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Saturday 1 August 2020

उनके मन में सफाई कर्मचारियों के प्रति श्रद्धा हो आई unke man mein safai kermchario ke prati shradha ho aye Neelam Bhagi नीलम भागी




 श्री अमरनाथ गुप्ता एवं श्री सुरेश कृष्णन एक मेनहोल के पास भीड़ देखकर रूक गए। एक सफाई कर्मचारी लोगों से मदद मांग रहा था। क्योंकि मेन होल की सफाई के लिए उनका साथी नीचे उतरा था, लेकिन सफाई करते हुए वह मेनहोल में बेहोश हो गया था। सुरेश कृष्णन ने तुरंत सीढ़ी व रस्सी मंगवाई। पास ही रहने वाले किरायेदार पुनीत पराशर आए इन्होंने किसी तरह बेहोश व्यक्ति को मेनहोल से बाहर निकाला। मेनहोल के कीचड़ से लथपथ व्यक्ति को लिटाया। वहां से गुजरने वाला हर व्यक्ति बेहोश व्यक्ति के साथी को नाक पर रूमाल रखकर वह सब उपाय बताने लगा, जो कभी बेहोशी से जगाने के लिए उन्होंने अब तक सुने थे। पुनीत पराशर ने सभी कुछ किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पुनीत जल्दी से अपनी वैगनार कार लाए। बेहोश के साथी की मदद से उसे पिछली सीट पर लिटाया। उसके साथी को बिठाया। सुरेश कृष्णन बैठे, पुनीत प्राइवेट हॉस्पिटल गए। वहां रिसेप्शन पर 30,000रु. जमा करने को कहा गया। तब वे उसे लेकर जल्दी से खिचड़ी पुर के लाल बहादुर शास्त्री सरकारी अस्पताल पहँुचे।
वहाँ ड्यूटी पर लगे डॉ. ने -  re-sus-ci-tate/resuscetation (To restore consciousness or Life Return to life)
 
 प्रक्रिया शुरू कर दी। समय पर उपचार मिलने से बेहोश व्यक्ति की चेतना लौट आई। अब तक उस पर मेनहोल के घोल की पपड़ी जम गई थी। ठीक होने पर उसने अपने आप को धोया। डॉ. ने एक घण्टे तक बिठाया, दवा दी फिर डिस्चार्ज किया।
लौटते हुए पुनीत गाड़ी चला रहे थे। साथ में सुरेश कृष्णन बैठे थे। पिछली सीट पर धुला हुआ व्यक्ति और उसका साथी बैठे थे। वे लौट रहे थे। उनके चेहरे पर उसे बचाने में सहयोग देने के कारण बहुत खुशी थी। लेकिन अब उन्हें गाड़ी की गन्दी सीट से और अपने हाथों से भयंकर बदबू आने लगी। सांस लेने भी मुश्किल लगने लगा। सारे वायरस, बैक्टिरिया एवं बिमारियाँ जो गंदगी से होती हैं जैसे टाइफाइड, पीलिया न जाने क्या-क्या परेशान करने लगी। फिर अचानक हंसने लगे।
उनके मन में सफाई कर्मचारियों के प्रति श्रद्धा हो आई।
पहले उनका लक्ष्य जीवन बचाना था। होश में लाने, गाड़ी में लिटाने से हाथ और सीट भी लथपथ हो गए थे। कोई परवाह नहीं! म्कसद केवल जल्दी से जल्दी हॉस्पिटल पहुँचना था। इसलिए किसी बात पर ध्यान नहीं गया। तब उन्हें बदबू भी नहीं आई जैसे ही ट्राँस से निकल कर धरातल पर आए। सारी ेेेensation जाग गई। पुनीत पराशर और सुरेश कृष्णन पर तुलसीदास जी द्वारा लिखित रामचरित मानस ये पंक्तियां चरितार्थ होती हैं।
परहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधिकाई।

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