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Sunday, 26 June 2022

त्योहारों के रंग, हरियाली के संग उत्सव मंथन, केशव संवाद जुलाई नीलम भागी

कैसे खेलन जाबो सावन में कजरिया, बदरिया घिर आवे ननदी  उत्सव मंथन     


पुरी का प्रधान पर्व होते हुए भी रथोत्सव पर्व भारत में लगभग सभी नगरों में श्रद्धा और प्रेम के साथ मनाया जाता है। जो श्रद्धालू पुरी नहीं जा पाते वे अपने शहर की रथ यात्रा में जरुर शामिल होते हैं। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भगवान जगन्नाथ की यात्रा प्रारंभ होती है। इस वर्ष एक जुलाई को है। रथ यात्रा ये एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के बीच में आते हैं। भगवान जगन्नाथ की यात्रा में भगवान श्री कृष्ण, माता सुभद्रा और बलराम की पुष्य नक्षत्र में रथ यात्रा निकाली जाती है। रथयात्रा माता सुभद्रा के भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से  श्रीकृष्ण और बलराम ने अलग रथों में बैठ कर करवाई थी। सुभद्रा जी की नगर भ्रमण की याद में यह रथयात्रा पुरी में हर वर्ष होती है। 

  आषाढ़ मास में वर्षा का आगमन होता है तो वृक्षारोपण की शुरुवात करते हैं।



इसलिए 1950 से जुलाई के पहले सप्ताह में सरकार देशभर में ’वन महोत्सव’(पेड़ों का त्योहार) का आयोजन करती है। इस दौरान स्कूलों कॉलेजों, प्राइवेट संस्थानों द्वारा पौधारोपण किया जाता है। जिससे लोगों में पेड़ों के प्रति जागरूकता पैदा होती है। वनों का महत्व सामान्य लोगों को समझाना मकसद होता है। बच्चों से वनों केे लाभ पर निबंध लिखवाना या वाद विवाद प्रतियोगिता करवाना ही काफी नहीं है। उन्हें पेड़ों को बचाना, उनका संरक्षण करना भी सिखाना है। 

दश कूप सम वापी, दश वापी समोहृदः।

दशहृदसमः पुत्रो, दशपुत्रसमो द्रुमः।

दस कुओं के बराबर एक बावड़ी है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है। मत्स्य पुराण का यह कथन हमें पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमारे यहां किसी राजा की महानता का वर्णन करते हैं तो लिखते हैं कि उसने अपने शासन काल में सड़के बनवाईं थीं और उसके दोनो ओर घने छायादार वृक्ष लगवाए थे। हमारे यहां तो पेड़ों की पूजा की जाती हैं। जैसे वट सावित्री, तुलसी विवाह, आंवला अष्टमी आदि। अब हमें हरियाली बढ़ाने के लिए ग्रीन स्टेप्स लेने होंगे। सभी के थोड़े थोड़े योगदान से बहुत बड़ा परिवर्तन हो जायेगा। बच्चों को बचपन से ही पर्यावरण से जोड़ना होगा।

       जिस उत्साह से वन महोत्सव पर वृक्षारोपण किया जाता हैं ं उसी तरह उनका संरक्षण भी किया जाना चाहिए। जिन्होंने पौधा लगाया, फोटो खिचाई वे तो पौधे की देखभाल करने आयेंगे नहीं। इसके लिए वहां आसपास रहने वाले नागरिकों को ही देखभाल करनी होगी। कुछ ही समय तक तो!! जैसे जैसे पेड़ बड़ा होगा उसका सुख तो आसपास वालों को ही मिलेगा। इसलिए पेड़ों को बचाना अपनी नैतिक जिम्मेवारी समझना है। नष्ट हुए पेड़ की जगह दूसरा पेड़ लगाना है। कहीं पढ़ा था कि पेड़ों के लिए काम करना, मां प्रकृति की पूजा करना है।      

     देवशयनी एकादशी 10 जुलाई के दिन से सभी प्रकार के मांगलिक कार्यक्रम, विवाह आदि बंद कर दिए जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से भगवान विष्णु 4 महीनों के लिए योग निद्रा में जाते हैं। चौमासा शुरु हो जाता है और देवी देवता विश्राम को चले जाते हैं। 

 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस बढ़ती आबादी को काबू करने और परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए मनाया जाता हैं। जितना जनसंख्या विस्फोट होगा उतनी बड़ी समस्याएं होंगी लोगों को इससे अवगत कराना है।

 13 जुलाई को भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दूओं और बौद्धों द्वारा अपने गुरुओं को कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। यह आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है 

आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को खास माना जाता है। इस दिन गुरु पूर्णिमा  का पर्व मनाया जाता है। 

 विश्व युवा कौशल दिवस की स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 नवम्बर 2014 को की थी। महासभा ने 15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस के रुप में मनाये जाने की घोषणा की। सभी देशों से यह आग्रह किया गया है कि वे अपने देश में युवाओं को अधिक से अधिक कौशल विकास के प्रति जागरुक करें ताकि वे बेहतर अवसरों को तलाश कर रोजगार प्राप्त कर सकें।

   22 जुलाई को राष्ट्रीय आम दिवस(जुलाई में चौथा गुरुवार) के रूप में मनाया जाता है। केरल में कन्नूर जिले के कन्नपुरम को ’स्वदेशी मैंगो हेरिटेज एरिया’ घोषित किया गया है। इस पंचायत विस्तार में यहां आम की 200 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं। जिनके बारे में तरह तरह की कहानियां भी प्रचलित हैं। आम तो हमारे लोकगीतों और धार्मिक समारोहों से अटूट रूप से जुड़ा है। कुछ समय मुम्बई में रही जब भी किसी धार्मिक आयोजन के लिए पूजा की सामग्री खरीदने के लिए गई तो वहीं आम की लकड़ी और तोरण के लिए  आम के पत्ते भी मिलें। मेरी भी आम पर आपबीती है। 

  हमारे फेसिंग पार्क घर के सामने पार्क मेें दो आम के पेड़ हैं। आम का मौसम आते ही उन पर बौर आता है, साथ ही कोयल की कूक सुनाई देती है। आम से लदे पेड़ बहुत सुन्दर लगते हैं। मैंने भी सामने पार्क में आम्रपाली नस्ल का आम का पौधा लगवाया। पानी देती उसकी देखभाल करती। जिसके घर में भी पूजा होती पंडित जी पूजा के सामान के साथ आम के पत्ते लिखवाते, तो उन्हें मेरा छोटा पेड़ ही नज़र आता। पुजारी उसके पत्ते नोचने आ जाते। अगर मैं देख लेती तो तुरंत उन्हें हटाते हुए बड़े आम के पेड़ दिखा कर कहती कि उस पर चढ़ के जितने मर्जी पत्ते तोड़ो। ऐसे टोकते हुए मैंने अपना आम, अपनी लम्बाई तक बड़ा कर लिया। कभी कभी पूजा वाले सुबह पत्ते तोड़ लेते। बड़े पेड़ पर चढ़ने की ज़हमत कौन उठाए! पर मेरा पेड़ किसी तरह बचा रहा। मैं कुछ समय के लिए बाहर गई। लौटी तो पेड़ वहां था ही नहीं। मैंने आस पास पता लगाया तो पता चला कि आम चैत्र नवरात्र में कलश स्थापना में उपयोग हो गया। बड़े पेड़ों पर कौन चढ़े! मैंने पार्क में सोलह आम के पौधे लगवा दिए। मेरी देखभाल से वह अच्छी तरह जम गए। एक दिन पानी लेकर पार्क में गई, देखा 14 पौधे गायब! सिर्फ दो पौधे बचे हुए थे। वहां दो बाइयां खड़ी बतिया रहीं थीं। मैंने उनसे पूछा,’’यहां से पौधे किसने तोड़े हैं?’’उन्होंने जवाब दिया,’’जी हमें नहीं पता और चल दीं।’’मुझे एक दम याद आया कि आज पहला शारदीय नवरात्र है। घट स्थापना के लिए मेड को कहा होगा कि आम के पत्ते ले आना। वे नौ दस पत्तों वाले आम के पौधे ही निकाल कर ले गईं। दो पौधे बचे तो मैंने उनका चार महीने तक ध्यान रखा। सर्दी की बरसात हुई। आठ दिन तक पानी देने की जरूरत नहीं थी। जब पानी देने गई तो देखा बचे दोनों आम के पेड़ भी गायब! तफ़तीश करने पता चला कि जिनके घर बेटे के जन्मदिन पर श्री सत्यनारायण की कथा थी, वे आम के पौधे निकाल कर ले गए थे पत्तों से बंदनवार बनाने के लिए। मेरे परिवार में  जन्मदिन पर पौधा लगाने का रिवाज़ है। अब मैं आम का पौधा लगवाती हूं। 

  कारगिल विजय दिवस को सभी देशवासी इस युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों के सम्मान हेतु मनाते हैं। 1999 में कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच चला था। 26 जुलाई को इसका अंत हुआ और भारत विजय हुआ। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है।

 सावन की शिवरात्री 27 जुलाई को शिवजी का श्री गंगाजल से रूद्राभिषेक किया जाता है। श्रावण मास में भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। सावन केे पहले सोमवार से शिवभक्त कांवड लेने जा सकते हैं। फिर  हरिद्वार या गोमुख से यात्रा आरम्भ होती है। कंधे पर कांवड़ में गंगा जल होता है और ये यात्रा कांवड़ यात्रा कहलाती है। जो कांवड़ लेने जाते हैं वे भगवा भेष में होते हैं। कोई शिवजी का गण बना होता है। सजा हुआ कावंड उठाए कांवड़िए का एक ही नाम होता है ’भोला’। इस यात्रा में भोले कंघी, तेल, साबुन का इस्तेमाल नहीं करते। मार्ग में कांवड़ को धरती से नहीं छूना है। कांवड़ शिविर में उसे टांगते हैं और आराम करते हैं। शिवरात्री पर जलाभिषेक करने पर ही कावड़ यात्रा सम्पन्न होती है। यात्रा में इनके आपस पारिवारिक संबंध भी बन जाते हैं।   

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 28 जुलाई को मनाया जाता है। प्राकृतिक संसाधनों के बहुत अधिक दोहन के कारण पर्यावरण को बनाए रखने की जरुरत बहुत अधिक हो गई हैं। जिसके कारण दुनिया भर में अजीबोगरीब मौसम का बदलाव हो रहा हैं। इसलिए इसका उद्देश्य दुनिया को स्वस्थ रखने के लिए पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करना है।    

  सिंधारा तीज जिसे हरियाली तीज भी कहते हैं। सावन में आने वाले इस त्यौहार में प्रकृति ने हरियाली की चादर ओढ़ी होती है। इस दिन को भोलेनाथ और माता पार्वती के पुनर्मिलन का दिन माना जाता है। यह महिलाओं का उत्सव है। सावन की बौछारों में हरे भरे पेड़ो पर झूले पड़ जाते हैं। कहीं कहीं यह उत्सव तीन दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन मायके से सिंधारा में घेवर मिठाई, मेहंदी, चूड़ियां आदि सुहाग की चीजे आतीं हैं। दूसरे दिन हरी हरी मेहंदी हाथ पैरों में लगाई जाती है। अगले दिन सौभाग्यवती महिलाएं पकवान बनाती हैं और हरी पोशाक पहने, श्रृंगार करके माता पार्वती की पूजा करती हैं। सास को बायना देकर उनसे आर्शीवाद लेकर सपरिवार भोजन करती हैं। कहीं कहीं पर इससे पहले दिन से निर्जला वृत रखती हैं। नई बहू को पहले सावन में मैके भेज दिया जाता है। रिवाज़ है कि पहला सावन सास बहू इक्ट्ठे नहीं रहतीं हैं। तीज पर ससुराल से बहू के लिए सिंधारा जाता है। हमारे लोकगीतों में भी हरियाली, सावन के झूले, रिमझिम वर्षा की फुहारों में झूलती गाती सखियां होती हैं। पहले छोटी आयु में बेटियों की शादी हो जाती थी। हरियाली तीज उत्सव से वह पहला सावन पुरानी सखियों के साथ मना जातीं है। दक्षिण भारत में पहला आषाढ़ सास बहू एक साथ नहीं रहतीं हैं। हिंदू धर्म की बहुत बड़ी विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता है, सबके योग्य नियमों की लचीली व्यवस्था भी करता है। महानगरों की कामकाजी महिलाएं अपनी व्यवस्थता के कारण और छुट्टी न होने से परिवार में नहीं जा पातीं लेकिन घर में उत्सव जरुर मनाती हैं। जहां तीज महोत्सव का आयोजन किया जाता है वहां पहुंच कर सखियों से मिलन भी हो जाता है। हरियाली धरती का सौन्दर्य है। उसी से हम सबका जीवन संभव है। और हमारा कर्त्तव्य है कि इसकी हरियाली को बनाये रखें। प्रेरणा शोध  संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद के जुलाई अंक में  यह लेख प्रकाशित हुआ है। उत्सव मंथन 





 


      

             


Friday, 10 June 2022

पंजाबी विकास मंच ने श्रद्धापूर्वक मनाई निर्जला एकादशी और गुरू अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस नीलम भागी


 

   हिंदू धर्म में 24 एकादशियों का बहुत महत्व है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इसकी कथा में हिंदू धर्म की बहुत बड़ी विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता है, सबके योग्य नियमों की लचीली व्यवस्था भी करता है। महर्षि वेदव्यास ने पाडंवों को एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो भीम ने कहा,’’पितामह इसमें  प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। पर मैं तो एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता। मेरे पेट में ’वृक’ नाम की जो अग्नि है उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊंगा?’’ यह सुनते ही महर्षि ने भीम का मनोबल बढ़ाते हुए कहा,’’आप ज्येष्ठ मास की निर्जला नाम की एकादशी का व्रत करो। तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों का फल मिलेगा।’’ इस एकादशी पर ठंडे र्शबत की जगह जगह छबीलें लगाई जातीं हैं। जिसे पीकर भीषण गर्मी में राहगीरों को बड़ी राहत मिलती है। स्वयं निर्जल रह कर जरुरतमंद या ब्राह्मणों को दान दिया जाता है।

     सिख समुदाय में गुरु परंपरा के पाँचवें गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस उनकी शहादत को याद करने के लिए मनाते हैं। गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद हैं। इन्होंने धर्म के लिए अपनी शहादत दी। इनके शहीदी दिवस पर जगह जगह ठंडे र्शबत की छबीलें लगाई जाती हैं। गुरु जी ने सिखों को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा धार्मिक और सामाजिक कार्यों में लगाने के लिए प्रेरित किया।

  आज 10 जून को निर्जला एकादशी और गुरू अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में सेक्टर 55 की बाहरी मेन रोड पर, सेक्टर 22 नौएडा के सामने 11 बजे से दोपहर 2.30 तक पंजाबी विकास मंच द्वारा ठंडे शरबत की छबील का आयोजन किया गया। जिसमें जरूरतमंदों को तौलिये भी वितरित किये गये। यह विशाल कार्यक्रम इकोफ्रैंडली था। कागज के गिलासों का उपयोग किया गया। डस्टबिन की व्यवस्था थी। छबील का उद्घाटन वी. के ग्रोवर जी ने रिबन काट कर किया।  इस पावन पर्व पर , दीपक विज, जी.के. बंसल, संजीव पूरी , संजीव बांदा, जे.एम. सेठ, कंवल कटारिया, विरेन्द्र मेहता, प्रदीप वोहरा, सुनील वधवा, विवेक मल्होत्रा, हरीश सबरवाल, एस. पी. कालरा, वंदना बसंल, अलका सूद, नीता भाटिया, नीलम भागी, अंजना भागी, प्रभा जयरथ , सवकेश गुप्ता, ऋतु दुग्गल, मंजू शर्मा, पम्मी मल्होत्रा, एस.एस. चौहान ने बढ़चढ़ कर भाग लिया एवं पंजाबी विकास मंच के सदस्यों का योगदान सराहनीय रहा।  













Thursday, 2 June 2022

योग और संगीत दोनों तनाव दूर करते हैं!! उत्सव मंथन नीलम भागी Yoga & Music Both Relief Stress Neelam Bhagi

 


   हमारे देश में साल का छठा सबसे गर्म महीना जून है। देश विदेश के विशेष दिनों और भारत में उत्सवों और महापुरुषों के कारण जून बहुत मुख्य है। इन सभी उत्सवों, व्रत और विशेष दिनों को मनाते हुए, हमें प्रयास करना चाहिए कि सामाजिक चेतना भी आए। 

विश्व दुग्ध दिवस 1जून, इस दिन को मनाने का मकसद डेयरी उत्पादन के क्षेत्र में स्थिरता लाना, आजीविका है। कुपोषण से बचना है इसलिए भोजन में डायरी प्रोडक्ट दूध आदि को शामिल करना है। 

  सिख समुदाय में गुरु परंपरा के पाँचवें गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस 3 जून को उनकी शहादत को याद करने के लिए मनाते हैं। गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद हैं। इन्होंने धर्म के लिए अपनी शहादत दी। इनके शहीदी दिवस पर जगह जगह ठंडे र्शबत की छबीलें लगाई जाती हैं। गुरु जी ने सिखों को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा धार्मिक और सामाजिक कार्यों में लगाने के लिए प्रेरित किया। 

  3 जून को विश्व साइकिल दिवस है। जिसका उद्देश्य शारीरिक स्वास्थ्य, पर्यावरण बेहतर करने के लिए समाज के सभी वर्गो में इकोफ्रैंडली साइकिल के उपयोग को बढ़ावा देना है।  हमें साइकिल चलानी है। आस पास के काम के लिए साइकिल का उपयोग करना है न कि साइकिल के फायदों पर भाषणबाजी करनी है।   


 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित कार्यक्रमों में पर्यावरण संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास पर बल दिया जाता है। साथ ही बच्चों को पेड़ लगाने और  पर्यावरण को बचाने में आगे आने की अपील की जाती है।

पौधों में जीवन होता है। हमारे बुजुर्ग बिना विज्ञान पढ़े रात को तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ते थे। तुलसी का विवाह करते थे। अब भी यह परम्परा चली आ रही है। लेकिन “विश्व भौतिक विकास की ओर तो तेजी से बढ़ रहा है, मगर प्रकृति से उतना ही दूर हो रहा है। पानी दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। जल संरक्षण करना है। पर्यावरण सुधार के लिए खूब पेड़ लगाए जाएं। राजस्थान में इंदिरा कैनाल बनने के बाद उसके आसपास खूब पेड़ लगाये गये। अब उस इलाके में बारिश होती है।

   अब 5 जून को पर्यावरण दिवस मनायेंगे। लेकिन इकोफैंडली साइकिल नहीं चलायेंगे। न ही पेड़ पौधों की देखभाल करेंगे। हमें पर्यावरण में सुधार करना होगा जिससे हम स्वस्थ रहेंगे और अपने उत्सवों का आनन्द उठायेंगे।

   विश्व खाद्य सुरक्षा- हमारे धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में 20ः भोजन फेंका जाता है। कुछ लोग जूठा छोड़ना शान समझते हैं। बड़े मॉल और स्टोर में खाद्य पदार्थ, फल सब्ज़ियां डम्प में फैंके जाते हैं। चूहों द्वारा नष्ट किए जाते हैं। ऐसा न हो इसके लिए 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाता है।


   जून के पहले सप्ताह में शिमला समर फैस्टिवल मनाया जाता है। इस प्रसिद्ध त्यौहार में खेलकूद की गतिविधियां, फैशनेबल कपड़ों, हैंिडक्राफ्ट वस्तुओं और व्यंजनों, फूलों की, कुत्तों की प्रदर्शनी लगती है। हवा में कलाबाजियां और लाइव फैशन शो का प्रदर्शन होता है।

   8 जून को महासागर का महत्व बताने के लिए विश्व महासागर दिवस मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2009 में की गई।    

   ग्ंागा दशहरा का पर्व हर साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन राजा भागीरथ के कठोर तपस्या के चलते मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था। दशहरा का अर्थ 10 मनोविकारों के विनाश से है। क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी है। हिंदू धर्म में गंगा दशहरा पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं। इस दिन गंगा जी में स्नान करना अपना सौभाग्य समझा जाता हैं। जहां पर जो भी नदी होती है श्रद्धालू उसकी पूजा अर्चना कर लेते हैं क्योंकि नदियां हमारी संस्कृति की पोषक हैं। कुछ दिन पहले जनकपुर धाम नेपाल गई तो वहां पर गंगा सागर झील पर शाम को गंगा जी की आरती में भाग लेना अपना सौभाग्य लगा। गंगा जी कितनी हमारे मन में समाईं हैं!! जो दर्शनार्थियों का भाव हरिद्वार, ऋषिकेश में गंगा जी की आरती के समय, वहां होने से समां बंधता है। वैसा ही श्रद्धालुओं के भाव से यहां लग रहा था। 9 जून को गंगा जी में स्नान करके गंगा जी के मंदिर में पूजा और दान करते हैं। 10 दिनों तक मनाये जाने वाले इस उत्सव के समापन के दिन को शुक्ल दशमी कहा जाता है। 

    हिंदू धर्म में 24 एकादशियों का बहुत महत्व है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इसकी कथा में हिंदू धर्म की बहुत बड़ी विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता है, सबके योग्य नियमों की लचीली व्यवस्था भी करता है। महर्षि वेदव्यास ने पाडंवों को एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो भीम ने कहा,’’पितामह इसमें  प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। पर मैं तो एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता। मेरे पेट में ’वृक’ नाम की जो अग्नि है उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊंगा?’’ यह सुनते ही महर्षि ने भीम का मनोबल बढ़ाते हुए कहा,’’आप ज्येष्ठ मास की निर्जला नाम की एकादशी का व्रत करो। तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों का फल मिलेगा।’’ इस एकादशी पर ठंडे र्शबत की जगह जगह छबीलें लगाई जातीं हैं। जिसे पीकर भीषण गर्मी में राहगीरों को बड़ी राहत मिलती है। स्वयं निर्जल रह कर जरुरतमंद या ब्राह्मणों को दान दिया जाता है।

    पानी हाटी में प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल की त्रयोदशी को दही चूड़ा का विशेष भोज होता है। जो 15 जून को है। इस वर्ष यह महोत्सव 12 से 16 जून तक चलेगा। 15 जून को ’दंड महोत्सव’ का विशेष विधान है। जो ’दही चूड़ा महोत्सव’ कहलाता है। इसमें अन्य संप्रदाय के अनुयायी भी शामिल होते हैं। 16 को संकीर्तन के कार्यक्रम के साथ इस महोत्सव का समापन होगा। बैंगलोर एस्कोन में भी इस उत्सव में बड़ी संख्या में श्रद्धालू भाग लेते हैं।

 हर वर्ष जून पूर्णिमा के दिन जम्मू और कश्मीर के लेह में सिंधु दर्शन महोत्सव का तीन दिन 12 ये 14 जून तक आयोजन किया है। जिसमें बड़ी संख्या में विदेशी और घरेलू पर्यटक आते हैं। सिंधु दर्शन समारोह के आयोजन का मुख्य कारण सिंधु नदी को भारत के सांप्रदायिक सद्भाव और एकता के प्रतीक के रुप में समर्थन करना है। सिंधु दर्शन लेह के मुख्य शहर से 8 किमी. दूर स्थित शीला मनला में मनाया जाता है। यहां लगभग 50 वरिष्ठ लामा प्रार्थनाओं को अनुष्ठान के रुप में करते हैं। देश के विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक श्रृंखला भी प्रस्तुत की जाती है।

  सागा दावा सिक्किम के सबसे बड़े त्यौहार में से एक है। यह धार्मिक त्यौहार सिक्किम की संस्कृति को प्रस्तुत करता है। महात्मा बुद्ध के जन्म, ज्ञान और निर्वाण की प्राप्ति को दर्शाता यह पर्व है। माना जाता है कि इस दिन बुद्ध का जन्म हुआ था, उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और निर्वाण प्राप्त किया था। उनके इस सफ़र को दर्शाता यह उत्सव है। सागा दावा तिब्बत का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। 14 जून को इस उत्सव के दर्शक बनने के लिए टूर पैकेज़ भी तैयार किए जाते हैं। 

  15वीं शताब्दी के प्रसिद्ध समाज सुधारक, कवि, संत का जन्म ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को हुआ था। जिसे कबीर प्रकाश दिवस के रुप में मनाया जाता है। कबीर अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के प्रथम विद्रोही संत हैं। जगह जगह होने वाले कार्यक्रमों में इनके दोहे गाए जाते हैं।        

      ओचिरा कलि मंदिर से जुड़ा केरल का एक वार्षिक उत्सव है। जो पुराने समय में हुई एक लड़ाई की याद में लोग मनाते हैं। जिसमें दो समूह कायाकुलम और अलाप्पुझा के बीच लड़ाई हुई थी। मलयालम में कलि का अर्थ खेल होता है। ओचिरा कलि में पुरुष और लड़के पानी से भरे धान के खेत में नकली लडा़ई करते हैं। संगीत मय यह लड़ाई प्रतिभागियों के शारीरिक कौशल का प्रदर्शन है। 15, 16 जून को इसका आनन्द उठाने के लिए पर्यटक पहुंचते हैं। यहां कि अनोखी रस्म है बैलों की पूजा क्योंकि शिव का वाहन नंदी बैल है। 

  

  ओडिशा में राजा संक्रांति समारोह मानसून के शुरुआत का तीन दिवसीय उत्सव है। इसे’ स्विंग फेस्टिवल’ भी कहते हैं, जगह जगह पेड़ों पर झूले जो पड़ जाते हैं। त्यौहार के दौरान लोग पथ्वी पर नंगे पांव भी नहीं चलते। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मानसून की बारिश से पहले पृथ्वी को आराम दिया जाना चाहिए। महिलाएं घर के काम से छुट्टी लेतीं हैं और किसान खेती से। सब खेलों में व्यस्त रहते हैं। लड़कियां पारंपरिक पोशाक पहनतीं हैं और पैरों में आलता लगातीं हैं। दूसरे दिन को ’’सजबजा’’ कहते हैं। इसमें सिलबट्टे को सजा कर रखते हैं। हिंदू देवी धरती के प्रतीक सिल को हल्दी का लेप लगा कर महिलाओं द्वारा स्नान कराया जाता है। धरती मां को फलों का भोग लगाया जाता है। बारिश का स्वागत करने के लिए सब एक साथ आते हैं। समापन 15 जून को, धरती मां के आर्शीवाद स्वरुप अच्छी पैदावार होगा।

  अर्न्तराष्ट्रीय योग दिवस भारत द्वारा प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का रिर्काड 175 सदस्य देशों द्वारा इसका समर्थन किया गया। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर 21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रुप में घोषित किया गया। इसका उद्देश्य योगाभ्यास करने के लाभ के बारे में विश्व की जागरुकता बढ़ाना है। 

योग और संगीत दोनों तनाव दूर करते हैं। हमारे मन को शांत रखते हैं। कहते हैं संगीत हर मर्ज की दवा है। मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए म्यूजिक थैरेपी बहुत कारगार है। 

संगीत की विभिन्न खूबियों की वजह से विश्व में एक दिन संगीत के नाम है। 21 जून को अर्न्तराष्ट्रीय संगीत दिवस मनाया जाता है। संगीत के बिना उत्सव कैसा! स्ंागीत हमें सकून पहुंचाता है। 

  खारची पूजा के उत्सव में पूर्वोतर भारत के त्रिपुरा राज्य में 14 देवताओं की पूजा की जाती है। अगरतला में स्थित 14 देवताओं को समर्पित मंदिर में एक सप्ताह तक अनुष्ठान किया जाता है। यह भी देवताओं के साथ धरती पूजन है। इन दिनों धरती की जुताई नहीं की जाती है। 14 देवताओं की मूर्ति को सैदरा नदी में डुबकी लगाने ले जाते हैं। डुबकी लगाने के बाद अनुष्ठान करके उनको फूलों और माथे पर सिंदूर से सजा दिया जाता है। यह त्यौहार आदिवासी और गैर आदिवासी दोनों समुदायों द्वारा 22 जून को मनाया जायेगा।

    आंबुची मेला यह तीन दिन तक चलने वाला मेला गोहाटी में मनाया जाता है। तीन दिन कामाख्या मंदिर बंद रहता है। तीन दिनों बाद, चौथे दिन देवी की प्रतिमा को नहलाया जाता है और भक्त मां के दर्शन के लिए आ सकते हैं। 22 जून को यह मानसून वार्षिक मेला लगेगा।

  23 जून को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मनाया जाता है। यह दिन खेल और फिटनेस को समर्पित है।    

गोवा में साओ जोआओ 24 जून को मानसून आगमन के साथ ही में खास तौर पर मछुआरा समूह मनाते हैं। नाच गाना और तरह तरह के रंगारंग कार्यक्रमों द्वारा आपस में एन्जॉय करते हैं। ये फैस्टिवल यहां का खास आर्कषण है। 

    जून की भीषण गर्मी में हमारे उत्सव हमें यात्रा, संगीत, स्वास्थ और पर्यावरण का महत्व समझाते हुए हमसे मानसून का स्वागत भी करवाते हैं। यह लेख के प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित हुआ है।