोलती वो तो बीच में ही फट पड़ी बोली,’’ झाड़ू, पोचा, बर्तन खुद ही करना पड़ रहा है। बाप, बेटे जब घर आते इन्हें व्यवस्थित घर मिलता था। इन तीनों से मैंने कभी काम नहीं करवाया। कभी बिमार भी पड़ी तो बाई से खाना बनवा लिया या रैस्टोरैंट से मंगवा लिया। अब काम निपटा कर जैसे ही दो मिनट सांस लेने को बैठती हूं ,पति की चाय या कॉफी की फरमाइश, बना कर ले जाओ तो यार पकौड़े बना ला। जितनी देर में पकौड़े बन कर आये। तो कहेंगे,’’ इसके साथ एक कप चाय और हो जाये।’’बेटे मोबाइल पर रहते हैं, पकौंड़े देखते ही तोहमत लगानी शुरु,’’ हमारी तो तोंद निकल आयेगी, न कहीं आना न जाना। मॉम हमारे लिए तो पापड़ भून लाओ।’’ कोई नाश्ते, लंच, डिनर का समय नहीं। किसी भी वक्त कुछ भी मांग लेना। मैं एक मिनट भी फ्री नहीं हो पाती। बेटों को जब कहती हूं कि मोबाइल बंद करके, मेरी मदद करो। तो मेरे गले में बांह डाल कर जवाब,’’आप इतना काम मत किया करो। रहने दो ना, घर को ऐसे ही। लॉकआउट में कोई मेहमान तो घर आयेगा नहीं। हमारे बस का नहीं है, औरतों वाले काम करना।’’फिर दुखी शक्ल बना कर कहने लगे, ’’मम्मा हम घर में कितना बोर हो रहें हैं!! इंटरनैट के सहारे टाइम पास हो रहा है। अगर इंटरनैट न हो तो सोचो!!’’ मैं बोली,’’बेटा, तब तुम म्यूजिक लगा देना, तुम्हारी बोरियत दूर करने के लिए मैं नाच दिया करुंगी।’’दोनों एक दूसरे की शक्ल देख कर हंसते हुए बोले,’’मम्मा, आप भी बस।’’
   मैं अंकूर के घर गई। सुबह बर्तन, सफाई के लिए मेड आई। छोटे से अदम्य में ने उसके साथ एक झाड़ू लेकर लगाया। वो बर्तन करने लगी तो सुबह जल्दी में श्वेता बैंक, शाश्वत स्कूल और अंकूर ऑफिस जाते समय, जल्दी में कोई जूठा बर्तन इधर उधर छोड़ गया तो अदम्य लाकर किचन में रखता जा रहा था। दिन भर रहने वाली दीदी आई उसकी भी मदद करता। दीदी डस्टिंग करती, वह भी कपड़ा लेकर साथ में करता। घर में कैमरा लगा हुआ है। यह देख कर अंकूर श्वेता हंसते। मैं भी अचानक बच्चों से मिलने चली जाती हूं। शाम को दीदी घर जाती तो उसके जाने पर रोता है। एक दिन दीदी नहीं आई। मैं गई श्वेता मुझे लिफ्ट पर ही मिल गई। देखते ही जाते जाते बोली,’’शाश्वत को काम करने देना।’’जाते ही क्या देखती हूं!! दो कारीगरों से अंकूर ए.सी. फिट करवा रहा था। शाश्वत पॉपअप में टोस्ट बना रहा था। जैम लगाना है कि बटर पूछ कर लगाता। अदम्य सर्विस कर रहा था। ABP चैनल के एक टी.वी.  शो में रुबिका लियाकत ने मुझसे प्रश्न किया,’’आपके कितने बच्चे हैं?’’ मैंने कहा,’’दो, बेटा और बेटी।’’ रुबिका ने पूछा,’’बड़ा कौन है? उनमें कितना अंतर है?’’ मैं बोली,’’ सवा साल बड़ा बेटा है।’’उसने पूछा,’’काम आप किसको करने को बोलती हो?’’मैंने जवाब दिया,’’बेटा, बड़ा है उसे ही बोलती हूं। उसके घर जाती हूं तो जाते ही बेटे से कहती हूं,’’बल्लू बढ़िया सी चाय बना’’ और श्वेता से बतियाने लगती हूं। शुरु में वो बनाने दौड़ती थी। मैं उसका हाथ पकड़ कर बिठा लेती।’’सुनकर खूब तालियां बजीं। लॉकडाउन मेें दोनों मेड नहीं हैं। अंकूर घर से काम करता है। श्वेता को बैंक जाना होता है। शाश्वत ने काम का बटवारा कर दिया है। अदम्य झाड़ू लगायेगा। शाश्वत पोचा लगायेगा, कपड़े फैलायेगा, उतारेगा। सब अपने अपने कपड़े तह लगायेंगे। दोनो भाई डस्टिंग करेंगे। मम्मा खाना बनायेगी और पापा बर्तन मांजेंगे। श्वेता कहती है,’’मां, बहू के सामने, बेटे से दोनो के लिए चाय बनवाने से ही मैने सीखा की बेटों को भी बचपन से काम करने की आदत दो।’’  जो मैं कर रही हूं।