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Saturday 23 July 2022

संस्कृति संरक्षण अभियान उत्तर क्षेत्रिय अभ्यासवर्ग भाग 4 नीलम भागी Part 4 Neelam Bhagi


सत्यराज लोक कला सदन हरियाणा की प्राचीन ग्रामीण लोक कला और संस्कृति को सुरक्षित रखने का प्रयास   

      यहां कपूरथला पंजाब में नानी के घर बचपन में उपयोग होने वाली लगभग सभी वस्तुएं थीं। मैं तो नौएडा में भी हमारी गाय गंगा, यमुना साथ लाई थी इसलिए मुझे सबसे पहले वे वस्तुएं नज़र आईं जो दूध के लिए इस्तेमाल होती थीं। कुछ के नाम मैं हिंदी में नहीं जानती क्योंकि उन्हें दादी और अम्मा जो पंजाबी में कहतीं थीं, वही मैं जानती हूं। आंगन में एक तरफ पड़ोली रखी रहती थी। जिसमें उपला(गोबर का कंडा) कोई न कोई डालता रहता था, उस पर बड़ी चाटी(मिट्टी की हण्डिया) दूध से भरी कढ़ती रहती थी। ये बदामी रंग का, धुएं की महक वाला दूध, पीतल के कंगनी वाले गिलास में गुड़ की डली के साथ पीना याद आने लगा। बचा दूध बड़ी चाटी में जमाया जाता। सुबह हाथ से बुनी पीढ़ी पर बैठ कर दहीं की मात्रा के हिसाब से मथनी का चुनाव होता, पुड लगा कर दोनों पैरों के अंगूठे उस पर टिका कर दहीं बिलोया जाता।



उसकी लय में नींद बहुत गहराने लगती, साथ ही साथ दादी का लड़की की जात पर भाषण शुरु हो जाता। अम्मा कानों से लैक्चर सुनते हुए जब तक मक्खन नहीं आ जाता, हाथ नहीं रोकती थी। नींद भगा कर उठते। जल्दी जल्दी काम में हाथ बटा कर, मक्खन रोटी और छाछ का ब्रेकफास्ट करके कॉलिज जाते। कांसे पीतल के बर्तन देख रही थी दादी याद आ रही थी जिसने अपने जीते जी लोहे(स्टील) के बर्तन नहीं आने दिए। बल्टोई देखकर लड़ाकी कृष्णा याद आई। उसका दूध बल्टोई में दूहते थे क्योंकि अगर उसकी लात पड़ी तो बल्टोई से ज्यादा दूध नहीं गिरता था। कंचे अब बच्चों को देखने को नहीं मिलते, यहां दिखे। ट्रांजिस्टर, रेडियो। लालटेन घर से बाहर खिड़की के आगे लटकी हुई जिससे कमरे में और बाहर भी रोशनी फैले।

      महिलाएँ कुछ भी बरबाद नहीं करतीं। बेकार कागज़ और मुल्तानी मिट्टी से लुगदी बना कर उससे टोकरियां बनातीं। ये टोकरियां नाज़ुक होतीं हैं इसलिए उसमें रुई की पुनिया और चरखें से काता सूत रखतीं थीं। कुछ महिलाओं में तो इतनी रचनात्मकता होती है कि वे घर की दीवारों और इन टोकरियों पर भी बेल, बूटे, फूल, पत्तियां, परिंदे बना देतीं हैं।



खजूर के पत्तों आदि से बने टोकरे टोकरियाँ देखीं। जब प्लास्टिक की तारे आ गईं तो उनसे बनी हैंण्डिल वाली खरीदारी करने के लिए डोलचियां भी रखीं थीं। तकड़ी(तराजू) यह आजकल सिर्फ कबाड़ियों के पास ही मिलता है।

दरातियां, रम्बे, गेहूँ छानने की छन्नियाँ, गंडासे, पत्थर की चक्की। खड़ाउं,

जोगियों के हाथ में रहने वाला वाद्ययंत्र जिसे तूंबा कहा जाता है। वो भी रखा था। किसी भी शुभ कार्य में महिला संगीत में तूंबे पर कोरस वाला गीत ज़रुर गाया जाता था।

कंचे
साधूवाद सत्यराज लोक कला सदन गांव ढिगाना जिला जींद को जिनके द्वारा किया गया है।   

 इस प्रदर्शनी को डिमोस्ट्रेशन करने वालों के लिए हार्दिक धन्यवाद करती हूं। मैंने तो कुल 30 मिनट उसे देखने में उनसे बातचीत करने में लगाए। उस समय मैं अकेली ही देख रही थी। उन्होंने मेरी तस्वीरें भी खींची। वे तो शाम तक भीषण गर्मी में प्रर्दशनी लगा कर बैठे थे। लंच अभी चल ही रहा था। मैं प्रशिक्षण हॉल में आई। ब्रेक में सब आपस में बतिया रहे थे। मैं भी बतरस में शामिल हो गई। 2.30 बजते ही सब अगले सत्र जिसका विषय था ’परिषद् के कार्यक्रम’ के लिए हम अपनी सीटों पर आकर बैठ गए। क्रमशः 


Friday 22 July 2022

उत्तर क्षेत्रिय अभ्यासवर्ग भाग 3 नीलम भागी Part 3 Neelam Bhagi

 


           सड़क का रास्ता मुझे सदा अच्छा लगता है क्योंकि इससे शहर का परिचय हो जाता है। जींद की सीमा से पहले खूब बंदर सड़क के दोनो ओर थे।


शहर में घुसते ही भीड़ भाड़ वाला पुराना शहर है। कहीं सड़क के किनारे ही चारा मशीने लगी हुई हैं। भीषण गर्मी में भी हरे चारे से लदे हुए ट्रैक्टर की ट्रालियां खड़ी थीं। इसका मतलब है कि घर में गाय भैंस पाल सकते हैं क्योंकि चारा आस पास ही मिल जाता है।


कहीं सड़क के किनारे परिवार खजूर के पत्तों से झाड़ू बना और बेच रहे थे।

सम्पन्न शहर है दुकाने सामान से भरी हुईं थी और खरीदार भी थे। हुक्के की दुकाने भी आई जिसमें तरह तरह के हुक्के सजे हुए थे।


प्रशिक्षण शिविर में समय पर पहुंचने की जल्दी में मैं गाड़ी से नहीं उतरी। हुक्कों की तस्वीरें लेती रही। राजकुमार जी तम्बाकू की किस्में बताते रहे। रेलवे स्टेशन से छोटूराम किसान महाविद्यालय एक किमी दूर था। अब हम पहुंच चुके थे। आस पास बीजों की दुकाने देख कर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने सोच लिया था कि लौटते समय बीज खरीदूगीं। समय पर पहुंचने की कोशिश में हम रास्ते में कहीं चाय के लिए भी नहीं रुके क्योंकि नरेला मार्ग में निर्माण की वजह से वन वे ट्रैफिक होने से हम काफी लेट हो गए थे। महाविद्यालय सड़क पर ही है। पहुंचते ही हमने पंजीकरण करवाया। सभी आगंतुकों का अक्षत -रोली व तिलक के परम्परागत अभिनंदन



सहित महाविद्यालय प्राचार्य प्रो. राममेहर रेढु तथा जींद इकाई अध्यक्ष डॉ. मंजू रेढु ने हरियाणा, दिल्ली व कश्मीर से साहित्य परिषद के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों का मंच पर भी विशेष सम्मान किया। पदाधिकारियों व अतिथियों के स्वागत के लिए पूरे महाविद्यालय परिसर को हरियाणवीं सांस्कृतिक प्रतीकों से सजाया गया था। आयोजन की शुरुआत माँ सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्वलित कर की गई। डॉ. क्यूटी ने सरस्वती वंदना की और परिषद गीत का गायन किया।

          राष्ट्रीय महामंत्री ऋषि कुमार मिश्र ने कहा कि परिषद के साहित्यकारों का लक्ष्य सदैव लोक मंगल की भावना से युक्त होना चाहिए। विचारहीन साहित्य क्षणिक होता है। दूसरे सत्र में उन्होंने नए कार्यकर्ताओं के जुड़ाव, लक्ष्य के प्रति निष्ठा, संगठन में आने वाली बाधाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। स्थानीय इकाइयां ही किसी भी संगठन के मूल क्रियात्मक संघटक होते हैं। परिषद प्रसार के लिए प्रत्येक पदाधिकारी को अपना उत्तराधिकारी कार्यकर्ता अवश्य बनाना चाहिए। प्रांतीय अध्यक्ष प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने सभी कार्यकर्ताओं से परिषद दायित्वों का तन्मयता से निर्वहन करते हुए राष्ट्र जागरण में जुट जाने का आवाहन किया।

         एक घण्टे का लंच ब्रेक था। महाविद्यालय में जब प्रवेश किया था तो मुझे दूर से विशाल बरगद के पेड़ के नीचे प्रदर्शनी सी दिखी थी। मैंने सोच रखा था लंच के बाद वहां जाकर देखूंगी। सुस्वादु भोजन के बाद मैं चल दी। गर्म लू के थपेड़े लग रहे थे। ग्रिल से बाहर मैं हैरान होकर प्रदर्शनी देखने लगीं। मैंने उनसे पूछा,’’मैं इन वस्तुओं को पास से देख सकती हूं।’’उन्होंने कहा,’’उधर से रास्ता है आप आइए।’’ मैं खुशी से उधर चल दी। पर वहां तो बंदरों का झुण्ड पहरेदारी कर रहा था। दो लोगों ने बंदरों को भगा कर मुझे वहां पहुंचाया। जहां संस्कृति संरक्षण अभियान के तहत प्रदर्शनी लगी थी। तेज गर्म हवा से मेरे बाल कपड़े उड़ रहे थे पर यहां तो मुझे अपनी 90़+ दादी, नानी याद आने लगीं और अब 93 साल की अम्मा, जो इनमें से प्रतिदिन किसी न किसी चीज का नाम लेती हैं। क्रमशः        








हमारी लोक कथाएं! नौएडा से जींद भाग 2 नीलम भागी Part 2 Neelam Bhagi


           प्रवीण आर्य जी का एक दिन फोन आया,’’ नीलम जी आप कैसे जा रही हो?’’मैंने जवाब दिया कि 11 जून को सुबह 9 बजे मैं आपको छोटूराम किसान महाविद्यालय जिंद में प्रशिक्षण स्थल पर मिलूंगी। उन्होंने अगला प्रश्न दागा,’’ आप बस से, गाड़ी से, कार से कैसे पहुंचोगी?’’मैंने जवाब दिया,’’उड़ के।’’ बदले में उन्होंने कहा,’’धन्यवाद जी।’’ मैं सोचने लगी कि ये सब कितने सिसिंयर हैं! पहले भी ऐसे ही करते होंगे। एक घण्टे बाद प्रवीण आर्य जी का फोन आया कि शमशान घाट के सामने गीता कॉलोनी दिल्ली में आपको राजकुमार जैन बाबा जी को भी गाड़ी में लेना है। यानि जो भी जा रहा था उसकी आने जाने की पूरी जानकारी ली गई। फिर सबके पास लोकेशन पहुंच गई। मैंने अक्षयजी को राजकुमार जी का बताया तो उन्होने कहा,’’आप दोनों परेशान न हों, दोनों को घर से ले लूंगा।’’ मैंने कहा,’’ नहीं रुट पर ही मिलेंगे, लेने लिवाने में समय खराब होगा तो हम समय पर नहीं पहुंच पायेंगें।’’ अक्षय जी के बताये समय पर मुझे उन्होंने ले लिया। गाड़ी की अगली सीट पर बैठी मैं शमशान के आगे सफेद या भगवा में किसी बाबा जी की उम्मीद कर रही थी पर पैंट शर्ट और धूप का चश्मा लगाए, राजकुमार जैन जी आए। गाड़ी में बैठते ही अक्षय जी और उनका परिचय फिर उनकी बातें शुरु क्योंकि दोनों ही हरियाणा से हैं। पता चला कि प्रवीण जी और राजकुमार जी ज़िगरी दोस्त हैं। सिंधु र्बाडर पार करते ही बढ़िया बनी हुई सड़कें जिसके दोनों ओर पेड़ लगे हुए थे। अक्षय जी और राजकुमार जी किसी भी विषय पर चर्चा शुरु करते फिर उदाहरण में एक लोककथा एक दूसरे को सुनाते। मसलन

    हमारे गांव में एक वैद्य दूर दूर तक इस बात के लिए मशहूर था कि वो जिसको बताता कि तुम्हारे लड़का होगा तो उसके लड़का ही होता था। कहानी बीच में रुक गई क्योंकि भीषण गर्मी में ठंडे शर्बत की छबील वाले पीने के लिए आग्रह करने लगे। अच्छा लगा कि निर्जला एकादशी के अगले दिन भी छबील देख कर। पर मेरे दिमाग़ में तो वैद्य जी घूम रहे थे कि वे इंसान थे या अल्ट्रासाउंड मशीन! जैसे ही गाड़ी चली मैंने पूछा,’’फिर।’’ फिर क्या? जिनके बेटा पैदा होता वो वैद जी का गुणगान करता, उनका और प्रचार होता। जिनके लड़की होती वो वैद्य जी को अगर आकर कहते तो वैद्य जी कहते,’’रजिस्टर देख कर बताता हूं।  क्योंकि मैं जिसको जो बताता हूं तुरंत लिख लेता हूं।’’ वे रजिस्टर लाते उसमें उनके नाम का पेज दिखाते समय, दिन और तारीख के साथ लिखा होता कि अमुक के लड़की का जन्म होगा। लिखा हुआ पढ़ कर वे वैद्य जी को प्रणाम करते और यह कहते हुए जाते कि उनके सुनने में ही गलती हुई है। वैद्य जी की बहू जब उम्मीद से थी तो उन्होंने बेटे से भी कहा कि बेटा होगा। पर पैदा हो गई बेटी। बेटा बहुत दुखी होकर वैद्य जी से बोला,’’आप दुनिया जहान में बेटे बांटते हो घर में बेटी।’’वैद्य जी ने उसे दूसरे कमरे में ले जाकर रजिस्टर दिखा कर कहा,’’यहां मैंने कहीं भी किसी के लिए भी लिखा है कि लड़का होगा, नहीं न। सबको कहता हूं कि लड़का होगा लेकिन लिखता हूं कि लड़की होगी। जिसके लड़का होगा वो बेटे की खुशी में यही बोलेगा के वैद्य जी ने कहा था कि लड़का होगा! उनकी बात सच्ची निकली। और मैं लड़की काट कर लड़का कर देता हूं। लड़की पैदा होने पर यदि कोई आता है तो लड़की लिखा दिखाने से वह सबसे यही कहता है कि वैद्य जी ने तो लड़की कहा था उसके सुनने में गलती हो गई। बेटा अपना धन्धा चलाने का गुर है।’’ ये मेरी सोच है कि गर्भवती महिला की पुत्र के लोभ मंे कितनी अच्छी देखभाल होती होगी! और नौ महीने उसके खुशी से कटते होंगे। ऐसी ऐसी बढ़िया लोक कथाएं थी जो मैंने न कहीं पढ़ी न सुनी थीं। इन दोनों लोक कथा वाचकों में अक्षय जी की यह विशेषता थी कि वे कथा ऐसे हूंकारा भर के सुनते थे, मानों पहली बार सुन रहे हों। जब राजकुमार जी, दी एंड करते तब अक्षय जी उसी कथा का अगला भाग सुनाते हैं। हमारा मार्ग का लोक कथा सत्र जींद सीमा में प्रवेश करते ही समाप्त हो गया। क्रमशः            






मेरी पहली चिंतक बैठक का अनुभव और पहला प्रशिक्षण शिविर भाग 1 नीलम भागी Neelam Bhagi

 


         श्रीधर पराड़कर जी(राष्ट्रीय संगठन मंत्री) को मैंने पहली बार प्रेरणा शोध संस्थान सेक्टर 62 नोएडा में नारद जयंती के अवसर पर सुना था। उसके बाद से मुझे जब भी उन्हें सुनने का मौका मिला, मैं वहां पहुंची। इन्द्रप्रस्थ साहित्स परिषद चिंतक बैठक 22 मई 2022 को प्रवासी भवन, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग दिल्ली में 9 से 5 बजे आयोजित की गई। जिसके मार्ग दर्शक-श्रीधर पराड़कर जी रहे। उन्होंने साहित्य परिषद-चिंतन बैठक में संगठनात्मक व्यवस्था, साहित्यकार, कार्यकर्ता उद्देश्य, लक्ष्य, कार्यक्रम, इन विषयों पर अलग अलग सत्र में चर्चा की, हमने दिन भर उन्हें सुना। इसमें उन्होंने सबको शामिल किया। जो भी सत्र में विषय से संबंधित प्रश्न करता, उसे उसका संतोषजनक जवाब मिलता। मैं तो सुनती ही जा रही थी क्योंकि मैं उन सब की तरह इतना नहीं जानती हूं। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के 16 वें अधिवेशन हरदोई में जो साहित्यकार गए थे, उन्होंने उनसे उनका अनुभव पूछा। सबने जिसका जो प्रिय साहित्यकार है, उनको सामने सुनना और देश भर से आए साहित्यकारों से परिचय करने को सुखद अनुभूति बताया। पर मुझे तो सभी सत्र के साहित्यकारों को सुनना अच्छा लगा था। तभी तो मुझे अधिवेशन में जाना सबसे जरुरी काम लगता है। पराड़कर जी ने शायद जबलपुर अधिवेशन में कहा था कि साहित्यकार को यात्राएं करनी चाहिए। अपनी सार्मथ्य के अनुसार मैं यात्राएं करने लगी। यात्रा में जो देखती हूं और महसूस करती हूं, वह लिख लेती हूं। कोरोना काल में यात्राएं बंद थी तो कुकिंग और बागवानी मन से करती थी तो उस पर लिखने लगी। चितंन बैठक में मैंने हाथ भी नहीं खड़ा किया था तब भी सबके अनुभव सुनने के बाद, प्रवीण आर्य जी(राष्ट्रीय प्रचार मंत्री) ने अंत में मेरा नाम पुकार दिया,’’नीलम जी आप अपना अनुभव बताइए।’’मैंने कोशिश करके अधिवेशन की प्रमुख झलकियां, संास्कृतिक कार्यक्रम, परिवेश पर काफी बताया पर जिन मनीषी, विद्वानों को सुना, उनके बारे में बताने की मुझमें योग्यता नहीं है। अखिल भारतीय साहित्य परिषद से जबसे जुड़ी हूं। कार्यक्रम में पहुंचने की सबसे पहले मेरी स्वीकृति होती है। मैं विज्ञान की छात्रा रही हूं। इसलिए इन आयोजनों में जाने से मैं कुछ सीख कर ही लौटती हूं। ये नहीं लिख सकती कि क्या सीखती हूं! 

   मैसेज़ आया अखिल भारतीय साहित्य परिषद के उत्तर क्षेत्र का दो दिवसीय अभ्यास वर्ग हरियाणा प्रांत की जिला जींद इकाई के माध्यम से छोटू राम किसान महाविद्यालय में 11, 12 जून को संपन्न होगा। जो जायेंगे वे अपनी स्वीकृति दे दें। हमेशा मैं स्वीकृति के साथ अपनी टिकट भी ग्रुप में पेस्ट कर देती हूं। इस बार सबसे पहले स्वीकृति तो भेज दी पर जींद पास होने के कारण रिजर्वेशन पर ध्यान नहीं दिया। यहां तो प्रवीण जी एक एक जाने वाले से पूछ रहें हैं कि कैसे जा रहे हो? साथ ही गाड़ियों के समय, नम्बर भाड़ा आदि भी ग्रुप में आ रहा है। स्वयं न करवाना हो तो भुवनेश सिंघल जी( महामंत्री दिल्ली) को डिटेल भेजो वो रिजर्वेशन करवा देंगें। नौएडा से अक्षय कुमार अग्रवाल जी को मैंने फोन करके पूछा कि वे प्रशिक्षण शिविर में जा रहें हैं तो अपने साथ मैं उनकी भी टिकट बुक करवा लेती हूं। उन्होंने कहा कि नरवाना में उनकी कुल देवी है। उन्होंने वहां जाना है। अब प्रशिक्षण शिविर भी जींद में है। वे गाड़ी से जायेंगे। 11 की रात को अपने कजन के घर नरवाना में रुकेगें। सुबह दर्शन करके सत्र से पहले आ जायेंगे। मतलब कोई भी सत्र नहीं छोड़ेंगे और कुल देवी के दर्शन भी कर आयेंगे। मैंने कहा कि 11जून की सुबह गोल चक्कर से मुझे भी ले लेना। उन्होंने कहा कि कोई और भी जाने वाला हो तो उसे भी ले लेना। क्रमशः