प्रवीण आर्य जी का एक दिन फोन आया,’’ नीलम जी आप कैसे जा रही हो?’’मैंने जवाब दिया कि 11 जून को सुबह 9 बजे मैं आपको छोटूराम किसान महाविद्यालय जिंद में प्रशिक्षण स्थल पर मिलूंगी। उन्होंने अगला प्रश्न दागा,’’ आप बस से, गाड़ी से, कार से कैसे पहुंचोगी?’’मैंने जवाब दिया,’’उड़ के।’’ बदले में उन्होंने कहा,’’धन्यवाद जी।’’ मैं सोचने लगी कि ये सब कितने सिसिंयर हैं! पहले भी ऐसे ही करते होंगे। एक घण्टे बाद प्रवीण आर्य जी का फोन आया कि शमशान घाट के सामने गीता कॉलोनी दिल्ली में आपको राजकुमार जैन बाबा जी को भी गाड़ी में लेना है। यानि जो भी जा रहा था उसकी आने जाने की पूरी जानकारी ली गई। फिर सबके पास लोकेशन पहुंच गई। मैंने अक्षयजी को राजकुमार जी का बताया तो उन्होने कहा,’’आप दोनों परेशान न हों, दोनों को घर से ले लूंगा।’’ मैंने कहा,’’ नहीं रुट पर ही मिलेंगे, लेने लिवाने में समय खराब होगा तो हम समय पर नहीं पहुंच पायेंगें।’’ अक्षय जी के बताये समय पर मुझे उन्होंने ले लिया। गाड़ी की अगली सीट पर बैठी मैं शमशान के आगे सफेद या भगवा में किसी बाबा जी की उम्मीद कर रही थी पर पैंट शर्ट और धूप का चश्मा लगाए, राजकुमार जैन जी आए। गाड़ी में बैठते ही अक्षय जी और उनका परिचय फिर उनकी बातें शुरु क्योंकि दोनों ही हरियाणा से हैं। पता चला कि प्रवीण जी और राजकुमार जी ज़िगरी दोस्त हैं। सिंधु र्बाडर पार करते ही बढ़िया बनी हुई सड़कें जिसके दोनों ओर पेड़ लगे हुए थे। अक्षय जी और राजकुमार जी किसी भी विषय पर चर्चा शुरु करते फिर उदाहरण में एक लोककथा एक दूसरे को सुनाते। मसलन
हमारे गांव में एक वैद्य दूर दूर तक इस बात के लिए मशहूर था कि वो जिसको बताता कि तुम्हारे लड़का होगा तो उसके लड़का ही होता था। कहानी बीच में रुक गई क्योंकि भीषण गर्मी में ठंडे शर्बत की छबील वाले पीने के लिए आग्रह करने लगे। अच्छा लगा कि निर्जला एकादशी के अगले दिन भी छबील देख कर। पर मेरे दिमाग़ में तो वैद्य जी घूम रहे थे कि वे इंसान थे या अल्ट्रासाउंड मशीन! जैसे ही गाड़ी चली मैंने पूछा,’’फिर।’’ फिर क्या? जिनके बेटा पैदा होता वो वैद जी का गुणगान करता, उनका और प्रचार होता। जिनके लड़की होती वो वैद्य जी को अगर आकर कहते तो वैद्य जी कहते,’’रजिस्टर देख कर बताता हूं। क्योंकि मैं जिसको जो बताता हूं तुरंत लिख लेता हूं।’’ वे रजिस्टर लाते उसमें उनके नाम का पेज दिखाते समय, दिन और तारीख के साथ लिखा होता कि अमुक के लड़की का जन्म होगा। लिखा हुआ पढ़ कर वे वैद्य जी को प्रणाम करते और यह कहते हुए जाते कि उनके सुनने में ही गलती हुई है। वैद्य जी की बहू जब उम्मीद से थी तो उन्होंने बेटे से भी कहा कि बेटा होगा। पर पैदा हो गई बेटी। बेटा बहुत दुखी होकर वैद्य जी से बोला,’’आप दुनिया जहान में बेटे बांटते हो घर में बेटी।’’वैद्य जी ने उसे दूसरे कमरे में ले जाकर रजिस्टर दिखा कर कहा,’’यहां मैंने कहीं भी किसी के लिए भी लिखा है कि लड़का होगा, नहीं न। सबको कहता हूं कि लड़का होगा लेकिन लिखता हूं कि लड़की होगी। जिसके लड़का होगा वो बेटे की खुशी में यही बोलेगा के वैद्य जी ने कहा था कि लड़का होगा! उनकी बात सच्ची निकली। और मैं लड़की काट कर लड़का कर देता हूं। लड़की पैदा होने पर यदि कोई आता है तो लड़की लिखा दिखाने से वह सबसे यही कहता है कि वैद्य जी ने तो लड़की कहा था उसके सुनने में गलती हो गई। बेटा अपना धन्धा चलाने का गुर है।’’ ये मेरी सोच है कि गर्भवती महिला की पुत्र के लोभ मंे कितनी अच्छी देखभाल होती होगी! और नौ महीने उसके खुशी से कटते होंगे। ऐसी ऐसी बढ़िया लोक कथाएं थी जो मैंने न कहीं पढ़ी न सुनी थीं। इन दोनों लोक कथा वाचकों में अक्षय जी की यह विशेषता थी कि वे कथा ऐसे हूंकारा भर के सुनते थे, मानों पहली बार सुन रहे हों। जब राजकुमार जी, दी एंड करते तब अक्षय जी उसी कथा का अगला भाग सुनाते हैं। हमारा मार्ग का लोक कथा सत्र जींद सीमा में प्रवेश करते ही समाप्त हो गया। क्रमशः
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