अंदर सड़क के दोनो ओर फूलों से लदी क्यारियां हैं। बस से उतरते ही वहां खड़े वॉलिंटियर ने हमारे सामान की ओर इशारा किया। अपना लगेज लेकर मैं चलने लगी, तो दूसरे ने कहा, "रिसेप्शन में जाएं।" वहां जाते ही दीदी ने कहा, " ऊपर जाएं, लगेज यहीं छोड़ दें।"वहां जाते ही मैंने रजिस्ट्रेशन का प्रिंट दिखाया। उन्होंने मुझे स्लिप और किट दी और कहा, "विष्णु पूरी चले जाइए रूम नंबर 15, बाहर गाड़ी खड़ी है।" नीचे आई दीदी ने सामने खड़ी गाड़ी की ओर इशारा किया। मैं उसके पास पहुंची तुरंत मेरा लगेज गाड़ी में रख कर, मुझे बैठने को कहा। दो लोग और बैठे और गाड़ी हमारे निवास की ओर चल दी। खूबसूरत रास्ते से जा रहे हैं। पहाड़ झील देखती जा रही हूं। बहुत सुंदर भवन के सामने गाड़ी रुकी। रिसेप्शन पर स्लिप दिखाई। उन्होंने लिफ्ट की ओर इशारा किया। लिफ्ट में बुजुर्ग भाई सेवा दे रहे हैं। सेकंड फ्लोर पर उतरने को कहा और समझाया वहां ऑफिस में यह स्लिप दिखा देना। मैंने जाकर स्लिप दिखाई। उन्होंने मुझे 15 नंबर कमरे की चाबी दे दी और सामने लिफ्ट की ओर इशारा किया यह ऊपर के 2 फ्लोर पर जाती है। मैं गई, देखा उस रूम में कोई है। खटखटाया, एक महिला निकली मैं मुस्कुराई। उन्होंने पूछा आप यहां किस लिए? मैंने कहा, "मुझे यह रूम दिया है।" वह बोली," मैं किसी के साथ शेयर नहीं करती। मैं लौट के ऑफिस में गई। उन्हें बताया कि उस रूम की महिला रूम शेयर नहीं कर रही हैं। इतने में वह महिला भी आ गई, आते ही बोली," यह रूम खुला था। इसलिए मैं सेटल हो गई हूं।" भाई जी ने पूछा," आपने रिसेप्शन से स्लीप ली? इनके पास स्लिप है। आप शांतनु जी के पास जाइए।" वे महिला हंसते हुए मेरे साथ आई और अपना सामान लेकर चली गई। अब मैंने रूम को देखा बहुत सुंदर साफ-सुथरे कंबल, मोटी चादर और बहुत प्यारी लाइट कलर की बेडशीट वाले, दो सिंगल बेड बीच में छोटा सा स्टूल, दो कुर्सियां टेबल, खिड़की, अलमारियां उनके नीचे भी स्पेस अगर कंबल नहीं ओढ़ना तो वहां रख सकते हैं और आपका बेड खाली। बालकोनी जिसमें कपड़े सुखाने का स्टैंड, चिमटियां लगा हुआ। मैं तो लॉन्ड्री बैग साथ में लाती हूं। मैले कपड़े घर में ही धोती हूं। पर यहां कम कपड़ों को भी आप ला सकते हैं। हर फ्लोर पर कपड़े प्रेस करने के लिए बड़ी मेज रखी हुई है, साथ में प्रेस और स्प्रे रखा हुआ है। और अगर साड़ियां पहनते हैं एक खुली छत पर जिस पर सब प्रकार के हुक आदि हैं। आप वहां फैला सकते हैं।
टॉयलेट एकदम साफ सुथरा ताजा और गर्म पानी दोनों का प्रोविजन है। मैंने किट निकालकर दिनचर्या देखी। उसमें 8 से 9 ब्रेकफास्ट टाइम था। 8:30 बज गए थे 20 मिनट में मैं नित्य कर्म निपटा कर तैयार होकर ब्रेकफास्ट के लिए निकली। पूछते हुए पहुंच गए गई । बहुत बड़ी बिल्डिंग में 7 नंबर हॉल में हमें नाश्ता करना है।
यहां खूब भीड़, पर सब काम बहुत कायदे से चल रहा है। जो सफेद पोशाक में दीदी और भाई जी हैं, उनमें से कुछ सेवा कार्य में लगे हुए हैं। साफ-सुथरे भोज थाल और कटोरिया गिलास चम्मच रखें हैं। मैं यहां पहली बार आई हूं। हां, लेकिन व्यवस्था इतनी उत्तम है कि किसी से कुछ भी पूछने के जरूरत नहीं है। छाछ लिखा है। दही पर दही। मीठी चाय के साथ में फिका दूध, उसके पास टी बैग और कॉफी पाउडर चीनी रखा है। यानि कि आप फीकी चाय और कॉफी स्वयं बना सकते हैं। ब्रेकफास्ट के लिए जो दीदियां परोस रहीं हैं , अपने अपने व्यंजन मुस्कुराते हुए मेरी थाली में रख रहे हैं, आप जितना खा सकते हैं, उतना उनसे लें। एक बार ले चाहे बार-बार ले। यह मेरा कहना है कि फेंकने के लिए अधिक ना ले। दीदी तो आप जितना कहेंगे उतना देंगी। नाश्ता लेकर मैं टेबल चेयर पर बैठी स्वादिष्ट नाश्ता करते हुए बाहर देखने लगी। यहां से नजर नहीं हट रही है। अपनी प्लेट लेकर बाहर आ गई। वहां भी ऐसे ही बैठने की व्यवस्था है। हवा इतनी गजब ! जो सिर्फ महसूस की जा सकती है, लिख नहीं सकते। यहां सब आपस में परिचय कर रहे हैं। मैं जिसे भी मिली, वह यहां पहले भी आया हुआ है। नाश्ता करने के बाद मैं अपनी थाली रखने गई। वहां पर बहुत सराहनीय व्यवस्था थाली, कटोरी, चम्मच, गिलास के लिए अलग जगह और तीनों ओर हर तरह का पानी मसलन ठंडा, नॉर्मल, हाथ धोने का आदि। बस जूठन रखने का बर्तन देखकर अपनी आदत के अनुसार उसमें देखा, जूठन देखकर तकलीफ हुई कि यहां पर सभी पढ़े लिखे लोग हैं। फिर कैसे कुछ लोग स्वादिष्ट पौष्टिक खाना जूठा छोड़ सकते हैं!! अपने रूम की तरफ यह सोच कर चल दी कि रात को गाड़ी में ठीक से सोई नहीं हूं। कुछ देर सोकर यहां की खूबसूरती में घूमूंगी। ओपनिंग सेशन शाम को 4 बजे से है। पर यहां के प्राकृतिक सौंदर्य ने मुझे रूम में जाने ही नहीं दिया। फूल इस तरह खिले हुए हैं, जैसे मैं किसी फ्लावर शो में आ गई हूं। क्रमशः