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Tuesday, 14 May 2019

पोरबंदर कीर्तिमंदिर, अन्य दशर्नीय स्थल व हींग Mahatma Gandhi Birth Place Porbander Gujrat yatra 10 नीलम भागी

पोरबंदर कीर्तिमंदिर,  अन्य दशर्नीय स्थल व हींग
नीलम भागी
जूनागढ से पोरबंदर की 105 किमी. की दूरी दो घण्टे 5 मिनट में पूरी करके हम पोरबंदर पहुंचे। एक जगह साइन र्बोड लगा था, सुदामा चौक और कीर्ति मंदिर का। भगवान कृष्ण के सखा सुदामा और बापू की जन्मस्थली पोरबंदर है। पहले इसका नाम सुदामापुरी था। अंग्रेजों ने इसका नाम पोरबंदर रक्खा। यहाँ बहुत पुराना बंदरगाह है। यह अरब सागर के साथ अपनी सीमा साझा करता है। 16वीं सदी तक जेठवा राजपूतों का इस पर नियंत्रण था। (1785-1948) तक पोरबंदर रियासत था। फिर जिला बना। यहाँ पुराने भवनों का भी वास्तुशिल्प देखने लायक हैं। नये इलाकों से बस गुजर रही थी, देख कर अच्छा लगा कुछ कुछ दूरी पर फुटपाथ पर साफ सुथरे बैंच लगे थे। कीर्तिमंदिर से कुछ दूरी पर बस को खड़ी कर, हम पैदल चल पड़े। ये पुराना शहर, सड़के चौड़ी और पुराने मकान भी दो तीन मंजिले थे। सामने मसाला मार्किट, पर हमें तो इस समय बापू की जन्मस्थली जाना था। एक बहुत सुन्दर भवन के अंदर पहुँचे। 
प्रांगण में बायीं ओर बापू का तिमंजिला पैतृक निवास था। जहाँ 2 अक्तूबर 1869 को बापू का 

जन्म हुआ था। 
सीढ़ी चढ़ कर पहली मंजिल पर बापू का अघ्ययन कक्ष था। उसमें मुझे घूमना बहुत अच्छा लग रहा था। इसके पास ही नवीं खादी, जहाँ बा का जन्म हुआ था। बराबर में उनकी स्मृति में 79 फीट ऊँचा भवन है। जहाँ अलग अलग समय की तस्वीरें, पुस्तकालय एवं प्रार्थना कक्ष हैं। लोग आते जा रहे थे, वहाँ के कोने कोने पर खड़े हो पर्यटक सेल्फी ले रहे थे। यहाँ के पयटर्न स्थल 6 वीं शताब्दी का सूर्य मंदिर 50 किमी. दूर है। नेहरू तारा मंडल, चौपाटी बीच, श्री हरि मंदिर आदि कृष्ण सुदामा मंदिर में भूल भूलैया है। कहते हैं जब सुदामा अपने सखा से मिल कर द्वारका से लौटे तो वे उस स्थान पर अपनी झोपड़ी को ढूंढ रहे थे। उस वाक्य की याद में जेंठवा राजपूतों ने इसे बनवाया था। यहाँ नारियल पानी कुल बीस रूपये का, ताजा होने से स्वाद भी लाजवाब।
 
मुझे खाना बनाने का शौक़ है इसलिये मसाला मार्किट मेरी मन पसंद जगह थी। सभी मसालों से मैं परिचित हूं लेकिन बोरे में चॉकलेट देखकर मैंने दुकानदार से पूछ ही लिया कि ये क्या है? उसने मेरे हाथ में सरसों के दाने जितनी चॉकलेट नाखून से तोड़ कर दी। ज़िन्दगी में पहली बार मैंने असली हींग देखी थी। मेरे हाथों में हींग की महक समा गई। मैंने पूछा,’’क्या भाव?’’ उसने कहा,’’पाँच सौ रूपये पाव।’’मैंने कहा,’’आधा किलो दे दो।’’इतने में एक आदमी आया उसने डाँटते हुए, दुकानदार से कहा,’’दीदी को स्पैशल हींग नहीं दिखाई।’’उसने बोरी की साइड से थोड़ी सी हींग निकाली। मैं बोली,’’ मुझे स्पैशल हींग चाहिये।’’ वो बोला,’’भेन सौ रूपया ज्यादा लगेगा।’’ मैंने कहा,’’ कोई बात नहीं दे देा।’’ मैं हींग को कई थैलियों में रख कर लाई। बैग की बाहर की जेब में रखा। अंदर रखती तो मेरे कपड़ों में हींग की महक पड़ जाती फिर मै हींग की व्यापारी लगती न। दस दिन तक मैं हींग की पोटली देख खुश होती रही। घर लौटने पर सब्जी में छौंक लगाने के लिये हींग का पीस निकाला तो उसमें हींग की हल्की सी महक भी नही  और मुझे उसे हथौड़ी से तोडना पड़ा। खै़र आगे की यात्रा हमारी सोमनाथ की थी।     क्रमशः       ़












Tuesday, 10 October 2017

अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करते समुद्र तट, मनमोहक सूर्योदय सूर्यास्त,Goa 8 गोआ का तो चप्पा चप्पा Anterashtriya Peryatako ko aakershit kerte samundra tath ,Manmhak surya asth, Suryodaya नीलम भागी





                               नीलम भागी               
इतने दिन गोवा रहने पर भी हमने सूर्योदय और सूर्यास्त नहीं देखा कारण देर से सोना देर से उठना। आज हमने दोपहर को नहीं सोना था क्योंकि अंधेरा होने पर ही आँख खुलती थी। धूप ढलते ही हम बीच पर बैठ गये और सूरज डूबने के नज़ारे को कैमरे में कैद करने लगे। अंधेरा होते ही चाय पीने चल दिये। चाय के साथ हमने उसल मिसल पाव खाया। शॉपिंग की। आज हमारा यहाँ आखिरी डिनर था। हमने थेचा, भाखरी और आलू ची पातल भाजी खाई। अंकूर ने फिश रेशैडो खाई। अगले दिन हमने जिस कैब वाले को बुलाया था, उससे तय कर लिया था कि वह सुबह हमें सूर्योदय दिखाता हुआ, मडगाव स्टेशन छोड़ेगा। 9 बजे की राजधानी से जाना था। मेरी 12 बजे की मुंबई के लिये फ्लाइट थी। सूूर्य उदय देखने के कारण अंकूर श्वेता जल्दी स्टेशन पहुँच जायेंगे। वही कैब मुझे डैबोलिन हवाई अड्डे पर पहुँचा देगी। रात हमने पैकिंग कर ली थी। सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गये। कैब आ गई। चालक अजय ने सामान गाड़ी में रक्खा। अजय ने पूछा,’’कौन से बीच।’’ हमने कहा,’’जो रास्ते में पड़े।’’ हल्की नीली रोशनी में हम बीच पर बैठ गये, सूर्य देवता के स्वागत में। देवता उदय हुए। उन्हें और सागर को नमन कर हम कैब में बैठे और चल दिये। हम सब बाहर देखते हुए जा रहे थे। बहुत पहले हम स्टेशन पर पहुँच गये। श्वेता अंकूर ने सामान उतारा। अजय मुझे लेकर एयरपोर्ट चल पड़ा। ये रास्ता आने वाले रास्ते से अलग था। जो भाग गोवा का छूटा था वो देख रही थी। वास्कोडिगामा से भी गुजरी। अजय यहाँ गाइड का भी काम कर रहा था। मोर भी मैदानों में देखे, बेहद पुराने पेड़ भी। यहाँ का मुख्य उद्योग पर्यटन है। लौह अयस्क का 40%निर्यात होता है। चावल, काजू, सुपारी और नारियल की खेती की जाती है। गोवन फिश करी, प्रॉन करी मशहूर है। एक बात की मुझे बहुत खुशी हुई, वो ये कि मैंने जिससे भी हिन्दी में बात की, वह बहुत अच्छी हिन्दी में बात करता था। यहाँ कोंकणी, मराठी बोली जाती है। कुछ लोग पुर्तगाली भी बोलते हैं। अंग्रेजी तो है ही। यहाँ लगने वाले बाजारों में दुकानदार महिला पुरूषों का अंग्रेजी  बोलने का लहज़ा बिल्कुल विदेशी था। मरियम को स्थानीय कोंकणी भाषा में साइबिन माई पुकारा जाता है।
घरों के आँगन के बीचो बीच छोटा सा ऊँचा चबूतरा जो कई रंगों से सजाया होता था, उस पर तुलसी जी का गमला विराजमान था।
समुद्र तट पैरासैलिंग, जल क्रीड़ाओं, वागाटोर, अंजुना, और पालोलम बीच पर अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों का आना जाना है। वे जैसे मरजी घूमे उनकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। सिनेमा में जिस तरह माइकल और गोअन लड़की की वेश भूषा दिखाते हैं। वैसा मुझे तो कहीं नहीं दिखा। गोवन महिला पारंपरिक पोशाक में या देश की महिलाओं की तरह सलवार कुर्ते या रिवाज़ के अनुसार दिखीं, भारतीय महिलाओं की तरह। मैं बहुत जल्दी एअरर्पोट पहुँच गई। अब अंदर जाकर मैं अपनी फ्लाइट का इंतजार करने लगी। मार्था का फोन आया कि हमारे कुछ कपड़े रह गये हैं। मैंने धन्यवाद करते हुए उन्हें कहाकि अपर्णा और सौरभ हमसे एक दिन बाद आयेंगे। वे आपसे ले लेगें। जाते जाते यहाँ की इमानदारी ने भी मेरा मन मोह लिया।