अंतरराष्ट्रीय लेखिका उत्कर्षिनी वशिष्ठ लेखन की तरह कुकिंग में भी पारंगत है। दिवाली पर अमेरिका में रहते हुए तरह-तरह की मिठाइयां घर पर बनाती है। मुझसे फोन पर रेस्पी पूछती है और उसमें कुछ अपना बचपन में खाया हुआ देसी स्वाद देकर, बहुत ही लाजवाब मिठाई बना लेती है। हमारी गंगा यमुना गायों का खूब दूध होता था। भडोली(इसमें दूध से भरी मिट्टी की हंडिया रखी रहती है) में दूध धीमी आंच पर कढ़ते हुए शाम तक बादामी रंग का हो जाता था। ज्यादातर ये दूध की मिठाईयां बनाती है और वही स्वाद देती है। मुंबई में भी खोया (मावा) खुद ही बनाती थी। अब छोटी सी गीता मां की मदद करती है। जैसे utkarshini मेरी करती थी।
कैरेमल लड्डू बनाने के लिए उसने खोया भी घर में बनाया 2 किलो फुल क्रीम दूध को मोटी तली के चौड़े बर्तन में उबलने के लिए रख दिया।
दूध उबलते ही उसमें 200 ग्राम चीनी(बढ़ा भी सकते हैं) डाली और आंच को बिल्कुल हल्का कर दिया। बीच-बीच में उसको हिलाती जाती थी और किनारों से मलाई खुरच कर मिलाती जाती। ना दूध तले में लगा, ना ही किनारों पर। जब थोड़ा सा रह गया तो लगातार चलाया। इसमें चीनी भी कैरेमलाइज हो गई, बहुत सुंदर चॉकलेटी कलर आ गया। गैस बंद कर दी हरी इलायची पाउडर मिलाया और इसे ठंडा होने के लिए रख दिया।
अब गीता का खेलते हुए मावा लड्डू बनाना शुरू हो गया। एक कटोरे में नारियल का बुरादा रखा उनको नारियल के बुरादे में अच्छी तरीके से लपेटती और सजाती।
दिवाली पर मां बेटी मिठाई बनाने में लगी हुई हैं और गीता की हिंदी स्पीकिंग क्लास भी चल रही है।
दिवाली पर मित्र आएंगे और हमारी भारतीय मिठाइयां उत्कर्षिनी के हाथ की बनी खाएंगे।
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