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Wednesday, 7 September 2022

बासुकीनाथ माहात्म्य, दर्शन की लाइन, बैजनाथ यात्रा भाग 12 नीलम भागी Basukinath Baijnath Yatra Part 12


        गुप्ता जी ने सबको याद करवा दिया दो न0 बस स्टैण्ड पर हमारी पार्किंग है। 300 रु में वीआईपी दर्शन हैं। मैं, डॉ. शोभा और दो महिलाओं को छोड़ कर बाकि सब पण्डा जी के साथ वीआईपी दर्शन को चले गए। यहाँ से मेला परिसर तक रिक्शा में सब गए

पर हम पैदल क्योंकि मुझे पता नहीं क्या देखना होता है? वही रास्ता है आते समय रिक्शा से आउंगी। बहुत ह्यूमिडिटी वाली गर्मी और तीखी धूप है। मेरे पर्स में छाता है पर इतनी भीड़ में छाता लेकर चलने से दूसरों को। परेशानी होगी। सफेद रुमाल था उसे ही सर पर रख लिया, थोड़ी राहत मिली। आगे रिक्शा नहीं जाएगी। सड़क के दोनों ओर बाजार लगे हुए हैं। जिसमें तरह तरह के आचार बिक रहे हैं। सबसे ज्यादा बांस का आचार है। सिलबट्टे की खूब दुकाने हैं। लोग इतना भारी खरीदते होंगे तभी तो इतनी दुकाने हैं। हैंडीक्राफ्ट की बहुत दुकाने हैं। तरह तरह की हाथ से बुनी हुई टोकरियां बहुत सुन्दर लग रहीं हैं। जगह जगह छतरी लगा कर महिलाएं भुट्टे भून कर बेच रहीं हैं। खाने की भी अस्थाई खूब दुकानें हैं।




ये बाजार क्या ओपन मॉल है! जो मुुझे किसी महानगर के मॉल से कम नहीं लग रहा है। ये बाबा के दरबार का बाजार है जहाँ देश भर का एयरकंडीशन में रहने वाला श्रद्धालु भी खरीदार है। श्रद्धालुओं की जेब के अनुसार सबके लिए खरीदारी का सामान है। और मैं कुछ देखते हुए रुक जाती हूँ इसलिए हमेशा अकेली रह जाती हूँ। चारों ओर केसरिया रंग है और "बोल बम" ही सुनाई दे रहा है। बस भीड़ के साथ चलते जाओ। अब वन गंगा या शिव गंगा के साथ चलो तो लाइन में लग गए। मैटल डिटक्टर के पास ही चप्पल उतार दी कोई परवाह नहीं कि लौटने पर वहाँ मिलेगी या नहीं। और मैं लाइन में लग गई। यहां तक आने में हाथ में पकड़ी पानी की बोतल तो पी गई। अब पर्स से एक लीटर की दूसरी निकाल कर खोल ली है। दूर तक किसी के हाथ में पीने का पानी नहीं है लेकिन जल चढ़ाने के लिए गंगा जल है। लाइन धीरे धीरे आगे बढ़ रही है। बाबा धाम से 45 किमी पूर्व में बाबा बासुकीनाथ धाम, अत्यंत ही जाग्रत शैव तीर्थ स्थलों में आता है। ऐसा मानते हैं कि बाबाधाम के दर्शन के बाद बासुकीधाम के दर्शन नहीं किए तो बाबाधाम की यात्रा अधूरी रह जाती है। इसलिए अधिकांश तीर्थयात्री यहाँ पूजा अर्चना करने अवश्य आते हैं। मंदिर का इतिहास सागर मंथन से जुड़ा हुआ है। कहते हैं। वर्तमान मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी के अंत में हुई। 

  जब देवताओं और असुरों ने मिलकर सागर मंथन किया तो वासुकीनाग मथने में उपयोग हुआ था। इसी स्थान पर वासुकी ने शिव की पूजा की थी। 

   किसी समय इस क्षेत्र में हरा भरा वन था। जिसे दारुक वन कहा जाता था। वनों से होने वाले लाभ को देखते हुए यहाँ लोग बसने लगे। दारुक वन से उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती थी। कंदमूल की तलाश में ये वनों में घूमा करते थे। एक बार बासुकी नामक मनुष्य भोजन की तलाश में जंगल में घूम रहा था। उसने कंदमूल प्राप्त करने के लिए जमीन को खोदना शुरु किया। तभी अचानक एक स्थान पर खून बहने लगा। बासुकी घबराकर वहाँ से जाने लगा तभी आकाशवाणी हुई और बासुकी को आदेश हुआ कि वह वहाँ जमीन से प्रकट हुए भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग की पूजा अर्चना करे। उसने कर दी। बासुकी के नाम से ही ये शिव बासुकीनाथ कहलाए। यह बहुत प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पास ही एक तालाब है जिसे वन गंगा या शिवगंगा कहा जाता है। यहाँ का जल श्रद्धालुओं द्वारा अति पवित्र माना जाता है। श्रद्धालू गंगा जल और  दूध से भगवान बासुकीनाथ का अभिषेक करते हैं। यहाँ भगवान शिव का स्वरुप नागेश है। क्रमशः  







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