कोरोना काल में सीनियर सीटीजन को घर के अंदर रहने को कहा गया है, जिसका वे बड़ी शिद्त से पालन कर रहें हैं। मेरे घर के पास एक स्टोर है। वहां पहले सुबह सुबह 80 प्रतिशत बुर्जुग ग्राहक होते थे। अब कोई नहीं आता। परिवार से युवा आते हैं। मेरे ब्लॉक का एक हिस्सा छोटे से स्क्वायर में है। इसके बीच में पार्क है। मेन गेट पर र्गाड रहता है। तब भी सब लॉक डाउन का पालन कर रहें हैं। इनमें से तीन बुजुर्ग डायबटिक न हो जाएं इसलिए वे ख़राब से ख़राब मौसम में भी वॉक ज़रूर करते हैं। उन्हें देख कर एक दो लोग अच्छे स्वास्थ्य के लिए ही घूमने लगते हैं। वे सुबह पांच से छ बजे के बीच और शाम को पार्क के चारों ओर बतियाते चक्कर लगाते हैं। जब से देश में कोरोना आया है। वे मुंह पर मास्क लगा कर, आपस में एक मीटर से ज्यादा की दूरी रख कर सैर करते हैं। अब उनको बतियाना ऊंची आवाज में पड़ता है ताकि उनकी आवाज लाइन में चौथे नम्बर पर पीछे चल रहे साथी को भी पहुंच जाये। बराबर चलेंगे तो कोई गाड़ी या पार्क की ग्रिल को टच कर सकते हैं। लॉकडाउन से पहले मेरी नींद उनकी बातों से खुल जाती थी क्योंकि मेरा कमरा गेट के पास है और खिड़की के साथ मेरा बैड है।.बातें क्या!! एक कहता हमारे घर तो आठ आठ बजे तक सोते रहते हैं। बाकि कोरस में देर तक सोने के नुकसान बताने शुरु करते हैं, वे तो आगे निकल जाते। पर मेरी नींद खुल जाती। मैं सोने की कोशिश करती। तब तक उनका दूसरा राउण्ड। उनके आठवें राउण्ड तक उठ कर, मैं चाय बना कर पी लेती। कई बार जी करता कि जाकर कहूं कि आपकी औलादें तो सुबह पांच बजे, आपके पांव छूने को उठेंगी नहीं। अब 21 दिन के लॉक डाउन में उनकी सैर बंद हो गई है। मेरी गुडमार्निंग भी बहुत देर से होती है। अब ये घर में क्या करते होंगे!!
और मुझे 73 साल के सुभाष सक्सेना याद आये। 26 जनवरी को मैं एक प्रोग्राम से लौट रही थी। उन्होंने मुझे उनके घर के पास देख लिया। देखते ही मुझे आज्ञा दी,’’ नीलम, मेरे घर चलिए, मुझे आपको कुछ दिखाना है।’’मैंने कहा,’’मुझे दूसरे कार्यक्रम में जाना है। मैं फिर आ जाउंगी।’’वो बोले,’’जब आप अपनी इच्छा से आयेंगी। तब शायद वैसा न हो जैसा मैं आज आपको दिखाना चाहता हूं।’’ कैसे न जाती!!गई। वो मुझे दूसरी मंजिल की छत पर ले गये। इस उम्र में उन्होंने इतना सुन्दर टैरेस गार्डन!! मैं हैरान होकर वहां रक्खी कुर्सी पर बैठ कर, उनकी इस उम्र में की गई मेहनत को निहारने लगी। छत का एक भी कोना खाली नहीं था। जो टंकी के लिए सीढ़ी लगी हुई थीं, उस पर भी एक एक गमला था। वे बताते जा रहे थे कि बाहर से रात के दो बजे भी अगर गर्मी के मौसम में आता हूं तो पहले इनमें पानी लगाता हूं। अब इतना होता नहीं। नीचे जगह बहुत कम है और धूप कम आती है। जो पौधे वहां मरेंगे नहीं उन्हें नीचे शिफ्ट कर दूंगा। सीज़नल पौधे समय पर खत्म हो जायेंगे। अपने हिस्से का वायु प्रदूषण जितना होगा कम करुंगा। लॉकडाउन में वे अपने पौधों में मस्त हैं।