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Thursday, 19 November 2020

सादगी, पवित्रता, लोकजीवन की मिठास का पर्व ’छठ’ नीलम भागी Chhath Utsav Neelam Bhagi



नीलम भागी
पिछले साल दिवाली से पहले मैं दस दिन बिहार यात्रा पर थी। जिस भी कैब में बैठती ड्राइवर छठ के गीत लगाता, गीतों को सुनते ही अलग सा भाव पैदा हो जाता। दीपावली से छठे दिन चार दिवसीय छठ पर्व मनाया जाता है और यहां इसकी जगह जगह तैयारी दिख रही थी। इतना हराभरा प्रदेश! जमीन हरियाली ये ढकी हुईं। जहां हरियाली नहीं वहां इकड़ी जिसे भुआ भी कहतेें हैं वो प्रदूषण रहित हवा के साथ लहरा रही थी। सड़क के दोनो ओर हरे भरे पेड़ थे। छठ पर्व में प्रकृति पूजा हैं। सर्वकामना पूर्ति,  सूर्योपासना, निर्जला व्रत के इस पर्व को स्त्री, पुरुष और बच्चों के साथ  अन्य धर्म के लोग भी मनाते हैं।  पंजाबी ब्राह्मण मेरी भतीजी मीना जोशी डिब्रूगढ़ असम में छठ व्रती रहती हैं| 

मीना जोशी

पौराणिक और लोक कथाओं में छठ पूजा की परम्परा और महत्व की अनेक कथाएं हैं। देवता के रुप में सूर्य की वन्दना का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। सृष्टि पालनकर्ता सूर्य को, आरोग्य देवता के रुप में पूजा जाता है। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। रोगमुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गई। एक मान्यता के अनुसार भगवान राम ने लंका विजय के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सीता जी के साथ उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को पुनः सूर्योदय पर अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आर्शीवाद प्राप्त किया था।

एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई। कर्ण प्रतिदिन पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। आज भी छठ में अर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है। इन सब से अलग बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के जन सामान्य द्वारा किसान और ग्रामीणों के रंगों में रंगी अपनी उपासना पद्धति है। सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु सबसे जो कुछ उसे प्राप्त हैं, उसके आभार स्वरुप छठ मइया की कुटुम्ब, पड़ोसियों के साथ पूजा करना है जिसमें किसी पुरोहित की जरुरत नहीं है। घाट साफ सफाई सब आपसी सहयोग से कर लेते हैं। बिहारियों का पर्व उनकी संस्कृति है। मैंने दिल्ली, मुम्बई और नौएडा में छठ उत्सव देखें हैं। इस यात्रा में मेरा विश्वास दृढ़ हो गया कि छठ उत्सव प्रवासी अपने प्रदेश जैसा ही मनाता है। क्योंकि जो छठ का सामान वहां बिक रहा था वही यहां बिकता है। अन्तर है तो सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन में क्योंकि ये समितियां बजट के अनुसार कलाकार बुलाती हैं।  

 चार दिन का कठोर व्रत नहाय खाय से शुरु होता है। इस दिन व्रतीघर की साफ सफाई करता है। सूर्य अस्त पर चावल और लौकी की सब्जी को खाता है। दूसरा दिन निर्जला व्रत खरना कहलाता है। शाम सात बजे गन्ने के रस और गुड़ की बनी खीर खाते हैं। चीनी नमक नहीं। अब सख्त व्र्रत शुरु होता है निर्जला व्रत , व्रर्ती गेहूं के आटे और गुड़ से ठेकुआ और चावल के आटे के लड़डू जिसे कचवनिया कहते हैं बनाते हैं।

मीना जोशी प्रशाद बनाते हुए



व्रती मीना ने ठेकुआ बनाये

दिन भर व्रत के बाद सूर्य अस्त से पहले घर में देवकारी में रखा डाला(दउरा) उसमें प्रकृति ने जो हमें अनगिनत दिया है उनमें से इसे भर कर, डाला को सिर पर रख कर सपरिवार घाट पर जाते हैं। व्रती पानी में खड़े होकर हाथ में डाले के सामान से भरा सूप लेकर सूर्य को अर्घ्य देती है। इस समय मैं सनातन धर्म मंदिर 19 सेक्टर जरुर जाती हूं।

                                                        नीलम भागी
वहां घाट बनाया जाता है। भक्ति और श्रद्धा से इतनी भीड़ में भी जो वहां उस समय महौल होता है उसे मैं लिखने में असमर्थ हूं। सूर्या अस्त के बाद सब घर चले जातें हैं। वहां दिए जलते रहते हैं।


मैं वहां काफी देर तक बैठी रहती हूं। घर आकर भी श्रद्धालु व्यवस्थित भीड याद में रहती है। रात को देर से साने और देर से उठने की आदत है। ये मंदिर मेरे घर से दूर है इसलिये सुबह नहीं जा पाती। सूर्योदय अर्घ्य में जाने के कारण कुछ जल्दी आंख खुल जाती हैं। समय के हिसाब से जो घाट घर से पास होता है वहां भागती हुई पहुंच ही जाती हूं। हर बार मुझे अच्छे लोग मिले हैं। मेरे हाथ खाली होते हैं वो मुझे सामान देकर जैसे बताते हैं मैं वैसे ही पूजा कर, अर्घ्य देती हूं और बोलती हूं,’सर्वे भवन्तु सुखिनः’ 

                                                     नीलम भागी

     



मीना जोशी और Srinkhala