प्रो0नीलम राठी(राष्ट्रीय मंत्री) का फोन आया कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा दिनांक 21 से 24 नवम्बर 2022 तक चार दिवसीय ’सीतामढ़ी(बिहार) से जनकपुर(नेपाल)’के लिए साहित्य संर्वधन यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। और साथ ही विवरण आ गया। कुल 12 साहित्यकारों को जाना था। पत्र पढ़ते ही मैंने सबसे पहले श्री ऋषि कुमार मिश्र जी(राष्ट्रीय महामंत्री) को अपनी सहभागिता की धन्यवाद सहित स्वीकृति दी। प्रो0 नीलम राठी से पूछा,’’नौएडा दिल्ली से और कौन जा रहें हैंं?’’उन्होंने बताया कि भुवनेश सिंघल जी(महामंत्री दिल्ली) जा रहे हैं। मैंने उन्हें फोन किया कि वे अपनी टिकट के साथ मेरी भी बुक करवा लें। टिकट लौटने की कनर्फम थी पर जाने की वेटिंग में थी। हमेशा की तरह हमारे प्रवीण आर्य जी(राष्ट्रीय प्रचार मंत्री) ने कनर्फम जरुर किया।
19 नवम्बर शाम 5 बजे आनन्द विहार रेलवे स्टेशन से हमें लिच्छवी एक्सप्रेस पकड़नी थी। टिकट कनर्फम का मैसेज आ गया। बी में 2 और 3 नम्बर सीट यानि मीडिल और अपर। मैं कैबिन में पहुंची, वहाँ तो खड़े होने की भी जगह नहीं थी। बड़े बड़े थैलों में बैडिंग के पैकेट रखे थे। इस रुट की यात्रा मैं कई बार कर चुकी हूं जो मेरी बहुत मनोरंजक रहीं हैं। मैं इत्मीनान से किसी तरह वहाँ टेढ़ी मेढ़ी खड़ी हो गई। मैं समझ गई कि ये जगह तो खाली, बैडिंग के पैकिट सीटों पर सवारियों को मिलने पर ही होगी। ऐसा ही हो रहा था। वह बड़ी फुर्ती से पैकिट ले जाकर पहुंचा रहा था। इतनी देर में मैंने लोअर सीट वाले से सीट बदलने को कहा तो उस भले इनसान ने कहा,’’ हमारी चार सीटे हैं दो लोअर हैं बेटा बेटी आए नहीं, दो खाली जायेंगी। आप मेरी लोअर लें लें।’ एक आदमी खड़ा सुन रहा था। उसने तुरंत सीटिंग एरेंजमैंट कर दिया। उसकी एक सीट इस कैबिन में थी दो कहीं और थीं और पाँच स्लीपर में थीं। उसने हमारे सामने की 4,5,6 न0 सीट ले लीं। कुछ जगह होने लगी, इतने में भुवनेश जी भी आ गए। अब सीट पर रखे बिस्तर के बंडल नीचे रख कर भुवनेश जी ने सीट पर बैठने की जगह की। अब जैसे जैसे फर्श खाली होता जा रहा था। सामने वालों का सामान फिट होता जा रहा था। एक सुन्दरी और उसकी 5 और 2 साल की दो बेटियाँ और दो बड़ी लड़कियां आकर बैठ गईं। भुवनेश जी तो एमसीडी के चुनाव में व्यस्त होने के कारण बहुत थके हुए थे। वे अपर सीट पर जाकर सो गए। 2 न0 सीट वाले सामने की साइड सीट पर पति पत्नी के साथ बैठ गए। जूते मैंने बैग में रख लिए और छोटी हील की चप्पल निकाल कर रख दी। इन महिलाओं के कपड़े भी चटकीले थे और चप्पलें भी चमकीलीं। सबने अपनी चप्पलें एक थैले में डाल दीं।ं मैं सर के नीचे कम्बल, चादर, तकिया लगा कर, एक चादर ओढ़ कर लेट गईं। टीटी आकर टिकट चैक कर गया। सामने वाले ने सीटों की अदला बदली उसे समझा दी। अगले दिन सुबह 11 से 1 बजे के बीच उतरने वाली सवारियां थी। टीटी के जाते ही और सामान भी आ गया। उनकी एक महिला और आ गई। महिलाएं मेरी चप्पल ही इस्तेमाल कर रहीं थीं। मेरे पैरों के पास थोड़ी जगह थी, वहाँ उनका एक साथी आकर बैठ गया। मैं और सिकुड़ गई तो दूसरा भइया आकर बैठ गया। बच्चियों के हाथ में नर्सरी राइम लगा कर मोबाइल पकड़ा दिया और बाकि पारिवारिक गोष्ठी करने लगे। जो भी आता सामान लाता। मेरा पर्स भी उठा कर उन्होंने मेरे सिर के बराबर तकिए के साथ रख दिया। खा खा कर रैपर भी नीचे। बच्ची की नैपी भी नीचे कचरे का पहाड़ बनता जा रहा था। सुन्दरी बस तीन ही काम कर रही थी, खाना और गंदगी फैलाना और लिपिस्टि की शेप ठीक करना। क्रमशः