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Tuesday, 8 October 2024

सज धज कर मेलों, पंडालों में घूमने के अक्टूबर उत्सव भाग 2नीलम भागी

 

विजयदशमी, दशहरा(12 अक्तूबर) को देश में कहीें महिषासुर मर्दिनी को सिंदूर खेला के बाद विसर्जित किया जाता है। तो कहीं श्री राम की रावण पर विजय पर रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले दहन किए जाते हैं। सबसे अनूठा 75 दिन तक मनाया जाने वाला बस्तर के दशहरे का, जिसका रामायण से कोई संबंध नहीं है। अपितु बस्तर की आराध्या देवी माँ दन्तेश्वरी और देवी देवताओं की पूजा हैं। कोटा दशहरा एक सप्ताह तक मनाया जाता है। कुल्लू दशहरे में गाँवों से देवी देवताओं की मूर्तियाँ कुल्लू घाटी में लाकर दशहरा मनाया जाता है तो रामनगर में एक महीने तक रामलीला चलती है। मैसूर का दस दिवसीय दशहरा का मुख्य आर्कषण शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक मैसूर पैलेस की रोशनी, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम और विजयदशमी पर दशहरा जुलूस और प्रदर्शनी है। श्रीराम ने इसी दिन रावण का वध किया था। माँ दुर्गा ने भी नौ रात्रि और दस दिन के भयंकर युद्ध में महिषासुर का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसे असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन शस्त्र पूजा का विशेष महत्व है। नए कार्य भी आरम्भ किए जाते हैं जैसे अक्षरारम्भ, नया कारोबार शुरु करना, बीज बोना आदि। मान्यता है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किए जाते हैं, उनमें विजय प्राप्त होती है। पद्मनाभ द्वादशी (14 अक्तूबर) इस दिन विष्णु स्वरूप पद्मनाभ की पूजा की जाती है। कुछ श्रद्धालु व्रत रखते हैं, जिसका पारण त्रियोदशी को करते हैं। 

राजस्थान अर्न्तराष्ट्रीय लोक महोत्सव (16 से 20 अक्तूबर) थार रेगिस्थान में मेहरानगढ़ किला के नीचे राजस्थानी कला और संस्कृति का 5 दिवसीय उत्सव है। 

मारवाड़ उत्सव (16-17 अक्तूबर) यह दो दिवसीय उत्सव जोधपुर में, शरद पूर्णिमा के दिन अपने गौरवशाली अतीत के राजपूत वीरों की याद में मनाया जाता है। उत्सव का मुख्य आर्कषण राजस्थान के भूतपूर्व शासकों और राजाओं के जीवन पर केन्द्रित लोक संगीत और नृत्य है।     शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा, कंगाली बीहू, वाल्मीकि जयंती(17 अक्तूबर) इस दिन समुद्र मंथन के दौरान माँ लक्ष्मी प्रकट हुईं थीं। बंगाल, त्रिपुरा और असम में इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। कोजागरी का अर्थ है-वह जो जाग रहा है। मान्यता है कि रात में लक्ष्मी जी घरों में आतीं हैं और जो जाग रहा होता है उसे आर्शीवाद देतीं हैं। यह व्रत चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है। इस रात चंद्रमा की चांदनी में, चाँदी के पात्र में खीर बना कर रखी जाती है तो वह अमृत की तरह फलदाई होती है। कहा जाता है कि इस दिन चांदनी में अमृत का प्रभाव होता है। यह खीर शरीर को स्वस्थ रखने के साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। 

 कावेरी संक्रमणा(17 अक्तूबर) ब्रहमगिरि की पहाड़ियों में भागमंडला मंदिर है। यहाँ से आठ किलामीटर की दूरी पर तालकावेरी है, कावेरी का उद्गम स्थल। मंदिर के प्रांगण में ब्रह्मकुण्डिका है, जहाँ श्रद्धालु इस दिन स्नान करते हैं। सूर्य तुला राशी में प्रवेश करते ही कावेरी संक्रमणा का त्यौहार मनाया जाता है।  और कावेरी यात्रा महीने भर चलती है। जीवनदायिनी माता कावेरी ने दूर दूर तक कैसा अतुलनीय प्राकृतिक सौंदर्य बिखेरा है। बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले तीन नदियाँ इसमें समा कर त्रिवेणी बनाती है। कन्निके, सुज्योति और कावेरी संगम। भागमंडला कर्नाटक और मायाबराम तमिलनाडु में इस पूजा को कनी पूजा (धरती माता की पूजा)कहते हैं जो नारियल और खीरे से की जाती है। कुछ श्रद्धालु सिर मुंडवाते हैं। कनी को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है, जिनमें देवी कावेरी एक अवतार है।     

आज हर रामकथा के मूल में भगवान बाल्मीकि की रामायण है।

पहले महाकाव्य ’रामायण’ के रचयिता महाकवि महर्षि वाल्मीकी जयंती अश्विन महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। जगह जगह जुलूस और शोेभायात्रा निकाली जाती है। लोगों में बहुत उत्साह होता है। 

कंगाली बिहु इस समय धान की फसल लहलहा रही होती है। लेकिन किसानों के खलिहान खाली होते हैं। इसमें खेत में या तुलसी के नीचे दिया जला कर अच्छी फसल की कामना करते हैं यानि यह प्रार्थना उत्सव है। भेंट में एक दूसरे को गमुझा, हेंगडांग(तलवार) देते हैं। कोंगाली बिहू से ये भी युवाओं को समझ आ जाता है कि मितव्यवता से भी उत्सव मनाया जाता है।

 सौभाग्यवती महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए निर्जला करवाचौथ(20 अगस्त) का व्रत रखती हैं। महिलाएं श्रृंगार करके रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के हाथ से पानी पीतीं हैं और व्रत का पारण करतीं हैं। 

अहोई अष्टमी अष्और राधा कुण्ड स्नान(24 अक्तूबर)पुत्रवती महिलाएं पुत्र की लम्बी आयु और उसके सुखमय जीवन की कामना के लिये यह निर्जला व्रत रखती हैं। शाम को तारे को अर्ध्य देकर व्रत का पारण करतीं हैं। मेरी अम्मा ने परिवार में इस व्रत को पुत्र की जगह संतान के लिए कर दिया है। पोती के जन्म पर अम्मा ने भारती से व्रत यह कह कर करवाया कि बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं है। यह व्रत संतान के अच्छे स्वास्थ लिए करो। मेरी भाभी दोनों बेटियों शांभवी, सर्वज्ञा के लिये करती हैं। मेरी बेटी उत्कर्षिणी अपनी दोनों बेटियों गीता और दित्या के लिए करती है। 95 साल की अम्मा, दूसरी पीढ़ी में भी बेटियों के लिए अहोई का व्रत उत्कर्षिणी को रखते देख बहुत खुश हैं। 


अहोई अष्टमी के दिन गोर्वधन परिक्रमा मार्ग में स्थित राधा कुण्ड में निसंतान जोड़े डुबकी लगाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे उन्हें संतान सुख मिलता है।

धनतेरस(29 अक्तूबर) से पाँच दिवसीय उत्सव दीपावली की शुरुवात हो जाती है। इस दिन जमकर खरीदारी होती है।

नरक चौदस एवं काली पूजा(31 अक्तूबर) दीपावली के दौरान अमावस्या को काली पूजा या श्यामा पूजा हिंदुओ द्वारा मनाई जाती है। यह पूजा देवी काली को समर्पित, नकारात्मक उर्जाओं को समाप्त कर, समृद्धि का स्वागत करने के लिए की जाती है।  

व्यस्त और रंगीन सांस्कृतिक गतिविधियों का अक्तूबर, सपरिवार पर्यटन, सजे पण्डालों परिवार के साथ  में घूमने, खरीदारी करने का लाजवाब महीना है। इसमें फसल के अन्त में भगवान का धन्यवाद करते हैं और शुरू में आर्शीवाद की कामना करते हैं।

   ़  यह लेख प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से प्रकाशित प्रेरणा विचार पत्रिका के नवंबर विशेषांक में  प्रकाशित हुआ है।












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