
अनोखा मध्य प्रदेश, अनहोनी में महिलाओं का गर्म पानी का कुण्ड और सतधारा हाय! तुम ऐसी क्यों हो?.............मजबूरी।
नीलम भागी
अनहोनी के गर्म पानी के कुण्ड से हैरानी से चीखते हुए पैर निकाल कर, अब हम धीरे से हाथ गीले कर अपने चेहरे और बालों को गीला कर रहे थे। जिनको त्वचा रोग थे, वो पानी भर कर कुण्ड से दूर नहा रहे थे। जो भी आता बोतलें भर कर पानी जरूर साथ ले जाता, सिवाय हमारे। खै़र, हमारी तो एक बार बाल गीले करने से ही डैण्ड्रफ दूर हो गई। कुछ महिलाओं को हमारी चीख से ही पानी के तापमान का अनुभव हो गया। वे कुण्ड तक ही नहीं आ रहीं थी, किनारे पर खड़ी हमें देख रहीं थी। मैंने पूछा,’’आप पानी को छुए बिना कैसे तापमान का अनुमान लगा सकती हो? पानी बहुत गर्म है, पर फफोले तो नहीं डाल रहा न। इतने गर्म तवे से रोटी उतार लेती हो, तो यहाँ भी पानी छू कर तो देखो।’’अब वे भी सीढ़ियाँ उतर कर पानी छूकर, खुश और आश्चर्यचकित हो रहीं थीं।मैं भी अपनी आदत के अनुसार आस पास का मुआयना करने लगी। चारों ओर जंगल से घिरा मंदिर था। उसके आगे एक कुण्ड था। जिसमें पानी लगभग खौल ही रहा था क्योंकि उसमें बुलबुले उठ रहे थे। इस कुण्ड का पानी तापमान गिराने के लिये दो कुण्डों में जा रहा था ताकि लोग इसका उपयोग कर सकें। एक कुण्ड का अनुभव हमने ले लिया था। दूसरे कुण्ड की सफेद रंग की ऊँची बाउण्ड्री वॉल बनी थी। जिस पर लिखा था ’महिला स्नान घर’ पढ़ते ही मन खुश हो गया, ये देख कर कि यहाँ महिलाओं का कितना ध्यान रक्खा गया है। पर अंदर जाते ही मन दुख और क्षोभ से भर गया। दुख, वहाँ फैली गंदगी देख कर और क्षोभ इस पर की ये सारी गंदगी महिलाओं द्वारा फैलाई गई थी, जो अपने घरों को सजा संवार कर रखती हैं। वे मजबूर थीं, कारण आसपास कोई टॉयलेट नहीं था। मजबूरी में यहाँ वे प्राकृतिक क्रिया से फारिग़ हो रहीं थी। ये भी बिल्कुल पुरूषों के कुण्ड जैसा था। लेकिन यहाँ की गंदगी के कारण आप एक मिनट भी रूक नहीं सकते। यहाँ से कुछ दूरी पर खेत भी दिखाई दे रहे थे। पास में ही एक आदिवासी परिवार ने एक साफ सुथरे बड़े से छप्पर के नीचे दुकान और रैस्टोरैंट खोल रक्खा था। महिला चूल्हे पर खाना बना रही थी। जो भी खा रहे थे, उन्हें परोसने में जरा भी कंजूसी नहीं कर रही थी। वहाँ चारपाई बिछी थी, हम उस पर बैठ गये क्योंकि शुक्ला जी ने एक छोटे से लड़के को मिठ्ठू लाने को कहा। वह आदिवासी लड़का बड़ी फुर्ती से पेड़ पर चढ़ा और उतरा। उतरते ही उसने जेब से दो तोते निकाल कर शुक्ला जी के हाथों में रख दिये। बदले में उन्होने उसके हाथों में पचास का नोट रख दिया। नोट लेते ही लड़का खुशी से ये जा वो जा। हमारा खाने का समय नहीं था फिर भी हमने महिला से एक एक गर्म चूल्हे की रोटी और उसी पर बैंगन की सब्जी हथेली पर रखकर खाई। ताजे बैंगन में सिर्फ मसालों के नाम पर केवल हरी मिर्च और अदरक था। सब कुछ ताजा इसलिये स्वाद भी अलग। जिप्सी पर बैठे और तोतो को एक गत्ते के डिब्बे में रख, हम सतधारा की ओर चल पड़े। रास्ते में वर्षा शुरू हो गई। खुली गाड़ी पर शुक्ला जी ने तिरपाल डाला और चल पड़े। कुछ समय बाद पानी तेज हो गया, अब हम रास्ते में एक गाँव की चाय की दुकान पर रूके। वहाँ हाथ से पीसी दाल में प्याज और हरी मिर्च मिला कर टिक्की और समोसे तले जा रहे थे। हमने चाय बनवाई। साथ में दाल टिक्की ली। जो बहुत स्वाद थी। शुक्ला जी ने समझाया कि चाय के साथ समोसा खाते हैं और टिक्की मट्ठे के साथ खाई जाती है। उसी समय दुकानदार ने हमें कटोरियों में मट्ठा डाल कर दिया। ये कॉम्बिनेशन गज़ब का था। मैंने सोचा घर जाकर मै भी बनाऊँगी। उससे दाल का नाम पूछा। बदले में उसने पीठी का पतीला दिखा कर दाल का नाम बताया जो मुझे समझ नहीं आया। वर्षा भी थम गई। हम भी चल पड़े। चलते हुए अचानक गाड़ी कच्चे रास्ते पर उतर कर जंगल को पार करती हुई एक जगह रूकी । हम गाड़ी से उतर कर विस्मय विमुग्ध सतधारा को देख रहे थे। क्रमशः







यहाँ का सूर्य उदय और अस्त बहुत मनमोहक होता है और दिन में हरी भरी घाटियाँ देख सकते हैं। दूसरी ऊँची चोटी चैड़ागढ़ भी यहाँ से दिखती है। रीछगढ़, पेरासेलिंग, संगम, राजेन्द्रगिरि, लवर्स पाइंट गये।
लवर्स पाइंट का प्राकृतिक रूप से प्राप्त लकड़ी में मामूली सा बदलाव कर बना फर्नीचर मुझे अच्छा लगा। राजेन्द्रगिरि बहुत सुन्दर पहाड़ी है। हमारे प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद यहाँ स्वास्थ लाभ के लिये आये थे। उन्हें यह स्थान बहुत पसंद आया। यहाँ एक बहुत सुन्दर उद्यान बनाया गया है, उन्ही के नाम पर इसका नाम राजेन्द्रगिरि रक्खा गया है। उद्यान के बाहर एक महुए का पेड़ था। जिस पर से महुए टपक रहे थे।
मधुमक्खी के बीछत्ते के आकार का और वैसी ही आवाज करता झरना था। गाइड ने बताया कि यहाँ शाहरूख और करीना अशोका फिल्म की शूटिंग के लिये आये थे। लोगों में से कोई बोला,’’अब हम आयें हैं।’’सुनते ही सब हंस पड़े। इसकी सुन्दरता ने हमें रोके रक्खा। काफी समय बिता कर हम जीप पर लौटे। शाम होने लगी थी। अब हम झील पर पहुँचे। गाइड और ड्राइवर की छुट्टी कर दी। क्योंकि बोटिंग के बाद हम पैदल होटल जाना चाहते थे। झील में एक घण्टा बोटिंग करने के बाद हम उसके किनारे बैठे हवा का आनन्द लेते रहे। अब हम पैदल होटल की ओर चल पड़े। पता नहीं हवा की ताज़गी थी, हम खूब पैदल चलते पर थकान नहीं थी। रास्ते में कुछ दूरी पर आर्मी आॅकेस्ट्रा की शायद रिहर्सल हो रही थी। उसी रास्ते में एक बहुत ही खूबसूरत पार्क था। हम वहीं जब तक आॅकेस्ट्रा बजता रहा, बैठे रहे। चौथा दिन हमने महादेव के लिये रक्खा था। क्रमशः 

उसने जवाब दिया,’’ ओजी मुझे क्या जरूरत है, उड़ते परिंदों को कैद करने की। ये जो(अपने क्रमचारियों कि ओर इशारा करके) आदिवासी हैं न जी, साप्ताहिक छुट्टी पर घर जाते हैं। इनको छोड़ आते हैं, नये ले आते हैं। ये भी शहर घूम जाते हैं। हे...हे...हे..ह.े..।’’पचमढ़ी की आबादी करीब दस हजार है। राजा हमें सबसे पहले चर्च फिर पाण्डव गुफा जहाँ पाण्डवों ने वनवास काटा था, ले गया। पाँच मढ़ी(गुफाएं), कहते हैं इसलिये इस जगह का नाम पचमढ़ी पड़ा। इसमें द्रोपदी की गुफा हवादार, रोशनी वाली और भीम की गुफा अंधेरी थी। यहाँ से गुप्त महादेव गये जो दो पहाड़ियों के बीच संकरा रास्ता है। उसमें से दर्शन करने जाना होता है। यहाँ हमने तेंदू फल और उबले हुए नमक लगे जंगली बेरों का भी स्वाद लिया। किसी भी यात्रा में मुझे गाइड लेना पंसद है। उनके पास तकरीबन हर एक प्वाइंट की एक लोक कथा भी होती है। जिसे सुनना मुझे अच्छा लगता है। महादेव और अंबामाई के दर्शन किये। सभी के साथ गाइड ने हमारे धर्म ग्रंथों की कथाएं सुनाई। जहाँ भी जाते एक तो रास्ता मनमोहक उस पर गाइड का वर्णन उसे और भी खूबसूरत बना देता। मसलन हम हन्डी खोह जा रहे थे। जीप में जंगल में मुझे कुछ लोग दिखे जिसे देखते ही मैंने पूछा,’’ये जंगल में डरते नहीं, ये जगह तो जंगली भैंसो के लिये प्रसिद्ध है।’’ वह बोला,’’ ये आदिवासी हैं। सिनेमा देखने से ये कपड़ा पहनने लगे हैं।’’ मैंने पूछा,’’इनका गुजारा कैसे होता है?’’उसका जवाब था,’’ हैना जंगल, इतनी जड़ी बूटियाँ। ये जो आप छोटे छोटे लाल फूलों के गुच्छे देख रहीं हैं न, यह चिरौंजी के फूल हैं। जो खीर और मिठाई में पड़ती है। इसे ये दो, चार सौ रूपये किलो में बेच आते हैं। हैरानी हुई चिरौंजी का रेट सुनकर।
गाइड उससे संबंधित पौराणिक कथा सुनाकर उसकी खूबसूरती को और बड़ा रहा था। कथा के समापन पर मैंने उससे पूछा,’’इसका नाम हन्डी खोह क्यों पड़ा?’’उसने बताया कि एक हन्डी साहब थे। उन्हें पचमढ़ी में रहना बहुत भाता था। लेकिन ब्रिटेनिया सरकार ने इग्लैंण्ड से उन्हें वापिस बुला लिया। वे यहाँ से जाना नहीं चाहते थे। सरकार का हुक्म कैसे टालते भला। तो साहब ने यहाँ से कूद कर अपनी जान देदी उन्होंने इंग्लैण्ड जाने से अच्छा दुनिया से जाना समझा, इसलिये उनके नाम से इस जगह का नाम हन्डी खोह पड़ गया। मुझे अब पचमढ़ी में आना बहुत अच्छा लगा। जिस जगह पर रहने के लिये एक विदेशी ने अपनी जान दी, मैंने उस कुदरत के सौन्दर्य को देखा। यहाँ से हम प्रियदर्शनी प्वाइंट गये। रास्ते में नागफनी पहाड़ मिला। जिसका आकार कैक्टस की तरह हैं। यहाँ कैक्टस के पौधे बहुतायत से पाये जाते हैं। प्रियदर्शनी सतपुड़ा की पहाड़ियों का ऐसा प्वाइंट है, जहाँ से चौरादेव, महादेव और धूपगढ़ की चोटियाँ दिख रहीं थीं। यहाँ से सूर्यास्त का मनमोहक नज़ारा देखकर लौटे रहे थे, मौसम बरसात का होने लगा। जैसे ही हम होटल पहुँचे, बारिश होने लगी। राजा अगले दिन, नौ बजे आने का बोल कर चला गया। सबसे सुना था कि बरसात में पचमढ़ी बहुत सुन्दर हो जाती है। अब देख भी लिया कि वे सच कहते हैं। आराम करके, बारिश रूकने पर हम चाय के लिये चल दिये। होटल वाले ने कहा,’’ मौसम खराब है। आपको रूम में चाय भिजवा देता हूँ।’’हमने उसे धन्यवाद किया और चल दिये बाहर। मैं यहाँ घूमने आयी थी। कमरे में बैठ कर चाय पीने का क्या स्वाद भला। कल जहाँ चाय पी थी, चाय वाला वर्षा के कारण वहाँ नहीं था। जिस रैस्टोरैंट में चाय पीने बैठे, मैंने उसके मालिक से पूछा,’’अवैध निर्माण पर जिनके कारोबार पर बुलडोजर चला है, बरसात में उनका क्या होगा? उसने जवाब दिया,’’हमारे पड़ोसी हैं, बरसात में हम सब उनके रहने ,खाने का इंतजाम करेंगे।’’ सुनकर बड़ा अच्छा लगा। रात को हमने गुजराती बिना हल्दी की कढ़ी, भात, लौकी वाली गट्टे की सब्जी और थेपले खाये।क्रमशः



अवैध निर्माण के अवशेषों पर, स्थानीय लोगों के चेहरे पर उजड़े रोज़गार से गहरी वेदना थी। उनके बिखरे हुए सामान के पीछे प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा देखते बनती थी। इस नज़ारे को देख कर कहीं पढ़ी ये लाइने याद आ गई,’तुझसे भी दिल फ़रेब हैं, ग़म रोज़गार के।
अगले दिन इटारसी से हमारी पिपरिया के लिये गाड़ी में सीट रिजर्व थी। सड़क मार्ग से हम इटारसी स्टेशन पहुँचे। इटारसी जंगशन है। स्टेशन पर मुझे एक बात ने बहुत हैरान किया। वह यह कि मैं बहुत सफर करती हूँ इसलिये बर्थ पर लेटे लेटे ही, मैं दुर्गंध से बता देती हूँ कि स्टेशन आने वाला है। पर इटारसी के स्टेशन पर बदबू नहीं थी। ट्रेन एक घण्टा लेट थी। यहाँ स्टेशन पर पाव भाजी की प्लेट लगा कर, उस पर नमकीन डालकर देते हैं। जो पावभाजी के स्वाद को और बढ़ा देता है। यहाँ पर पिपरिया के लिये सुबह ग्यारह बजे की ट्रेन में अपनी बोगी में सवार हुए। हमारी रिर्जव सीटों पर और लोग बैठे थे, थोड़ा सा सफर था। इसलिये जिसको जहाँ सीट मिली, वहीं बैठ गया। पर मेरी सीट खिड़की की थी इसलिये मैंने सीट खाली करवाने के लिये उसपर बैठे आधुनिक फैशन के अनुसार तराशी गई मूंछो वाले युवक से सीट खाली करने को कहा। वो कुछ बोलता, उससे पहले दूर साइड सीट की अपर सीट से उसकी माँ बोली,’’बैठा रहने दो न, बच्चा है, खिड़की से नज़ारे देखता हुआ जाना चाहता है। आप उसकी सीट पर बैठ जाइये न।’’मेरे कुछ बोलने से पहले ही कुछ सवारियाँ बोल उठी,’’दाढ़ी मूंछ वाला तुम्हारा छोरा तो बच्चा है, तो ये बहन जी भी बच्ची हैं।’’ बाकि सवारियों की आँखें एक्सरे मशीन की तरह मेरी अवस्था का अंदाज लगाने लगी। उस युवा ने अपने परिवार की इच्छा के विरूद्ध, उन्हें चुप रहने को कहकर मुझे मेरी सीट दी। मैं धन्यवाद कह कर, बैठ गई। उसी महिला ने पूरी आलू की सब्जी आचार निकाल कर काग़ज की प्लेट में डाल डाल कर अपने परिवार के सदस्यों को देना शुरू किया। उसके आचार की खूशबू से पूरा डिब्बा भर गया। बाकि सवारियों के साथ मुझे भी उसने खाने को पूछा, सबके साथ मैंने भी धन्यवाद कर दिया। इसके साथ ही माहौल ही बदल गया। सीट खाली करवाने का गुस्सा भी खत्म। जो भी कुछ खाने को निकालता वह सहयात्रियों से लेने को जरूर कहता था पर बदले में सब धन्यवाद देते। यहाँ किसी ने भी खाना भी एक्चेंज नहीं किया जबकि राजधानी में मिलने वाली खाने की थाली से चावल खाने वाले, सहयात्री को परांठे का पैकेट देकर, बदले में चावल का बाॅक्स ले लेते हैं।



