Search This Blog

Showing posts with label # Kitchen waste management. Show all posts
Showing posts with label # Kitchen waste management. Show all posts

Wednesday 31 March 2021

मुफ्त में उगाए ऑरगेनिक टमाटर नीलम भागी Organic Tomato from Kitchen waste Neelam Bhagi

 




14’’इंच का मेरे पास कोई गमला नहीं था और टमाटर की पौध 4’’की हो गई । मैने कम्पोस्ट बिन जो आधा रह गया था ठंड के कारण कम्पोस्ट अभी पूरी तरह नहीं बना था। उसमें ही मैंने 60% मिट्टी 40% वर्मी कम्पोस्ट और दो मुट्ठी नीम की खली मिलाकर कम्पोस्ट पर इस पॉटिंग मिक्स को 6’’ भर दिया। और हाथों से अच्छी तरह दबा दिया। 12’’ की दूरी पर एक बिन में दो टमाटर के पौधे लगाए और पानी देकर दो दिन तक छाया में रखे। जहां सुबह की हल्की धूप आती है। ये जम गए तो  इनकी जगह बदल दी जहां आठ घंटे सीधी धूप आती है। तीनों टमाटर के पॉट एक साथ रखे। बीस दिन बाद इसमें अण्डे के छिलके डाल दिए। एक महीने बाद फूल आने लगे और पौधों में खूब टमाटर लग रहे हैं। सहारे के लिए मैंने डण्डी गाड़ कर पौधे को सहारे के साथ सूती पट्टी से बांध दिया हैं। अभी तक तो कोई खाद नहीं दी। जड़े शायद जो रसोई के कचरेे से कम्पोस्ट बन रहा था, वहीं से पोषण ले रहीं हैं


। पौधे को फल के समय ज्यादा पोषक तत्वों की जरुरत होती है पर यहां तो मुझे फल और पौधा दोनों स्वस्थ लग रहें हैं। कुछ पत्तियों पर सफेद धारियां सी आ गई हैं। उन्हें निकाल कर नीम ऑयल का स्प्रे करुंगी। अपने हाथ से लगाए टमाटरों को देख कर मन बहुत खुश होता है। दिन में दो बार छत पर इन्हें देखने जाती हूं। 

टमाटर लगाने का तरीका जानने के लिए इस लिंग पर जाएं  

https://neelambhagi.blogspot.com/2021/02/organic-tomato-from-kichen-waste-neelam.html

मुझे करोना हो गया था 2 महीने तक मैं छत पर नहीं गई जब गई, देखा सारे मेरे पौधे सूखे हुए थे बस एक सुखा टमाटर का पौधा टंकी की साइड में ,उस पर लाल लाल सूखे टमाटर लगे हुए थे पर कोई टमाटर गला हुआ नहीं था शायद मेरी मेहनत का इनाम देने के लिए वह बचे थे बंदरों से। उसे सब्जी में डाला उस सब्जी का स्वाद में लिख नहीं सकती, बहुत ही लजीज सब्जी बनी। इन टमाटरों को मैंने भून कर नहीं डाला। ऐसे ही डाल दिया था सब्जी में। पता नहीं धूप में ड्राई होने से इनका स्वाद बेहद  लजीज था। जिस भी सब्जी में डालते सब्जी का स्वाद दुगना हो जाता।



Sunday 21 March 2021

लाल साग, लाल चौलाई उगाना नीलम भागी Health Benefits of Amaranth Leaves Neelam Bhagi


ज्यादातर साग, हरी पत्तेदार सब्ज़ियां सर्दियों में होतीं हैं। लेकिन हरी और लाल चौलाई गर्मी और बरसात में खूब होती है। मैं अपने यहां के बीज की लोकल दुकान से लाल चौलाई का पैकेट खरीद कर लाई। पहली बार बो रही थी। इसलिए कैसे बोना है? ये भी दुकानदार से समझा। जो भी समझा उसे अपनी मैमोरी में फीड करके आ गई। जैसे कोई नया कपड़ा खरीद कर उसे तुरंत पहनने को बेचैन हो जाता है, ऐसे ही मैं बीज घर में लाते ही तुरंत बोने की तैयारी में लग जाती हूं। पर उस समय मेरे पास कोई कंटेनर नहीं था। दुकानदार ने कहा था कि इसके लिए गहरे पॉट की जरुरत नहीं है। मैंने सोचा घर में होंगे इसलिए पॉट नहीं खरीद कर लाई।

अब सामने जो डब्बा, थैली, बोल दिखा उसमें ही ड्रेनेज होल करके बोने की तैयारी करने लगी। 50% मिट्टी, 40% वर्मी कम्पोस्ट और 10% रेत मिला कर पॉटिंग मिक्स तैयार करके डब्बा, थैली और बोल में भर दिया। इस पर बहुत थोड़े बीज छिड़क दिए। ताकि उगने वाले सभी पौधों को उचित स्पेस मिले। और हल्के हाथों से थपथपा कर दबा दिया। अब इन बीजों को हल्की मिट्टी से ढक दिया। पानी अच्छी तरह दे दिया ताकि बीज सैट हो जायें। 5 से 6 दिनों में अंकुरण भी हो गया। थैली वाली चौलाई थैली के अंदर हरे रंग की बढ़ने पर बाहर आते ही लाल होनी शुरु हो गई है। बोल और डब्बे की लाल ही हैं।

खनिज विटामिनो से भरपूर, उगाने में आसान चौलाई को उगता देखकर, अब मैंने जमीन पर क्यारी तैयार करके बोया है।   


किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट, फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, या गोबर की खाद, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो।   

1 मिनट में मुफ्त का ग्रो बैक बनाएं। सीखने के लिए क्लिक करें https://youtu.be/RsfCymsbTDk

Wednesday 10 March 2021

फ्रेंच बीन उगाना नीलम भागी How to Grow & care for French beans Neelam Bhagi




गुणकारी फ्रेंचबीन उगाने के लिए मैंने हाइब्रिड बीज मंगाए वो तो राजमा थे। मैंने रसोई के कचरे से आधे भरे कंटेनर में ये तैयार मिट्टी भरी। इसमें 50% मिट्टी, 40% वर्मी कंपोस्ट(गोबर की खाद भी ले सकते हैं) और 10% रेत को अच्छी तरह मिलाया। बीजों को 12 घंटे पानी में भिगो कर रखा था। बाद में पानी फेंक दिया और मोटे सूती कपड़े में बीजों को बांध दिया। कपड़े को गीला रक्खा। 48 घण्टे बाद इसमें अच्छे से अंकुरण हो गया। अब इन अंकुरित बीजों को 14’’ के गमलों में उचित दूरी पर आधा इंच गहरा गाड़ दिया। इससे ये कम समय में पौधे बन गए। पानी इसमें इतना लगाना है कि बस नमीं बनी रहे। 15 दिन बाद इसमें थोड़ी थोड़ी वर्मी कंपोस्ट डालती रही। गमले हरे पत्तों से भर गए।


एक महीने बाद इसमें फूल आ गए। इसके पास धनिया लगा हैं। धनिए के फूलों की महक से वहां शहद की मक्खियां आती हैं। अब इन फूलों पर भी आने लगीं। गुड़ाई करके अण्डे के छिलकों का पाउडर भी डाला। बींस आने लगीं हैं। जिसकी अब तक सब्जी नहीं बनाई है। कोई कीटनाशक तो डाला नहीं। खुद से उगाईं हैं बहुत स्वाद हैं। सलाद, सैण्डविज, अप्पम आदि में डालती हूं। धनिए का मौसम जा रहा है। उसके बीच बीच में कुछ राजमा रसोई से लेकर बो दिए। पौधे निकल आएं हैं। देखती हूं ये भी हाइब्रिड बीजों की तरह फल देते हैं या नहीं। अच्छा रिजल्ट आने पर मैं जरुर आपसे शेयर करुंगी। कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, घुलनशील फाइबर युक्त और कालेस्ट्रॉल को कम करने वाला राजमा फ्रेंचबीन आपको भी उगाना चाहिए।   

    
रसोई के कचरे का सदुपयोग

किसी भी कंटेनर या गमले में सूखी पत्तियां टहनियां उस पर किचन वेस्ट, फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और और बीच-बीच में वर्मी कंपोस्ट से ढकते रहो। जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, या गोबर की खाद, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो।

Wednesday 3 February 2021

सर्दी से पौदीना बचाया, अब जल्दी लगाया नीलम भागी

मेरा पौदीना हमेशा सर्दी में मर जाता था। इस साल जब दो तीन तने हरे थे तब मैंने उन्हें एक प्लास्टिक के कन्टेनर मेें ट्रांस्फर कर दिया और ऐसी जगह रखा जहां इसके ऊपर तो छत थी पर वहां धूप आती थी और मैं कम पानी देती थी इतना की कभी पानी ड्रेनेज़ होल से नहीं निकला। सर्दी के कारण ग्रोथ इसकी बहुत कम थी पर ये देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता कि ये बचा हुआ है। जब ये कंटेनर से बाहर झांकता तो मैंने दूसरा लकड़ी की छोटी सी टोकरी में इसकी टहनियां लगा दीं। इस तरह तीसरा पॉट भी तैयार कर लिया। सर्दी से ग्रोथ सब की कम रही पर जम गया। अब मौसम बदल रहा है।


आज मैंने पाँच पॉट और पौदीने के तैयार कर लिए। इसके लिये 50% मिट्टी, 40% वर्मी कम्पोस्ट, थोड़ी रेत और नीम की खली मिला कर मिट्टी तैयार कर ली। इसके लिए तो 6’’ गहरा पॉट ही काफी है। ड्रेनेज होल पर ठिकरा रख कर मिट्टी भर दी। फिर इस मिट्टी को अच्छी तरह गीला कर लिया। अब पौदीने की डण्डियां काट कर इनमें जमा दीं। इनके आस पास सूखी मिट्टी डाल दी ताकि टहनियां लुड़क न जाएं। आगे के अपडेट लगाती रहूंगी।   https://youtu.be/M1JpGyIPh3k
किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा और बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का और इसमें पुदीने की टहनियां लगा दो जितनी बर्तन में जगह है थोड़ी थोड़ी दूरी पर।


Wednesday 27 January 2021

रसोई के कचरे से ऑरगेनिक लहसुन उगाना नीलम भागी Organic Garlic from kitchen waste!! Neelam Bhagi


 लहसुन से ज्यादा मुझे लहसुन की हरी पत्तियां पसंद हैं। सेहत के लिए तो ये लाभदायक हैं साथ ही ये बहुत से व्यंजनों के स्वाद को बढ़ाती हैं। इस कारण मैं पूरे साल लहसून उगाये रखती हूं। इस बार मैंने किचन वेस्ट से गमले में उगाया था।

मुझे अच्छे लहसुन के पत्ते मिल रहें हैं। इससे उत्साहित होकर मैंने छत पर खाली आटे की थैली, फैंकने वाली बाल्टी में रसोई का कचरा इक्टठा किया।


दोनों के नीचे ड्रेलेज होल किया। कचरे को अच्छी तरह एक डिब्बे की मदद से दबाया। 60 मिट्टी, 35 वर्मी कम्पोस्ट और रेत मिलाया। कचरे के उपर इस मिट्टी को भर दिया। मोटी कलियों वाले लहसुन लेकर कलियों को अलग कर लिया।

एक एक कली को 3’’ की दूरी पर 1’’गहरा मिट्टी में चपटा सिरा नीचे की ओर और प्वाइंटिड सिरा ऊपर की ओर करके दबा दिया।

हन्हें अच्छे से पानी देकर, दोनों को धूप में रख दिया। ज्यादा पानी नहीं डालती। इसका अपडेट भी पोस्ट करुंगी। https://youtu.be/cGhCCXIHzKw तो गमले में उगाए लहसुन से हरे हरे पत्ते निकलते हैं। हरेक के 5-6 पत्ते होने पर मैं किनारे के दो दो पत्ते कैंची से काट लेती हूं। बीच के नहीं निकाले। इन ताजी पत्तियों को धोकर बहुत ही बारीक काटा, साथ ही गमले से तोड़ कर हरी मिर्च को काटा ,घर में उगाई हैं इसलिये जब मुझे पत्तियां मिलती हैं हरा लहसुन का रायता बना लेती हूं। इस रायते के स्वाद के कारण मैं पूरे साल लहसून उगाये रखती हूं। सब्जी के लिए लहसून बाजार से खरीदती हूं। अक्टूबर से अप्रैल तक पत्ते बहुत अच्छे मिलते हैं बाकि समय काम चल ही जाता है। कभी कभी नीचे गांठ भी मिल जाती है।  

किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा और बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो।#Kitchen waste management

Thursday 26 November 2020

लाजवाब सरसों का साग, अब उगाने भी लगी नीलम भागी Sarson Ka Saag Neelam Bhagi









मुझे अपने घर के लोग बहुत अजीब लगते थे जब वे सरसों के साग की खूब तारीफ करके खाते थे। मैं हर सब्ज़ी स्वाद से खाती हूं पर सरसों के साग को देख कर मेरा मूड खराब हो जाता था। मैं रोटी पर नमक मक्खन लगा कर लस्सी के घूंट भर भर के खा लेती। जब मै कपूरथला अपने मामा स्वर्गीय निरंजन दास जोशी जी के यहां रही तो सुषमा भाभी के गांव से सीजन का बहुत  बड़ा गट्ठर साग का आया। भाभी साग देखकर चहक रहीं थीं और मैं साग को घूर रही थी। भाभी ने लहलहाते ताजे सरसों के साग में से पता नहीं किस डिजाइन की गंदलें और पत्ते निकाले। बाकि जैसा हम यहां खरीदतें हैं, वो अच्छा नहीं बनता कह कर गाय को खाने को दे दिया।  लेकिन बथुआ पालक को वैसे ही देखा, उसमें से कुछ नहीं फैंका। अब सब को बहुत अच्छे से थपथपा कर धोया ताकि मिट्टी नीचे बैठ जाये। चारपाई पर कपड़ा फैला कर उस पर सारा साग डाल दिया। नानी के समय की बहुत बड़ी मिट्टी की हण्डिया को साफ किया गया। किचन से बाहर बना चूल्हा इस सीजन में पहली बार जला। दराती से भाभी फटाफट बारीक साग काटती जा रही थी हण्डिया भरती जा रही थी पता नहीं कितनी बार वह हण्डिया साग से भरी फिर उसमें नमक अदरक, हरी मिर्च काट कर डाल दी। उसमें उपले लगते रहे, शाम तक वो पकता रहा। शाम को भाभी ने घोटने से उसमें थोड़ा थोड़ा मक्के का आटा डाल कर घोटा फिर हण्डिया चूल्हे पर। डिनर में हाथ से फूली फूली मक्के की रोटी, साग में कोई छौंक नहीं। कटोरे में पहले मक्खन, उस पर साग और साग पर देसी घी और मक्का की रोटी। मैंने बड़े बेमन से पहला कौर साग के साथ मुंह में डाला। इतना ग़जब का स्वाद!! मैंने भाभी से हैरानी से पूछा,’’साग भी इतना स्वाद होता है!!’’ उन्होंने हथेलियों मे मक्का की रोटी बनाते हुए जवाब दिया कि साग तो ऐसा ही होता है। लंच में साग प्याज़ का छौंक लगा कर मिला। उसका स्वाद बिल्कुल अलग। मैंने कह दिया कि डिनर में भी मैं साग खाउंगी। डिनर में उसमें सरसों के तेल, मेथी, हींग और अक्खा(साबुत) लाल मिर्च का छौंक लगा कर दिया। ये तो बहुत ही लजीज़। एक ही साग तीनों बार स्वाद अलग और लाजवाब। अब साग मेरी मनपसंद डिश हो गई। भाभी की साग पर इतनी मेहनत करने के कारण मैं रोज साग की डिमाण्ड नहीं कर पा रही थी। थोड़ा समझाने से वह प्रेशर कूकर और मिक्सी की मदद से साग बनाने लगी। भाभी के हाथ का साग स्वाद तो बनता ही था। ताजा आता और तुरंत बनता। घर पर मैंने चिट्ठी लिखी कि जितनी सरसों उसका आधा पालक और पालक का आधा, बथुआ सरसों के साग की रेशो है। और खेत से प्लेट में


अपने हाथ से उगाई सरसों से तो वैसे ही मोह हो जाता है। नवंबर से मैं  गमलों में रसोई का कचरा जमा करते हैं, एक टब में 50%मिट्टी, 30% वर्मी कम्पोस्ट और बाकि कोकोपिट और रेत मिलाकर, इसे कचरे वाले गमलों पर 6" भर कर इसमें सरसों बो देती हूं। दो दो इंच की दूरी पर अंगुली से 1’’ का गड्डा करके उसमें 2 दाने सरसों के डाल कर मिट्टी से ढक देती हूं और धूप में रखती हूं। 40 दिन तक तोड़ने लायक हो जाता है। जब थोड़े पत्ते होते हैं तब सरसों के तेल में मेथी, साबुत लाल मिर्च और लहसून सुनहरा करके उसमें इसकी भुजिया बनाती हूं। बनाने से पहले ही तोड़ती हूं। स्वाद में बहुत अच्छी लगती है। और गमलों में इन्हें लगे देखना मन को भाता है। लोहड़ी पर हमारे यहां सरसों का साग जरुर बनता है। कम कैलोरी के कारण इसे खाने से वजन बढ़ने की चिंता नहीं। कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, खनिज़, फाइबर प्रोटीन से भरपूर सरसों का साग भाभी से बनाना तो सीख लिया पर उनके जैसी हाथ से पतली पतली मक्का की रोटी नहीं बना पाती। मैं चकले पर ही थपथपा के बना लेती हूं।    

 #रसोई के कचरे का उपयोग

 किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा और बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो। पर सरसों के बीज छिड़ककर उसे मिट्टी से ढक दिया।



            



Wednesday 11 November 2020

लेमन ग्रास, नींबू घास, सूरत और सीरत में लाजवाब नीलम भागी Lemon Grass Neelam Bhagi






उत्कर्षिनी ने मेरे लिए चाय बनाई। चाय में भीनी नींबू की खूशबू आ रही थी। अब तक मैंने लेमन टी बिना दूध के खट्टे स्वाद की पी थी। ये दूध और नींबू की महक वाली चाय! मुझे हैरान देखकर उसने खिड़की की ओर इशारा करके बताया कि ये लम्बी लम्बी घास लेमन ग्रास कहलाती हैं।


सोसायटी का माली कहता है कि जहां से मच्छर आते हैं, वहां इसका गमला रख दो तो मच्छर भाग जाते हैं। मैंने देखा कि मुम्बई में लेमन ग्रास का पौधा ज्यादातर घरों की खिड़की में रखा हुआ था। हर पौधा एकदम स्वस्थ क्योंकि ह्यूमिडिटी इसे पसंद है और वहां है। चाय और सूप में इसकी पत्ती कैंची से काट कर डालते, सर्व करते समय निकाल लेते। देखने में यह हरा भरा पौधा बहुत अच्छा लगता है। लौटने पर मैं यहां नर्सरी से इसका गमला खरीद कर लाई। पर कुछ दिनों में इसके पत्ते दुखी से लगने लगे क्योंकि वहां धूप कम आती थी। मैंने फर्श से गमला उठा कर दीवार पर रख दिया वहां धूप अच्छी आती है।

अब उसमें से नीचे से और पौधे आने लगे। मार्च अप्रैल में मैंने दो गमलों में 60मिट्टी, वर्मी कम्पोस्ट और रेत मिला कर उनके डेªनेज़ होल पर ठिकरे रख कर इस मिट्टी से उन्हें भर दिया। शाम को दो पौधे जड़ सहित निकाल कर इन गमलों के बीच में गढ्डा करके पौधों की जड़ों को उसमें इस तरह दबा दिया  कि वे सीधे खड़े रहें और पानी दे कर रख दिया।  20 से 25 दिन में ये नये लैमन ग्रास के पौधे जम गए। इसे बस अच्छी धूप चाहिए और पानी इसकी जड़ों में न रुके। ज्यादा गर्मी और ज्यादा ठंड में इसकी बढ़त सुस्त हो जाती है। ज्यादा पानी भी नहीं झेलता। मामूली देखभाल से यह औषधीय गुण वाला पौधा, बहुत अच्छा लगता है। इसके पत्तों और तने के रस से साबुन, सेंट और मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती बनती है। इसकी एंटीऑक्सीडेन्ट पत्ती चाय का स्वाद बढ़ाती है और हरियाली आंखों को भाती है। जमीन पर लगाने से यह बहुत तेजी से फैलती है।   

    किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट, फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, या गोबर की खाद, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो।


Sunday 20 September 2020

लौकी, दूधी, घिया झटपट बनाना और उगाना!! नीलम भागी Bottle Gourd Lauki, doodhi, ghiya mere pasand ban gaye Neelam Bhagi


बी.एड में मेरी सहपाठिन उत्कर्षिणी गर्ल्स हॉस्टल में रहती थी। हॉस्टल में वो अपने घर मवाना गांव की लौकी की सब्जी़ बहुत मिस करती थी और मैं कभी लौकी की सब्जी़ खाती नहीं थी। उत्कर्षिणी के मुंह से लौकी की  सब्जी़ का मनपसन्द होना, मुझे बहुत हैरान करता था। मैं सोचने लगती कि जिसे मैं खाती नहीं वो किसी की मनपसंद डिश कैसे हो सकती है!! वो बताती,’’ उसके गांव में उपले रखने के लिए बिठौले होते हैं, उन पर लौकी की बेले चढ़ी रहती हैं, जिन पर हमेशा लौकियां लटकती रहतीं हैं। जब मैं शनिवार को घर जाती हूं तो मां लौकी, हल्दी, हरी मिर्च और नमक डाल कर चूल्हे पर चढ़ा देती है। चूल्हे में गिनती के उपले लगा कर, अपने घरेलू कामों में लग जाती है। जब मैं घर पहुंचती हूं तो घिया गर्म होती है। मुझे देखते ही मां उसमें ढेर सारा मक्खन और आंगन में लगी धनिया तोड़ कर डालती है और अच्छे से कलछी चला कर मिक्स करती है। मैं तो जाते ही लौकी खाती हूं, रोटी भी नहीं बनाने देती।’’ मैं मन में सोचती बिना छौंक के और वो भी लौकी!! उत्कर्षिणी आगे कहती और यहां हमारा कुक इतने नखरों से छौंक, मसालों से लौकी बनाता है। पर मवाना जैसा स्वाद नहीं आता है। मैंने जब नौएडा में शिफ्ट किया तब हमारे ब्लॉक में बहुत कम लोग थे। रहने वालों ने खाली घरों पर लौकी की बेलें चढ़ा रखी थी। पड़ोसन ने मुझे बेल से तोड़ कर लौकी दी और कहा इसे तुरंत बनाना और इसका स्वाद देखना। मुझे मवाना रैस्पी याद आ गई। मैंने लौकी को छिला, धोकर फिर काटा और सादा छौंक लगा कर कुकर में चढ़ा दिया। जब प्रैशर बन गया तो गैस कम से कम कर दी और सीटी नहीं बजने दी। पांच मिनट बाद गैस बंद कर दी। प्रैशर खत्म करने पर खोला स्वाद अनुसार बारीक कटी हरी मिर्च धनिया डाल कर कलछी चलाई। पानी और टमाटर तो लौकी में डालते नहीं। लाजवाब स्वाद। ताजी़ लौकी ने लौकी को मेरी पसंद बना दिया। लौकी उगाना और इसके तरह तरह के व्यंजन बनाना, मेरा शौक बन गया। 25 से 40 डिग्री तापमान में यह बहुत अच्छी उगती है। कंटेनर में उगाती हूं इसलिये बीज हाइब्रिड लेती हूं। बड़े गमले में 50%मिट्टी, 30% वर्मी कम्पोस्ट 20% रेत और थोड़ी सी नीम की खली मिला कर आधा इंच गहरे बीज बो दिए बीज बो दिये। सात से दस दिन में पौधे निकल जाते हैं।


इन्हें सहारे की और धूप की बहुत जरुरत होती है। 15 दिन बाद गुड़ाई करे और महीने में एक बार खाद डालें। 30 से 35 सेंटी मीटर की बेल होने पर आगे से एक इंच तोड़ दें। जिससे कई उपशाखाएं निकलेंगी। 25 दिन तक उन्हें भी आगे से कट कर दें। एक महीने तक  फूल आने लगते हैं। अब 15 दिन बाद खाद डालें। छोटे फल झड़ने पर नीम के तेल का छिड़काव करें। पौधों की बच्चों की तरह देखभाल करो। बहुत अच्छा लगता है। दो महीने बाद लौकी मिलनी शुरु हो जाती है। ताजी लौकी को कद्दृूृकस कर के नमक मिला कर थोड़ी देर रख कर निचोड़ लों। रस में चाट मसाला नींबू का रस और पौदीना मिला कर जूस पी लो।

जूस निकाली हुई लौकी में बारीक कटी प्याज, हरी मिर्च, धनिया पाउडर, अजवाइन, हींग और बेसन अच्छी मिला कर चख लें अगर नमक कम लगे तब मिलाएं। पतले लोग इसे गोल आकार देकर तल लें पकौड़े की तरह खा लें। चाहे घिया के कोफ्ते की सब्जी़ बना लें। 

मोटे लोग इसी बैटर को तलने की बजाय अप्पम के सांचे मंें लौकी अप्पम, दूधी अप्पम, घिया अप्पम बना कर खायें।         

सूप के लिए घिसी लौकी में नमक डाल कर प्रैशर कूकर में अच्छा प्रैशर आने पर, सीटी मत बजने दो गैस बंद कर दो। जब प्रैशर खत्म हो जाए तो पानी अलग कर लो। घिया के लच्छे फ्रिज में रख दो और जूस की तरह ही सूप में मसाले डाल कर इस्तेमाल करो। अब इन लच्छों का दो तरह से रायता बनाती हूं। 

1. लौकी के लच्छों को फेटे हुए दहीं में डाल कर, उसमें दहीं की मात्रा के अनुसार काला नमक मिला ले, लच्छे नमकीन पहले से हैं। बारीक कटा पौदीना, हरी मिर्च और भूना जीरा पाउडर डाल कर मिला लें। डाइट रायता तैयार।

2. फ्राइ पैन में थोड़ा देसी घी या कोई भी तेल लेकर उसमें सरसों चटका लें और कैंची से काट कर सूखी लाल मिर्च के टुकड़े डाल कर इस पर करी पत्ता डाल कर छौंक तैयार कर लें। लौकी के लच्छों को फेटे हुए दहीं में डाल कर, उसमें दहीं की मात्रा के अनुसार काला नमक मिला ले, लच्छे तो नमकीन हैं। उस पर ये छौंक डाल दें।   

  लौकी चना की दाल अजवाइन और सौंफ के पंजाबी तड़के वाली स्वाद का स्वाद लाजवाब होता है।

किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, या गोबर की खाद, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो।


   


Thursday 17 September 2020

क़ायदे से उगाई मिर्च नीलम भागी Kaide se Ugai Mirch Neelam Bhagi


अखा(साबूत) लाल मिर्च का डब्बा खाली हुआ तो साफ करने से पहले देखा, उसमें कुछ मिर्च के बीज थे। डब्बे को कम्पोस्ट मिट्टी मिली थैली में झाड़ दिया। सात दिन बाद उसमें पांच पौधे मिर्च के निकल आये।

जब ये पौधे तीन से चार इंच के हो गए तो इन्हें बिना किसी तैयारी के किसी न किसी गमले में एडजस्ट करती रही। मसलन लहसून के गमले में ठूस दिया।

बिना मेहनत के ऐसे ही जो मिल गए थे न इसलिए। पर इन बेचारों ने निराश नहीं किया। समय से इनका जैसे जी किया ये बढ़़ते गए। कुछ दिन बाद सफेद फूल आए, कुछ हरी हरी मिर्च भी आईं।

तब मैंने अपनी सहेलियों को ज्ञान भी बघारा की सब कुछ छोड़ कर मिर्च लगाओ, कुछ नहीं करना और मिर्चें खाओ। कुछ दिन बाद मेरी पत्तियां मुड़ने लगीं, फूल गिरने लगे, पौधा रोगी हो गया। इलाज के बजाय, मैंने उसे जड़ से निकाल कर फैंक दिया बिना मेहनत के जो मिला था।

एक दिन हरी मिर्च घर में खत्म थी। पहले पौधे पर हमेशा चार छ लटकी रहतीं थी जब नहीं होती तो तोड़ लेती थी। 

  अब मुझे लगा कि मिर्च का पौधा घर में होना ही चाहिए। हाइब्रिड मिर्च बीज का पैकेट खरीदा। 50% मिट्टी, 40% कम्पोस्ट बाकी रेत और थोड़ी नीम की खली मिला कर, इस मिट्टी को सीडलिंग ट्रे में भर दिया और इसमें बीज छिड़क दिए। 20 से 25% ज्यादा ये सोच के डाले की कुछ खराब भी होंगे। फिर बीजों को ढकने के लिए इसी मिट्टी का उपर छिड़काव कर दिया और हल्के हाथ से पानी इस तरह दिया कि बीज ढके रहें। ट्रे को ऐसी जगह रखा जहां सीधी तेज धूप न हो और उसमें नमी रहे। सात दिन में अच्छे से अंकूरण हो गया। जब पौध 4’’ की हो गई। तो 14’’के गमले में ड्रेनेज होल पर ठीकरा रखकर किचन वेस्ट आधा भरकर, उस पर में 60% मिट्टी, 20% वर्मी कम्पोस्ट, 5% नीम खली, 15% बोन मील मिला कर  इस मिट्टी को मिला कर उसमें भर दिया। शाम के समय मिर्च की पौध को इसमें रोपित कर दिया। गमले को ऐसी जगह रखा जहां अच्छी धूप आती है। जब उपरी पर्त हल्की सूखने लगती तब पानी दिया। 6’’ का पौधा होने पर 1’’ऊपर से पौधे को हल्के हाथ से तोड़ दिया। अब इसमें से खूब उपशाखाएं फूटीं। 15 दिन के बाद गुड़ाई करती और महीने में एक बार वर्मी कम्पोस्ट डालती। पौध रोपण के 35 दिन बाद उपशाखाओं को भी ऊपर से एक इंच तोड़ दिया। इससे पेड़ घना झाड़ीदार हो गया और ज्यादा फूल तो फल भी ज्यादा।   


       
 मुफ्त में ग्रुप ग्रो बनाना https://youtu.be/RsfCymsbTDk 



  


Tuesday 15 September 2020

बैगन उगाना थ्री 3 G कटिंग से नीलम भागी Brinjal ugana Neelam Bhagi



एक छोटे परिवार में दो बैंगन के पौधों से ही काम चल जाता है। कम जगह में भी जहां धूप आती है ये उग जाते हैं। अब ये आपकी पसंद है कि गोल, लंबे, छोटे, हरे, बैंगनी या सफेद कैसे भी उगाने हैं? मुझे गोल र्भता बैंगन पसंद है लेकिन जब भी मैंने पौधे उगाए तो उनसे लंबे बैंगन ही मिले। खुद से उगाये हैं, ज़ाहिर है स्वाद में लाजवाब तो हैं ही। मैंने फ्लॉर शो के स्टॉल से कवर पर गोल बैंगन की तस्वीर देखकर हाइब्रिड बीज खरीदे। सीडलिंग ट्रे में मैंने 50 कोकोपिट, 30 वर्मी कम्पोस्ट और मिट्टी मिला कर भर दिया। उसमें एक एक बीज रख कर, मिट्टी से बस बीजों को ढक कर पानी छिड़क दिया। ऐसी जगह में रख दिया जहां सुबह शाम की हल्की धूप आये। सात दिन में अंकूरण हो गया। जब इसमें तीन चार पत्ते आ गए। तो रसोई के कचरे से आधे भरे 14’’ के गमलों में 50 मिट्टी, 30 वर्मी कम्पोस्ट, 10 कोकोपिट, 10रेत, एक मुठ्ठी नीम की खली और बोन मील मिला कर गमले को भर दिया। पानी के निकास का पूरा ध्यान रखा। पौध को निकाल कर शाम के समय इन गमलों में लगा दिया। और जमने पर गमलों को सीधी धूप में रख दिया। जब ये पौधा 6’’ का हो गया तो मेन ब्रांच को उपर से थोड़ा तोड़ दिया। नोचना या खीचना नहीं है। नहीं जो पौधा जड़ से उखड़ जाएगा या मुलायम जड़ खींचने से पौधा मर सकता है। अब इसकी साइड ब्रांच यानि उपशाखाएं फूट कर निकलेगीं। दो महीने के बाद उपशाखाओं को भी आगे से थोड़ा थोड़ा तोड़ दिया है जिससे और शाखाएं फूंटी। मतलब जितनी शाखाएं उतने फल और फूल। अब इसमें हर महीने गोबर की खाद डाली है। तीसरे महीने फूल आ गये। इसमें सेल्फ पॉलीनेशन भी होता है। फल को ज्यादा दिन न लगा रहने दिया। कैंची से बैंगन को शाखा से काटती रही। ज्यादा दिन तक फल को पेड़ से लगा रहने देनेे से बीज बढ़़ जाते हैं। तीन से चार महीने फल देने के बाद पत्तियां पीली पड़ने लग गईं। तब नीचे की टहनियां  छोड़ कर उपर की काट दीं। 6 महीने बाद ये फिर पहले की तरह फूट गई हैं। बैंगन बेड कोलेस्ट्रोल को कम करता है इसलिए मेरे घर में इसके पोधे हमेशा रहते हैं|


        


Monday 14 September 2020

ये मोह मोह की तोरई....... नीलम भागी Ye Moh Moh Ke Torai Neelam Bhagi






 अपने हाथ से उगाई सब्ज़ी से बहुत मोह हो जाता है। जैसे मेरे उगाये करले, मुझे कड़वे नहीं लगते। उन्हें मैं छिलती भी नहीं, बिना छीले बनाती हूं। बागवानी की शुरुवात तो मैंने गमले में हरी पत्तेदार सब्ज़ियां उगाने से की थी। मेरे पास एक 20’’ का गमला था। पहली बार तोरई उगा रही थी इसलिये इसमें मैंने कोई प्रयोग नहीं किया था। 70%  मिट्टी में 30% गोबर की खाद और थोड़ी सी नीम की खली मिला कर, गमले के छेद पर ठिकरा इस तरह रखा कि फालतू पानी निकल जाए। फिर गमले में ये बनाई हुई मिट्टी भर दी। उसमें एक इंच गहरा अंगुली से गड्ढा  करके हाइब्रिड तोरई के बीज हल्के हाथ से अलग अलग 5 जगह दबा दिए और पानी छिड़क दिया। गमले को ऐसी जगह रखा, जहां कम से कम पांच घण्टे धूप आए। सात दिन बाद बीजों का अंकूरण हो गया। एक महीने बाद उसमें से धागे निकलने लगे तो मैंने ग्रिल से डोरी लटका दी और बेल के साथ छोटी सी डण्डी गाड़ दी और उससे डोरी लपेट दी। बेल उससे लिपट कर दीवार पर चढ़ गई। सफेद दीवार पर हरी बेले बहुत सुन्दर लग रहीं थीं। 

एक दिन मेरी बेलों से पत्ते गायब थे। हमारे ब्लॉक में पशु आ ही नहीं सकता र्गाड जो है। पार्क में बाइयां बतिया रहीं थीं। मैंने उनसे तोरई के पत्तों के पत्तों के बारे में तफतीश की।


उन्होंने बताया कि अमुक देश की कामवालियां लौकी, तोरी, कद्दू सबके पत्तों की सब्जी बना लेतीं हैं। जिस देश का उन्हों ने नाम लिया मैंने गार्ड से पता लगाया कि वे कौन से घरों में उस देशवालियां काम करती  थीं, पता चला कि वे पांच घरों में काम करतीं थी। मैं उसे मिली और उन्हें कहा कि तुम इस ब्लॉक में नई आई हो और मेरी बेलों से पत्ते गायब हो गए हैं। उन्होंने कहा कि अब वे नहीं तोड़ेंगी। मैं पंद्रह दिन में उनकी गुड़ाई करती, खाद लगाती। जरा सा पत्तें में छेद देखते ही, नीम के तेल का स्प्रे करती। दो महीने दस दिन बाद उसमें पीले फूल आ गये। साथ ही तरह तरह के कीट, मधुमक्खियां आने लगी। मेल फीमेल दोनों तरह के फूल मैं देखती। तोरियां भी लगने लगी। पहली बार दो बेलों से बहुूत प्यारी सात तोरियां उतारीं। 

 इन तोरियों को धोकर जब मैं छील रही थी तो इनके मुलायम छिलके भी मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे। मैंने छिलके रख लिए। सब्जी़ जैसे तोरी की बनाती हूं बनाई। प्रेशर कूकर में प्रेशर बनने पर आंच बिल्कुल धीमी कर दी। पांच मिनट के बाद गैस बंद कर दी। पै्रशर खत्म होने पर खोला। तोरई में तो पानी डालते ही नहीं हैं। ये मोह से उगाई तोरई की तो मैंने भाप भी कूकर की सीटी से नहीं निकलने दी। वो भी ग्रेवी में  बदल गई। अच्छी तरह कलछी चलाई। छिलकों में मैंने काट कर दो प्याज डाले, स्वादनुसार नमक, अजवाइन और सौंफ पाउडर डाल कर मिक्सी में बारीक पीस लिया और परात में निकाल लिया। इसमें आटा डालती जा रही थी और जैसा पूरी के लिए लगाते हैं वैसा सख्त लगाया। क्योंकि नमक के कारण ताजी मोह की तोरी और प्याज पानी छोड़ेंगे। इसलिए पानी बिल्कुल नहीं डाला। हरी हरी फूली फूली मोह से उगाईं ताजी तोरियों के छिलकों की पूरियों के साथ तोरी की सब्जी का साथ, बहुत ही लाजवाब था। बाजार से खरीदी तोरी के छिलके तो कम्पोस्ट में जाते हैं। उनसे मोह जो नहीं होता। अब किचन वेस्ट के ऊपर तैयार की गई मिट्टी डालकर उगाती हूं।