
दोनो मिल कर काम करतीं थी इसलिए जल्दी घर लौट आतीं थीं। पहले परशोतम मां के आने तक घर के सब काम करके रखता था। अब घर वैसा ही मिला जैसा वे छोड़ कर गईं थीं। सरोजा को ये देख कर बड़ी खुशी मिली कि उसका लाडला जोरु का गुलाम नहीं है। चांदनी आते ही घर के काम में लग गई। गर्म खाना खिला कर खाया। यहां उसे दोपहर को भी आराम करने को मिलता था, जिसकी उसे आदत नहीं थी। सरोजा, मैडम लोगों के घरों में देख कर तरह तरह के खाने बनाने सीख गई थी। वह चांदनी को भी सिखाती थी। सीखने की शौकीन चांदनी सब बहुत स्वाद बनाती थी। सरोजा चाहती थी कि नया काम चांदनी खाना बनाने का ही ले। खाना बनाने वाली दो ही समय आती थीं, चाहे लंच डिनर बनवालो, या डिनर ब्रेकफास्ट या ब्रेकफास्ट लंच। आराधना और मि.कुमार दोनो परिवारों ने बच्चों के बाहर जाने पर सरोजा से कहा कि कोई खाना बनाने वाली भेजे। सरोजा ने कहा कि चांदनी बना देगी पर वह शाम को नहीं आयेगी। उन्होंने कहा कि सुबह हमें ब्रेकफास्ट करवा दे और लंच बना कर रख जाये। सरोजा बहुत खुश थी कि उसके साथ ही आयेगी और साथ ही जायेगी। खाने में पैसा भी ज्यादा मिलता है और मेहनत भी कम है। चांदनी को सुबह नहा कर, और साफ कपड़ो में आना पड़ता था और वह आती भी थी। उनके अच्छे दिन चल रहे थे। चांदनी को गर्भ ठहर गया। सरोजा बहुत खुश थी कि अब बेटे का घर बस गया। सास टोली उसके आस पास अपनी बच्चा जनने की कथा सुनाती, सभी के अनुभवों का एक ही परिणाम होता था कि उनके जब दिन चढ़े थे तो उन्होंने खूब काम किया था इसलिये उनको बच्चा पैदा करने में जरा भी तकलीफ़ नहीं हुई। मैडम लोग इन दिनो आराम करती हैं, बिस्तर पर पड़ी रहतीं हैं। इसलिए डाक्टर उनका पेट चीर कर बच्चा निकालता है। अब चांदनी फुदक फुदक कर काम करती थी। सब उसके आस पास अच्छी बातें करतीं थी। मसलन सरोजा ने, पहले नाक सुनका, पल्लू से आंखें पोंची फिर गला भर कर, चांदनी को सुना कर, सखियों से बोली,’’ बहन तुमसे तो कुछ छिपा नहीं है। बंसी की आदत थी जहां भी कोई अच्छी सूरत देखी, उसका दिल वहीं खो जाता था। चांदनी सबके लिये हलवा तो बना बेटी।’’ संतोषी बोली,’’हमारा परशोतम तो देख ही न सकें इसे तो कोई अपसरा भी क्या रिझायेगी!’’सब कोरस में बोलीं,’’ इसके दिल की रानी तो चांदनी ही रहेगी।’’ हलवा पार्टी करके, अपने आंखों वाले पतियों की दिल फेक अदाओं का वर्णन करके, सबने कहा कि चांदनी के तो बेटा होगा और सब अपने अपने घर चल दी। आराधना ने डांट डपट कर प्रसव के लिए उसका सरकारी अस्पताल में नाम लिखवाया। बस राजरानी थी जो हर महीने मुझे ये कहने से बाज नहीं आती थी कि सरोजा को समझाओ ये प्लॉट बेच दें। मैं भी अच्छा कहती। सरोजा ने डिलीवरी के समय बदले में काम करने के लिए कामवालियां भी तैयार कर रक्खीं थीं जो बाद में उसको उसका काम उसे लौटा देंगीं। समय पर चांदनी ने बड़े मोहने से बेटे को अस्पताल में जन्म दिया। उसका नाम मोनू रक्खा। सरोजा ने चांदनी को खूब घी, हरिरा, अछौनी खिलाया। साथ ही भगवान का शुक्रिया अदा करती कि उसने उसे स्वस्थ, सुन्दर, फायदेमंद बहू दी हैं। जिसने उसे पोता दिया है। बच्चे के दश्टोन(नामकरण ) तक सोहर, जच्चा गवाये। जो रोज सुन सुनकर राजरानी को सब याद हो गये। दश्टोन पर चांदनी के मां बाप नाती से मिलने आये। सरोजा ने खुशी से उन्हें गांव के घर की चाबी दे दी। साथ ही कहा कि अब तुम कच्चे मकान में मत रहना। मोनू के नाना अब उस पक्के घर में रहेंगे। सास की इस हरकत पर चांदनी की खुशी से आंखें गीली हो गईं। वे बेटी के सिर पर प्यार से हाथ फेर कर चले गये। काना उन्हें बस में बिठाने गया था। सबके जाने पर चांदनी परशोतम के चेहरे की प्रतिक्रिया देख रही थी। जो पूरी तन्मयता से रेडिया के साथ सुर मिला कर गा रहा था ’कभी किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता।’
क्रमशः