हम लोग हरिला जोड़ी से नौलखा मंदिर की ओर चले। कांग्रेस यादव से जो पूछो वो सब जानकारी दे रहा है। बाबा वैद्यनाथ धाम से मंदिर ज्यादा से ज्यादा दो किमी. की दूरी पर है। रिक्शा वहाँ से 30रु लेता है। बाबाधाम की नगरी में स्थित नौलखा मंदिर का दूसरा स्थान है जहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या दर्शन के लिए आती है। 12 से 2 बजे दोपहर में मंदिर का गेट बंद रहता है। हम गेट के बाजू की दुकान में चाय पीते रहे। गेट के बाहर लगी अस्थाई दुकानों में तीर्थयात्रियों की शॉपिंग चलती रही। गेट खुलते ही हरियाली से घिरे साफ सुथरे मंदिर के विशाल परिसर में प्रवेश किया और आँखें मंदिर की खूबसूरती पर टिक गई। यह कोलकता में स्थित बेलूर मठ की वास्तुकला से प्रेरित है। अनूठा नौलखा मंदिर देवघर के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। नौलखा मंदिर के नाम की बहुत रोचक कथा है। कान्हा के बाल रुप को समर्पित यह मंदिर नौ लाख रुपये की लागत से बना है। इसलिये यह जनमानस में नौलखा के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। मंदिर की ऊँचाई 146 फीट है। झारखंड के देवघर शहर से यहाँ आने के लिए मैनुअल रिक्शा, ई रिक्शा और ऑटोरिक्शा खूब मिलते हैं। नौलखा मंदिर का निर्माण 1940 में पथुरिया घाट शाही परिवार की महारानी चारुशीला घोष के संरक्षण और निगरानी में किया गया है। वहाँ पुजारी जी ने बताया कि शाही परिवार की रानी चारुशीला दासी अपने बेटे और पति के असमय निधन के बाद, श्री श्री बालानन्द ब्रह्मचारी के चरणों के नीचे शांति ग्रहण करने आयीं और इनकी शिष्या बन गईं। उन्होंने अपने गुरु की प्रेरणा सें प्रख्यात नौलखा मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर का निर्माण 1936 में शुरु हुआ था। मंदिर के अंदर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करना सख्त मना है। जहां भी मनाही होती है, मैं वहाँ नियम का पालन करती हूँ। चप्पल उतार कर सीढ़ियाँ चढ़ते ही सामने सफेद मूर्ति देवी चारुशीला दासी की है।
जिसको प्रणाम करके सामने विशाल हॉल हैं, यहाँ दर्शनों के बाद बैठना बहुत अच्छा लगता है। ताज़ी ठंडी हवा का यहाँ ग़ज़ब का क्रास वेंटिलेशन है, बैठने के बाद उठने का मन नहीं करता है। यहाँ से बाहर आती हूँ देवी चारुशीला दासी जह़न में साथ ही आती हैं। नीचे कुछ अस्थाई दुकाने हैं जो गेट के अंदर हैं।
वहां ऐसे ऐसे दादी नानी की रसोई में उपयोग होने वाले औजार, बर्तन आदि, आधुनिक बर्तनों के साथ बिक रहे है। यानि हर पीढ़ी खरीदारी कर सकती है। यहाँ खूब समय बिताकर हम होटल की ओर चल पड़ते हैं। जैसे ही रिक्शा से उतरी, मैंने कांग्रेस यादव से पूछा,’’तुम्हारा कांग्रेस यादव नाम किसने और क्यों रखा है?’’ मेरा प्रश्न सुनकर पहले वह मुस्कुराया फिर जवाब दिया,’’हम बचपन में बहुत शैतान थे। सीधे सीधे चलते दूर तक निकल जाते थे। घर वाले पकड़ कर लाते तो बाबा बोलत ये कांग्रेस है फिर नाम कांग्रेस रख दिया।’’खैर अच्छा इंसान है। हमें एक प्वाइंट भी दिखाया और बाबा नगरी से परिचय भी करवाता जा रहा था। क्रमशः
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