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Friday, 25 June 2021

छुट्टी का दिन, एंजॉय करना Weekend blissनीलम भागी

 


जब मैं अध्यापन करती थी तब छुट्टी का दिन सबसे व्यस्त दिन होता था। देर से सो कर उठना इसलिए दिन भी छोटा लगता था। पैंडिंग काम निपटाते हुए पता ही नहीं चलता था कि कब शाम हो गई। अगले दिन से फिर वही रूटीन और छुट्टी का इंतजार की। उत्कर्षिनी मुझे दुबई ले गई।  जर्मन कात्या मूले मेरी सहेली बन गई। उसने विला रैंट पर लिया हुआ था। उसमें वन रूम सैट उत्कर्षिनी को रैंट पर दिया था। कात्या मूले ने घर में ही ऑफिस बना रखा था। मीटिंग के लिए ही बाहर जाती थी। उसका सब काम समयबद्ध था। मैं भी 9 से 6 के बीच कभी उसके पास नहीं जाती। वहां शुक्र और शनिवार की छुट्टी रहती। मेरे जाने पर पहला वृहस्पतिवार आया। शाम को वो मीटिंग से लौटी, वह बड़ी फुर्ती में थी। बोली,’’ नीलम अपना लॉण्ड्री बैग ले आओ।’’ मैं दो लोगो के एक सप्ताह के ढेर कपड़ों का लेकर पहुंच गई। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, चाहे मशीन से धुलाई थी। काम तो करना ही पड़ता है। मैंने उसे कहा कि मैं तुम्हारी हैल्प करूं। उसने खुशी से मेरा हाथ पकड़ कर चूम लिया। मेरे कपड़ों के ढेर में अपना ढेर मिला कर बोली,’’ इनको अलग कर दो।’’ मैंने सफेद,  हल्के रंग के, गाड़े रंगो के तीन ढेर लगाये, उसने मुझे एक जाली का बैग दिया, उसमें मैंने अण्डर गारमेंट डाल कर बैग का मुंह बांध दिया। कात्या मुले भाग भाग के घर के काम निपटा रही थी। सफेद कपड़े उसने जल्दी से मशीन में डाल कर उसे चालू किया और मुझसे बोली,’’ अपने घर के फुटमैट भी ले आओ।’’ मैं भी उतनी फुर्ती से जाकर ले आई। उसने कहाकि अब उसे मेरी मदद की जरूरत नहीं है। मैं आ गई। हर राउण्ड में अपने कपड़े फैला कर, मेरे छोड़कर, दरवाजे पर नॉक करके भाग जाती क्योंकि वह एक सेकेण्ड नहीं गवाना चाहती थी। मैं भी जाकर वहाँ लगे स्टैण्ड पर अपने कपड़े फैला आती। मुझे पता था कि ऐसा मेरे साथ चार बार और होगा। बेटी ने आते ही मुझसे दिन भर की रिर्पोट ली। कपड़ों का किस्सा सुन कर वो हंसने लगी और उसने बताया कि उसके धुले कपड़े वह तह लगा कर देती है। आपको वह बिजी रखने के लिये, आपको ठीक करने के लिये सहयोग कर रही है। आप से अपना कोई काम नहीं करवायेगी। आज रात तक ये अपना पूरे हफ्ते का काम करके सोयगी। अगर इसे लगा कि ये नही कर पायेगी तो श्रीलंकन हैल्पर घण्टों के हिसाब से अपनी मदद के लिये बुला लेगी। लेकिन काम रात में ही करके सोयगी। दो दिन वीकएंड एंजाय करेगी, पार्टी करेगी फिर अगले पाँच दिन गधे की तरह काम करेगी। रात बारह बजे जब वो अंत में फुटमैट देकर गई, मैं भी उसे फैला कर ही सोई। मैं दिन भर घर में रहती थी इसलिये बाकि काम मुझे करना नहीं था।       

ं  सुबह विला में सन्नाटा छाया हुआ था। उसकी बिल्लियां भी चुपचाप घूम रहीं थीं। बेटी भी कह कर सोई थी कि उसे जगाना नहीं है। अकेली मैं ही जाग रही थी। दस बजे के करीब कात्या मूले भी गाती हुई आई और अपनी बिल्लियों को खाना देने लगी। ये बात मैंने वहां रहने वाले भारतीय परिवारों को बताई। सभी से एक ही जवाब सुनने को मिला कि उनकी फैमली भी मिलकर वृहस्पतिवार को ओवरटाइम समझ कर सब काम खत्म कर लेती है ताकि वीकएंड एंजॉय करे। छुट्टी में नई नई रेस्पी ट्राई करना, स्पैशल सब की पसंद का बनाना। या किसी को बुलाना या किसी के जाना रहता। जिसके जाते या जो आता कुछ लेकर जाते, सेल्फ सर्विस, सब काम निपटवा कर ही लौटते और अगले वीकएंड का प्रोग्राम बनाते।  


Wednesday, 23 June 2021

मोबाइल को कहते हैं ’जंगमवाणी’ बच्चे और मोबाइल Mobile time--Fun time!नीलम भागी

अंकुर के घर में मैं मोबाइल को जंगमवाणी कहती हूं। जब संस्कृत की कक्षा में आचार्य जी ने  बताया था कि मोबाइल को संस्कृत में जंगमवाणी कहा जाता है। तब छात्र खूब हंसे थे। अब जंगमवाणी शब्द मेरे बहुत काम आ रहा है। जैसे ही मैं अंकुर के घर जाती हूं। शाश्वत और अदम्य मेरे पैर छू कर, हग करते हुए मेरी जेबें टटोलने लगते हैं। अंकुर या श्वेता जो भी सामने हो उसे कहती हूं मेरे पर्स में से जंगमवाणी निकाल लो। वो निकाल कर पर्स सामने रख देते हैं। मेरी तलाशी के बाद दोनों कोरस में पूछते हैं,’’नीनों आपका मोबाइल कहां है?’’मैं कुर्ते और जींस की जेबों में ढूंढने की एक्टिंग करते हुए बोलती हूं कि पर्स में होगा! पर होगा तभी तो मिलेगा, वो पर्स में ढूंढते हैं पर वह मिलता ही नहीं। अब दोनों बच्चे मुझसे खूब बातें करते हैं। कहानियां सुनते हैं, सुनाते हैं। अपनी मम्मी पापा की मुझसे शिकायत करते हैं कि वह उन्हें थोड़ा सा मोबाइल देते हैं। शाश्वत को एक घण्टा और अदम्य को आधा घण्टा। अदम्य को टाइम देखना नहीं आता पर ये जानता है कि भइया से कम समय के लिए उसे मोबाइल मिलता है। अगर कभी मेरी गलती से मेरा मोबाइल उनके हाथ लग गया तो बस मोबाइल के लिए झगड़ा शुरू। दोनों मिलकर नहीं देखते क्योंकि उनमें उम्र का बहुत अन्तर है। अदम्य तो मोबाइल देखते हुए शाश्वत को झांकने भी नहीं देता। आप इनके क्लेश का वीडियो देखें समझ आ जायेगा।


  मैं मुंबई गई। गीता के खाने का समय हुआ। उसकी मेड ने उसे कार्ट पर बिठा कर बेल्ट से कसा फिर हाथ में उसके मोबाइल दिया, वो कार्टून देखने में लग गई। मेड उसके मुंह में डालती जा रही थी, वो खाना निगलती जा रही थी। ये देखते ही मैंने गीता से मोबाइल छिना तो मेड बोली,’’ये मोबाइल देखते हुए ही खाती है। अब ये नहीं खायेगी।’’ मैंने कहा,’’ इसे वैसे ही खिलाओ।’’ उसने खाना उसके मुंह की ओर बढ़ाया गीता ने मुंह ही नहीं खोला। बड़ी मेहनत करनी पड़ी, उसे बिना मोबाइल के खाना खिलाने में लेकिन कुछ समय बाद खाने लगी। क्योंकि भूख तो सबको लगती है। अब वह बातें करती, बातों के साथ खाते हुए तरह तरह की हरकतें करती। अमेरिका जाने से पहले अंकुर के घर दो दिन रूकी। गीता और अदम्य दोनों की बातों की अपनी भाषा थी।  

गीता और अदम्य ठीक से बोलना नहीं जानते। लेकिन अमेरिका में गीता और भारत में अदम्य दोनों की मोबाइल पर हमारी समझ से परे भाषा में बात होती है। बात भी बड़ों की तरह घूम घूम कर करते हैं। ये देख कर यहां हम हंसते हैं, वहां उत्कर्षिनी हंसती है। दोनों बातों में इतने मश़गूल होते हैं कि उस समय उन्हें कार्टून देखना भी नहीं याद होता। वीडियो में बातचीत सुनिए शायद आपको उनकी भाषा समझ आ जाए।


वहां उत्कर्षिनी उसे एक घण्टे के लिए मोबाइल देती है। उस एक घण्टे में अगर मैं गलती से विडियो कॉल कर लूं तो गीता खिल कर मुझसे बात नहीं करती। उत्कर्षिनी मुझे कहेगी ये इसका मोबाइल टाइम है। मैं कॉल बंद कर देती हूं। बाद में जब करूंगी तब खूब बतियायेगी। पर कुछ लोगों को देख कर बड़ी हैरानी होती है। वे छोटे बच्चों को मोबाइल देकर व्यस्त रखते हैं और खु़द मस्त रहते हैं। 


Friday, 18 June 2021

उसने फादर्स डे पर अपने तीनों पिताओं के लिए तीन कार्ड खरीदे!! नीलम भागी Father's Day

  


  दुबई में मेरी सहेली कात्या मूले मुझे अपने साथ शॉपिंग के लिए ले गई। जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे आने वाला था। उसने पढ़ पढ़ के बड़ी भावना से तीन कार्ड खरीदे। जिसमें शानदार बधाई संदेश लिखे थे। तीन र्काड देख कर मैं हैरान! रात को हम दोनों जब बतियाने बैठी तो उसने मुझे अपने परिवार की तस्वीरें दिखाते हुए परिचय करवाया, ये मेरी मम्मी हैं, ये मेरे फादर हैं। ये मेरी माँ के ब्वॉय फैंड हैं। वो बड़े गर्व से बोली कि मेरे बायॅलोजिकल फादर बहुत अच्छे इन्सान हैं। जब माँ की लाइफ में उनका ये ब्वॉय फैंड आया तो मेरे पिता ने मेरी माँ की इच्छा का सम्मान करते हुए, माँ को डिर्वोस दे दिया। लेकिन उनके ब्वॉय फैंड ने उनकी माँ के साथ अच्छा नहीं किया। अब वह अपनी माँ के लिए दुखी होकर बताने लगी कि उनके ब्वॉय फैंण्ड ने अपनी वाइफ को डिर्वोस नहीं दिया। एक हैण्डसम आदमी की तस्वीर  दिखा कर कहा कि काफी इंतजार के बाद माँ ने फिर इनसे शादी कर ली, ये मेरे दूसरे पिता हैं। फिर मेरी बहन का जन्म हुआ। हमारी बहुत अच्छी खुशहाल फैमली थी। इस फादर ने मुझमें और मेरी हाफ सिस्टर में कभी फर्क नहीं किया। पर माँ के बॉय फ्रैण्ड का भी डिर्वोस हो गया। आखिर मम्मी को उनका प्यार मिल गया। अब हम अपने इस फादर के साथ रहने आ गये। तीनों का मेरी लाइफ में बहुत महत्व है। मां से भावनाओं का जुड़ाव है तो इनसे मुझे समझ मिली, मेरा उत्साह बड़ा, हौसंला बढ़ा। फादर्स डे पर मैं तीनो पिताओं को र्काड  भेजती हूँ। यदि जर्मनी में होती हूं तो उन्हें खाने पर ले जाती हूं उनकी पसंद का उपहार देती हूं। उनके साथ समय बिताती हूं। उसने बताया कि मदर्स डे के 40 साल बाद से फादर्स डे मनाया गया। पता नहीं क्यों फादर को अकेला छोड़ दिया गया था? पिता बनना आसान है पर पिता के कर्त्तव्य पूरे करना मुश्किल है। हम जो भी हैं उसमें हमारे पिता का बहुत बड़ा योगदान होता है। पैरों पर खड़ा होना तो पिता ही सिखाता है।

अमेरिका में प्रसव से पहले सरकार की तरफ से breast ब्रेस्ट पम्प आया। उत्कर्षिणी ने उसकी तस्वीर मुझे भेजी। डिब्बे पर पिता बच्चे को बोतल से मां का दूध पिला रहा है। हमने तो तस्वीर में मां को ही बच्चे को दूध पिलाते हुए देखा है। इसलिए इस तस्वीर ने दिमाग में प्रश्न खड़ा कर दिया।


तोे जवाब भी आ गया कि मां ने पम्प करके दूध फ्रिज में रख दिया। बच्चे के दूध के समय मां सो रही है या कहीं गई है तो फादर मां का दूध बच्चे को पिला देंगे,। पैटरनिटी लीव में मां प्रसव के बाद आराम कर सकती है। फादर स्टोर किया मां का दूध बच्चे को पिला देता है।

जनिता चोपनेता च, यस्तु विद्यां प्रयच्छति।

अन्नदाता भयत्राता, पंचैते पितरः स्मृताः।।

फादर डे मनाने से पहले भी हमारे पुराण में इन पाँच को पिता के लिए कहा जाता था जन्मदाता, उपनयन करने वाला, विद्या देने वाला, अन्नदाता और भयत्राता। 

न तो धर्मचरणं किंचिदस्ति महत्तरम्।

यथा पितरि शुश्रूषा तस्य वा वचनक्रिया।।

पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर कोई धर्माचरण नहीं है। वाल्मीकि रामायण


आजकल बच्चे जॉब के सिलसिले में घरों से दूर हैं। पिता ज़हन में तो रहते हैं। साल में एक दिन फादर डे मनाने से वे सम्मान से उनके लिए अपनी भावनाएं प्रदर्शित कर, उनका दिन विशेष कर देते हैं।    


Wednesday, 16 June 2021

आम के पौधे और श्री सत्यनारायण की कथा नीलम भागी Bhagwan Satyanarayan Kath



 

हमारा घर फेसिंग पार्क है। सामने पार्क मेें दो आम के पेड़ हैं। आम का मौसम आते ही उन पर बौर आता है, साथ ही कोयल की कूक सुनाई देती है। आम से लदे पेड़ बहुत सुन्दर लगते हैं। मैंने भी घर के सामने पार्क में आम्रपाली नस्ल का आम का पौधा लगवाया। पानी देती उसकी देखभाल करती। पेड़ बड़ा हो रहा था। अब जिसके घर में भी दूर दूर तक पूजा होती पंडित जी पूजा के सामान के साथ आम के पत्ते लिखवाते, तो उन्हें मेरा छोटा पेड़ ही नज़र आता। पुजारी उसके पत्ते नोचने आ जाते। अगर मैं देख लेती तो तुरंत उन्हें हटाते हुए बड़े आम के पेड़ दिखा कर कहती कि उस पर चढ़ के जितने मर्जी पत्ते तोड़ो। ऐसे टोकते हुए मैंने अपना आम्रपाली अपनी लम्बाई तक बड़ा कर लिया। मेरी रात को देर से सोने और सुबह देर से उठने की आदत है। इसलिये कभी कभी पूजा वाले सुबह पत्ते तोड़ लेते। बड़े पेड़ पर चढ़ने की ज़हमत कौन उठाए। पर मेरा पेड़ किसी तरह बचा रहा। लगवाते समय मैंने इस समस्या के बारे में सोचा ही नहीं था। वर्ना मैं उसे गेट की सीध में लगवाती तो हमेशा उस पर निग़रानी रहती। अब वह घर की बाउण्ड्री वॉल के सामने हैं। इसलिए उसे देखने के लिए बाहर आना पड़ता है। जब दीवार के बराबर आम्रपाली होगा तब अन्दर से दिखाई देगा, फिर पत्ते तोड़ने वालों से बचाना ही नहीं पड़ेगा। जैसे ही कोई तोड़ने आयेगा, तो हमें दिख जायेगा। मैं उसे बड़े आम के पेड़ दिखा कर कहूंगी कि पेड़ पर चढ़ो और पत्ते तोड़ो। इसे अभी बढ़ने दो। आम्रपाली की लम्बाई मेरे बराबर हो गई और तभी मैं कुछ समय के लिए मुम्बई गई। कुछ महीनों बाद लौटी तो पेड़ वहां था ही नहीं। मैंने आस पास पता लगाया तो पता चला कि चैत्र नवरात्र में कलश स्थापना करते हैं तो उसमें आम के पत्तों की जरूरत होती है। बड़े पेड़ों पर कौन चढ़े! इसके पत्ते तो कोई बच्चा भी तोड़ सकता था इसलिये आपका आम्रपाली पूजा वालों ले नष्ट कर दिया है। मैंने सोच लिया कि इस बार फ्लॉवर शो से फिर लाउंगी और सही जगह पर लगाउंगी। पर कोरोना के कारण फ्लॉवर शो ही नहीं लगा। मेरे घर में बहुत बढ़िया आम आए तो मैंने उसकी गुठलियां घर की बाउंण्ड्री वॉल के साथ बो दी। आम के पौधे़ बहुत अच्छे से उग गए तो मैंने बारिश का मौसम देख कर माली से आम के पौधों को निकलवा कर सामने पार्क में सोलह पौधे लगवा दिए। ये सोच कर कि कुछ नष्ट भी हो सकते हैं। पौधों की किस्मत! बे मौसम चार दिन तक पानी बरसा। पौधे अच्छे से जम गए। मैं उन्हें पानी देती। जब उद्यान विभाग वाले घास के लिए ग्राउण्ड पानी से भरते तब तीन चार दिन पानी नहीं देना पड़ता। एक दिन पानी लेकर पार्क में गई, देखा 14 पौधे गायब! सिर्फ दो पौधे बचे हुए थे। वहां दो बाइयां खड़ी बतिया रहीं थीं। मैंने उनसे पूछा,’’यहां से पौधे किसने तोड़े हैं?’’उन्होंने जवाब दिया,’’जी हमें नहीं पता।’’मुझे एक दम याद आया कि आज पहला नवरात्र है। घट स्थापना के लिए बाइयों को कहा होगा कि आम के पत्ते ले आना। नौ दस पत्तों वाले आम के पौधे ही निकाल कर ले गए। दो पौधे बचे तो मैंने उनका चार महीने तक ध्यान रखा। एक बार पार्क में विभाग की ओर से पानी भरा गया था। सर्दी जा रही थी। आठ दिन तक पानी देने की जरूरत नहीं थी। जब पानी देने गई तो देखा बचे दोनों आम के पेड़ भी गायब! तफ़तीश करने पता चला कि जिनके घर बेटी जन्म पर श्री सत्यनारायण की कथा थी, वे आम के पौधे निकाल कर ले गए थे और पत्तों से बंदनवार बनाए थे।          


Monday, 14 June 2021

पेड़ों का त्यौहार नीलम भागी Van Mahotsav Neelam Bhagi

 




कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह लोगों को ऑक्सीजन की कमी के कारण जान गवानी पड़ी। उसके बाद से लोगों को पेड़ों के महत्व का अहसास हो गया है। 22 अप्रैल को धरती दिवस, 5 जून को पर्यावरण दिवस पर जिस उत्साह से पेड़ लगाये जाते हैं और लगाते हुए तस्वीरें खींची जाती हैं, क्या पौधे लगाने वालों और लगवाने वालों ने कभी जाकर देखा है कि वे पौधे जमें हैं या मर गये। इन दोनों दिवस पर जो पौधे लगाये जाते हैं, वे बहुत देखभाल मांगते हैं क्योंकि हमारे यहां इन दिनों बहुत गर्मी और लू शुरु हो जाती है। समय पर पानी न मिलने पर ये झुलस जाते हैं।

हमारे देश में वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देने के लिए सन् 1950 में देश के पहले कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने वन महोत्सव की शुरूवात की थी। जिसे पेड़ों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। हर साल सरकार जुलाई के प्रथम सप्ताह में देश भर में वन महोत्सव का आयोजन करती हैं। इस दौरान स्कूलों कॉलेजोंए प्राइवेट संस्थानों द्वारा पौधारोपण किया जाता है। जिससे लोगों में पेड़ों के प्रति जागरूकता पैदा होती है। वनों का महत्व सामान्य लोगों को समझाना मकसद होता है। हमें बच्चों से वनों के पेड़ों के लाभ पर निबंध लिखवाना या वाद विवाद प्रतियोगिता करवाना ही काफी नहीं है। उन्हें पेड़ों को बचाना, उनका संरक्षण करना भी सिखाना है। श्विश्व भौतिक विकास की ओर तो तेजी से बढ़ रहा हैए मगर प्रकृति से उतना ही दूर हो रहा है। पानी दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। इसे बचाने के लिए खूब पेड़ लगाए जाएं। पेड़ बादल बनने में सहायक होंते हैं और उन्हीं बादलों से बारिश होगी। राजस्थान में इंदिरा कैनाल बनने के बाद उसके आसपास खूब पेड़ लगाये गये। अब उस इलाके में बारिश होती रहती है। जिस उत्साह से धरती दिवस, पर्यावरण दिवस और वन महोत्सव पर वृक्षारोपण किया जाता हैं  उसी तरह उनका संरक्षण भी किया जाना चाहिए। जिन्होंने पौधा लगाया फोटो खिचाई वे तो पौधे की देखभाल करने आयेंगे नहीं। इसके लिए वहां आसपास रहने वाले नागरिकों को ही देखभाल करनी होगी। कुछ ही समय !!जैसे जैसे पेड़ बढ़ेगा, उसका सुख तो आसपास वालों को ही मिलेगा। वृक्षारोपण करके फोटो खिंचवाने वालों के बच्चे तो वहां खेलने आएंगे नहीं। इसलिए अपने आसपास जो भी पेड़ लगाएं गए हैं, उन्हें बचाना अपनी नैतिक जिम्मेवारी समझें। नष्ट हुए पेड़ की जगह दूसरा पेड़ लगाएं। कहीं पढ़ा था कि पेड़ों के लिए काम करनाए मां प्रकृति की पूजा करना है। जुलाई के पहले सप्ताह में वन महोत्सव मनाते है। तो इनका संरक्षण भी जरुरी है। वैसे जुलाई के महीने में बरसात होने से पौधे अच्छे से जम जाते हैं। हर शहर के प्रशासन को इन दिनों अपने नागरिको को शामिल करके वृक्षारोपण करना चाहिए। रेजिडेंस वैलफेयर एसोसियेशन वृक्षारोपण के लिए जगह देख कर ऐसे फलदार पौधे उपलब्ध करवाये जो बड़े होने पर बिजली के तारों में न फंसे। कहां की मिट्टी किस फल के पौधे के लिए उपयुक्त है वहां वही पौधा लगाने को प्रोत्साहित करें जो उस मिट्टी में ठीक से पनप सके। जो भी व्यक्ति पेड़ के संरक्षण की जिम्मेवारी ले, उसे मुफ्त में पेड़ दिया जाये। मैंने पिछले साल चार पेड़ लगवाए थे। उद्यान विभाग ने ट्री गार्ड के साथ लगा कर दिए। मैं उनकी देखभाल करती हूं। वे बहुत अच्छे से बढ़ रहें हैं। जुलाई में उनका जन्मदिन आयेगा। अब वे नहीं मर सकते। अगर कोई मूर्ख उन्हें नष्ट करने की ठान लेगा तब मैं क्या कर सकती हूं!!        


Wednesday, 9 June 2021

ऐसे कौन करता है!! नीलम भागी

हमारा घर फेसिंग पार्क है। इस पार्क को उद्यान विभाग ने अच्छे से मेनटेन किया हुआ है। समय पर पानी दिया जाता है। डस्टबिन रखें हैं जिसका हमारे ब्लॉकवासी उपयोग करते हैं यानि पार्क में कुछ खाया तो उसके रैपर आदि इधर उधर नहीं फेंकते। बड़े पेड़ भी हैं जिनके पत्ते पतझड़ में तो खूब गिरते हैं। जिसे समय समय पर उठाया जाता है। काफी समय से मैं देख रही हूं कि कमलेश और उसकी पत्नी भी उसमें काम करने आते हैं। अब जब पति पत्नी काम करने आते हैं तो वे बच्चे साथ ले आते हैं। बच्चे भी खेल खेल में सूखे पत्तों का ढेर लगा देते हैं। जब पत्तो और कटिंग के बाद घास का ढेर लग जाता है तब विभाग से ट्रैक्टर ट्रॉली आती है, भर कर ले जाती है। बच्चों में बहुत एनर्जी होती है। ये बच्चे तो पार्क के काम में मां बाप का हाथ बटाते हैं।


स्कूल खुलेंगे तो पता चलेगा कि ये स्कूल जाते हैं या नहीं। कुछ दिन न दिखने पर जब ये परिवार फिर लेबर के साथ आता है। तो मैं पहले कभी कभी, उनके न आने का कारण पूछ ही लेती थी। कमलेश बताता कि अमुक दमुक ब्लॉक के पार्क में काम कर रहे थे। यानि हमारे सेक्टर के सभी पार्कों में ये लोग काम करते हैं। 

आज मैंने व्हाटअप पर पोस्ट देखी, जिसमें किसी ने लिखा कि इतनी गर्मी में दिन भर पार्क की साफ सफाई की गई। डस्टबिन खाली करके रखे गए। सुबह वे देखते हैं किसी ने रात में किचन वेस्ट, घरेलू कचरा पार्क के डस्टबिन में डाला है। कुछ बाहर भी फेंका होगा या फालतू कुत्तों ने थैलियां निकाल कर बाहर फैला दीं। जबकि सुबह बे नागा यानि प्रतिदिन कूड़ा उठाने वाली गाड़ी आती है। जिसमें जोर जोर से गाना बजता है ’’चमक चमक चम चम चम चमक के मेरा इण्डिया’’ गाने की धुन सुनते ही सब अपने घर का सूखा व गीला कूड़ा बाहर रख देते हैं। दो लड़के उठा उठा कर गाड़ी में डालते जाते हैं। इतनी अच्छी व्यवस्था के बाद भी कोई पार्क के डस्टबिन में घरेलू कूड़ा, रसोई का कचरा डाले। यह देख कर हैरानी होती है कि ऐसे भला कौन करता है!! इसका ध्यान तो सबको रखना होगा। वर्ना ऐसे लोग सुबह देर तक सोने के लालच में रात में अपने घर का कूड़ा पार्क में डाल कर उसे कूड़ेदान में तब्दील कर देंगें।





नीलम भागी        


Tuesday, 8 June 2021

जुबान का रस नीलम भागीZuban ka ras- Fruit of my acrid tongue! Neelam Bhagi

 



हमारे परिवार में जब भी कोई सदस्य बाहर से आता तो दादी को पूरा वृतांत्र सुनाता। किसने क्या कहा और उसने क्या जवाब दिया। दादी सब कुछ बिना बीच में बोल, बहुत ध्यान से सुनती। सुनने के बाद कहती, जा कुछ खाले। अगर उन्हें कुछ ठीक नहीं लगता तब भी वह कभी नसीहत नहीं देती थीं, न ही ज्ञान बांटती थीं। फिर एक दो दिन बाद कहानी सुनाती थी जो इस प्रकार है

  भगवे रंग का हमारे यहां बहुत सम्मान है। एक युवा ज्ञानी साधू की झोली में दाल चावल था। वह एक घर के आगे से गुज़रा, एक महिला को घर के दरवाजे पर खड़ा देख उसने कहा,’’मां मेरे पास दाल चावल हैं, मैं खिचड़ी बनाना चाहता हूं। आप मुझे बर्तन ईधन आदि दे दें।’’महिला ने दरवाजे से हट कर, हाथ जोड़ कर कहा,’’आइए महाराज आंगन में गोबर से लिपा हुआ चूल्हा है। अपनी रसोई बना लीजिए।’’महिला ने बड़ी श्रद्धा से उन्हें पानी,  बर्तन और नमक दिया। चूल्हे के पास ही उपले रख दिए। महिला के आंगन में दुधारु भैंस बंधी हुई थी। महाराज ने खिचड़ी चढ़ा दी। महाराज के ज्ञान से आलोकित चेहरे से महिला वैसे ही नतमस्तक थी। पर वह भी तो पाक कला में निपुण गृहणी थी। जब खिचड़ी में उबाल आ गया तो वह अपनी कोठरी में गई और एक कटोरा घी का लाकर महाराज के पास रख दिया। महाराज की रसोई को उसने डर के मारे छुआ नहीं। पर महाराज को पंजाबी में एक कवित्त सुनाया

बन सवनी खिचड़ी, ते दुना पानी पा।

गिड़मिड़ गिड़मिड़ रिजदी, दे हेटों आग बुछा।

 यानि मिट्टी के बर्तन में खिचड़ी बनाते हुए दो गुना पानी डाल दो। जब उबाल आ जाए तो आग की लपटे हटा दो। मंदी आंच पर बुदबुदाती हुई खिचड़ी पकने दो। अब घी डाल दो। आंच कम करके महाराज ने घी डाल दिया। उबाल थम चुका था। खिचड़ी बुदबुदाती हुई पक रही थी। गले हुए दाल चावलों में एक होने का प्रोसेस शुरु होने वाला था। इसमें समय लगता है। अब तो महाराज को कलछी भी नहीं चलानी थी। करने को कुछ था नही तो महाराज भैंस को ध्यान से देखने लगे। ये देख कर महिला ने महाराज को भैंस के फ़ायदे बताने शुरु किए कि वह विधवा है। भैंस से ही उसकी रोज़ी रोटी चलती है। वह भैंस का बहुत ध्यान रखती है। जब भी कभी बाहर बांधती हूं। तो उतनी देर बाहर ही रहती हूं। इसे किसी को कुछ खिलाने भी नहीं देती।  पर महाराज को भैंस पर नज़रें गड़ाये, कुछ विचारते देख कर वह भी चुप हो गई। थोड़ी देर बाद महाराज ने मौन भंग करते हुए महिला से कहा,’’माता तुम्हारे घर का दरवाजा तो छोटा है। अगर तुम्हारी भैंस आंगन में मर गई, मरने पर तो मुर्दा अकड़ जाता है फिर तो इसे निकालने के लिए चौखट तोड़ कर रास्ता बड़ा करना पड़ेगा।" यह सुनते ही महिला की श्रद्धा तुरंत गायब हो गई। उसी समय वह उठी और महाराज से बोली,’’अपनी खिचड़ी बर्तन से निकालो और जाओ। ’’ महाराज ने जवाब दिया,’’मेरे पास बर्तन नहीं है। किसमें खिचड़ी ले जाउं?’’महिला बोली,’’अपने अंगोछे में।’’ महाराज ने अपना अंगोछा फैलाया महिला ने उस पर कच्ची पक्की खिचडी पलट दी। महाराज गर्म गर्म खिचड़ी की पोटली पकड़े चल पड़े। घी से चिकने अंगोछे से देसी घी की ख़ूश्बूदार भाप उड़ रही थी और खिचड़ी का गाढ़ा पानी टपक रहा था। ये देख कर किसी ने महाराज को पूछ ही लिया,’’महाराज यह क्या टपक रहा है?’’महाराज ने जवाब दिया,’’ये मेरी ज़ुबान का रस टपक रहा है।’’कहानी सुन कर कर हम भी उन दिनों अपने हिसाब से मतलब समझते रहते थे। अब मेरी 94 साल की अम्मा यह कहानी सुनाती है। 


Saturday, 5 June 2021

समाजिक चेतना लाना!! नीलम भागी Environmental Awareness

 


 मेरी पड़ोसी शर्मिला जी ने इस हफ्ते अपनी बाल्कोनी में वजन को ध्यान में रखते हुए खूब पौधे खरीदे। उनकी बेटी माधवी मायके आई उसने भी खूब पौधे खरीदे, जिसे जाते समय वह अपने साथ ले गई।


5 जून 2021 के पर्यावरण दिवस पर सोशल मीडिया में लोगो ने अपने पेड़ पौधों के साथ तस्वीरें लगा कर शुभकामनाएं दी। ये सामाजिक चेतना कैसे आई  है।

दश कूप सम वापी, दश वापी समोहृदः।

दशहृदसमः पुत्रो, दशपुत्रसमो द्रुमः।

दस कुओं के बराबर एक बावड़ी है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष। मत्स्य पुराण का यह कथन 

हमें पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है। पर अपने स्वार्थ के लिये पेड़ काटने में हम संकोच नहीें करते क्योंकि गाड़ी जो पार्क करनी है। 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। जगह जगह कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिसमें वक्ता से लेकर श्रोता तक सभी पर्यावरण पर चिंता करते हुए बहुत लाजवाब उदाहरण देते हैं मसलन “विश्व भौतिक विकास की ओर तो तेजी से बढ़ रहा है, मगर प्रकृति से उतना ही दूर हो रहा है। पानी दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। भूजल स्तर गिरता जा रहा है। इसे बचाने के लिए खूब पेड़ लगाए जाएं। पेड़ बादल बनने में सहायक होंगे और उन्हीं बादलों से बारिश होगी। राजस्थान में इंदिरा कैनाल बनने के बाद उसके आसपास खूब पेड़ लगाये गये। अब उस इलाके में बारिश होती रहती है। पॉलिथिन का उपयोग नहीं करना है। (फिर पत्रकारों की ओर देखते हुए) मीडिया का काम खबरें देना ही नहीं है, बल्कि सामाजिक चेतना लाना भी है। पेड़ लगाना है, पानी की एक बूंद भी र्बबाद नहीं करनी है। पब्लिक ट्रांसर्पोट का इस्तेमाल करें।़” कार्यक्रम के समापन पर अतिथियों को जो शॉल प्रतीक चिन्ह, नारियल आदि मिला होता है। उसे पॉलिथिन में रख कर ले जाते हैं। घर से झोला आदि नहीं लाते। पानी की बोतल आधी पीकर छोड़ देते हैं। 

  लेकिन हम भी तो इकोफैंडली साइकिल नहीं चलायेंगे। न ही पेड़ पौधों की देखभाल करेंगे। हमारा पड़ोसी अगर पेड़ काट रहा होगा तो हम चुप रहेंगे।

 कोरोना काल में पर्यावरण प्रेमियों ने लॉकडाउन में गार्डनिंग करते हुए अपने हिस्से का वायुप्रदूषण कम किया। 5 जून 2020 को अपने पेड़ पौधों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कीं। जिससे गार्डिनिंग का लोगो में शौक बढ़ा।

    कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह लोगों को ऑक्सीजन की कमी के कारण जान गवानी पड़ी, उसके बाद से लोगों को पेड़ पौधों की जरुरत का अहसास हो गया है। क्योंकि एक पेड़ एक साल में 20 किलो धूल सोखता है। 700 किलो ऑक्सीजन देता है। 20 टन कार्बनडाइआक्साइड सोखता है। गर्मी में पेड़ के नीचे 4 डिग्री तापमान कम होता है। वायुमंडल की जहरीली धातुओं के मिश्रण को इसमें सोखने की क्षमता है। दूषित हवा को फिल्टर करता है। घर के करीब एक पेड़ शोर को सोखता है। यानि अकॉस्टिक वॉल की तरह काम करता है। घर के पास यदि खूब पेड़ हैं तो जीवन कुछ साल बढ़ सकता है। मुझे ये तो बिल्कुल ठीक लग रहा है। क्योंकि चार साल पहले मेरी अम्मा को चिकनगुनिया हो गया था, बचने की उम्मीद नहीं थी। जब जरा ठीक हुईं तो रोज मेरे सहारे से बाहर पेड़ के नीचे जाकर लेटतीं। अब 92वें साल में अपने काम स्वयं करती हैं। पेड़ के नीचे ही उनका पढ़ना, आराम करना होता है। घर के सामने पार्क में कोई डण्डी भी तोड़ रहा हो तो मुझे आवाज़ लगा कर कहेंगी,’’देख, कोई पेड़ काट रहा है।’’मैं तुरंत रोकने जाती हूं।

 

Tuesday, 1 June 2021

समझदार बिल्ली.... नीलम भागी

  



हुआ यूं कि हमारे ऊपर के फ्लोर में फीनिशिंग का काम किसी कारणवश बंद कर दिया गया था। एक कमरे को पूरा करके मेरी बेटी उत्तकर्षिनी के पढ़ने के लिए तैयार कर दिया था। ग्राउण्ड फ्लोर में संयुक्त परिवार रहता है। कहीं से एक बिल्ली का बच्चा उसके पास आ गया। जब मैं रात को उसके रूम में सोने जाती तो मेरी आहट सुन कर वो छोटे से बिल्ली के बच्चे को कमरे से बाहर कर देती। मैं देख कर भी अनदेखा कर देती थी। क्योंकि अम्मा को बिल्लियों से बहुत चिड़ थी। मेरठ में गाय घर में रहती थी। जरा सी असावधानी से कोई बिल्ली दूूध, ताजा बना दी घी, ठंडा होनेे को रखा होता उसमें  में मुंह डाल जाती तो ढेरो दूध फैंकना पड़ता या कुत्ते ढूंढने पड़ते दूध पिलाने के लिए। उनका मानना है कि बिल्ली के शरीर पर परजीवी होते हैं जो बिमारी फैलाते हैं। बिल्ली भगाने के लिए कोई चीज उठा कर नहीं मारती थीं। क्योंकि दादी ने कह रखा था कि अगर बिल्ली मर गई तो मारने वाले को सोने की बिल्ली देनी पड़ती है तभी बिल्ली की हत्या के पाप से मुक्ति मिलती है। बुर्जुगों ने चूहों से निजात दिलवाने के लिए ही ऐसा फैला रखा होगा। चूहे नुक्सान जो पहुंचातें हैं और बिल्ली चूहे खाती है। उत्तकर्षिनी का यह बिल्ली का बच्चा भी बड़ी समझदार! कई बार वह पढ़ाई में खोई रहती। मैं जाकर दरवाजे पर नॉक करती तो दरवाजा खुलते ही वह मुझे देखते ही बाहर निकल जाता। जब वह आई थी तो सर्दियां थीं। उत्तकर्षिनी उसे अपने कोट की जेब में बिठा लेती। जब खाने पीने नीचे आती तो उसकी जेब में बच्चा भी आ जाता। अम्मा देखते ही उसे बाहर निकलवा के उत्तकर्षिनी को अंदर आने देती फिर हाथ धुलवाती। बिल्ली बाहर आंगन में बैठी रहती। जब ये ऊपर जाती तो ये इसके साथ चली जाती। बड़ी होने पर वह समझ गई की उसे घर के अंदर नहीं जाना है। उत्तकर्षिनी विदेश चली गई। घर पूरा बन गया। ये घर में पता नहीं कहां रहती है? पालतू बिल्ली नहीं है इसलिये हमने इसका नाम भी नहीं रखा है। इसे बिल्ली कहते हैं। पर यह नीचे कभी घर के  अंदर नहीं आती। ऊपर सब जगह घूमती है। घर के चारों ओर लगे पेड़ों पर बैठे पक्षियों और गिलहरियों का शिकार करती है। पिछले आंगन में कभी यह आती थी। बंदरों के उत्पात के कारण वहां लोहे का जाल लगा दिया है। अब यह साल में एक या दो बार पिछले आंगन में जाती है फिर लगातार दायें बायें देखे बिना, दिन में कई बार जाती है। वहां लोहे की अलमारी और दीवार के बीच में जगह है। जहां यह बच्चे देती है। 6 साल तक तो पता ही नहीं चला कि यह बच्चे कहां देती है? जब छोटे छोटे बच्चे कभी एक दो या तीन आंगन में घूमते हैं तब पता चलता है ये क्यों पीछे जा रही थी! बच्चे जैसे ही जरा से संभलते हैं। अम्मा का काम बढ़ जाता है। वे अंदर न आएं इसलिए सबको हिदायत देतीं हैं कि पीछे के दरवाजे बंद रखो पर कोई न कोई खुला छोड़ ही देता है और बलुंगड़े पूरे घर में भागना शुरू कर देते हैं। 93वें साल में अम्मा डण्डी से डराते हुए इन्हें भगाती है। बच्चे शायद खेल समझते हैं।  बिल्ली जब आकर ये देखती है तो पीछे आंगन में जाकर आवाज करती है। बच्चे चले जाते हैं। उसके बाद ये बच्चों को ले जाती है। ये समझदार बिल्ली फिर अगले प्रसव के समय ही अंदर आती है। 




नीलम भागी