Search This Blog

Showing posts with label # Holy Ponds. Show all posts
Showing posts with label # Holy Ponds. Show all posts

Saturday 30 April 2022

मुक्तिनाथ क्षेत्र(धरती का स्वर्ग) नेपाल यात्रा भाग 19 नीलम भागीMuktinath--A piece of heaven on earth Nepal Tour 19 Neelam Bhagi

     


 अचानक मेरे मन में प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि बर्फीले मुक्तिकुंड और मुक्तिधाराओं के पवित्र जल में स्नान करने के बाद महिलाएं कपड़े कहां बदलती होगी? देखा पास में ही महिलाओं और पुरुषों के कपड़े बदलने के कमरे बने हुए थे। यहां तक कि बाहर कपड़े सूखाने के लिए रस्सियां भी बंधीं हुई थी।



इतनी ऊंचाई पर इस व्यवस्था के लिए साधूवाद। बाहर दानपेटी रखी है। और रसीद बुक लिए एक व्यक्ति बैठा है। आप अपनी श्रद्धा से जो भी पेटी में डालोगे, वह आपको उसकी रसीद देता है। मैं अब यहां से चल रहीं हूं और मेरे मन में मुक्तिक्षेत्र के बारे में अब तक का पढ़ा सुना भी चल रहा है। 

पुराणों के अनुसार हमारी पृथ्वी 7 भागों और 4 क्षेत्रों में बंटी हुई है। इन चार क्षेत्रों मे प्रमुख क्षेत्र है मुक्तिक्षेत्र। ऐसी कथा है कि शालिग्राम पर्वत और दामोदर कुंड के बीच ब्रह्मा जी ने मुक्तिक्षेत्र में यज्ञ किया था। इस यज्ञ के प्रभाव से अग्नि ज्वाला के रुप में और नारायण जल रुप में उत्पन्न हुए थे। बाबा मुक्तिनाथ और मुक्तिक्षेत्र की पूजा अर्चना वैदिक काल एवं पौराणिक काल से चली आ रही हैं। उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र, स्कंदपुराण, वराह पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण सहित लगभग सभी पुराणों में मुक्तिक्षेत्र(जिस क्षेत्र में मुक्तिनाथ स्थित है उसे मुक्ति क्षेत्र के नाम से जाना जाता है ) व शालग्राम की पूजा विधि का वर्णन मिलता है। 

धाम के दामोदर कुण्ड जलधारा और गण्डकी नदी के संगम को काकवेणी कहते हैं। इस जगह तर्पण करने से 21 पीढ़ियों का उद्धार होता है।


  रामायण के रचियता महर्षि वाल्मिकी का आश्रम भी गण्डकी नदी के किनारे स्थित था। यहीं पर सीता जी ने लवकुश को जन्म दिया था। आज से 300 साल पहले अयोध्या में जन्में अद्भुत बालक स्वामी नारायण ने भी मुक्तिक्षेत्र और काकवेणी के मध्य एक शिला पर कठोर तप करके सिद्धि प्राप्त की थी। मुक्तिक्षेत्र हिन्दूओं और बौद्धों का महान एवं प्राचीन आस्था का केन्द्र है।


महादेव मंदिर और चार धाम, यह प्रवेश द्वार के बाईं ओर स्थित है। यह चार छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। 



विष्णु पादुक मंदिर भगवान विष्णु के चरण कमल, मुख्य मुक्तिनाथ मंदिर के दाईं ओर मंदिर है। इसमें भगवान विष्णु के पैरों की छाप के साथ नीलकंठ वर्णी(शवमी नारायण) की छवि भी शामिल हैं। जो एक बाल योगी हैं। वे ध्यान में एक पावं पर खड़ें हैं। 2003 में उनके अनुयायियों ने मुक्तिक्षेत्र में उनके लिए स्मारक बनाया जिसे विष्णु पादुका मंदिर(स्वामी नारायण स्मारका) कहा जाता है।  

  यज्ञशाला साम्बा गोम्पा, ज्वालामाई मंदिर, पताल गंगा, नरसिंह गोंपा आदि। यहां के मुख्य आर्कषण हैं। 


पत्थरों से चिन कर इतनी ऊंचाई पर मुक्तिक्ष्ेात्र में दो मंजिल छोटे घर बने हैं। 




   जाते समय तो मेरे मन में सिर्फ मुक्तिनाथ बाबा के दर्शनों की अभिलाषा थी, जिसके लिए मैं जी जान से लगी हुई थी। पर अब तो मुझे आस पास सब बहुत आकर्षित कर रहा है। सीढ़ियों के बीच में पाइप लगे हैं जो सहारे के लिए डण्डी का काम करते हैं। पाइप के बाईं ओर से चढ़ते हैं दाईं ओर से उतरते हैं। पर इधर उधर जा सकते हैं। चार महिलाएं आ रहीं थीं जिनमें से दो लड़कियों ने बोरियों में कुछ ले रखा था। मैंने उनके पास जाकर कहा,’’मेरे लिए तो अपने आप को ढोना बहुत मुश्किल था और आप सामान लेकर चढ़ रही हो!!’’ बरसाना लक्ष्मी थापा, बसुधा लक्ष्मी थापा, पार्वती थापा हंसते हुए कोरस में बोलीं,’’ये हमारे खेत के आलू हैं। हम काठमांडू से बाबा मुक्तिनाथ के लिए लाएं हैं।’’ और आलू सिर पर रख कर सीढ़ियां चढ़ने लगीं।


अचानक एक आदमी पर नजर पड़ी, वह मेरी तरह जाते हुए बैठा था उसे मैंने अपना बचा हुआ चीनी का कप दे कर कहा,’’इसे खा लो।’’और उतरने लगी। सीढ़ियों के दोनो ओर पत्थर के टुकड़े पड़े थे। जैसे हम सात ठिकरे रख कर उस पर गेंद से निशाना मार कर उन्हें गिराते थे। ऐसे ही यहां कुछ श्रद्धालु एक के ऊपर एक कई पत्थर रखकर आंखें बंद करके प्रार्थना करते और चढ़ाई करने लगते। मैंने एक श्रद्धालू से पूछा,’’कुछ लोग ऐसा क्यों करते हैं?’’ उन्होंने बताया कि ऐसा मानते हैं जितनी मंजिल का अपना घर चाहिए। उतने ही आप एक के ऊपर एक पत्थर रख कर बाबा मुक्तिनाथ से सच्चे मन से प्रार्थना करो तो बाबा जरुर सुनते हैं और अपना घर बन जाता है और धीरे धीरे उतनी मंजिलें भी बन जाती हैं। अब मैं सीढ़ियां उतरते हुए लोगों की इच्छाएं भी समझ रही थी। ज्यादातर ने 2,3, मंजिले घर की ही कामना की है।

अब मेरे स्वर्ग का साथी कुत्ता जी भी आ गया। मैंने उसे बिस्किट दिए और रैपर अपनी जेब में रख लिया। इतने पवित्र मुक्तिक्षेत्र में मैं कैसे कचरा फैला सकती हूं भला! तिब्बती शैली से बने मुक्तिनाथ द्वार से बाहर आती हूं।

   यहां बाजार में दुर्लभ शालिग्राम खरीद सकते हैं। अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गंडकी के तट पर पाया जाता है। अब मैं होटल को चल देती हूं। क्रमशः