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Monday 30 May 2016

Madhya Pradesh अनहोनी में महिलाओं का गर्म पानी का कुण्ड और सतधारा हाय! तुम ऐसी क्यों हो?.............मजबूरी भाग 7 नीलम भागी



अनोखा मध्य प्रदेश,  अनहोनी में महिलाओं का गर्म पानी का कुण्ड और सतधारा हाय! तुम ऐसी क्यों हो?.............मजबूरी।
                                                             नीलम भागी
अनहोनी के गर्म पानी के कुण्ड से हैरानी से चीखते हुए पैर निकाल कर, अब हम धीरे से हाथ गीले कर अपने चेहरे और बालों को गीला कर रहे थे। जिनको त्वचा रोग थे, वो पानी भर कर कुण्ड से दूर नहा रहे थे। जो भी आता बोतलें भर कर पानी जरूर साथ ले जाता, सिवाय हमारे। खै़र, हमारी तो एक बार बाल गीले करने से ही डैण्ड्रफ दूर हो गई। कुछ महिलाओं को हमारी चीख से ही पानी के तापमान का अनुभव हो गया। वे कुण्ड तक ही नहीं आ रहीं थी, किनारे पर खड़ी हमें देख रहीं थी। मैंने पूछा,’’आप पानी को छुए बिना कैसे तापमान का अनुमान लगा सकती हो? पानी बहुत गर्म है, पर फफोले तो नहीं डाल रहा न। इतने गर्म तवे से रोटी उतार लेती हो, तो यहाँ भी पानी छू कर तो देखो।’’अब वे भी सीढ़ियाँ उतर कर पानी छूकर, खुश और आश्चर्यचकित हो रहीं थीं।मैं भी अपनी आदत के अनुसार आस पास का मुआयना करने लगी। चारों ओर जंगल से घिरा मंदिर था। उसके आगे एक कुण्ड था। जिसमें पानी लगभग खौल ही रहा था क्योंकि उसमें बुलबुले उठ रहे थे। इस कुण्ड का पानी तापमान गिराने के लिये दो कुण्डों में जा रहा था ताकि लोग इसका उपयोग कर सकें। एक कुण्ड का अनुभव हमने ले लिया था। दूसरे कुण्ड की सफेद रंग की ऊँची बाउण्ड्री वॉल बनी थी। जिस पर लिखा था ’महिला स्नान घर’ पढ़ते ही मन खुश हो गया, ये देख कर कि यहाँ महिलाओं का कितना ध्यान रक्खा गया है। पर अंदर जाते ही मन दुख और क्षोभ से भर गया। दुख, वहाँ फैली गंदगी देख कर और क्षोभ इस पर की ये सारी गंदगी महिलाओं द्वारा फैलाई गई थी, जो अपने घरों को सजा संवार कर रखती हैं। वे मजबूर थीं, कारण आसपास कोई टॉयलेट नहीं था। मजबूरी में यहाँ वे प्राकृतिक क्रिया से फारिग़ हो रहीं थी। ये भी बिल्कुल पुरूषों के कुण्ड जैसा था। लेकिन यहाँ की गंदगी के कारण आप एक मिनट भी रूक नहीं सकते। यहाँ से कुछ दूरी पर खेत भी दिखाई दे रहे थे। पास में ही एक आदिवासी परिवार ने एक साफ सुथरे बड़े से छप्पर के नीचे दुकान और रैस्टोरैंट खोल रक्खा था। महिला चूल्हे पर खाना बना रही थी। जो भी खा रहे थे, उन्हें परोसने में जरा भी कंजूसी नहीं कर रही थी। वहाँ चारपाई बिछी थी, हम उस पर बैठ गये क्योंकि शुक्ला जी ने एक छोटे से लड़के को मिठ्ठू लाने को कहा। वह आदिवासी लड़का बड़ी फुर्ती से पेड़ पर चढ़ा और उतरा। उतरते ही उसने जेब से दो तोते निकाल कर शुक्ला जी के हाथों में रख दिये। बदले में उन्होने उसके हाथों में पचास का नोट रख दिया। नोट लेते ही लड़का खुशी से ये जा वो जा। हमारा खाने का समय नहीं था फिर भी हमने महिला से एक एक गर्म चूल्हे की रोटी और उसी पर बैंगन की सब्जी हथेली पर रखकर खाई। ताजे बैंगन में सिर्फ मसालों के नाम पर केवल हरी मिर्च और अदरक था। सब कुछ ताजा इसलिये स्वाद भी अलग। जिप्सी पर बैठे और तोतो को एक गत्ते के डिब्बे में रख, हम सतधारा की ओर चल पड़े। रास्ते में वर्षा शुरू हो गई। खुली गाड़ी पर शुक्ला जी ने तिरपाल डाला और चल पड़े। कुछ समय बाद पानी तेज हो गया, अब हम रास्ते में एक गाँव की चाय की दुकान पर रूके। वहाँ हाथ से पीसी दाल में प्याज और हरी मिर्च मिला कर टिक्की और समोसे तले जा रहे थे। हमने चाय बनवाई। साथ में दाल टिक्की ली। जो बहुत स्वाद थी। शुक्ला जी ने समझाया कि चाय के साथ समोसा खाते हैं और टिक्की मट्ठे के साथ खाई जाती है। उसी समय दुकानदार ने हमें कटोरियों में मट्ठा डाल कर दिया। ये कॉम्बिनेशन गज़ब का था। मैंने सोचा घर जाकर मै भी बनाऊँगी। उससे दाल का नाम पूछा। बदले में उसने पीठी का पतीला दिखा कर दाल का नाम बताया जो मुझे समझ नहीं आया। वर्षा भी थम गई। हम भी चल पड़े। चलते हुए अचानक गाड़ी कच्चे रास्ते पर उतर कर जंगल को पार करती हुई एक जगह रूकी । हम गाड़ी से उतर कर विस्मय विमुग्ध सतधारा को देख रहे थे। क्रमशः