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Thursday, 23 September 2021

रामलीला और सामाजिक समरसता नीलम भागी

18 सितम्बर को नौएडा स्टेडियम में 6 अक्टूबर से 16 अक्टूबर तक होने वाली श्री सनातन धर्म रामलीला का भूमि पूजन हो रहा था। शहर के गणमान्य राम भक्त बड़ी श्रद्धा से भूमि पूजन में बैठे थे। यज्ञ हो रहा था पर मेरी स्मृति में तो........ कोरोना काल के कारण दो साल से सबने




रामलीला को बहुत मिस किया। दशहरे की छुट्टियों में रात को रामलीला मंचन मंच पर होता था। जिसे बच्चे बहुत ध्यान से देखते थे। लौटते हुए रामलीला के मेले से गत्ते, बांस, चमकीले कागजों से बने चमचमाते धनुष बाण, तलवार और गदा आदि खरीद कर लाते और वे दिन में पार्कों में रामलीला का मंचन करते थे। जिसमें सभी बच्चे कलाकार होते। उन्हें दर्शकों की जरुरत ही नहीं होती। उन दिनों सारा शहर ही राममय हो जाता। 

    तेरी जात क्या है? ये प्रश्न सुनते ही बिमार दादी को दवा देने आई नर्स ने पहले घूर कर मेरी नब्बे साल की दादी को देखा, फिर न जाने क्या सोच कर, मुस्कुराकर बोली,’’ ऊँची जात की मुसलमानी पर माता जी, मैंने दवा को छुआ नहीं है।’’ दादी बोली,’’जिस कागज पर गोलियां हैं, उसे तो छुआ है न। मैं नहीं खाती दवा।’’नर्स भली थी, मुझसे बोली,’’चलो मेरे साथ तुम अपने हाथ से दवा ले लेना।’’ बाहर आकर वही दवा नर्स से लेकर, मैंने माफी मांगते हुए, उसे बताया कि ये बहुत छुआछूत ,जात पात मानती हैं। अब अशक्त हो गईं हैं। पहले जब घर से बाहर जाती थीं तो घर आते ही चाहे जितना भी जाड़ा हो, कपड़े समेत खड़ी, अपने ऊपर पानी की बाल्टी डलवाती थीं। जवाब में नर्स बोली कि इनकी ये आदत तो अब चिता के साथ ही जायेगी। जो भी नर्स आती, वह अपने को ऊँची जात की मुसलमानी, दादी के पूछने पर बताती। दादी पढ़ना जानती थी सिर्फ धार्मिक किताबें ही पढ़ती थी। राम कथा में सामाजिक समरसता का भाव है। समरसता की प्रतीक रामायण, दादी सुबह नहा कर चौकी पर बैठ कर पढ़ती थी। आस पास की महिलाएं नीचे बैठ कर सुनतीं थीं। दादी के उपदेश साथ साथ चलते कि भगवान राम साधारण इनसान बन कर, हमें रास्ता दिखाने आये थे। जब आयोध्या से परिवार उन्हें वन में मिलने आया था तो लक्ष्मण केकई को देख कर भला बुरा कहने लगे, उनका साथ भरत और शत्रुघ्न देने लगे पर श्रीराम ने उन्हे ऐसा करने से रोका क्योंकि वे परिवार में समरसता चाहते थे। निशादराज को गले लगा कर सामाजिक समरसता चाहते थे। शबरी के झूठे बेर खाकर उन्होंने संसार को ये संदेश दिया कि सब मनुष्य मेरे बनाये हुए हैं, कोई छोटा बड़ा नहीं है। केवट की नाव से पार हुए तो उसे मेहनताना दिया, मतलब किसी की मेहनत का हक न मारो ताकि समाज में समरसता बनी रहे। बालि का वध सामाजिक समरसता के लिये किया और इस पर कहा कि बालि वध न्याय संगत है क्योंकि छोटे भाई की पत्नी पुत्रवधु के सामान होती है। शरणागत विभीषण को भी अपनाया। राजधर्म, मित्रधर्म और प्रतिज्ञा सबके बारे में साधारण बोलचाल की भाषा में, दादी अपनी श्रोताओं को समझाती थीं। रामराज्य की कामना करतीं थीं। पर छुआछूत और जातिप्रथा की बुरी तरह से पक्षधर थीं। उनकी कथा सुनने वालियां, इसे उनकी योग्यता मानते हुए प्रचार करतीं थीं कि माता जी राजपुरोहित की बेटी हैं न। छोटी जात वालों को नहीं छूती और छोटी जात वालियां उनसे दूर रह कर कथा सुनती पर उनसे र्तक नहीं करतीं थीं। क्योंकि उनके मन में मर्यादा पुरुषोतम श्री राम जो बसे थे। रामलीला के दिनों में भी दादी की रामकथा सब वैसे ही सुनतीं। छुआछूत की मारी दादी आप रामलीला देखने नहीं जाती पर उनसे कहती,’’ रामलीला में सबको लेकर जाया करो, रामलीला देखने से सदबुद्धि आती है।’’ 1982 में मैं यहां नौएडा रहने आई तो दशहरे की छुट्टियों में दूर दूर तक रामलीला का मंचन नहीं हो रहा था। बड़ा अजीब लगता था। पर अब.......रामलीला के इंतजार में  

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Thursday, 16 September 2021

हमारा बच्चा बोलता नहीं है क्यो? नीलम भागी



 ये देखकर मुझे बहुत हैरानी होती है, जब कोई बबुआ सा बच्चा अपने पेरेंटस के साथ खिलौने की दुकान पर खड़ा होता है। उसके मम्मी पापा उससे पूछते हैं,’’बेटा कौन सा खिलौना लोगे?’’ बबुआ बोलने की बजाय, हाथों को उपयोग कर गोल गोल करके समझाता है कि बॉल लेनी है। मैं हैरान होकर देखती हूं कि इतना बड़ा बच्चा है, इसके मुंह में चुसनी भी नहीं है। कोई कमी होगी जो ये इशारे से बात कर रहा है। इतने में बच्चे के पापा थोड़ा सख्ती से कहते हैं कि आपको जो चाहिए मुंह से बोलो, तब हम खरीद के देंगे। ये शर्त सुन कर बच्चा बस खिलौने का नाम लेता है और चुप। ऐसे कई बच्चे देखें हैं जिनसे आप बात करो, वे सुनते रहेंगे, मुस्कुराते रहेंगे पर जवाब नहीं देंगे। इसका कारण है वे सब कुछ स्क्रीन पर ही देखते सुनते हैं दादी नानी की कहानियां भी। जिसमें न ये प्रश्न करते हैं न हूंगारा भरते हैं बस सामने जो परोसा जा रहा है, उसे बस सुनते हैं। इसलिए बतियाना ही भूल गए हैं। एकल परिवार है। कहीं दोनों नौकरी करते हैं। थकान या ..... बच्चे को खाना खिलाना बहुत धैर्य का काम है। उसे स्क्रीन के सामने बैठा कर खिलाने वाला, आप फोन पर लग जाता है और बच्चा आंख गड़ाए र्काटून देखता है। उसके मुंह में चम्मच से खाना डलता रहता है। उसका मुंह स्क्रीन पर दिखने वाले सीन की गति से चलता हैं। सीन तेजी से बढ़ रहा है तो वह तेजी से चबाता है। सीन धीमी गति से चल रहा है तो मुंह धीरे चल रहा है। अगर म्यूट पर है तो चबाना बंद। आप खिलाना बंद कर दो तो वह बोल कर मांगता नहीं है। ऑन लाइन क्लास में भी क्लास छोड़ कर, वह यू ट्यूब में पहुंच जाता है। क्योंकि टीचर नाम लेकर कुछ पूछेगी। उसे जवाब देना ही नहीं आता है क्योंकि वह तो सिर्फ सुनना ही जानता है। जिन्हे वह सुनता है वह एक तरफा है। वे सुनाते हैं न की सुनते हैं न ही कुछ पूछते हैं। हमारा बड़ा परिवार  है। जिसमें सुपर सीनियर, सीनियर सीटीजन सभी आयु के सदस्य हैं। इनमें से कोई अगर दूसरे शहर में रहता है और उसका बच्चा बहुत छोटा है। वे बहुत व्यस्त हैं तो मेड के होते हुए भी कोई न कोई बुर्जुग बच्चे  के पास आता जाता रहता था। वे बच्चों से इतनी बातें करते हैं कि किसी किसी बच्चे के टायं टांय करने के कारण उसका नाम तोता ही हो जाता है। गीता और अदम्य किसी से भी बतिया लेते हैं। गीता की अमेरिका जाने पर वहां भी खूब सखियां हो गईं। गीता की छोटी बहन दित्या का जन्म वहां पर हुआ है। उत्कर्षिनी उसका कोई भी विडियो भेजती तो 92 साल की अम्मा ध्यान से देखती और मुझसे पूछतीं कि ये दित्या से बातें क्यों नहीं कर रही है? दस दिन की है तो क्या हुआ? बच्चा पेट के अंदर से मां की आवाज सुनता है इसलिए पहचानता है। अम्मा ऊंचा सुनती है मैं वॉल्यूम स्पीकर पर कर देती हूं। उत्कर्षिनी का दित्या के साथ बतियाना सुनकर अम्मा बहुत खुश होती हैं। कहती है बच्चे से बतियाना बहुत जरुरी होता है। इससे उसकी समझ बढ़ती है।ं

उत्कर्षिनी को दित्या से बतियाते देख कर गीता भी उससे बातें करती है।


आज दित्या तीन महीने की हो गई है उसे हंसने को कहो तो वह हंसती है।     


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