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Monday, 31 August 2020

अगले बरस तूं जल्दी आ, गणपति बप्पा मोरया नीलम भागी Agley Baras Tu Jaldi Aa, Ganpati Bappa Morya Part 4 Neelam Bhagi




मेरी आंखें हमारी सोसाइटी के विर्सजन जूलूस को तलाश रहीं थीं। जो सायं चार बजे से चला था। वहां से पैदल मैं दस मिनट में आ गई थी। पर वे नाचते हुए आ रहे थे। बप्पा के आने की खुशी में महिलाएं दिनभर किचन में तरह-तरह के पकवान बनाती। श्रद्धा भावना से उनके दिमाग में था कि कोई भी बप्पा की पसंद का पकवान उनसे छूट ना जाए। गणपति साल  में एक बार ही तो आते हैं।

तब भी  महिलाओं के चेहरे पर कोई थकान नहीं थी। वे खुशी से नाचती हुई आ रही थी। अब वे लाइन में लगे हैं और मेरे दिमाग में अब तक की सुनी गणपति की कथाएं चल रहीं थीं। महर्षि वेदव्यास ने गणपति को महाभारत की कथा लिखने को कहा क्योंकि उनके विचार प्रवाह की रफ्तार से, कलम साथ नहीं दे रही थी। उन्होंने गणपति से लिखने को कहा तो उन्होंने लिखना स्वीकार  किया पर तय कर लिया कि वे लगातार लिखेंगे। जैसे ही उनका सुनाना बंद होगा, वह आगे नहीं लिखेंगे। महर्षि ने भी गणपति से विनती कर कहा कि  आप भी एडिटिंग साथ साथ करेंगे। गणपति ने स्वीकार कर लिया, जहां गणपति करेक्शन के लिए सोच विचार करने लगते, तब तक महर्षि अगले प्रसंग की तैयारी कर लेते। वे लगातार कथा सुना रहे थे। दसवें दिन जब महर्षि ने आखें खोलीं तो पाया कि गणपति  के शरीर का ताप बढ़ गया है। उन्होंने तुरंत पास के जलकुंड से जल ला कर उनके शरीर पर प्रवाहित किया। उस दिन भाद्रपद की चतुर्दशी थी। इसी कारण प्रतिमा का विर्सजन चतुर्दशी को किया जाता है।  महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। ग
णपति उत्सव की शरूवात, सांस्कृतिक राजधानी पुणे से हुई थी। शिवाजी के बचपन में उनकी मां जीजाबाई ने पुणे के ग्रामदेवता कस्बा में गणपति की स्थापना की थी। तिलक ने जब सार्वजनिक गणेश पूजन का आयोजन किया था तो उनका मकसद सभी जातियों धर्मों को एक साझा मंच देना था। पहला मौका था जब सबने देव दर्शन  कर चरण छुए थे। उत्सव के बाद प्रतिमा को वापस मंदिर में हमेशा की तरह स्थापित किया जाने लगा तो एक वर्ग ने इसका विरोध किया कि ये मूर्ति सबके द्वारा छुई गई है। उसी समय निर्णय लिया गया कि इसे सागर में विसर्जित किया जाए। दोनों पक्षों की बात रह गई। तब से विर्सजन शुरु हो गया। हमारे गणपति का रात नौ बजे विर्सजन हुआ और मैं सबके साथ घर लौटी। इस बार सब तस्वीरें भेज रहें हैं। पर्यावरण प्रेमी सुधेन्द्र कुलकर्णी ने हैदराबाद से गणपति पूजन की तसवीरें भेजी हैं। गमलों पौधों से सजा कर, लाल आसन पर गणपति को हरियाली से सजे कुंज में बिठाया है। 

प्रथम लेखक
 गणपति, शक्ति(लाल) समृद्धि(हरा) लाते हैं।  और बताया कि उस साल कोरोना संक्रमण के कारण लोगों से अपील की थी कि इस दौरान गाइड लाइन का पालन करें। सार्वजनिक पूजा में भीड़़ जुटाने की अपील नहीं की। प्रसाद में भी फ़ल दे रहे थे| सेनेटाइजेशन, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहें थे।
आगमन, विर्सजन के जूलूस नहीं निकल रहे थे, विर्सजन के स्थान पर होने वाली आरती अब घर में ही कर रहें थे। बच्चे, बुर्जुग विर्सजन में नहीं गए। हमारे सेक्टर के ललित गुप्ता ने भी श्री हनुमान मंदिर सेक्टर 11, नोएडा मंदिर में गणपति स्थापित किए हैं। 

कोरोना मुक्त भारत हो इसके लिए स्वास्थय से जुड़ी जानकारियां दी जा रही थीं, गणपति उत्सव में, आज तिलक की याद आ रही हैं उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सबको संगठित किया था। तब कोरोना से बचाव और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दी जा रही थीं। गाइड लाइन का पालन हो रहा था। विसर्जन के लिए तालाब बनाया गया| अगले साल उनसे जल्दी आने का निवेदन करते हुए विसर्जन किया| तब कोरोना मुक्त हम पहले की तरह गणपति उत्सव मनाएंगे|अब हम पहले की तरह गणपति उत्सव मना रहे हैं।





देवा ओ देवा गणपति देवा, गणपति बाप्पामोरया भाग 3 नीलम भागी Deva O Deva Ganpati Deva Neelam Bhagi


 सैयद जहां से भी रास्ता बदलते वहीं हमें विसर्जन का जलूस मिलता। मैं ये दावे से कह सकती हूं कि आस्था और भाव भक्ति से किए उन नृत्यों को जिन्हें मैंने गणपति विर्सजन जूलूस में देखा था उसे दुनिया का कोई भी कोरियोग्राफर नहीं करवा सकता है। गणपति के आकार में और जूलूसों में श्रद्धालुओं की संख्या में अंतर था पर चेहरे के भाव को दिखाने के माप का अगर यंत्र होता तो सबका भाव एक ही होता। किसी के गणपति चार या तीन पहिए के सजे हुए ठेले पर हैं, ऑटो रिक्शा में तो किसी ने उन्हें सिर पर बिठा रखा है। कोई बहुत सजे हुए ट्रक में विराजमान हैं। पर सब गणपति से बिनती कर रहें हैं कि अगले बरस तूं जल्दी आ। 
अगले दिन उत्कर्षिनी बोली,’’संगीता दास के घर गणपति आये हैं। उसका घर दूर हैं पहले उसके घर जायेंगे फिर विजेता के गणपति से मिलेंगे।’’गीता लहंगा पहन कर तैयार हुई। संगीता के घर हम तीन बजे पहुंचे। वह फिल्म इण्डस्ट्री में है। वह यहां अकेली रहती है। भतीजी चंचल दास(टुन्नु) दूरी के कारण होस्टल में रह कर पढ़ती है। गणपति को अकेला तो छोड़ते नहीं। घर में दादी के गणपति के पास तो परिवार है। यहां वह बुआ के गणपति के पास आ गई। 
संगीता ने बड़ी प्लेटों में तीनों को अलग अलग, बहुत वैराइटी का प्रशाद दिया। सब कुछ घर में बनाया हुआ और बहुत स्वाद। उत्कर्षिनी ने पूछा,’’अकेली ने इतना सब कैसे बनाया!! एक को तो गणपति के पास बैठना है। टुन्नु चाय बना कर लाई बोली,’’कोई आता है तो चाय पानी प्रशाद मैं लाती हूं, बुआ उनसे बात करती है। संगीता बोली,’’तीन दिन के लिए तो गणपति आएं हैं। बाजार का भोग लगाने को मन नहीं मानता, मैं बहुत शौक से बनाती हूं। विजेता का घर तो हमारे रास्ते में था। वहां हम आरती के समय पहुंचे। पण्डित जी नौ बजे के बाद आरती करवाने आए, वो बहुत बिजी थे। आरती सम्पन्न होने तक घर के सभी सदस्य पहुंच गए थे सबने डिनर किया। रात 11 बजे हम लौटे। आनंद चर्तुदशी के दिन सोसाइटी के गणपति का विर्सजन था। नाचते जयकारे लगाते सब गणपति के जूलूस में चल दिए। पर्यावरण का ध्यान रखते हुए, वर्सोवा में एक तालाब बनाया था, वहां विर्सजन था। ट्रक में गणपति बाकि पैदल नाचते हुए जा रहे थे। मैं बैक रोड से जल्दी जल्दी पेैदल वहां पहुंच गई। वहां बड़ा मंच बना हुआ था। गणमान्य लोग वहां बैठे थे। मैं किसी तरह तालाब के सहारे मंच के पास खड़ी हो गई। इस जगह से मुझे तीनों सड़कों से आते विसर्जन के जुलूस दिख रहे थे। सोसाइटियों के लोग अपने गणपति के साथ प्रतीक्षा कर रहे थे। अपने नम्बर से पहले गणपति बप्पा की आरती करते।

 माइक से जब सोसाइटी का नाम बोला जाता तो वो गणपति को सुनिश्चत जगह पर लाते, तालाब में खड़े तीन आदमियों में से दो बड़ी श्रद्धा से गणपति लेकर विसर्जित करते। जोर जोर से जयकारे लगते और म्यूजिक बजता। मैं अपनी सोसाइटी के गणपति के इंतजार में खड़ी थी। मेरे दिमाग में अब तक की सुनी गणपति की कथाएं चल रहीं थीं।  क्रमशः

Sunday, 30 August 2020

टुन्नू के प्यारे गणपति बप्पा मोरया भाग 2 नीलम भागी Ganpati Bappa Morya Part 2 Neelam Bhagi





बारिश तो इन दिनों कभी भी आ जाती है पर कोई परवाह नहीं, न ही कभी किसी के श्रद्धा और उत्साह में कमी दिखती है। जो जहां कहीं भी जा रहे होते या आ रहे होते वैसे ही आना जाना करते। इन दिनों मुझे यहां कुछ न कुछ प्रभावित जरुर करता रहता था। घरों में भी गणपति बिठाते हैं, पूजन होता है। 1, 3, या पांच दिन बिठाते हैं। गौरी पूजन, दो दिन लक्ष्मी पूजन, छप्पन भोग, त्यौहार के बीच में बेटियां भी मायके आती हैं गणपति से मिलने और बहुएं भी मायके जाती हैं बप्पा से मिलने। मसलन जैसे हमारे सामने के फ्लैट में रहने वाले परिवार ने गणपति बिठाए तो उनके तीनों भाइयों के परिवार वहीं आ गए। पूजा तो हर समय नहीं होती है, बच्चे आपस में घुल मिल रहें हैं। महिलाओं पुरुषों की अपनी गोष्ठियां चल रहीं थी। एक दिन अप्टमी मनाई गई। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गौंरा अपने गणपति से मिलने आती हैं। उपवास रखकर, कुल्हड़ के आकार या गुड़ियों के रुप में गौरी पूजते और खिलाते हैं ।

 सबको भोजन कराते हैं। दक्षिणा उपहार देते हैं पर उस दिन जूठन तक नहीं फेंकते। यहां तक कि पान खिलाया तो उसका कागज भी दहलीज से बाहर नहीं डालते। अगले दिन दक्षिणा उपहार ले जा सकते हैं। शाम को आरती के बाद कीर्तन होता। उसमें नाचते गाते हैं। मंगलकारी बप्पा साल में एक बार तो आते हैं। इसलिए उनके सत्कार में कोई कमी न रह जाए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार मोदक, लड्डू के साथ तरह तरह के व्यंजनों का भोग लगाते हैं। जो सब मिल जुल कर, प्रशाद में खाते हैं। थोड़ी सी जगह में संबंधियों मित्रों के साथ आनंद पूर्वक नाच भी लेते हैं। लगातार तीन साल के गणेशोत्सव में मैं प्रतिदिन कहीं न कहीं गई हूं। वहां हर जगह नियंत्रित भीड़ और जिस भी सोसाइटी के गणपति उत्सव में मैं गई, देखा सब थोड़ी जगह में एडजस्ट हो जाते हैं, इससे मैं बहुत प्रभावित हुई। दोनों समय की आरती में सभी की कोशिश होती है कि वे जरुर पहुंचें। मेड और मैम दोनो एक दूसरे का सहयोग करते हैं। मेड सुबह जल्दी आती हैं आरती से पहले या बाद में। काम में नागा विसर्जन पर ही एक दिन का। आपके घर मेड काम कर रही है। सोसाइटी के गणपति की आरती शुरु हो गई। उसी समय काम छोड कर, हाथ धो कर बोलेगी,’’दीदी, मैं जाकऱ आती।’’ और आरती में जाकर शामिल हो जाती। समापन पर आकर वैसे ही जल्दी जल्दी काम में लग जाती। विर्सजन का दिन तो मुझे घर से बाहर ही रहने को मजबूर करता। गणेश चतुर्थी के बाद मैं पहली बार लोखण्डवाला से इन्फीनीटी मॉल के लिए निकली। ढोल नगाड़ों की आवाजें तो आ रहीं थीं। सोसाइटी के गेट से बाहर निकलते ही देखती हूं। एक लड़की ने बड़ी श्रद्धा से गणपति गोद में ले रखे हैं। दूसरी लड़की साथ चल रही है। दोनों जोर लगा कर कुछ बोल रहीं हैं और ढोल की ताल पर उनके पैर चल रहें हैं।  उनके चेहरे से टपकती श्रद्धा को तो मैं लिखने में असमर्थ हूं। मनचला तो मुंबई में होता ही नहीं।  कुछ सुनाई नहीं दे रहा था क्योंकि ढोल वाला भी जोर जोर से ढोल बजा रहा था। उनके पीछे, सामने से भी बड़ा विर्सजन जूलूस आ रहा था। यहां ढोल से ज्यादा ऊंची आवाज़ में श्रद्धालु जयकारे लगा रहे थे,’’गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तूं जल्दी आ।’’मैंने सैयद से पूछा,’’ये दोनों लड़कियां क्यों विर्सजन के लिए अकेली जा रहीं थीं?’’सैयद बोले,’’बाहर की होंगी। बप्पा ने जल्दी सुन ली होगी। नई नौकरी होगी, तभी तो एक दिन के बिठाएं हैं।’’ क्रमशः       

     

Saturday, 29 August 2020

सजाया घर को दुल्हन सा, गजानन घर में आएं हैं Ganpati Bappa Morya Neelam Bhagi Part 1 गणपति बाप्पामोरया भाग 1 नीलम भागी




अरुणा ने आज चहकते हुए घर में कदम रक्खा और बड़ी खुशी से मुझे बताया,’’दीदी मेरे बेटे ने कहा कि इस गणपति पर वह मुझे सोने की चेन लेकर देगा।’’मैंने पूछा कि तेरे बेटे की बढ़िया नौकरी लग गई हेै क्या?" वो बोली,’’नहीं दीदी, मेरा बेटा बहुत अच्छा ढोल बजाता है। बप्पा को ढोल, नगाड़े बजाते, नाचते हुए लाते हैं  और ऐसे ही विसर्जन के लिए ले जाते हैं। इन दिनों बेटे की सूरत भी बड़ी मुश्किल से देखने को मिलती है पर गणपति बप्पा उस पर बड़ी मेहरबानी करते हैं।’’ और बिना कहे गाते हुए ’सजा दो घर को दुल्हन सा, गजानन मेरे घर में आएं हैं ’ घर का कोना कोना चमकाने लगी। मेरा मुम्बई में यह पहला गणपति उत्सव था। मेरे मन में बड़ा उत्साह था कि मैं स्वतत्रंता सेनानी समाज सुधारक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा रोपा पौधा सार्वजनिक गणेश उत्सव, जो आज विशाल वट वृक्ष बन गया है उसे मुम्बई में मनाउंगी। आज जिसकी शाखाएं पूरे देश में जम गईं हैं और ग्यारह दिनों तक चलने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है। तिलक ने हमारे अग्रपूज्य, दक्षिण भारत के कला शिरोमणि गणपति को, 1893 में पेशवाओं के पूज्यदेव गजानन को बाहर आंगन में विराजमान किया था। आम आदमी ने भी, छुआछूत का भेद न मानते हुए पूजा अर्चना की, सबने दर्शन किए। उस समय का उनका शुरु किया गणेशोत्सव, राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना और समाज को संगठित किया। आज यह पारिवारिक उत्सव, समुदायिक त्योहार बन गया है।

कई दिन पहले जगह जगह लगी अस्थाई दुकानों में बरसात से बचाते हुए, हर साइज के गणपति सजे हुए थे। लोगों की श्रद्धा के कारण मुझे तो मुम्बई में इन दिनों भक्ति भाव का माहौल लग रहा था और महानगर गणपतिमय था।    

हमारी सोसाइटी में बड़ी जगह का इंतजाम किया गया था| उसके लिए कुछ गाड़ियों को दूसरी जगह पार्किंग दी गई। गणपति के लिए वाटर प्रूफ मंदिर बनाया, स्टेज़ बनाई गई और बैठने की व्यवस्था की गई। सभी फ्लैट्स में गणेश चतुर्थी से अनंत चतुदर्शी तक होने वाले बौद्धिक भाषण, कविता पाठ, शास़्त्रीय नृत्य, भक्ति गीत, संगीत समारोह, लोक नृत्य के कार्यक्रमों की समय सूची पहुंच गई थी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मैं सूची पढ़ती जा रही थी और अपनी कल्पना में, मैं तिलक की आजादी की लड़ाई से इसे जोड़ती जा रही थी। इनके द्वारा ही समाज संगठित हो रहा था, आम आदमी का ज्ञान वर्धन हो रहा था और छुआछूत का विरोध हो रहा था। गणेश चतुर्थी की पूर्व संध्या को सब तैयार होकर गणपति के स्वागत में सोसाइटी के गेट पर खड़े हो गए। ढोल नगाड़े बज रहे थे और सब नाच रहे थे। गणपति को पण्डाल में ले गए। अब सबने जम कर नाच नाच कर, उनके आने की खुशी मनाई। आवाहन से लेकर विर्सजन तक श्रद्धालु, आरती, पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लगभग सभी उपस्थित रहते। गणपति को कभी अकेला नहीं छोड़ा जाता था। गीता को तो इन दिनों घर में रहना पसंद ही नहीं था। यही हाल उसके हम उम्र सब बच्चों का था। मांए खींच खींच कर इन्हें घर में खिलाने पिलाने लातीं, खा पीकर बच्चे फिर पण्डाल में। रात को ये नन्हें दर्शक, जो प्रोग्राम यहां देखते, दिन में गर्मी की परवाह किए बिना वे उसकी नकल दिन भर स्टेज पर करते। सभी बच्चे इस समय कलाकार होते। दर्शकों की उन्हें जरुरत ही नहीं थी। मुझे बच्चों के इस कार्यक्रम में बहुत आनंद आता। क्रमशः



Sunday, 23 August 2020

देखो, मगर प्यार से"😃ट्रक के यात्री नीलम भागी Dekho , Mager Pyar Se, truck ke yatri Neelam Bhagi



हुआ यूं कि मैं जब भी साहित्यकारों, लेखकों और कवियों की गोष्ठी में जाती हूं तो कोई विद्वान मुझसे प्रश्न पूछ लेता है।
 जैसे विद्वान,’’आप लिखती है?’’ मेरा जवाब,’’जी ऐसे ही कुछ लिख लेती हूं।’’
 विद्वान जी का अगला प्रश्न,’’आपकी लिखने की विधा कौन सी है?’’ इस प्रश्न को सुन कर, मैं दुविधा में पड़ जाती हूं। कई बार मेरे मुंह से निकल जाता, मेरी विधा है,’’दुविधा।’’कोई नई विधा होगी शायद ये सोच कर आगे वे प्रश्न पूछना बंद कर देते हैं। मैं वैसे भी विज्ञान की छात्रा रहीं हूं। जो दिमाग में आता है वह लिख लेती हूं। जो पढ़ने को मिले पढ़ लेती हूं। स्कूल में एक निबंध लिखते थेे साहित्य या सिनेमा समाज का दर्पण है। वैसे मुझे गाड़ियों, ट्रकों के पीछे लिखी कविता, शायरी पढ़ने का बहुत शौक है। उसे मैं दिल से पढ़ती हूँ इसलिये मुझे याद भी हो जाती हैं। अधिकतर उनके पीछे चेतावनी लिखी होती है।
 इस सड़क साहित्य के कुछ ही शब्द प्यार के रंग, नसीहतें, चेतावनी, समस्या, उपाय, आज्ञा, चैलेंज, आस्था, अनुभव, डर, देश की चिंता, दार्शनिकता के साथ हंसा भी देते हैं। मसनल

 ’हंस मत पगली, प्यार हो जायेगा।’

 ऐसे न देखो, प्यार हो जायेगा,

 देखो मगर प्यार से,

 फिर कब मिलोगे!! 

चल हट कोई देख लेगा,

 हम हैं राही प्यार के, प्यार बांटते चलो,

 जैसी भी है मेरी है,

 बुलाती है मगर जाउंगा नहीं, मैं तो इसे ही चलाउंगा,

’नाली में पैर डालोगी, धोना ही पड़ेगा। ड्राइवर से प्यार करोगी, रोना ही पड़ेगा।’

 धीरे चलोगे तो बार बार बात होगी, तेज चलोगे तो हऱिद्वार में मुलाकात होगी।

 जिन्हें जल्दी थी, वो चले गए। 

सावधानी हटी, सब्जी़ पूड़ी बटी। 

भगा ले चाहे जितना, आसमां से मिला दूंगी। जरा सा हाथ बहका तो मिट्टी में मिला दूंगी।

 रानी बनाकर रख, राजा बना दूंगी। 

लटक मत, पटक दूंगी।


 Dont overtake, Driver is Sleeping 

हट पीछे नही तो लात मार दूंगी।  

हम दो हमारे दो 

We 2 Our 2

हम दो हमारा एक  

आपको बेटा चाहिए या बेटी 

बच्चे दो ही अच्छे

 एक गर्लफ्रैंड सौ टैंशन।

 सौ गर्लफैंड नो टैंशन।

दुल्हन ही दहेज़ है, दहेज लेना पाप हैं,, ये आज तक समझ नहीं आया, आदमी शादी किससे करे!!

 P.K. 100  जा  

Keep Distance

 बजा होरन, निकल फोरन। 

दम है तो पास कर वरना बरदासकर।

 जय मां काली।

पहले जय माता दी बोलो, बाद में खिड़की खोलो।

न तीर से न तलवार से, बंदा डरता है तो आर.टी.ओ. की कार से।

हजारों देशवासियों ने जान लुटाई थी, कौन कहता है कि चरखे से आजादी आई थी। 

मेरा देश महान, सौ में निन्यानवे बेईमान।

अमीरों की जिंदगी बिस्कुट और केक, ड्राइवर की ज़िदगी स्टिेयरिंग और ब्रेक।

56 के फूल 64 की माला, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला।

 बुरी नज़र वाले, तूं ज़हर खा ले।

 बुरी नज़र वाले तेरे बच्चे जिएं, बड़े होकर तेरा खून पिएं। 

बुरी नज़र वाले, तेरे मुंह पर जूते पड़ें साले।

ना किसी की बुरी नज़र न किसी का मुंह काला, सबका भला करेगा नीली छतरी वाला। 

किस किस की नज़र को देखें हम सब की नज़र में रहते हैं।

किस्मत ही कुछ ऐसी पाई है, हर वक्त सफ़र में रहते हैं।

 पाप से डरो, पापी से नहीं।  

पप्पु पास हो गया।

चलती है गाड़ी, उड़ती है धूल, जलते हैं दुश्मन खिलतें हैं फूल।

 मालिक की गाड़ी, ड्राइवर का पसीना, रोड पे चलती हूं बन के हसीना। 

दस रूपये की पैप्सी, तेरा भाई सैक्सी।

 प्यार बांटते चलो। 

भांग मांगे रबड़ी, अफीम मांगे घी।

शराब मांगे जूते, सोच समझ के पी। 

When I drink...., U look more beautiful.

If u follow me, u will get lost

A  देख K 

बहुत हसीन हैं पहाड़ों की राहें, पर खाइयां डरा देती हैं।

भाइयों में बड़ा प्यार होता है, पर भाभियां लड़ा देती हैं।

मुझे पल भर का आराम नहीं

मेरी मंजिल सुबह कहीं, शाम कहीं

टैम्पू पर लिखा है -मैं बड़ा होकर ट्रक बनूंगा 

यारी पक्की,  खर्चा अपना अपना

समय से पहले और भाग्य से ज्यादा 

न किसी को मिला है न मिलेगा  

या अल्लाह मुझे अपनों से बचा, गैरों से तो मैं निपट लूंगा। 

Jasbir Singh Bhagi ji Ne bhe truck se 🚛 Lee hai (Jalo mat kisto par aye hoon😂

Chalti yaara de Ghari hai Sardara de                 nai Ghadi te likha hai        Hatt peache              jarra purani ho jai  Boori nazar wale tera muh kala                                                                 jayada purani Chal rani tera rabh rakha

Peeti aa ta so ja khaadi (afeem) te aaja

Dekhi jaa Chedi naa😀) 

साहित्य समाज का दर्पण है। कोरोना काल में सड़क साहित्य में परिवर्तन है। 
 
       .देखो मगर प्यार से….

कोरोना डरता है वैक्सीन की मार से"

—-

"मैं खूबसूरत हूं मुझे नजर न लगाना

जिंदगी भर साथ दूंगी, वैक्सीन जरूर लगवाना"

—-

"हंस मत पगली, प्यार हो जाएगा

टीका लगवा ले, कोरोना हार जाएगा"

—-

"टीका लगवाओगे तो बार-बार मिलेंगे

लापरवाही करोगे तो हरिद्वार मिलेंगे"

—-

"यदि करते रहना है सौंदर्य दर्शन रोज-रोज

तो पहले लगवा लो वैक्सीन के दोनों डोज"

—-

"टीका नहीं लगवाने से

यमराज बहुत खुश होता है।"

"चलती है गाड़ी, उड़ती है धूल

वैक्सीन लगवा लो वरना होगी बड़ी भूल"

—-

"बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला

अच्छा होता है वैक्सीन लगवाने वाला"

—-

"कोरोना से सावधानी हटी,

तो समझो सब्जी-पूड़ी बंटी"

—-

"मालिक तो महान है, चमचो से परेशान है।

कोरोना से बचने का, टीका ही समाधान है।"

जब भी मुझसे कोई गलती होती है, तो पछताने के समय मेरे मुँह से ट्रक के पीछे लिखी चेतावनी, अपने आप निकल जाती है, जैसे किसी वेदपाठी के मुँह से एैसे मौके पर श्लोक निकलता है जैसे नेकी कर और जूते खा। मैंने भी खाएं हैं, तूं भी खा।

 


Saturday, 22 August 2020

ओपन ब्यूटी पार्लर, ओपन हेयर कटिंग सैलून और कौशल विकास नीलम भागी Open Beauti parlour Open Hair Cutting Salon & Skill Development Neelam Bhagi



 

मेरे घर के आस पास से गुजरने वाली सभी बाइयों की आई ब्रो हमेशा तराशी हुई रहती हैं और बहुत बढ़िया शेप दी हुई होती है। देख कर ऐसा लगता है जैसे किसी ने ब्रश से सधे हुए हाथों से काले रंग से खींची हो। ये प्रश्न  दिमाग में उठ खड़ा हुआ कि पता लगाती हूं कि ये कौन से पार्लर से थ्रैडिंग करवाती हैं? वॉक के लिए सेक्टर का चक्कर लगाती हूं तो घूर घूर कर बाइयों की आइब्रो ही देखती रहती हूं। सभी की लाजवाब शेप। अक्सर शाम के समय मैं देखती हूं कि जिन कामवालियों ने बाल कटवा रखे हैं, अब उन्होंने खोल रखे थे। किसी का पति किसी का बॉयफ्रैंड, उनका मोटरसाइकिल पर इंतजार कर रहा था। वे उस पर बैठतीं और हवा में बाल उड़ाती चल पड़तीं। एक दिन मैंने अपनी मेड से पूछ ही लिया,’’अरुणा तेरी आइ ब्रो कौन बनाता है?’’उसने जवाब दिया,’’दीदी मेरे पड़ोस में एक लड़की रहती है वो बनाती है।’’ साथ ही उसकी कहानी सुनानी शुरु कर दी,’’ दीदी वो न एक पार्लर में सफाई के काम पर लगी थी। सुबह जाती थी, रात को आती थी। कपड़े भी बढ़िया पहन कर जाना पड़ता था। पैसे बहुत कम मिलते थे। वहां वो सब काम देखती रहती थी। मंगल की छुट्टी रहती को वह सबके बाल मुफ्त में काटती थी और जो उससे आई ब्रो बनवाता था, उसे वो दस का नोट देती थी। दीदी खराब आइब्रो लेकर कौन महीना भर घूमेगा? हमारी झुग्गियों के छोटे लड़के लड़कियां पैसे के लालच में बनवा लेते थे कि आइब्रो का क्या है? फिर बाल आ जायेंगे। दस का नोट तो मिल रहा है। जब वो बढ़िया बनाने लगी तो हम पैसे देकर बनवाने लगे। अब वो तीन घरों में दो टाइम का खाना बनाती है। जो पार्लर का काम करवाना चाहे कर देती है। एक दिन ऐसे ही किसी को धोबी के ठिए के साथ काम करते देखकर, अरुणा की सुनाई कहानी याद आ गई। अच्छा लगा देख कर कि खुद भी संवरतीं हैं और दूसरों को भी संवारती हैं। ऐसे ही...  

   मार्किट से बाहर एक पेड़ के नीचे ओपन हेेयर कटिंग सैलून तो मैंने देखा है। जिसमें पेड़ में कील गाड़ कर शीशा लटक रहा था। बाकि का सामान भी तने में गढ़े हुकों पर लटका रहता है। उसके बाजू में बस स्टैण्ड है। उसकी चमचमाती नई सीटों पर जैंट्स ही बैठे होते हैं। एक दिन मैं भी जानकारी अर्जित करने के लिए बस स्टैण्ड पर जाकर बैठ गई। जो लड़का नाई की कुर्सी पर बैठता, वह पहले उसे मोबाइल से हेयर कट दिखाता फिर पूछता ऐसा ही चाहिए। नाई बोलता,’’हो जायेगा, ये तो अमुक हीरो का है।’’अब लड़का अगला प्रश्न उछालता,’’मुझ पर जचेगा।’’नाई जवाब देता,’’साब, कटिंग बिल्कुल ऐसी ही करुंगा। ये तो कटिंग के बाद आइना बतायेगा, बोलो काटूं!!’’उसके हां कहने पर वह बड़ी लगन से काटने लगता है। वहां बैठे लड़के आने वाली बसों को न देख कर नाई को बाल काटता देख रहे थे यानि अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे, ओपन हेयर कटिंग सैलून में बाल कटवाने के लिए। अब मैं उठ कर घर जा रही हूं साथ ही सोचती जा रहीं हूं कि इनका कौशल विकास तो इनकी परिस्थितियों ने कर दिया है।       

    


Tuesday, 4 August 2020

अभी मास्क फिर सिलेण्डर Abi Mask Fir Cylinder Neelam Bhagi नीलम भागी







उत्कर्शिनी मेरे पास आई। वह बहुत दुखी थी। दुख में उसका चेहरा लौकी की तरह लटका हुआ था। उसे मैंने कभी मुंह लटकाए नहीं देखा क्योंकि वह हमेशा पेड़ पौधों में मस्त रहती है इसलिए मैंने उतावलेपन से पूछा,’’क्या हुआ? सब ठीक तो है न।’’उसने जवाब दिया,’’कुछ भी ठीक नहीं है। पेड़ के कारण पड़ोसन रोज दस बातें सुनाती है, कहती है तुम्हारे घर के आगे जो पेड़ लगा है, वह मेरे घर के आगे गंदगी फैलाता है। सफाई कर्मचारी तो सुबह झाड़ू लगा कर जाता है। इसके कभी भी पत्ते गिरते रहते हैं। बंदर आते हैं कच्चे फल तोड़ कर फैंक जाते हैं। जितना पेड़ मेरे घर के सामने आ रहा है, उसे कटवाओ।’’आप तो जानती हो आपके साथ ही मैं इसे खरीद कर लाई। कितना ध्यान रक्खा!! अब जाकर बड़ा हुआ है। खाद पानी मैं देती हूं। उनकी तरफ के फलों की ओर मैंने कभी देखा ही नहीं है। ऐसा कहीं होता है कि जब ये फल खा लें तो मैं उनकी तरफ की टहनियां कटवा दूं। यानि पेड़ का संतुलन बिगाड़ दूं। पेड़ तो फिर उसकी तरफ बढ़ेगा। ये सुनकर मुझे एक घटना याद आ गई।  

मैं जा रही थी, एक पेड़ का तना सुलग रहा था। ताजा कटा था , एक भी हरी कटी टहनी पास में नहीं थी। गीला था, इसलिये सुलगता रहा। उसका धुआँ सभ्य पड़ोसियों की आँखें नहीं, दिल दुखा रहा था, क्योंकि वे जानते हैं कि पेड़-पौधों में जीवन होता है। वे तुलसी ,पीपल आदि की पूजा करते हैं तो अपने फायदे के लिए पेड़ों की हत्या नहीं करते। लेकिन अपने फायदे के लिए पेड़ काटने वाला जानता है कि पेड़ काटना अपराध है। पेड़ काटने की सजा है। पेड़ काटने की परमिशन देने के लिए उद्यान विभाग भी नहीं ऑथोराइज़्ड है। इसके लिए वन विभाग से परमिशन लेनी पड़ती है। उसके लिए जिला वन अधिकारी अपने एक अधिकारी को नियुक्त करता है। वो मुआइना करके अपनी रिर्पोट देगा। केवल गाड़ी खडी करने के लिए और धूप सेकने के लिए पेड़ काटने की परमिशन नहीं दी जाती है।
    पेड़ कटने की सूचना मिलते ही उसकी पोस्टर्माटम रिर्पोट तैयार होती है। जिसमें टहनियों, तनों की नाप जोख लिखी जाती है। तभी तो उसने कटे पेड़  की शाखाएँ, तने वहाँ से तुरन्त हटा दिए और तने में आग लगा दी। पड़ोस में लड़ाई कभी अच्छी नहीं होती। सभ्य इनसान, पर्यावरण प्रेमी अपने आस पास जितना हो सके पेड़ पौधे लगाता है, उनकी रक्षा करता है। लड़ना उसकी फितरत में नहीं है, वह चुप रह जाता है। 
  उत्कर्शिनी ने पूछा,’’पर मैं उसका क्या इलाज़ करुं?’’ मैंने कहा कि उसे कह दे कि मैं तो इसे कटवाउंगी नहीं। कोई काटेगा तो रिर्पोट कर दूंगी। जो इस पेड़ के फल नहीं खा रहे वे इसकी ऑक्सीजन में सांस तो ले रहे हैं। जीवन भर तुमने कोई पेड़ लगाया हो, तो तुम कटवाने की बात कर ही नहीं सकते। कभी हमने सोचा था कि ऐसा भी समय आयेगा, जिसमें एक छोटे से अदृश्य वाइरस ने मुंह पर मास्क बंधवा दिया है। याद रखना यदि पेड़ नहीं लगाए तो एक दिन पीठ पर ऑक्सीजन का सिलेंण्डर भी बांधना पड़ेगा। 

Sunday, 2 August 2020

करोंदे के देर से आने का कारण Craneberry, Karonde ke Dher se Aane ka Karan Neelam Bhagi नीलम भागी

जनता कर्फ्यू 22 मार्च को था, मेरे जीवन में भी पहली बार था। खाली बैठी क्या करुं? ये सोच कर समय बिताने के लिए मैं कटर लेकर करोंदे की झाड़ की थोड़ी छटाई करने लगी। पर देखा झाड़ सफेद फूलों से भरा, लदा हुआ था। उसी समय छटाई का विचार स्थगित कर दिया। हमेशा जब कच्ची आमी मार्किट में मिलनी बंद हो जाती है। तब इसमें करौंदे लगने शुरु हो जाते हैं। समय महीने का मैंने कभी ध्यान नहीं रखा। अपने गमलों में से लहसून की हरी डंडियां, ताजा पौदीना और हरी मिर्च तोड़ कर उसमें करोंदे मिला कर चटनी पीस लेती हूं। पता नहीं शायद सब कुछ ताजा होने के कारण इसका स्वाद बहुत गजब का होता है। कुछ करोंदे धोकर, सूती कपड़े से पोंछ कर, उनमें छेद करके उसे आम के आचार में भी डाल देती हूं। पर इस बार पेड़ से फूलों को गायब हुए महीनों बीत गए। कोई करोंदा नहीं आया। अब मैं कोरोना को कोसने का काम करने लगी क्यूंकि कोरोना काल में ही करोंदे नहीं आए और विचारने लगी कि करोंदे क्यों नहीं आए? जहां तक मैं समझी, वो ये कि शुरु में सैनेटाइज़ खूब किया गया। तितलियां आनी भी बंद हो गई हैं। तो पॉलिनेशन कैसे होता!! शायद इसलिए इस बार अब तक करोंदे नहीं आये। अब मैंने करोंदों का इंतजार करना बंद कर दिया। ये मान लिया कि जब करोना जायेगा तब करोंदा आयेगा। पर मैं वैसे ही उसे केले, आलू और अण्डे के छिलके और पानी देती रही, उसकी सेवा करती रही। चमकदार हरे, पत्तों वाला, मेरा करोंदा खूब फैलता जा रहा था। वहां से गुजरने वालों को कोई तकलीफ न हो इसलिए आज मैं उसकी छटाई करने लगी। कांटे होने के कारण एक हाथ से सामने की टहनी को उठा कर काटने लगी तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीें रहा। नीचे गुच्छों में करौंदे निकल रहे थे। मैं ऊपर की टहनियां उठा उठा कर, हरे हरे करोंदे देखती जा रही थी और खुश होती रही। हमारे झाड़ में हरे करोंदे लगते हैं। पकने पर बहुत गहरे लाल कुछ जामुन से मिलते रंग के हो जाते हैं। कुछ ही करोंदे तोड़े तब तक शाम हो गई। घर में सबको सूचना दी कि करोंदे आ गए। सबने आकर करोंदे देखे। मैं अब तक करोंदों के देर से आने कारण नहीं समझी। कुछ साल पहले 20 रूपए का पोधा ख़रीदा था| इस बेचारे के कोई नख़रे नहीं| हर साल ढेरो करोंदा मिल जाता हैं|

Saturday, 1 August 2020

उनके मन में सफाई कर्मचारियों के प्रति श्रद्धा हो आई unke man mein safai kermchario ke prati shradha ho aye Neelam Bhagi नीलम भागी




 श्री अमरनाथ गुप्ता एवं श्री सुरेश कृष्णन एक मेनहोल के पास भीड़ देखकर रूक गए। एक सफाई कर्मचारी लोगों से मदद मांग रहा था। क्योंकि मेन होल की सफाई के लिए उनका साथी नीचे उतरा था, लेकिन सफाई करते हुए वह मेनहोल में बेहोश हो गया था। सुरेश कृष्णन ने तुरंत सीढ़ी व रस्सी मंगवाई। पास ही रहने वाले किरायेदार पुनीत पराशर आए इन्होंने किसी तरह बेहोश व्यक्ति को मेनहोल से बाहर निकाला। मेनहोल के कीचड़ से लथपथ व्यक्ति को लिटाया। वहां से गुजरने वाला हर व्यक्ति बेहोश व्यक्ति के साथी को नाक पर रूमाल रखकर वह सब उपाय बताने लगा, जो कभी बेहोशी से जगाने के लिए उन्होंने अब तक सुने थे। पुनीत पराशर ने सभी कुछ किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पुनीत जल्दी से अपनी वैगनार कार लाए। बेहोश के साथी की मदद से उसे पिछली सीट पर लिटाया। उसके साथी को बिठाया। सुरेश कृष्णन बैठे, पुनीत प्राइवेट हॉस्पिटल गए। वहां रिसेप्शन पर 30,000रु. जमा करने को कहा गया। तब वे उसे लेकर जल्दी से खिचड़ी पुर के लाल बहादुर शास्त्री सरकारी अस्पताल पहँुचे।
वहाँ ड्यूटी पर लगे डॉ. ने -  re-sus-ci-tate/resuscetation (To restore consciousness or Life Return to life)
 
 प्रक्रिया शुरू कर दी। समय पर उपचार मिलने से बेहोश व्यक्ति की चेतना लौट आई। अब तक उस पर मेनहोल के घोल की पपड़ी जम गई थी। ठीक होने पर उसने अपने आप को धोया। डॉ. ने एक घण्टे तक बिठाया, दवा दी फिर डिस्चार्ज किया।
लौटते हुए पुनीत गाड़ी चला रहे थे। साथ में सुरेश कृष्णन बैठे थे। पिछली सीट पर धुला हुआ व्यक्ति और उसका साथी बैठे थे। वे लौट रहे थे। उनके चेहरे पर उसे बचाने में सहयोग देने के कारण बहुत खुशी थी। लेकिन अब उन्हें गाड़ी की गन्दी सीट से और अपने हाथों से भयंकर बदबू आने लगी। सांस लेने भी मुश्किल लगने लगा। सारे वायरस, बैक्टिरिया एवं बिमारियाँ जो गंदगी से होती हैं जैसे टाइफाइड, पीलिया न जाने क्या-क्या परेशान करने लगी। फिर अचानक हंसने लगे।
उनके मन में सफाई कर्मचारियों के प्रति श्रद्धा हो आई।
पहले उनका लक्ष्य जीवन बचाना था। होश में लाने, गाड़ी में लिटाने से हाथ और सीट भी लथपथ हो गए थे। कोई परवाह नहीं! म्कसद केवल जल्दी से जल्दी हॉस्पिटल पहुँचना था। इसलिए किसी बात पर ध्यान नहीं गया। तब उन्हें बदबू भी नहीं आई जैसे ही ट्राँस से निकल कर धरातल पर आए। सारी ेेेensation जाग गई। पुनीत पराशर और सुरेश कृष्णन पर तुलसीदास जी द्वारा लिखित रामचरित मानस ये पंक्तियां चरितार्थ होती हैं।
परहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधिकाई।