Search This Blog

Monday, 30 May 2016

Madhya Pradesh अनहोनी में महिलाओं का गर्म पानी का कुण्ड और सतधारा हाय! तुम ऐसी क्यों हो?.............मजबूरी भाग 7 नीलम भागी



अनोखा मध्य प्रदेश,  अनहोनी में महिलाओं का गर्म पानी का कुण्ड और सतधारा हाय! तुम ऐसी क्यों हो?.............मजबूरी।
                                                             नीलम भागी
अनहोनी के गर्म पानी के कुण्ड से हैरानी से चीखते हुए पैर निकाल कर, अब हम धीरे से हाथ गीले कर अपने चेहरे और बालों को गीला कर रहे थे। जिनको त्वचा रोग थे, वो पानी भर कर कुण्ड से दूर नहा रहे थे। जो भी आता बोतलें भर कर पानी जरूर साथ ले जाता, सिवाय हमारे। खै़र, हमारी तो एक बार बाल गीले करने से ही डैण्ड्रफ दूर हो गई। कुछ महिलाओं को हमारी चीख से ही पानी के तापमान का अनुभव हो गया। वे कुण्ड तक ही नहीं आ रहीं थी, किनारे पर खड़ी हमें देख रहीं थी। मैंने पूछा,’’आप पानी को छुए बिना कैसे तापमान का अनुमान लगा सकती हो? पानी बहुत गर्म है, पर फफोले तो नहीं डाल रहा न। इतने गर्म तवे से रोटी उतार लेती हो, तो यहाँ भी पानी छू कर तो देखो।’’अब वे भी सीढ़ियाँ उतर कर पानी छूकर, खुश और आश्चर्यचकित हो रहीं थीं।मैं भी अपनी आदत के अनुसार आस पास का मुआयना करने लगी। चारों ओर जंगल से घिरा मंदिर था। उसके आगे एक कुण्ड था। जिसमें पानी लगभग खौल ही रहा था क्योंकि उसमें बुलबुले उठ रहे थे। इस कुण्ड का पानी तापमान गिराने के लिये दो कुण्डों में जा रहा था ताकि लोग इसका उपयोग कर सकें। एक कुण्ड का अनुभव हमने ले लिया था। दूसरे कुण्ड की सफेद रंग की ऊँची बाउण्ड्री वॉल बनी थी। जिस पर लिखा था ’महिला स्नान घर’ पढ़ते ही मन खुश हो गया, ये देख कर कि यहाँ महिलाओं का कितना ध्यान रक्खा गया है। पर अंदर जाते ही मन दुख और क्षोभ से भर गया। दुख, वहाँ फैली गंदगी देख कर और क्षोभ इस पर की ये सारी गंदगी महिलाओं द्वारा फैलाई गई थी, जो अपने घरों को सजा संवार कर रखती हैं। वे मजबूर थीं, कारण आसपास कोई टॉयलेट नहीं था। मजबूरी में यहाँ वे प्राकृतिक क्रिया से फारिग़ हो रहीं थी। ये भी बिल्कुल पुरूषों के कुण्ड जैसा था। लेकिन यहाँ की गंदगी के कारण आप एक मिनट भी रूक नहीं सकते। यहाँ से कुछ दूरी पर खेत भी दिखाई दे रहे थे। पास में ही एक आदिवासी परिवार ने एक साफ सुथरे बड़े से छप्पर के नीचे दुकान और रैस्टोरैंट खोल रक्खा था। महिला चूल्हे पर खाना बना रही थी। जो भी खा रहे थे, उन्हें परोसने में जरा भी कंजूसी नहीं कर रही थी। वहाँ चारपाई बिछी थी, हम उस पर बैठ गये क्योंकि शुक्ला जी ने एक छोटे से लड़के को मिठ्ठू लाने को कहा। वह आदिवासी लड़का बड़ी फुर्ती से पेड़ पर चढ़ा और उतरा। उतरते ही उसने जेब से दो तोते निकाल कर शुक्ला जी के हाथों में रख दिये। बदले में उन्होने उसके हाथों में पचास का नोट रख दिया। नोट लेते ही लड़का खुशी से ये जा वो जा। हमारा खाने का समय नहीं था फिर भी हमने महिला से एक एक गर्म चूल्हे की रोटी और उसी पर बैंगन की सब्जी हथेली पर रखकर खाई। ताजे बैंगन में सिर्फ मसालों के नाम पर केवल हरी मिर्च और अदरक था। सब कुछ ताजा इसलिये स्वाद भी अलग। जिप्सी पर बैठे और तोतो को एक गत्ते के डिब्बे में रख, हम सतधारा की ओर चल पड़े। रास्ते में वर्षा शुरू हो गई। खुली गाड़ी पर शुक्ला जी ने तिरपाल डाला और चल पड़े। कुछ समय बाद पानी तेज हो गया, अब हम रास्ते में एक गाँव की चाय की दुकान पर रूके। वहाँ हाथ से पीसी दाल में प्याज और हरी मिर्च मिला कर टिक्की और समोसे तले जा रहे थे। हमने चाय बनवाई। साथ में दाल टिक्की ली। जो बहुत स्वाद थी। शुक्ला जी ने समझाया कि चाय के साथ समोसा खाते हैं और टिक्की मट्ठे के साथ खाई जाती है। उसी समय दुकानदार ने हमें कटोरियों में मट्ठा डाल कर दिया। ये कॉम्बिनेशन गज़ब का था। मैंने सोचा घर जाकर मै भी बनाऊँगी। उससे दाल का नाम पूछा। बदले में उसने पीठी का पतीला दिखा कर दाल का नाम बताया जो मुझे समझ नहीं आया। वर्षा भी थम गई। हम भी चल पड़े। चलते हुए अचानक गाड़ी कच्चे रास्ते पर उतर कर जंगल को पार करती हुई एक जगह रूकी । हम गाड़ी से उतर कर विस्मय विमुग्ध सतधारा को देख रहे थे। क्रमशः
  

Friday, 27 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश देनवा दर्शन और अनहोनी में गर्म पानी का कुण्ड Madhya Pradesh Part भाग 6


अनोखा मध्य प्रदेश  देनवा दर्शन और अनहोनी में गर्म पानी का कुण्ड                                भाग  6
                                                                          नीलम भागी
हमारा लौटना था और राजा को अगले चार दिन के लिये टूरिश्ट मिल गये। उसने हमें आगे जिप्सी  मालिक दिलीपशुक्ला को हैण्डओवर कर दिया। दरशनीय पचमढ़ी में पाँच दिन बिता कर आज सुबह ही हमें जिप्सी से पिपरिया के लिये निकलना था। वहाँ से शाम को हमारा ट्रेन से अमरकंटक के लिये रिजर्वेशन था। हमने शुक्ला जी से कहा कि पिपरिया के रास्ते के आसपास पड़ने वाले, सभी दर्शनीय स्थल हम देखेंगे।’’ उन्होने कहा,’’ सुबह सात बजे मैं होटल से आपको ले लूंगा। तभी आप सब कुछ देख पायेंगे और ट्रेन भी पकड़ पायेंगे।’’नाशत सब जगह आठ बजे के बाद ही मिलना शुरू होता था। हम सुबह छः बजे तैयार होकर नाष्ते की खोज में चल पड़े, ये सोचकर कि जिन लोगो ने घर में रैस्टोरैंट खोल रक्खे हैं, वहाँ जरूर ब्रेकफास्ट मिल जायेगा। सुबह की ताज़गी का आनन्द लेते हुए, हम टहल भी रहे थे और बोर्ड भी पढ़ रहे थे। एक परिवार अपने रेस्टोरेन्ट में नाष्ते की तैयारी कर रहा था। हमने उनसे नाष्ते के लिये कहा। जवाब में उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी तो चाय और पोहा बन सकता है। हमने कहा,’’चलेगा।’’ उन्होनें झटपट बनाना षुरू किया। जितनी देर में हमने पोहा खाया और चाय पी उस घर की महिलाओं ने बटाटा और कांधा की भजिया तल दी। हम भजिया का स्वाद ले ही रहे थे कि साथ ही एक साँड का हृदय विदारक विलाप शुरू हो गया। मैं बोली,’’ लगता है साँड आपस में लड़ रहे हैं। कोई इन पर पानी डाल दे तो ये भाग जायेंगे।’’मेरी सलाह सुनते ही, रैस्टोरैंट मालिक बोला,’’ये न गाड़ी के जाते ही यह चुप हो जायेगा।’’मैंने पूछा,’’गाड़ी से इसके रोने का क्या संबंध है?’’उसने बताया कि इसकी माँ यहीं बिजली के खंभे से सींग खुजला रही थी। करंट लगा और वह मर गई। रात भर यह उसकी डैड बॉडी के पास बैठा रहा। सुबह यह कूड़ा उठाने वाली गाड़ी आई और इसकी माँ को ले गई। तब से रोज जब यह गाड़ी यहाँ डस्टबिन से कूड़ा लेने आती है। ये कहीं भी हो गाड़ी के पास आकर ऐसे ही रोता है। जैसे दूध पीता बछड़ा हो। हम नाष्ता कर चुके थे। पेमैंट करके बाहर आये। थोड़ी दूरी पर देखा सफाई  कर्मचारी कूड़ा भर रहे थे। साँड की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे और वह गले से विलाप कर रहा था। बार बार गाड़ी से मुँह लगा रहा था, मानों पूछा रहा हो," मेरी माँ को कहाँ छोड़ आये?" माँ तो माँ ही होती है। बछड़े से साँड होने पर भी जिसे वह भूला नहीं पाया था। होटल पहुँचे शुक्ला जी हमारा सामान लगा चुके थे।
    हम गाड़ी में बैठे और गाड़ी चल पड़ी। एक गली के आगे शुक्ला जी ने रूक कर मोबाइल में रिंग दी और साथ ही बोले,’’ बस दो मिनट।’’ इतने में एक बच्ची हाथ में लंच बॉक्स पकड़े दौड़ती हुई आई। शुक्ला जी ने उससे लंच बॉक्स लेते हुए कहा,’’घबराना नहीं, मैं शाम को आऊँगा।’’और  बेटी को बाय करके चल दिये। एक जगह मटकुली आई। मैं बोली,’’मटकुली शब्द कितना अच्छा सा लग रहा है, सुनने में। जिसने भी रक्खा, बड़ा प्यारा सा है।’’ शुक्ला जी बोले, ’’रखना किसने है! वो तो पड़ गया। हुआ यूं कि पचमढ़ी में अंग्रेज रहते थे। उन्हें मेड और कुली की जरूरत पड़ती थी। यह गाँव पास पड़ता था। वे यहाँ से मेड कुली मंगाते थे। मेड कुली का विगड़ा रूप मटकुली हो गया, जो आपको सुनने में अच्छा लग रहा है। अच्छा लगा देखकर कि अब वहाँ विकास कार्य चल रहें हैं। अब गाइड का काम शुक्ला जी कर रहे थे।
विस्मय विमुग्ध करने वाली जगह पर गाड़ी रूकी, हम उतरना भूल कर एक टक बाहर देखे जा रहे थे। शुक्ला जी बोले,’’देनवा दर्शन कर लो।’’हम उतर कर ग्रिल तक आये। हरी भरी घाटी में नीचे देनवा बह रही थी। पता नहीं कितनी देर हम दर्शन करते रहे। शुक्ला जी की आवाज ’’चलिए’’ कानों में पड़ते ही हम गाड़ी में बैठ गये। अब हम अनहोनी की ओर चल पड़े। रास्ते में वे बताते जा रहे थे, ये आदिवासी इलाका हैं। ये महिलायें बहुत मेहनती, मजबूत कदकाठी की होती हैं। खेत में काम करते ही अगर इनकी डिलीवरी हो जाती है, तो वहीं नाड़ काट कर, बच्चा कपड़े में लपेट कर घर आ जाती हैं। आकर गिलास भर कर महुए का शर्बत पीती रहती हैं। अगले दिन से फिर घर गृहस्थी के कामों में लग जाती हैं। बतियाते हुए हम अनहोनी पहुँच गये। वहाँ पानी के कुंड में पैर डाला और चीख मार कर निकाला।                                                          

Wednesday, 25 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश पचमढ़ी अप्सरा विहार, धूपगढ़, बी फाल, शाहरूख, करीना और अब आप Pachmarhi Madhya Pradesh Part भाग 5



पचमढ़ी छावनी क्षे़़त्र हैं, यहाँ के जंगल में जाने के लिये विभाग से अनुमति लेनी पड़ती हैं। वे हमें गाइड भी देते हैं। खुली जीप में हम बैठे गाइड और परमीशन स्लिप का इंतजार का रहे थे। इतने में बंदर आ गये। मैंने डरते हुए राजा से पूछा,’’ये काटेंगे तो नहीं?’’राजा ने जवाब दिया,’’नहीं, अगर ये काटेंगे तो पहले हमें ,क्योंकि आप हमारे मेहमान हो।’’सुन कर बहुत अच्छा लगा। तभी समझ आ गया कि यहाँ लड़कियों का ग्रुप बिना भइया, पापा के घूमने क्यों आया हुआ था। जीप चल रही थी और गाइड हमें जंगल के बारे में , वहाँ पाये जाने वाले शेर, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू और भैंसा आदि जानवरों के बारे में बता रहा था। कान उसे सुन रहे थे और आँखें मनमोहक जंगल में उसके बताये जानवरों को तलाश रहीं थीं।
अप्सरा विहार या परी ताल जीप से उतर कर, पैदल खूबसूरत जंगल से होते हुए, हम पहुँचे। 30 फीट ऊँचा तालाब एक छोटे से झरने से बना है। यह सुन्दर ताल तैराकी और गोताखोरी के लिये बहुत उपयुक्त है। गाइड  ने बताया कि यहाँ अप्सरायें तैरने घूमने आती थीं इसलिये इसका नाम अप्सरा विहार पड़ गया। मैंने पूछा,’’किसी ने अप्सरा को देखा क्या?’’गाइड बोला,’’नहीं, नहीं अंग्रेजों कि मेम गोरी चिट्टी होती हैं न वो यहाँ के आदिवासियों को परी या अप्सरा सी लगीं, जंगल से घिरा ताल है, तैरती भी होंगी। तो इन्होंने इसे अप्सरा विहार कहना शुरू कर दिया।’’ यहाँ से आधा किलोमीटर की दूरी पर रजत प्रपात है। 350 फीट ऊँचाई से गिरता हुआ झरना, दूधिया लगता है। इसलिये इसे रजत प्रपात कहते हैं। यहाँ से हम सबसे ऊँचाई पर धूपगढ़ गये। यहाँ का सूर्य उदय और अस्त बहुत मनमोहक होता है और दिन में हरी भरी घाटियाँ देख सकते हैं। दूसरी ऊँची चोटी चैड़ागढ़ भी यहाँ से  दिखती है। रीछगढ़, पेरासेलिंग, संगम, राजेन्द्रगिरि, लवर्स पाइंट गये। लवर्स पाइंट का प्राकृतिक रूप से प्राप्त लकड़ी में मामूली सा बदलाव कर बना फर्नीचर मुझे अच्छा लगा। राजेन्द्रगिरि बहुत सुन्दर पहाड़ी है। हमारे प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद यहाँ स्वास्थ लाभ के लिये आये थे। उन्हें यह स्थान बहुत पसंद आया। यहाँ एक बहुत सुन्दर उद्यान बनाया गया है, उन्ही के नाम पर इसका नाम राजेन्द्रगिरि रक्खा गया है। उद्यान के बाहर एक महुए का पेड़ था। जिस पर से महुए टपक रहे थे। यहाँ हमने जीवन में पहली बार मीठा मीठा महुआ चखा। यहाँ से हम बी फाल गये। रास्ते में आने वाले पानी से एक बहुत सुन्दर बनाया झरना है। यहाँ, जगह जगह स्टेप में उतरता पानी था। बी फाल तक जाने वाले सबसे पहले यहीं इसकी सुन्दरता में अटक जाते हैं। हम भी अटक गये। मैं एक पत्थर पर पानी में पैर लटका कर बैठ गई। मेरे पैरों में कुछ अजीब सा हुआ, मैंने झट से पैर ऊपर कर पानी में झाँका। जहाँ मेरे पैर थे, वहाँ ढेरो छोटी छोटी मछलियाँ थीं। मेरे पीछे एक अत्याधुनिका लड़की खड़ी थी, वो इतनी खुशी से चिल्लाई कि मैं काँप गई। वो बोली ,’’ये जो फिश हैं न, ये पैरों की डैड सैल खाती है। आपको पता है, इस फिशवाले पैडिक्योर का रेट हजारों रूपये है।’’ वह शार्ट पहने थी फिर उसने पानी में टाँगे लटका कर, मछलियों को डैड सैल का बुफे परोसा। हम बी फाॅल पहुँचे। मधुमक्खी के बीछत्ते के आकार का और वैसी ही आवाज करता झरना था। गाइड ने बताया कि यहाँ शाहरूख और करीना अशोका फिल्म की शूटिंग के लिये आये थे। लोगों में से कोई बोला,’’अब हम आयें हैं।’’सुनते ही सब हंस पड़े।  इसकी सुन्दरता ने हमें रोके रक्खा। काफी समय बिता कर हम जीप पर लौटे। शाम होने लगी थी। अब हम झील पर पहुँचे। गाइड और ड्राइवर की छुट्टी कर दी। क्योंकि बोटिंग के बाद हम पैदल होटल जाना चाहते थे। झील में एक घण्टा बोटिंग करने के बाद हम उसके किनारे बैठे हवा का आनन्द लेते रहे। अब हम पैदल होटल की ओर चल पड़े। पता नहीं हवा की ताज़गी थी, हम खूब पैदल चलते पर थकान नहीं थी। रास्ते में कुछ दूरी पर आर्मी आॅकेस्ट्रा  की शायद रिहर्सल हो रही थी। उसी रास्ते में एक बहुत ही खूबसूरत पार्क था। हम वहीं जब तक आॅकेस्ट्रा बजता रहा, बैठे रहे। चौथा दिन हमने महादेव के लिये रक्खा था। क्रमशः  




Monday, 23 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश, दर्शनीय पचमढ़ी Pachmarhi Madhya Pradesh Part4 भाग 4 Neelam Bhagi

  भरवां परांठे और छोले भठूरे यहाँ भी नाश्ते में बन रहे थे। रैस्टोरैंट में आर्डर करके हम इंतजार करने लगे। वहाँ एक बड़ा पिंजरा टंगा था, उसमेंं रंग बिरंगे पक्षी चहचहा रहे थे। मैंने रैस्टोरैंट मालिक से पूछा,’’इतने सुंदर जंगल के पक्षी आपने पिंजरे में क्यों कैद कर रक्खे हैं?’’ उसने जवाब दिया,’’ ओजी मुझे क्या जरूरत है, उड़ते परिंदों को कैद करने की। ये जो(अपने क्रमचारियों कि ओर इशारा करके)  आदिवासी हैं न जी, साप्ताहिक छुट्टी पर घर जाते हैं। इनको छोड़ आते हैं, नये ले आते हैं। ये भी शहर घूम जाते हैं। हे...हे...हे..ह.े..।’’पचमढ़ी की आबादी करीब दस हजार है। राजा हमें सबसे पहले चर्च फिर पाण्डव गुफा जहाँ पाण्डवों ने वनवास काटा था, ले गया। पाँच मढ़ी(गुफाएं), कहते हैं इसलिये इस जगह का नाम पचमढ़ी पड़ा। इसमें द्रोपदी की गुफा हवादार, रोशनी वाली और भीम की गुफा अंधेरी थी। यहाँ से गुप्त महादेव गये जो दो पहाड़ियों के बीच संकरा रास्ता है। उसमें से दर्शन करने जाना होता है। यहाँ हमने तेंदू फल और उबले हुए नमक लगे जंगली बेरों का भी स्वाद लिया। किसी भी यात्रा में मुझे गाइड लेना पंसद है। उनके पास तकरीबन हर एक प्वाइंट की एक लोक कथा भी होती है। जिसे सुनना मुझे अच्छा लगता है।  महादेव और अंबामाई के दर्शन किये। सभी के साथ गाइड ने हमारे धर्म ग्रंथों की कथाएं सुनाई। जहाँ भी जाते एक तो रास्ता मनमोहक उस पर गाइड का वर्णन उसे और भी खूबसूरत बना देता। मसलन हम हन्डी खोह जा रहे थे। जीप में जंगल में मुझे कुछ लोग दिखे जिसे देखते ही मैंने पूछा,’’ये जंगल में डरते नहीं, ये जगह तो जंगली भैंसो के लिये प्रसिद्ध है।’’ वह बोला,’’ ये आदिवासी हैं। सिनेमा देखने से ये कपड़ा पहनने लगे हैं।’’ मैंने पूछा,’’इनका गुजारा कैसे होता है?’’उसका जवाब था,’’ हैना जंगल, इतनी जड़ी बूटियाँ। ये जो आप छोटे छोटे लाल फूलों के गुच्छे देख रहीं हैं न, यह चिरौंजी के फूल हैं। जो खीर और मिठाई में पड़ती है। इसे ये दो, चार सौ रूपये किलो में बेच आते हैं। हैरानी हुई चिरौंजी का रेट सुनकर।
 हन्डी खोह वनस्पतियों से घिरी, 300 फीट सबसे गहरी सबसे तंग घाटी है। इस घाटी से नीचे बहते पानी की आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। हम विस्मय विमुग्ध प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे। गाइड उससे संबंधित पौराणिक कथा सुनाकर उसकी खूबसूरती को और बड़ा रहा था। कथा के समापन पर मैंने उससे पूछा,’’इसका नाम  हन्डी खोह क्यों पड़ा?’’उसने बताया कि एक हन्डी साहब थे। उन्हें पचमढ़ी में रहना बहुत भाता था। लेकिन ब्रिटेनिया सरकार ने इग्लैंण्ड से उन्हें वापिस बुला लिया। वे यहाँ से जाना नहीं चाहते थे। सरकार का हुक्म कैसे टालते भला। तो साहब ने यहाँ से कूद कर अपनी जान देदी उन्होंने इंग्लैण्ड जाने से अच्छा दुनिया से जाना समझा, इसलिये उनके नाम से इस जगह का नाम हन्डी खोह पड़ गया। मुझे अब पचमढ़ी में आना बहुत अच्छा लगा। जिस जगह पर रहने के लिये एक विदेशी ने अपनी जान दी, मैंने उस कुदरत के सौन्दर्य को देखा। यहाँ से हम प्रियदर्शनी प्वाइंट गये। रास्ते में नागफनी पहाड़ मिला। जिसका आकार कैक्टस की तरह हैं। यहाँ कैक्टस के पौधे बहुतायत से पाये जाते हैं। प्रियदर्शनी सतपुड़ा की पहाड़ियों का ऐसा प्वाइंट है, जहाँ से चौरादेव, महादेव और धूपगढ़ की चोटियाँ  दिख रहीं थीं। यहाँ से सूर्यास्त का मनमोहक नज़ारा देखकर लौटे रहे थे, मौसम बरसात का होने लगा। जैसे ही हम होटल पहुँचे, बारिश होने लगी। राजा अगले दिन, नौ बजे आने का बोल कर चला गया। सबसे सुना था कि बरसात में पचमढ़ी बहुत सुन्दर हो जाती है। अब देख भी लिया कि वे सच कहते हैं। आराम करके, बारिश रूकने पर हम चाय के लिये चल दिये। होटल वाले ने कहा,’’ मौसम खराब है। आपको रूम में चाय भिजवा देता हूँ।’’हमने उसे धन्यवाद किया और चल दिये बाहर। मैं यहाँ घूमने आयी थी। कमरे में बैठ कर चाय पीने का क्या स्वाद भला। कल जहाँ चाय पी थी, चाय वाला वर्षा के कारण वहाँ नहीं था। जिस रैस्टोरैंट में चाय पीने बैठे, मैंने उसके मालिक से पूछा,’’अवैध निर्माण पर जिनके कारोबार पर बुलडोजर चला है, बरसात में उनका क्या होगा? उसने जवाब दिया,’’हमारे पड़ोसी हैं, बरसात में हम सब उनके रहने ,खाने का इंतजाम करेंगे।’’ सुनकर बड़ा अच्छा लगा। रात को हमने गुजराती बिना हल्दी की कढ़ी, भात, लौकी वाली गट्टे की सब्जी और थेपले खाये।क्रमशः


Friday, 20 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश पिपरिया से पचमढी Piperiya to Pachmarhi Madhya Pradesh Part भाग 3 तुझसे भी दिल फरेब हैं, ग़म रोज़गार के




पिपरिया से लगभग 52 किमी.दूर हम मध्यप्रदेश के इकलौते हिल स्टेशन, सतपुडा की रानी पचमढ़ी जा रहे थे। आँखे बाहर के खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारों पर टिकी हुई थीं और मन में एक ही प्रश्न बार बार उठ कर खड़ा हो रहा था कि जब रास्ता इतना खूबसूरत है तो, रानी यानि पचमढ़ी कितनी सुन्दर होगी! हल्की हल्की ठंडक बढ़ती जा रही थी। ड्राइवर राजा ने बताया कि यहाँ का तापमान सर्दी में चार से पाँच डिग्री और गर्मी में अधिकतम पैंतीस डिग्री के बीच में रहता है। बरसात में पचमढ़ी बहुत खूबसूरत हो जाती है। रास्ते में जामुन, हर्रा, साल, चीड़, देवदारू,  सफेद ओक, यूकेलिप्टस, गुलमोहर, जेकेरेंडा आदि ने पहाडि़यों को सजा रक्खा था। नीचे लाल धरती को घास और फर्न ने ढका हुआ था। रास्ता इतनी जल्दी ख़त्म हो जायेगा, सोचा न था। पचमढ़ी पहुँचते ही दिमाग को जोर से झटका लगा क्योंकि सड़क के दोनो ओर अवैध निर्माण पर बुलडोज़र चला हुआ था। राजा ने बताया कि यहाँ लोगों की रिहायश और रोज़गार दोनों थी।  अवैध निर्माण के अवशेषों पर, स्थानीय लोगों के चेहरे पर उजड़े रोज़गार से गहरी वेदना थी। उनके बिखरे हुए सामान के पीछे प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा देखते बनती थी। इस नज़ारे  को देख कर  कहीं पढ़ी ये लाइने याद आ गई,’तुझसे भी दिल फ़रेब हैं, ग़म रोज़गार के। ’ं राजा से ही हमने पचमढ़ी घूमाने का तय कर लिया। उसने चार दिन में कैसे कैसे घुमायेगा, इसकी लिस्ट थमा दी। वो बोला,’’ जटाशंकर तो अभी चलते हैं, फिर आकर होटल में आपके रहने का इंतजाम करते हैं। पचमढ़ी से डेढ़ किलोमीटर जटाशंकर की  पवित्र गुफा है। गाड़ी से उतर कर कुछ दूर पैदल चले। कानों में नमः शिवाय की आवाज आने लगी, जिसे एक  आदिवासी महिला कई वर्षों से गा रही है।  गुफा के ऊपर, बिना किसी सहारे के विशाल शिलाखंड है। वहाँ नीचे शिवलिंग है। वहाँ तक जाने का आनन्द ही कुछ और है। दर्शन करके हम होटल तय करने आये। राजा एक होटल में ले गया। मैं और अंजना गाड़ी में ही बैठे रहे। उस सड़क पर होटल ही होटल हैं। एक होटल से चहकता हुआ लडकियों का ग्रुप निकला। ये देखकर हैरानी हुई, उनके साथ कोई आदमी नहीं था। मैं और अंजना भी उस होटल में गये। रेट हजार रू ए.सी., गिज़र, टी.वी. आदि सब। बाहर आये तो गाड़ी से सामान उतारा जा रहा था। मैंने पूछा,’’रूम कितने का?’’ जवाब मिला,’ढाई हजार का।’ मैं बोली,’’जो हम देखकर आयें हैं, एक बार उसे भी देख लीजिए।’’सुनते ही राजा पैर पटकने लगा और क्रोधित होकर बोला,’’कुछ हो गया तो उसकी कोई जिम्मेवारी नहीं।’’पता नहीं उसको कैसे गलतफहमी हो गई थी कि हमने उस पर अपनी जिम्मेवारी सौंपी थी। सब को हमारे देखे रूम पसंद आये, इसमे बालकोनी भी थी। खिड़की से पर्दा हटा कर बैड पर लेटे लेटे प्राकृतिक नज़ारों का आनन्द लिया जा सकता है। राजा को कल आने का बोल कर, सब अपने अपने रूम में चले गये। सोकर उठे और पैदल चल दिये घूमने। ज्यादातर रैस्टोरैंट के आगे गुजराती और महाराष्ट्रीयन खाने के बोर्ड लगे थे। शायद मध्य प्रदेश के पड़ोसी राज्य होने के कारण, वहाँ के खानपान में इनका असर दिखा। एक व्यक्ति अपने मलबे के आगे मेज पर चाय का सामान रख कर बैठा था। मैंने पूछा,’’चाय मिलेगी।’’ जवाब में उसने कुर्सियाँ लगा दी और चाय बनाने लगा। चाय के पहले घूँट में ही हम वाह वाह कर उठे। सड़क पर हम बैठे हुए लोगों का आना जाना देख रहे थे। सैलानी खुशी से खिले हुए थे कि उनका यहाँ आना सार्थक हो गया। वे प्राकृतिक सौन्दर्य को कैमरे में कैद करने में लगे थे। ये देखकर मुझे बहुत खुशी हुई कि जो लोग वैध जगह में अपना काम चला रहे थे, वे उजड़े हुये अपने साथियों की मदद कर रहे थे। रात हमने महाराष्ट्रीयन खाना झुनका, भाखरी, ढेचा आदि खाया।
  राजा का फोन आया सुबह आठ बजे वह आयेगा। वह हमें पाडंव गुफा, हांडी खोह, प्रियदर्शनी प्वाइंट, ग्रीन वैली, संगम टूर, गुप्त महादेव, महादेव और अंबाबाई घुमायेगा। क्रमशः





Monday, 16 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश , भारतीय रेल में हमारी संस्कृति 2 Madhya Pradesh Part 2 इटारसी से पिपरिया Etarsi se Pipariya

                   अगले दिन इटारसी से हमारी पिपरिया के लिये गाड़ी में सीट रिजर्व थी। सड़क मार्ग से हम इटारसी स्टेशन पहुँचे। इटारसी जंगशन है। स्टेशन पर मुझे एक बात ने बहुत हैरान किया। वह यह कि मैं बहुत सफर करती हूँ इसलिये बर्थ पर लेटे लेटे ही, मैं दुर्गंध से बता देती हूँ कि स्टेशन आने वाला है। पर इटारसी के स्टेशन पर बदबू नहीं थी। ट्रेन एक घण्टा लेट थी। यहाँ स्टेशन पर पाव भाजी की प्लेट लगा कर, उस पर नमकीन डालकर देते हैं। जो पावभाजी के स्वाद को और बढ़ा देता है। यहाँ पर पिपरिया के लिये सुबह ग्यारह बजे की ट्रेन में अपनी बोगी में सवार हुए। हमारी रिर्जव सीटों पर और लोग बैठे थे, थोड़ा सा सफर था। इसलिये जिसको जहाँ सीट मिली, वहीं बैठ गया। पर मेरी सीट खिड़की की थी इसलिये मैंने सीट खाली करवाने के लिये उसपर बैठे आधुनिक फैशन के अनुसार तराशी गई मूंछो वाले युवक से सीट खाली करने को कहा। वो कुछ बोलता, उससे पहले दूर साइड सीट की अपर सीट से उसकी माँ बोली,’’बैठा रहने दो न, बच्चा है, खिड़की से नज़ारे देखता हुआ जाना चाहता है। आप उसकी सीट पर बैठ जाइये न।’’मेरे कुछ बोलने से पहले ही कुछ सवारियाँ बोल उठी,’’दाढ़ी मूंछ वाला तुम्हारा छोरा तो बच्चा है, तो ये बहन जी भी बच्ची हैं।’’ बाकि सवारियों की आँखें एक्सरे मशीन की तरह मेरी अवस्था का अंदाज लगाने लगी। उस युवा ने अपने परिवार की इच्छा के विरूद्ध, उन्हें चुप रहने को कहकर मुझे मेरी सीट दी। मैं धन्यवाद कह कर, बैठ गई। उसी महिला ने पूरी आलू की सब्जी आचार निकाल कर काग़ज की प्लेट में डाल डाल कर अपने परिवार के सदस्यों को देना शुरू किया। उसके आचार की खूशबू से पूरा डिब्बा भर गया। बाकि सवारियों के साथ मुझे भी उसने खाने को पूछा, सबके साथ मैंने भी धन्यवाद कर दिया। इसके साथ ही माहौल ही बदल गया। सीट खाली करवाने का गुस्सा भी खत्म। जो भी कुछ खाने को निकालता वह सहयात्रियों से लेने को जरूर कहता था पर बदले में सब धन्यवाद देते। यहाँ किसी ने भी खाना भी एक्चेंज नहीं किया जबकि राजधानी में मिलने वाली खाने की थाली से चावल खाने वाले, सहयात्री को परांठे का पैकेट देकर, बदले में चावल का बाॅक्स ले लेते हैं।
  सीट के नीचे लोगों का सामान भरा हुआ था। इसलिये मेरा बैग मेरी नज़रों के सामने मुझसे दूर, दो पुलिस वालों के पास मैंने रक्खा था। अंजना ने पूछा,’’बैग कहाँ है?’’मैंने जवाब दिया,’’चिंता मत करो पुलिस जी बैठी हैं, बैग उनके पास रक्खा है।’’ पुलिस जी ने मुस्कुराते हुए मुझे कहा,’’मैडम देखिये, वो क्या लिखा है?’’वहाँ लिखा हुआ था ’यात्री अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें।’ अब मैं भी हंस पड़ी। मैंने पुलिस जी से जी.टी.एक्सप्रेस के टू. एसी.में बैग चोरी की घटना को बताया कि ऐसा कैसे संभव हुआ? सभी खाते पीते घरों के सभ्य लोग थे। गाड़ी भी बड़े स्टेशनों पर ही खड़ी होती है। पुलिस जी ने बताया कि इसमें तीन लोग शामिल होते हैं। एक ने सीट रिजर्व करवाई होती है। दो अलग अलग गेट से चढ़ते हैं। एक रेकी करता है, दूसरा ध्यान बटाता है। स्टेशन आते ही, तीसरा बैग लेकर साफ जाता है। इस किस्से को सुनने के बाद यात्रियों का प्रश्न था कि हम कहाँ से आए हैं और कहाँ जा रहे हैं? अंजना ने बताया कि हम नौएडा से हैं और पचमढ़ी जा रहे हैं। पिपरिया उतरने वालो ने पूरा पचमढ़ी का रास्ता समझा दिया। किस तरह से घूमना है। पिपरिया से पचपढ़ी से टैक्सी का किराया, बस का किराया आदि सब बताया। उनका कहना था कि हम परदेसी हैं (जबकि हम सब भारतवासी हैं)हमें कोई लूट न ले। पचमढ़ी में दिनों के हिसाब से कैसे घूमना है। क्या क्या देखना है। टैक्सी के रेट आदि सब समझा दिये। होटल के कमरों का किराया तक। पिपरिया में दो मिनट के लिये गाड़ी रुकती है। सवारियों ने ही सामान उतरवा दिया। यहाँ भी कुली नहीं था।
  स्टेशन पर बाकि लोगों को सामान के साथ छोड़ कर, बाहर आकर टैक्सी तय की। यहाँ सहयात्रियों की दी गई जानकारी बहुत काम आई। अब फोन कर बाकि लोगो को स्टेशन से बाहर बुला लिया। जिप्सी में सामान रख, हम चल पढ़े। सड़क के दोनों ओर गेहूँ की पकी हुई बालियों की सुनहरी चादर बिछी हुई थी। ड्राइवर बोला, ’’आप यहीं लंच कर लीजिये, वहाँ एनक्रोचमेंट हटाने का अभियान चल रहा हैं। जो शाम को पाँच बजे तक चलेगा।’’ वह हमें एक रैस्टोरैंट में ले गया। जहाँ गैस की बजाय लकड़ी पर खाना बन रहा था। यहाँ एक नई सब्ज़ी सेव की मिली। इतने सालो बाद चूल्हे की रोटी खाकर आनन्द आ गया.  अंजना ने स्वादिष्ट खाने का राज चूल्हा बताया\ क्रमशः

Sunday, 15 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश, होशंगाबाद नर्मदे हर हर हर नीलम भागी Hoshangabad Madhya Pradesh Part 1 Neelam Bhagi

  
                                    
        नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से जी. टी. एक्सप्रेस के सेकण्ड .सी. के डिब्बे में अपनी लोअर साइड सीट पर बैठी ही थी कि डिब्बे में शोर मच गया। खाकी कपड़े पहने, हाथ में डण्डे लिये दो व्यक्ति, एक युवक से पूछ रहे थे,’’कहाँ है? कहाँ है? वो डरा हुआ हैण्डसम युवक, सीट के नीचे झाँक कर बोले जा रहा था,’’अभी तो यहीं था। मैं जैसे ही आपको बुलाने गया, वो भाग गया।’’ मैंने अपने सामने बैठे युवक से पूछा,’’कौन भाग गया?’’ उसने जवाब दिया,’’चूहा।’’इतने में  गाड़ी चल पड़ी और चूहे के शिकारी भी प्लेटफार्म पर कूद गये। चूहा काण्ड खत्म होते ही हम अपना सामान व्यवस्थित करने लगे। सामान को जंजीर से कसने में अपर साइड सीट के युवक ने मेरी मदद की। इतने में मेरी नज़र सामने लोअर सीट के नीचे रक्खे एक बड़े से पिंजड़े पर पड़ी। जैसे ही मैंने उसे बाहर निकाला, वह तो चूहेदान था।सब को चर्चा का विषय मिल गया। इस मींमांसा का परिणाम यह निकला कि चूहेदान में मैन्यूफैक्चरिंग डिफैक्ट है। पर फिर भी मैंने अपना ज्ञान  बघारा कि इसमें खाने को भी तो कुछ नहीं है। चूहा बेचारा किस लालच में आयेगा और फंसेगा? सहयात्री ने बताया कि खाना रखने का कोई फायदा नहीं है, चूहे आकर, खा कर, इसमें से चले जाते होंगे। यह कह कर उसने पिंजरे को जहाँ से उठाया था, वहीं पर रख दिया और मेरे सामने बैठकर पूछा,’’आप कहाँ जा रहीं हैं?’’मैंने अपने साथियों की ओर इशारा करके जवाब दिया,’’हम सब पचमढ़ी और अमरकंटक जा रहे हैं और आप?’’ वह बोला,’’मैं चेन्नई जा रहा हूँ?’’मैंने जितने भी प्रश्न किये, उसने मोबाइल से अपनी अपूर्व सुन्दरी पत्नी की फोटो दिखा कर बताया कि  वह चेन्नई में इंजीनियर है। उसके पिता शिमला में उच्च अधिकारी हैं। छह महीने पहले ही उसकी शादी हुई हैं। शादी से आठ दिन पहले उसकी पत्नी की शिमला में ही सरकारी नौकरी लग गई। हिमाचल से बाहर उसका तबादला नहीं हो सकता। वह कोशिश कर रहा है कि उसकी शिमला में नौकरी लग जाये। चेन्नई में उसे शिमला का मौसम बहुत याद आता है। इसी तरह साथ ही सब बतियाते हुए मथुरा आने पर भोजन करने लगे। ब्राउन पेपर बैग में सफेद चादरें थी। बिस्तर लगाने के बाद अड़तालिस यात्रियों में से दो ने बैडशीट निकालने के बाद लिफाफे गाड़ी के फर्श पर फैंके बाकि सबने कूड़ेदान में, ये स्वच्छ भारत अभियान का असर था। अब लाइट बंद कर पर्दे खींच कर सब लेट गये युवा मोबाइल में लग गये। एग्जिट गेट के साथ टी.टी. की सात नम्बर सीट थी और उससे अगली मेरी। आधी रात को बहस सुन कर मेरी नींद खुल गई। एक व्यक्ति शायद टी.टी बोल रहा था कि तुम डिब्बे में घुसे कैसे? बाहर निकलो।’’ दूसरी आवाज,’’तूँ मुझे जानता नहीं है। झाँसी पहुँचते ही तेरी वो गत बनाऊँगा कि घर जाने के लायक नहीं बचेगा। मेरा जीजा अमुक राजनेता का सिक्योरिटी गार्ड है। अब पहली आवाज़,’’ज्यादा से ज्यादा तूँ क्या कर सकता है? मुझे मार ही तो डालेगा न? ले अब मार डाल।" दूसरी आवाज,’’ बस तूँ झाँसी आने दे। फिर देखियो’’ पहली आवाज़,’’तूँ गेट से बाहर खड़ा होकर झाँसी का इंतजार कर।’’दूसरे का लेक्चर शुरू,’’ मैं क्यूँ गर्मी में बाहर खड़ा होऊँ। मेरे बाप की औकात नहीं है, मुझे .सी. की टिकट दिलाने की। गलती किसकी है मेरी या मेरे बाप की?’’ अब शांति। क्योंकि तर्क का तो जवाब होता है, कुतर्क का कोई कब तक जवाब दे। मैं पर्दे की झिर्री में से डरी हुई झाँक रही थी, बस एक खड़े व्यक्ति की पीठ दिखाई दे रही थी। पता नहीं कब आँख लग गई। पौ फटने पर देखा गाड़ी हबीबगंज स्टेशन पर रुकी है। हमारे डिब्बे के आगे पुलिस खड़ी है। एक आदमी कलप कलप कर कुछ बोल रहा है। मैं फिर गहरी नींद में सो गई। होशंगाबाद स्टेशन से पहले मुझे जगाया क्योंकि यहाँ हमें उतरना था। मैं पानी की बोतल खरीदने लगी। एक सवारी बोली,’’यहाँ माँ नर्मदा का पानी है। बिना डरे पियो। बोतल का तो अपनी दिल्ली में ही पीना।’’मैंने उसका कहना मान लिया। स्टेशन पर उतरते ही पता चला कि हमारे डिब्बे में किसी की अटैची चोरी हो गई। उसमें उसका सब कुछ था। सोने से पहले उसने अपना मोबाइल भी उसमें रख दिया था। इसलिये गाड़ी आधा घण्टा लेट हुई। होशंगाबाद में कुली नहीं था। अपना सामान हमने स्वयं उठाया। स्टेशन पर साँची वालों का मिल्क पार्लर था, जहाँ बहुत सस्ता फ्लेर्वड दूध, दहीं और मट्ठा था, जिसे खाया पिया और स्टेशन से बाहर आये। तिराहे चौराहे बहुत देखे थे
सतरस्ता होशंगाबाद में ही देखा.स्टेशन के बाहर. एक साथ सात रास्ते.
   सड़क के दोनों ओर होटल थे। रूम लिये सामान रक्खा और तैयार हुये। हर शहर की कुछ कुछ विशेषता होती है। मैं शाकाहारी हूँ और मुझे एक आदत है, मैं जिस भी शहर में घूमने जाती हूँ, वहाँ खाने पीने में कुछ नया हो तो उसे ट्राई जरूर करती हूँ। होशंगाबाद एक पुराना शहर है। जिसके भी घर के आगे सड़क है, उसने नीचे दुकान बना रक्खी है। ताजा सब कुछ बन रहा था। समोसा, कचौड़ी, पोहा, जलेबी, आलूबड़ा, मिर्ची पकौड़े तरह तरह के नमकीन चाय , (छाछ) मही आदि। स्वाद सभी का गज़ब। शायद वहाँ घर में नाश्ता बनाने कर रिवाज़ कम है क्योंकि स्कूली बच्चे दुकानों से पंसंद का नाश्ता अपने लंच बाक्स में डलवा कर ले जा रहे थे। बढ़िया स्वादिष्ट भारतीय नाश्ता करके हम ऑटो से सेठानी घाट गये। रास्ते में पड़ने वाली दुकाने हैंण्डीक्रॉफ्ट से भरी पड़ी थी। घाट पर पहुँच कर ऑटो वाले से किराया पूछा,’’बोला दस रूपये सवारी। बड़ी हैरानी हुई। इस समय मुझे नौएडा बहुत याद आया। यहाँ आटो वाले इधर उधर घूमा कर दो, तीन सौ रूपये मज़े से माँग लेते हैं। ख़ैर सेठानी घाट पर पहुँच कर मैं विस्मय विमुग्ध माँ नर्मदा को निहारने लगी।
   त्रिभिः सारस्वतं तोयं, सप्ताहेन तु यामुनाम।
   सद्यः पुनाति गांगेयं, दर्षनादेवि नर्मदा।।
स्कन्द पुराण में कहा गया है कि सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुना का जल सात दिनों में या सात बार स्नान करने पर, गंगा जी का जल एक बार स्नान करने पर पवित्र करता है किन्तु माँ नर्मदा जी का जल दर्शन करने से ही पवित्र कर देता है। साफ सुथरा घाट चौड़ा पाट नर्मदा जी का, वहीं सीढ़ियों पर बैठे रहे। अंजना  मुझसे पूछती हैं,’’ नर्मदा जी का प्रवाह किस ओर है?’’मैं ध्यान से स्थिर नज़रों से उन्हे देख रही हूँ। मुझे लगा वे भी रूकी हुई हमें देख रहीं हैं। मैं नहीं बता सकी, वे किस दिशा में बह रहीं हैं? हमारे बराबर में एक परिवार बच्ची के मुण्डन करवा रहा था। मैंने ये सोच कर कि यहाँ मुण्डन के समय गाये जाने वाले लोक गीत सुनने को मिलेंगे, उस परिवार की महिलाओं से कहा,’’इस समय गीत गाओ न।’’उन्होंने जवाब में गीत की जगह ही...ही....ही...किया। उस परिवार  के बुर्जुग ने जवाब दिया,’’ये .मे., बी.मे पढ़ी हैं। इनसे तो सिनेमा के गीत गवा लो।’’जवाब में फिर ही..ही..ही.... एक श्रद्धालू ने संतरा खाकर छिलके फैंके। कार्तिके तुरंत नीचे जाकर उसे समझा कर आया कि अंकल कूड़ा डस्टबिन में डालो। वो बच्चे से लड़ा नहीं। वह बोला ,’’ आगे से नहीं डालेगा।’’इतने में तीन बकरियाँ आकर छिलके खा गईं।
  हमने नाव वाले से कहा,’’हमे परली तरफ जाना है।’’ वह बोला,’’दस रूपये आने के और दस रूपये जाने के। बीस रूपये पहले लेंगे। जब भी आप लौटो गे। जिस मर्जी नाव में बैठ जाना वो आपको ले कर ही आयेगा।’’ माँ नर्मदा पार, साफ सुथरा पेड़ों से घिरा मंदिर था। हम वहीं बैठे नर्मदा जी का दर्शन करते रहे और प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारते रहे। दोपहर बीत रही थी। एक नाव से सवारियाँ उतरी हम उसमें बैठ गये। उसने हमें घाट पर उतार दिया। पैसों का कोई ज़िक्र नहीं किया। गाड़ी से गुज़रने में और पैदल चलने में फर्क होता है। हम होटल की तरफ पैदल चल दिये। दुकानों में तरह तरह के हैंण्डीक्राफ्ट थे। अभी तो हमें  दस दिन तक और शहरों में जाना था। सामान कहाँ उठा सकते थे? पर देख कर मोहित तो हो ही सकते थे न। लेकिन  एक जगह मैं अपना लोभ संवरण नहीं कर पाई। पहले छोटे बच्चे एक तीन पहिये के लकड़ी के ठेले को पकड़ कर खड़े होते थे और धीरे धीरे उसी के सहारे चलना सीखते थे।  होशंगाबाद में एक दुकान पर रंग बिरंगी लकड़ियों से बने वे रेड़े थे। मुझे गीता याद आई जो खड़ा होना सीख रही थी। मैं ठेले को लेने की सोच ही रही थी। दुकानदार ने एक रेड़ा खोल कर पैक कर दिया और मुझे समझा दिया ऐसे ही घर जाकर फिट कर लेना। कीमत कुल दो सौ रूपये। नई नई चीजों का हम स्वाद लेते और कुछ चीज़ों के नाम नये थे जैसे गोल गप्पे का नाम फुल्की और चाट पापड़ी का नाम दहीं पूरी था ,हम होटल पहुँचे। थोड़ा आराम किया फिर चल दिये शाम को नर्मदा जी की आरती देखने।
    घाट हाई मास्ट लाइट से जगमगा रहा था। यहाँ मेरे पास शब्द नहीं हैं कि जो मैंने आरती के समय महसूस किया, उसका वर्णन कर सकूँ। क्योंकि श्रद्धा और आस्था से जो लोगो के दिल से आरती गाई जा रही थी, उसने अलग ही समां बांध रक्खा था। घण्टे घड़ियाल बज रहे थे। लोग आते जा रहे थे और ताल से तालियाँ बजाते हुए  आरती में शामिल हो रहे थे। आरती के नर्मदा जी में धीरे धीरे चलते हुए दीपक देख कर लगा कि माँ नर्मदा धीरे धीरे बह रही हैं। दिन में ऐसे लग रहा था जैसे विश्राम कर रहीं हों। आरती ली और सब बैठ गये। लोग मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाने लाये थे और खिला रहे थे।
हम भी ठंडे ठंडे पानी में पैर डाल कर स्थानीय लोगों से बतियाने में मशगूल हो गये। कुछ लोगों का कहना था कि वे रोज माँ नर्मदा के पास बैठने आते हैं। वहाँ से लौटे और जल्दी सो गये।        
 अगले दिन इटारसी से हमारी पिपरिया के लिये गाड़ी में सीट रिजर्व थी।  स्टेशन भी पास था पर मुझे सड़क मार्ग से ही इटारसी जाना था क्योंकि बस शहर के बीच से गुजरती है जिससे शहर का लगभग परिचय हो जाता है। सुबह सुबह नर्मदा जी के दर्शन किये, जो शैंपू ,साबुन से नहा रहे थे। उन्हें ऐसा  करने के लिये डाँटा। बस के कैबिन में इटारसी के लिये बैठे, छाया और विनीता दो छात्रायें लग रहीं थी हमारे पास बस के बोनट पर बैठ गई। वे इटारसी की रहने वाली थीं। लेकिन पढ़ाई उन्होंने होशंगाबाद में की थी। अब वे अध्यापिकाएँ हैं। मैंने उनसे पूछा, ’’यहाँ कुली, भिखारी और मैनुअल रिक्शा चालक नहीं दिखाई दिये।’’ दोनों तपाक से बोलीं,’’ वो तो दिल्ली में होते हैं।’’ मैंने दूसरा प्रश्न दागा,’’ आप अकेली सफ़र करती हो, मनचले  छेड़ते तो नहीं!’’ दोनो कोरस में बोली,’’वो तो दिल्ली में छेड़ते हैं।’’ अब मैंने पूछना बंद कर दिया। इटारसी तक वे होशंगाबाद की तारीफ़ करती आईं और गर्व से बताया, यहाँ घाट पर गंगाजल फिल्म की शूटिंग हुई थी। हम अगली यात्रा के लिए इटारसी के स्टेशन पहुँचे। क्रमशः

 
बहुमत मध्य प्रदेश एवम छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में यह लेख प्रकाशित है