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Sunday 7 October 2018

सफर में सामान कम रखने का यह फायदा !! SABERMATI Aashram साबरमती यात्रा भाग 2 नीलम भागी


                                           
हमारा लगेज़ हमारे साथ था। सफर में सामान कम रखने का यह फायदा हुआ कि अचानक बने प्रोग्राम में हम दोनो अपना अपना ट्रॉली बैग खींचते हुए चल रहे थे। बाहर एकदम व्यस्त सड़क, पर उस व्यस्त सड़क पर स्थित आश्रम में प्रवेश करते ही एकदम मौहोल बदल जाता है। वृक्षों से घिरे, सादगी और आश्रम की शांति ने हमारे अंदर एक अलग सा भाव पैदा किया। मेरे अंदर तो ये भाव था कि जिस बापू के नाम का जाप, मेरी दादी करती थीं, वो यहाँ रहते थे और मैं यहाँ खड़ी हूँ। काश! मेरी दादी होती तो कितनी खुश होती! 17 जून 1917 को इस आश्रम की स्थापना हुई थी। हमारे बाईं ओर लाल दीवार पर बापू हैं और कई भाषाओं में साबरमती आश्रम लिखा था। साथ में आश्रम का साइट मैप। आश्रम सैंट्रल जेल और दूधेश्वर श्मशान के बीच स्थित है और ऐसा कहा जाता है कि इसी स्थान पर महर्षि दधिची का आश्रम था, जिन्होंने देव दानव युद्ध में देवताओं को दानवों के नाश के लिए अपनी अस्थियाँ दान कर दीं थी। पीछे साबरमती बहती है इसलिये इसे साबरमती आश्रम कहतें हैं। यहाँ आने वाले देश विदेश के पर्यटक अपनी तस्वीरें लेते हैं। हम फिर गांधी स्मृति संग्राहलय जाते हैं। हममे से एक बाहर दोनों बैग के साथ बाहर खड़ी रहती और एक घूम आती थी। इसमें बापू की बचपन से लेकर मृत्यु तक के फोटोग्राफ, दस्तावेज़, 400 लेखों की मूल प्रतियाँ, भाषणों के सौ संग्रह, साबरमती आश्रम की 4000 पुस्तकें तथा महादेव देसाई की 3000 पुस्तकें हैं। इसमें बापू द्वारा लिखे गये पत्रों या उनको लिखे गये 30000 पत्रों की अनुक्रमणिका है। इन पत्रों में कुछ तो मूल रूप में हैं कुछ के माइक्रोफिल्म सुरक्षित हैं। यहाँ से बाहर आते हैं।
उस समय  पेयजल की आपूर्ति करने वाला कुआं भी बीचो बीच है।
 विनोबा भावे 1918 से 1921 तक यहाँ रहे उनकी कुटिया का नाम विनोबा कुटीर है। ब्रिटिश युवती मेडलीन स्लेड 1925 से 1933 तक यहाँ रहीं। बापू ने उनका नाम मीराबेन रक्खा था। उनके निवास का नाम मीरा कुटीर है। वैसे दोनों कुटीर को मित्र कुटीर कहते हैं। इसके पीछे साबरमती बहती है। विनोबा कुटीर के बराबर से  साबरमती में सीढ़ियाँ जाती हैं। आखिरी सीढ़ी से पहले लोहे का बड़ा सा गेट लगा कर उसे बंद किया गया है ।
हृदय कुंज में बापू ने 12 वर्ष तक कस्तूरबा के साथ निवास किया। यह आश्रम के बीचो बीच है। इसका नामकरण काका साहब कालेकर ने किया था। 1919 से 1930 तक वे यहाँ रहे। कस्तूरबा का कमरा उनकी रसोई बर्तन भांडे सब लगे हैं। यहाँ बापू का चरखा है। उनके लेखन सामग्री और लिखने की डेस्क है।
मगन निवास और हृदय कुंज के बीच खुला स्थान प्रार्थना भूमि है। यहाँ सब सुबह शाम एकत्रित होते थे। बापू यहाँ अपने अनुयायिओं के प्रश्नों के उत्तर देते थे। इस स्थान पर कई एतिहासिक निर्णय लिए गये। इसलिये यह स्थान कई एतिहासिक निर्णयों का साक्षी है।
हृदय कुंज के बाईं ओर स्थित नंदिनी अतिथी गृह है, यहाँ देश के जाने माने स्वतंत्रता सेनानी जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सी राजागोपालाचारी, दीनबंधु एंड्रयूज, रवीन्द्र नाथ टैगोर आदि जब भी अहमदाबाद आते थे तो यहीं आकर ठहरते थे। मगन निवास  मैनेजर का था। मगन मैनेजर बापू के प्रिय लोगो में से एक हैं।