दरभंगा से विद्यापति की जन्मस्थली विस्पी मधुबनी बिहार यात्रा 15
नीलम भागी
मधुबनी शब्द सुनने में बोलने में बहुत मधुर लगता है और वैसा ही हरियाली से भरा रास्ता मन मोह रहा था। कहते हैं यहाँ के वनों में शहद यानि मधु बहुत मिलता है। इसलिये इसका नाम मधुवनी पड़ा। महिलाएं घर सजाने के लिये जो रंगोली फर्श पर बनाती थीं, वह दीवार, कागज और कपड़े पर आ गई और दरभंगा, नेपाल तक पहुंची। यहाँ की मधुबनी कला आज विश्वविख्यात हो गई है। घरेलू मधुबनी चित्रकला आज इस शहर के स्टेशन पर यहाँ के कलाप्रेमियों द्वारा 10,000 स्क्वायर फीट में श्रमदान के फलस्वरूप यहाँ की शोभा बड़ा रही है। मखानों के उत्पादन में तो यह प्रसिद्ध है ही। स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी के खादी यज्ञ में भी यहाँ के लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया था । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यहाँ के निवासी बड़ी संख्या में स्वतंत्रता सेनानी बन गये थे। आजादी के बाद 1972 में यह दरभंगा से अलग जिला बना। इसलिये दोनों की संस्कृति में समानता है। अब तक तो विकास कार्य दिखाई दे रहा था लेकिन जैसे ही गाड़ी डिहटोल गाँव की ओर मुड़ी, वैसे ही टूटी पगडंडियां दिखी। उस पर गाड़ी कूद कूद कर चल रही थी। जिसके किनारे कहीं कहीं कोई छोटी सी दुकान दिखती, जिसपर दुकानदार के अलावा चार पाँच लोग बतिया कर वक्तकटी कर रहे होते थे। उनसे हम विद्यापति की जन्मस्थली पूछते। पहले वे हमसे मधुर वाणी में हमारा आने का मकसद पूछते, मसलन हम कहाँ से आयें हैं? क्यूं आएं हैं? आदि, फिर कहते कि देखिए, सीधे जाइयेगा, कहीं नहीं मुड़ियेगा, कुछ समय बाद आप देखियेगा कि आपके दाएं हाथ पर ही आप जन्मस्थली पाइएगा। यहाँ मुझे अपनी नई रिर्जव सीट का फायदा मिला। सामने एक साधना ब्यूटीपार्लर का र्बोड लगा हुआ उसके पीछे एक दूसरे र्बोड का कोना दिख रहा था। जैसे ही गाड़ी ने उस जगह को पार किया। मेरा तो मुहं ही उस तरफ था। वो तो जन्मस्थली का र्बोड था। मैंने गाड़ी रूकवाई। सब फटाफट उतरे मैं तो रमेश की दया पर थी। उसके दरवाजा खोलने पर मैं भी उतरी। कुछ देर मैंने ब्यूटीपार्लर के र्बोड को घूरा, फिर घूरना स्थगित कर आसपास नज़रें दौड़ाई। ’माँ शारदा जीविका ग्राम संगठन आपका हार्दिक स्वागत करता है। गरीबी निवारण के लिए बिहार सरकार की पहल।’ ये बोर्ड ऐसे छप्परों पर लटके थे , जो धूप तो रोक रहे थे लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे बरसात रोकने में सर्मथ होंगे। आस पास हमें देख कर महिलाएं और लड़के जमा हो गये। विवाहित महिलाएं सौभाग्य चिन्हों के साथ थीं लेकिन दिन के बारह बजे बालों में न तेल न कंघी, उलझे बाल हुए। पैरों में चप्पल तो किसी के भी नहीं थी। कोई कोई तो उस समय दातुन मुंह में लेकर खड़ी थी। ये देखकर ब्यूटीपार्लर का र्बोड तो मुझे मुंह चिढ़ाता लग रहा था। मैं महिलाओं की फोटो लेने लगी। वे भाग गईं। मैंने मोबाइल जेब में रख लिया तो कुछ महिलाएं धीरे धीरे आ गईं। मैंने गरीबी निवारण बोर्ड पर हाथ रख कर उनसे पूछा कि ये बोर्ड किसका है? जवाब मिला,अमुक जी का। मैंने फिर पूछा अमुक जी ने तुम्हारी कभी कोई मदद की है। जवाब चुप्पी। अब समझाने के तरीके से पूछा कभी अमुक जी ने तुम्हें रूपया पैसा दिया है। आदमी चुप, महिला बोली,’’कभी नहीं।’’इतने में अमुक जी प्रकट हो गए। उनसे मैंने पूछाकि ये साधना ब्यूटीपार्लर किसका है? वो बोले,’’हमारा ’’। मैं बोली,’’ इसे पर्यटन मत्रालय के बोर्ड के आगे से हटा कर कहीं और लगाओ। न जाने कितने लोग परेशान होकर लौटे होंगे।’’ उसने पास से एक लकड़ी उठाई और अपना र्बोड टेढ़ा कर दिया ताकि विद्यापति जन्मस्थली का र्बोड पढ़ा जा सके। अब वह मदद वाले प्रश्न पर आया उस महिला से मैथली में मधुर वाणी में कुछ बोला, सुनकर महिला मुस्कुरा दी। अब वह मुझसे बोला कि हम महिलाओं को ब्यूटीपार्लर का प्रशिक्षण दिलवाते हैं ताकि ये अपना रोजगार करके अपनी गरीबी दूर कर लें। जो महिलाएं वहां रह गईं थीं। मैंने उनसे कहा कि मेरे साथ फोटो खिचवाओगी। वे मेरे पास आकर खड़ी हों गईं। पता नहीं सरकार द्वारा दी गई सहायता, कैसे जरूरतमंद के पास पहुंचती है। जितना भी वार्तालाप उन लोगों से हुआ, मेरा गुस्से से था, उनका मधुरवाणी से शायद इस लिये इस शहर का नाम मधुबनी है। जैसे ही मुड़ती हूं सामने विद्यापति की जन्मस्थली जिसके गेट पर ताला जड़ा था। उस जगह पर धान सूख रहा था। धान के ऊपर से कूद फांद कर मैं गेट पर पहुँची। अब हम ताला खुलने का इंतजार करने लगे। क्रमशः
नीलम भागी
मधुबनी शब्द सुनने में बोलने में बहुत मधुर लगता है और वैसा ही हरियाली से भरा रास्ता मन मोह रहा था। कहते हैं यहाँ के वनों में शहद यानि मधु बहुत मिलता है। इसलिये इसका नाम मधुवनी पड़ा। महिलाएं घर सजाने के लिये जो रंगोली फर्श पर बनाती थीं, वह दीवार, कागज और कपड़े पर आ गई और दरभंगा, नेपाल तक पहुंची। यहाँ की मधुबनी कला आज विश्वविख्यात हो गई है। घरेलू मधुबनी चित्रकला आज इस शहर के स्टेशन पर यहाँ के कलाप्रेमियों द्वारा 10,000 स्क्वायर फीट में श्रमदान के फलस्वरूप यहाँ की शोभा बड़ा रही है। मखानों के उत्पादन में तो यह प्रसिद्ध है ही। स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी के खादी यज्ञ में भी यहाँ के लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया था । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यहाँ के निवासी बड़ी संख्या में स्वतंत्रता सेनानी बन गये थे। आजादी के बाद 1972 में यह दरभंगा से अलग जिला बना। इसलिये दोनों की संस्कृति में समानता है। अब तक तो विकास कार्य दिखाई दे रहा था लेकिन जैसे ही गाड़ी डिहटोल गाँव की ओर मुड़ी, वैसे ही टूटी पगडंडियां दिखी। उस पर गाड़ी कूद कूद कर चल रही थी। जिसके किनारे कहीं कहीं कोई छोटी सी दुकान दिखती, जिसपर दुकानदार के अलावा चार पाँच लोग बतिया कर वक्तकटी कर रहे होते थे। उनसे हम विद्यापति की जन्मस्थली पूछते। पहले वे हमसे मधुर वाणी में हमारा आने का मकसद पूछते, मसलन हम कहाँ से आयें हैं? क्यूं आएं हैं? आदि, फिर कहते कि देखिए, सीधे जाइयेगा, कहीं नहीं मुड़ियेगा, कुछ समय बाद आप देखियेगा कि आपके दाएं हाथ पर ही आप जन्मस्थली पाइएगा। यहाँ मुझे अपनी नई रिर्जव सीट का फायदा मिला। सामने एक साधना ब्यूटीपार्लर का र्बोड लगा हुआ उसके पीछे एक दूसरे र्बोड का कोना दिख रहा था। जैसे ही गाड़ी ने उस जगह को पार किया। मेरा तो मुहं ही उस तरफ था। वो तो जन्मस्थली का र्बोड था। मैंने गाड़ी रूकवाई। सब फटाफट उतरे मैं तो रमेश की दया पर थी। उसके दरवाजा खोलने पर मैं भी उतरी। कुछ देर मैंने ब्यूटीपार्लर के र्बोड को घूरा, फिर घूरना स्थगित कर आसपास नज़रें दौड़ाई। ’माँ शारदा जीविका ग्राम संगठन आपका हार्दिक स्वागत करता है। गरीबी निवारण के लिए बिहार सरकार की पहल।’ ये बोर्ड ऐसे छप्परों पर लटके थे , जो धूप तो रोक रहे थे लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे बरसात रोकने में सर्मथ होंगे। आस पास हमें देख कर महिलाएं और लड़के जमा हो गये। विवाहित महिलाएं सौभाग्य चिन्हों के साथ थीं लेकिन दिन के बारह बजे बालों में न तेल न कंघी, उलझे बाल हुए। पैरों में चप्पल तो किसी के भी नहीं थी। कोई कोई तो उस समय दातुन मुंह में लेकर खड़ी थी। ये देखकर ब्यूटीपार्लर का र्बोड तो मुझे मुंह चिढ़ाता लग रहा था। मैं महिलाओं की फोटो लेने लगी। वे भाग गईं। मैंने मोबाइल जेब में रख लिया तो कुछ महिलाएं धीरे धीरे आ गईं। मैंने गरीबी निवारण बोर्ड पर हाथ रख कर उनसे पूछा कि ये बोर्ड किसका है? जवाब मिला,अमुक जी का। मैंने फिर पूछा अमुक जी ने तुम्हारी कभी कोई मदद की है। जवाब चुप्पी। अब समझाने के तरीके से पूछा कभी अमुक जी ने तुम्हें रूपया पैसा दिया है। आदमी चुप, महिला बोली,’’कभी नहीं।’’इतने में अमुक जी प्रकट हो गए। उनसे मैंने पूछाकि ये साधना ब्यूटीपार्लर किसका है? वो बोले,’’हमारा ’’। मैं बोली,’’ इसे पर्यटन मत्रालय के बोर्ड के आगे से हटा कर कहीं और लगाओ। न जाने कितने लोग परेशान होकर लौटे होंगे।’’ उसने पास से एक लकड़ी उठाई और अपना र्बोड टेढ़ा कर दिया ताकि विद्यापति जन्मस्थली का र्बोड पढ़ा जा सके। अब वह मदद वाले प्रश्न पर आया उस महिला से मैथली में मधुर वाणी में कुछ बोला, सुनकर महिला मुस्कुरा दी। अब वह मुझसे बोला कि हम महिलाओं को ब्यूटीपार्लर का प्रशिक्षण दिलवाते हैं ताकि ये अपना रोजगार करके अपनी गरीबी दूर कर लें। जो महिलाएं वहां रह गईं थीं। मैंने उनसे कहा कि मेरे साथ फोटो खिचवाओगी। वे मेरे पास आकर खड़ी हों गईं। पता नहीं सरकार द्वारा दी गई सहायता, कैसे जरूरतमंद के पास पहुंचती है। जितना भी वार्तालाप उन लोगों से हुआ, मेरा गुस्से से था, उनका मधुरवाणी से शायद इस लिये इस शहर का नाम मधुबनी है। जैसे ही मुड़ती हूं सामने विद्यापति की जन्मस्थली जिसके गेट पर ताला जड़ा था। उस जगह पर धान सूख रहा था। धान के ऊपर से कूद फांद कर मैं गेट पर पहुँची। अब हम ताला खुलने का इंतजार करने लगे। क्रमशः