मेरी आंखें हमारी सोसाइटी के विर्सजन जूलूस को तलाश रहीं थीं। जो सायं चार बजे से चला था। वहां से पैदल मैं दस मिनट में आ गई थी। पर वे नाचते हुए आ रहे थे। बप्पा के आने की खुशी में महिलाएं दिनभर किचन में तरह-तरह के पकवान बनाती। श्रद्धा भावना से उनके दिमाग में था कि कोई भी बप्पा की पसंद का पकवान उनसे छूट ना जाए। गणपति साल में एक बार ही तो आते हैं।
तब भी महिलाओं के चेहरे पर कोई थकान नहीं थी। वे खुशी से नाचती हुई आ रही थी। अब वे लाइन में लगे हैं और मेरे दिमाग में अब तक की सुनी गणपति की कथाएं चल रहीं थीं। महर्षि वेदव्यास ने गणपति को महाभारत की कथा लिखने को कहा क्योंकि उनके विचार प्रवाह की रफ्तार से, कलम साथ नहीं दे रही थी। उन्होंने गणपति से लिखने को कहा तो उन्होंने लिखना स्वीकार किया पर तय कर लिया कि वे लगातार लिखेंगे। जैसे ही उनका सुनाना बंद होगा, वह आगे नहीं लिखेंगे। महर्षि ने भी गणपति से विनती कर कहा कि आप भी एडिटिंग साथ साथ करेंगे। गणपति ने स्वीकार कर लिया, जहां गणपति करेक्शन के लिए सोच विचार करने लगते, तब तक महर्षि अगले प्रसंग की तैयारी कर लेते। वे लगातार कथा सुना रहे थे। दसवें दिन जब महर्षि ने आखें खोलीं तो पाया कि गणपति के शरीर का ताप बढ़ गया है। उन्होंने तुरंत पास के जलकुंड से जल ला कर उनके शरीर पर प्रवाहित किया। उस दिन भाद्रपद की चतुर्दशी थी। इसी कारण प्रतिमा का विर्सजन चतुर्दशी को किया जाता है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। गणपति उत्सव की शरूवात, सांस्कृतिक राजधानी पुणे से हुई थी। शिवाजी के बचपन में उनकी मां जीजाबाई ने पुणे के ग्रामदेवता कस्बा में गणपति की स्थापना की थी। तिलक ने जब सार्वजनिक गणेश पूजन का आयोजन किया था तो उनका मकसद सभी जातियों धर्मों को एक साझा मंच देना था। पहला मौका था जब सबने देव दर्शन कर चरण छुए थे। उत्सव के बाद प्रतिमा को वापस मंदिर में हमेशा की तरह स्थापित किया जाने लगा तो एक वर्ग ने इसका विरोध किया कि ये मूर्ति सबके द्वारा छुई गई है। उसी समय निर्णय लिया गया कि इसे सागर में विसर्जित किया जाए। दोनों पक्षों की बात रह गई। तब से विर्सजन शुरु हो गया। हमारे गणपति का रात नौ बजे विर्सजन हुआ और मैं सबके साथ घर लौटी। इस बार सब तस्वीरें भेज रहें हैं। पर्यावरण प्रेमी सुधेन्द्र कुलकर्णी ने हैदराबाद से गणपति पूजन की तसवीरें भेजी हैं। गमलों पौधों से सजा कर, लाल आसन पर गणपति को हरियाली से सजे कुंज में बिठाया है।
प्रथम लेखक गणपति, शक्ति(लाल) समृद्धि(हरा) लाते हैं। और बताया कि उस साल कोरोना संक्रमण के कारण लोगों से अपील की थी कि इस दौरान गाइड लाइन का पालन करें। सार्वजनिक पूजा में भीड़़ जुटाने की अपील नहीं की। प्रसाद में भी फ़ल दे रहे थे| सेनेटाइजेशन, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहें थे।
तब भी महिलाओं के चेहरे पर कोई थकान नहीं थी। वे खुशी से नाचती हुई आ रही थी। अब वे लाइन में लगे हैं और मेरे दिमाग में अब तक की सुनी गणपति की कथाएं चल रहीं थीं। महर्षि वेदव्यास ने गणपति को महाभारत की कथा लिखने को कहा क्योंकि उनके विचार प्रवाह की रफ्तार से, कलम साथ नहीं दे रही थी। उन्होंने गणपति से लिखने को कहा तो उन्होंने लिखना स्वीकार किया पर तय कर लिया कि वे लगातार लिखेंगे। जैसे ही उनका सुनाना बंद होगा, वह आगे नहीं लिखेंगे। महर्षि ने भी गणपति से विनती कर कहा कि आप भी एडिटिंग साथ साथ करेंगे। गणपति ने स्वीकार कर लिया, जहां गणपति करेक्शन के लिए सोच विचार करने लगते, तब तक महर्षि अगले प्रसंग की तैयारी कर लेते। वे लगातार कथा सुना रहे थे। दसवें दिन जब महर्षि ने आखें खोलीं तो पाया कि गणपति के शरीर का ताप बढ़ गया है। उन्होंने तुरंत पास के जलकुंड से जल ला कर उनके शरीर पर प्रवाहित किया। उस दिन भाद्रपद की चतुर्दशी थी। इसी कारण प्रतिमा का विर्सजन चतुर्दशी को किया जाता है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। गणपति उत्सव की शरूवात, सांस्कृतिक राजधानी पुणे से हुई थी। शिवाजी के बचपन में उनकी मां जीजाबाई ने पुणे के ग्रामदेवता कस्बा में गणपति की स्थापना की थी। तिलक ने जब सार्वजनिक गणेश पूजन का आयोजन किया था तो उनका मकसद सभी जातियों धर्मों को एक साझा मंच देना था। पहला मौका था जब सबने देव दर्शन कर चरण छुए थे। उत्सव के बाद प्रतिमा को वापस मंदिर में हमेशा की तरह स्थापित किया जाने लगा तो एक वर्ग ने इसका विरोध किया कि ये मूर्ति सबके द्वारा छुई गई है। उसी समय निर्णय लिया गया कि इसे सागर में विसर्जित किया जाए। दोनों पक्षों की बात रह गई। तब से विर्सजन शुरु हो गया। हमारे गणपति का रात नौ बजे विर्सजन हुआ और मैं सबके साथ घर लौटी। इस बार सब तस्वीरें भेज रहें हैं। पर्यावरण प्रेमी सुधेन्द्र कुलकर्णी ने हैदराबाद से गणपति पूजन की तसवीरें भेजी हैं। गमलों पौधों से सजा कर, लाल आसन पर गणपति को हरियाली से सजे कुंज में बिठाया है।
प्रथम लेखक गणपति, शक्ति(लाल) समृद्धि(हरा) लाते हैं। और बताया कि उस साल कोरोना संक्रमण के कारण लोगों से अपील की थी कि इस दौरान गाइड लाइन का पालन करें। सार्वजनिक पूजा में भीड़़ जुटाने की अपील नहीं की। प्रसाद में भी फ़ल दे रहे थे| सेनेटाइजेशन, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहें थे।
आगमन, विर्सजन के जूलूस नहीं निकल रहे थे, विर्सजन के स्थान पर होने वाली आरती अब घर में ही कर रहें थे। बच्चे, बुर्जुग विर्सजन में नहीं गए। हमारे सेक्टर के ललित गुप्ता ने भी श्री हनुमान मंदिर सेक्टर 11, नोएडा मंदिर में गणपति स्थापित किए हैं।
कोरोना मुक्त भारत हो इसके लिए स्वास्थय से जुड़ी जानकारियां दी जा रही थीं, गणपति उत्सव में, आज तिलक की याद आ रही हैं उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सबको संगठित किया था। तब कोरोना से बचाव और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दी जा रही थीं। गाइड लाइन का पालन हो रहा था। विसर्जन के लिए तालाब बनाया गया| अगले साल उनसे जल्दी आने का निवेदन करते हुए विसर्जन किया| तब कोरोना मुक्त हम पहले की तरह गणपति उत्सव मनाएंगे|अब हम पहले की तरह गणपति उत्सव मना रहे हैं।