अंकुर के घर में मैं मोबाइल को जंगमवाणी कहती हूं। जब संस्कृत की कक्षा में आचार्य जी ने बताया था कि मोबाइल को संस्कृत में जंगमवाणी कहा जाता है। तब छात्र खूब हंसे थे। अब जंगमवाणी शब्द मेरे बहुत काम आ रहा है। जैसे ही मैं अंकुर के घर जाती हूं। शाश्वत और अदम्य मेरे पैर छू कर, हग करते हुए मेरी जेबें टटोलने लगते हैं। अंकुर या श्वेता जो भी सामने हो उसे कहती हूं मेरे पर्स में से जंगमवाणी निकाल लो। वो निकाल कर पर्स सामने रख देते हैं। मेरी तलाशी के बाद दोनों कोरस में पूछते हैं,’’नीनों आपका मोबाइल कहां है?’’मैं कुर्ते और जींस की जेबों में ढूंढने की एक्टिंग करते हुए बोलती हूं कि पर्स में होगा! पर होगा तभी तो मिलेगा, वो पर्स में ढूंढते हैं पर वह मिलता ही नहीं। अब दोनों बच्चे मुझसे खूब बातें करते हैं। कहानियां सुनते हैं, सुनाते हैं। अपनी मम्मी पापा की मुझसे शिकायत करते हैं कि वह उन्हें थोड़ा सा मोबाइल देते हैं। शाश्वत को एक घण्टा और अदम्य को आधा घण्टा। अदम्य को टाइम देखना नहीं आता पर ये जानता है कि भइया से कम समय के लिए उसे मोबाइल मिलता है। अगर कभी मेरी गलती से मेरा मोबाइल उनके हाथ लग गया तो बस मोबाइल के लिए झगड़ा शुरू। दोनों मिलकर नहीं देखते क्योंकि उनमें उम्र का बहुत अन्तर है। अदम्य तो मोबाइल देखते हुए शाश्वत को झांकने भी नहीं देता। आप इनके क्लेश का वीडियो देखें समझ आ जायेगा।
मैं मुंबई गई। गीता के खाने का समय हुआ। उसकी मेड ने उसे कार्ट पर बिठा कर बेल्ट से कसा फिर हाथ में उसके मोबाइल दिया, वो कार्टून देखने में लग गई। मेड उसके मुंह में डालती जा रही थी, वो खाना निगलती जा रही थी। ये देखते ही मैंने गीता से मोबाइल छिना तो मेड बोली,’’ये मोबाइल देखते हुए ही खाती है। अब ये नहीं खायेगी।’’ मैंने कहा,’’ इसे वैसे ही खिलाओ।’’ उसने खाना उसके मुंह की ओर बढ़ाया गीता ने मुंह ही नहीं खोला। बड़ी मेहनत करनी पड़ी, उसे बिना मोबाइल के खाना खिलाने में लेकिन कुछ समय बाद खाने लगी। क्योंकि भूख तो सबको लगती है। अब वह बातें करती, बातों के साथ खाते हुए तरह तरह की हरकतें करती। अमेरिका जाने से पहले अंकुर के घर दो दिन रूकी। गीता और अदम्य दोनों की बातों की अपनी भाषा थी।
गीता और अदम्य ठीक से बोलना नहीं जानते। लेकिन अमेरिका में गीता और भारत में अदम्य दोनों की मोबाइल पर हमारी समझ से परे भाषा में बात होती है। बात भी बड़ों की तरह घूम घूम कर करते हैं। ये देख कर यहां हम हंसते हैं, वहां उत्कर्षिनी हंसती है। दोनों बातों में इतने मश़गूल होते हैं कि उस समय उन्हें कार्टून देखना भी नहीं याद होता। वीडियो में बातचीत सुनिए शायद आपको उनकी भाषा समझ आ जाए।
वहां उत्कर्षिनी उसे एक घण्टे के लिए मोबाइल देती है। उस एक घण्टे में अगर मैं गलती से विडियो कॉल कर लूं तो गीता खिल कर मुझसे बात नहीं करती। उत्कर्षिनी मुझे कहेगी ये इसका मोबाइल टाइम है। मैं कॉल बंद कर देती हूं। बाद में जब करूंगी तब खूब बतियायेगी। पर कुछ लोगों को देख कर बड़ी हैरानी होती है। वे छोटे बच्चों को मोबाइल देकर व्यस्त रखते हैं और खु़द मस्त रहते हैं।
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