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Monday 23 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश, दर्शनीय पचमढ़ी Pachmarhi Madhya Pradesh Part4 भाग 4 Neelam Bhagi

  भरवां परांठे और छोले भठूरे यहाँ भी नाश्ते में बन रहे थे। रैस्टोरैंट में आर्डर करके हम इंतजार करने लगे। वहाँ एक बड़ा पिंजरा टंगा था, उसमेंं रंग बिरंगे पक्षी चहचहा रहे थे। मैंने रैस्टोरैंट मालिक से पूछा,’’इतने सुंदर जंगल के पक्षी आपने पिंजरे में क्यों कैद कर रक्खे हैं?’’ उसने जवाब दिया,’’ ओजी मुझे क्या जरूरत है, उड़ते परिंदों को कैद करने की। ये जो(अपने क्रमचारियों कि ओर इशारा करके)  आदिवासी हैं न जी, साप्ताहिक छुट्टी पर घर जाते हैं। इनको छोड़ आते हैं, नये ले आते हैं। ये भी शहर घूम जाते हैं। हे...हे...हे..ह.े..।’’पचमढ़ी की आबादी करीब दस हजार है। राजा हमें सबसे पहले चर्च फिर पाण्डव गुफा जहाँ पाण्डवों ने वनवास काटा था, ले गया। पाँच मढ़ी(गुफाएं), कहते हैं इसलिये इस जगह का नाम पचमढ़ी पड़ा। इसमें द्रोपदी की गुफा हवादार, रोशनी वाली और भीम की गुफा अंधेरी थी। यहाँ से गुप्त महादेव गये जो दो पहाड़ियों के बीच संकरा रास्ता है। उसमें से दर्शन करने जाना होता है। यहाँ हमने तेंदू फल और उबले हुए नमक लगे जंगली बेरों का भी स्वाद लिया। किसी भी यात्रा में मुझे गाइड लेना पंसद है। उनके पास तकरीबन हर एक प्वाइंट की एक लोक कथा भी होती है। जिसे सुनना मुझे अच्छा लगता है।  महादेव और अंबामाई के दर्शन किये। सभी के साथ गाइड ने हमारे धर्म ग्रंथों की कथाएं सुनाई। जहाँ भी जाते एक तो रास्ता मनमोहक उस पर गाइड का वर्णन उसे और भी खूबसूरत बना देता। मसलन हम हन्डी खोह जा रहे थे। जीप में जंगल में मुझे कुछ लोग दिखे जिसे देखते ही मैंने पूछा,’’ये जंगल में डरते नहीं, ये जगह तो जंगली भैंसो के लिये प्रसिद्ध है।’’ वह बोला,’’ ये आदिवासी हैं। सिनेमा देखने से ये कपड़ा पहनने लगे हैं।’’ मैंने पूछा,’’इनका गुजारा कैसे होता है?’’उसका जवाब था,’’ हैना जंगल, इतनी जड़ी बूटियाँ। ये जो आप छोटे छोटे लाल फूलों के गुच्छे देख रहीं हैं न, यह चिरौंजी के फूल हैं। जो खीर और मिठाई में पड़ती है। इसे ये दो, चार सौ रूपये किलो में बेच आते हैं। हैरानी हुई चिरौंजी का रेट सुनकर।
 हन्डी खोह वनस्पतियों से घिरी, 300 फीट सबसे गहरी सबसे तंग घाटी है। इस घाटी से नीचे बहते पानी की आवाज स्पष्ट सुनाई देती है। हम विस्मय विमुग्ध प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे। गाइड उससे संबंधित पौराणिक कथा सुनाकर उसकी खूबसूरती को और बड़ा रहा था। कथा के समापन पर मैंने उससे पूछा,’’इसका नाम  हन्डी खोह क्यों पड़ा?’’उसने बताया कि एक हन्डी साहब थे। उन्हें पचमढ़ी में रहना बहुत भाता था। लेकिन ब्रिटेनिया सरकार ने इग्लैंण्ड से उन्हें वापिस बुला लिया। वे यहाँ से जाना नहीं चाहते थे। सरकार का हुक्म कैसे टालते भला। तो साहब ने यहाँ से कूद कर अपनी जान देदी उन्होंने इंग्लैण्ड जाने से अच्छा दुनिया से जाना समझा, इसलिये उनके नाम से इस जगह का नाम हन्डी खोह पड़ गया। मुझे अब पचमढ़ी में आना बहुत अच्छा लगा। जिस जगह पर रहने के लिये एक विदेशी ने अपनी जान दी, मैंने उस कुदरत के सौन्दर्य को देखा। यहाँ से हम प्रियदर्शनी प्वाइंट गये। रास्ते में नागफनी पहाड़ मिला। जिसका आकार कैक्टस की तरह हैं। यहाँ कैक्टस के पौधे बहुतायत से पाये जाते हैं। प्रियदर्शनी सतपुड़ा की पहाड़ियों का ऐसा प्वाइंट है, जहाँ से चौरादेव, महादेव और धूपगढ़ की चोटियाँ  दिख रहीं थीं। यहाँ से सूर्यास्त का मनमोहक नज़ारा देखकर लौटे रहे थे, मौसम बरसात का होने लगा। जैसे ही हम होटल पहुँचे, बारिश होने लगी। राजा अगले दिन, नौ बजे आने का बोल कर चला गया। सबसे सुना था कि बरसात में पचमढ़ी बहुत सुन्दर हो जाती है। अब देख भी लिया कि वे सच कहते हैं। आराम करके, बारिश रूकने पर हम चाय के लिये चल दिये। होटल वाले ने कहा,’’ मौसम खराब है। आपको रूम में चाय भिजवा देता हूँ।’’हमने उसे धन्यवाद किया और चल दिये बाहर। मैं यहाँ घूमने आयी थी। कमरे में बैठ कर चाय पीने का क्या स्वाद भला। कल जहाँ चाय पी थी, चाय वाला वर्षा के कारण वहाँ नहीं था। जिस रैस्टोरैंट में चाय पीने बैठे, मैंने उसके मालिक से पूछा,’’अवैध निर्माण पर जिनके कारोबार पर बुलडोजर चला है, बरसात में उनका क्या होगा? उसने जवाब दिया,’’हमारे पड़ोसी हैं, बरसात में हम सब उनके रहने ,खाने का इंतजाम करेंगे।’’ सुनकर बड़ा अच्छा लगा। रात को हमने गुजराती बिना हल्दी की कढ़ी, भात, लौकी वाली गट्टे की सब्जी और थेपले खाये।क्रमशः